फिल्म समीक्षा : तुम बिन 2
फिल्म रिव्यू
याद और फरियाद के बीच
तुम बिन 2
-अजय ब्रह्मात्मज
2001 : 15 साल पहले पिया ने अमर से प्रेम किया था। अमर एक दुर्घटना में मारा गया। पिया अकेली रह गई। शेखर उसका सहारा बना। इस बीच अभिज्ञान को पिया अच्छी लगती है,लेकिन पिया तो शेखर से प्यार करने लगी है। शेखर पिया की जिंदगी से निकल जाना चाहता है। पिया अभिज्ञान से सगाई कर लेती है। शेखर अपना प्रेम छिपा नहीं पाता। अमर के परिवार के लोग भी मानते हैं कि शेखर ने बहुत कुछ किया है उनके लिए। अभिज्ञान पिया को शेखर के पास भेज देता है।
2016 : इस बार तरन का प्रेम अमर से होता है। अमर एक दुर्घटना का शिकार होता है। उसका पता नहीं चलता। दुखी तरन की जिंदगी में शेखर आ जाता है। तरन फिर से खुश रहने लगती है। वह शेखर की मदद से अपने पांव पर खड़ी होती है। शेखर उसकी नयी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है,लेकिन अमर की यादें कायम हैं। इस बीच किसी चमत्कार की तरह अमर वापस लौट आता है। अब तरन की मुश्किल होती है। वह दोनों को पसंद करती है। अमर उसका अतीत है। शेखर उसका वर्तमान है। उसे अपना भविष्य तय करना है।
पिया और तरन के व्यक्तित्व में पंद्रह सालों के अंतराल में थोड़ा फर्क आया है। यों दोनों को लगता है कि उसके प्रेमी उसकी भावनाएं और प्रेम नहीं समझ पा रहे हैं। तरन भावनाओं की उथल-पुथल के बावजूद स्थिर और संयमित दिखती है। कुछ समय तक वह दोनों के बीच संतुलन बना कर चलती है। प्यार हिलोरें मारता है। वह अमर और शेखर के बीच अपने प्रेम की वजह से पिस रही है। अमऔर शेखर अपने तई तय करने लगते हैं कि तरन क्या करे? बुजुर्ग सलाह देते हैं कि वह सही करे। वह दोनों में किसी से झूठ नहीं बोलती। उन्हें धोखा भी नहीं देती। दोनों प्रेमी अपनी जिंदगी(मुट्ठी) से तरन को फिसलते देख दुखी होते हैं। शराब पीते हैं। गम पालते हैं। एक्सीडेंट करते हैं। वे तरन को गिल्ट में डाल देते हैं। और नेक प्रेमी भी बने रहते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रेमियों के नाम अमर और शेखर ही रहते हैं।
अनुभव सिन्हा ने प्रेम को समझने और समझाने की कोशिश की है। हालांकि फिल्म में एक संवाद है कि प्यार बेवजह होता है,लेकिन अमर,शेखर और तरन के चरित्र में गहरे उतरें और खेज करें तो पाएंगे कि उनका त्रिकोणीय प्रेम बेवजह नहीं है। उसकी वजह है। उस वजह को नजरअंदाज करने से ही उलझनें पैदा होती हैं और उनके सहज रिश्ते उलझते हैं। 2016 में प्रेम चाहत और चुनाव से आगे की चीज हो चुकी है। फिल्मों में अभी तक यह चाहत और चुनाव के बीच की कमजोरी की तरह डील की जा रही है। तरन एक दृश्य में बिफर कर कहती ही है कि ‘किस से प्यार है मेरा,यह तुम तय करोगे शेखर...यह हक मेरा है’। इस समझदारी के बावजूद तरन की उलझन और दुविधा बनी रहती है,क्योंकि अमर के बगैर उसका कोई सपना पूरा नहीं होता और इधर जिदगी शेखर के साथ नए सपने दिखा रही है।
अनुभव सिन्हा ने अमर,शेखर और तरन के बीच प्रेम के पहलुओं को नए दृष्टिकोण के साथ रखा और चित्रित किया है। चूंकि इन दिनों प्यार-मोहब्बत और जीवन की ठोस या अमूर्त बातें कम सुनाई पड़ती हैं,इसलिए ‘तुम बिन 2’ के संवाद फिल्मी या किताबी लग सकते हैं। शेखर के पास हर प्रसंग के लिए दर्शन है,लेकिन खुद भावनात्मक झंझावात में फंसने पर वह बिखर जाता है। शायद हम सभी नाजुक पलों में बिखर जाते हैं। ऐसी छिटपुट कमियों के बावजूद अनुभव सिन्हा के किरदार मानवीय और विश्वसनीय लगते हैं। उनकी दुविधाएं और अकुलाहट स्वाभाविक लगती हैं। ऐसी फिल्मों में अचानक दूसरी फिल्में दिखाई देने लगती हैं,क्योंकि प्रेम में उनके किरदार भी ऐसे प्रसंगों और दृश्यों से गुजरे होते हैं। अनुभव सिन्हा मौलिक नहीं हैं,लेकिन उन्होंने अपनी ही फिल्म से बीज लिए हैं।
फिल्म में गाने हैं। वे थीम और सीन के मुताबिक हैं। कई गीतों में अवसाद पसरा हुआ है। जगजीत सिंह और रेखा भारद्वाज की आवाज किरदारों की उदासी जाहिर करती हैं। इन दिनों गीतों के बोल पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। उस लिहाज से मनोज मुंतशिर और अंकित तिवारी ने उल्लेखनीय संगत की है।
यों गालिब बहुत पहले लिख गए थे...
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
के लगाये न लगे और बुझाये न बने। ।
गौर करें तो तरन इश्क की इसी आतिश में सुलग रही है।
अवधि- 147 मिनट
तीन स्टार
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