अजय देवगन से विस्‍तृत बातचीत - 1



अजय देवगन से यह विस्‍तृत बातचीत 'शिवाय' की रिलीज के पहले हो गई थी। इसके कुछ अंश प्रकाशित हुए। इतनी लंबी बातचीत एक साथ पोस्‍ट कर पाना सहज नहीं है। देर करने से अच्‍छा है कि इसे धारावाहिक के तौर पर प्रकाशित कर दें...आज प्रस्‍तुत है पहला अंश।

-अजय ब्रह्मात्‍मज

-सबसे पहले शिवाय के बारे में आप जो पहले बताना चाह रहे हो?
०- शिवाय के कांसेप्ट के बारे में आपको फिल्म के वक्त पता चलेगा।  मैं इस फिल्म के बारे में कहना चाहूंगा कि इस स्केल की फिल्म पहले हिंदुस्तान में नहीं बनी है। ऐसा एक्शन कभी देखने को नहीं मिला है। हमारा आइडिया सिर्फ ऐसा एक्शन करना नहीं है। आइडिया यह है कि एक्‍शन के साथ पारिवारिक ड्रामा और इमोशनल ड्रामा हो। इसके लिए आपको अपने कंफर्ट जोन से निकलना पड़ता है। क्योंकि आप इतनी फिल्में कर चुके होते हैं। और इतनी फिल्में बन चुकी होती हैं। एक बात होती है कि कोई कोशिश  नहीं करना चाहता है। यह अलग बात है कि मेहनत तो सभी करते हैं। इसमें शुन्‍य से 20 डिग्री नीचे के तापमान पर हमें शूट करना था।ऐसी लोकेशन पर शूटिंग करना, जहां पर आप आसानी से पहुंच नहीं सकते हो। ऐसी जगहों पर आप केवल हेलीकॉप्टर से ही पहुंच सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि एक फिल्म की लागत। उस लागत में से आप फिल्म पर कितना खर्च करते हैं, कलाकार को कितने पैसे देते हैं, निर्देशक को कितने पैसे देते हैं, स्टार कास्ट को कितने पैसे देते हैं? किसी भी फिल्‍म के निर्माण में आधे से ज्यादा पैसा आपका उसमें चला जाता है। इस फिल्म में मैंने बतौर निर्देशक ,एक्टर और निर्माता कुछ नहीं कमाया है, बल्कि अपनी जेब से औऱ पैसे लगाए हैं। अब आप सोच सकते हैं कि किस पैशन के साथ यह फिल्म बनाई गई होगी। मतलब दो सालों से लगा हूं। मैंने इस फिल्म के अलावा कुछ और नहीं किया और न करना चाहा। कई कमर्शियल लोग आकर मुझे कहते हैं कि तू बेवकूफ है। डेढ़ साल हो गए। तू इतना पैसा कमा सकता था। उल्टा अपनी जेब से पैसे लगाकर फिल्म बना रहा है। इस तरह सबका अपना-अपना अप्रोच है। काम तो हमने बहुत कर लिया। अब आगे क्या। अपनी हद तोड़ने के लिए आपको अपना कंफर्ट जोन छोड़ के ऐसा कुछ करना पड़ता है जो कि आज तक न हुआ हो। कोशिश तो वही होती है। उसके बाद दर्शक तय करते हैं कि फिल्म का क्या होगा? लेकिन एक आप की कोशिश और सच्चाई तो नजर आती है। यह केवल मेरे अकेले की बात नहीं है। मैं अपनी पूरी यूनिट की तरफ से यह कह रहा हूं। जिस कंडिशन पर औऱ जिन लोकेशन पर उन लोगों ने काम किया है, वह काबिलेतारीफ है। यह सब वही लोग कर सकते हैं। साढे़ तीन सौ-चार सौ की मेरी यूनिट थी। दूसरी फिल्‍मों में यूनिट के सभी सदस्‍य यह नहीं समझते कि यह उनकी फिल्म है। वे वहां सिर्फ काम करते हैं। बहुत कम ऐसी फिल्म होती है,जिसमें पूरी यूनिट को लगता है कि यह उनकी फिल्म है। यह मेरा सबसे बड़ा प्लस पाइंट रहा है। मैं मानता हूं कि मेरी टीम पुरानी है। यह टीम पहले से मेरे साथ काम कर रही है। ये लोग मेरे लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। फिर भी इतनी हार्डशिप सहना। आप माइनस डिग्री पर इतनी ऊंचाई पर काम करना, जहां पर आपको खाना भी चलते-चलते करना पड़ता है। खाना भी ठीक से नहीं मिल रहा है। यह सबसे बड़ा त्याग है।

-पर यह तो इस इस पर निर्भर करता है कि कैप्टन कैसा है? वह कैसे अपने विजन को सबका विजन बना लेता है।
०- जी, बिल्कुल। मैं आपकी बात मानता हूं,लेकिन उसमें आप तीन सौ में से सौ को अपनी तरफ कर सकते हो। बाकी लोगों को नहीं। सबका आपके साथ चलना। वह भी बिना आप के कहे। उन्हें लगे कि वह कुछ ऐसा बनाना चाहता है, जिसे हम भी दिखाना चाहते हैं। यह उनका क्रेडिट है। उनका योगदान है।

-आप अपनी हद तोड़ने की बात कह रहे थे। यह केवल एक्टर और निर्देशक अजय देवगन की हद को तोड़ना है या फिर हिंदी सिनेमा की हदें तोड़ कर फिल्‍म को आगे बढ़ाना है?
०-कुल मिलाकर हिंदी सिनेमा की बात को आगे बढ़ाना है। मुझे किसी की हद को आगे बढ़ाने का हक नहीं है। मैंने वह जिम्मेदारी भी नहीं ली है,लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के सदस्‍य के तौर पर जिम्‍मेदारी महसूस करता हूं । आपको फिल्म इंडस्ट्री ने इतना दिया है तो आपको भी कुछ करना चाहिए। और फिर एक जैसा काम करने से बोरडम हो जाता है कि यार, कब तक वही चीजें करते रहेंगे। और अगर आप बढ़ा सकते हैं, तो फिर क्यों नहीं? काम करते पच्चीस साल हो गए। अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे? हां,सिर्फ पैसा ही कमाना है तो फिर रुटीन काम करते रहो। बाकी लोग कर ही रहे हैं। मैं भी काम करता रह सकता हूं। मेरा मन था कि हम एक कोशिश तो करें। ऐसा नहीं है कि हमारे पास ऐसे लोग या तकनीशियन नहीं हैं। बजट के हिसाब से मुश्किलें जरूर आती हैं,लेकिन..
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-हां,जैसे हॉलीवुड औऱ बाहर में बजट होता है?
०- आज अगर यह फिल्म में हॉलीवुड में बनाऊं तो हजार करोड़ की फिल्म होगी। उससे नीचे की फिल्म नहीं होगी। मतलब आप किसी भी हॉलीवुड की फिल्म से तुलना कर लें, आपको लगे कि कहीं कोई कमी है तो आप मुझे आकर सीधे कह सकते हैं।

-ऐसा होता है कि आप परफ़ॉर्मर के तौर प्र इंडिविजुअल परफॉर्म कर रहे होते हैं,लेकिन इंडस्‍ट्री और देश के लिए भी कुछ कर रहे होते हैं। जैसे खेल में होता है ना। सचिन ने शतक लगाया। वह सचिन की निजी अचीवमेंट है,पर कहीं ना कहीं क्रिकेट की भी अचीवमेंट है।
०- जी , बिल्कुल। अप्रोच वही है ना। आज आप मुझे बताइए। उस दिन मैं एक लेख पढ़ रहा था। आज हमारी फिल्में हॉलीवुड फिल्म से स्पर्धा करने पर उतर आयी हैं। आप बड़े स्टार की बात करते हैं। आप इधर की कुछ फिल्में देखें तो बड़े स्टार से ज्यादा बिना स्टार वाली हॉलीवुड फिल्मों ने कमाई की है। ऐसा क्यों? क्योंकि हमारे दर्शकों को एक्सपोजर मिल गया है। मैं केवल क्लास की बात नहीं कर रहा हूं। मैं मास की बात कर रहा हूं। आज आप जगंल बुक भी देखते हैं, उसमें कौन सा बड़ा हीरो था। एक छोटा सा बच्चा था। आप दर्शकों को मौका क्यों दे रहे हो कि वह सामने वाले की फिल्म देखे? आप खुद क्यों सामने नहीं आ रहे हो। आज हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं, इस वजह से वे आगे बढ़ रहे हैं। मेरे ख्याल से हमारे दर्शक आगे बढ़ चुके हैं। अब हम आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करेंगे तो फायदा क्या है? एक पल आता है आपकी लाइफ में... आपके हाथ में वह क्षमता है तो उस बार को क्‍यों ना आगे बढ़ाएं। अगर आप देखेंगे कि तकनीक के लिहाज से भी कितनी ऐसी चीजें हैं जो हिंदुस्तान में हुई हैं। हमारे यहां 3जी रिवोल्‍यूशन हुआ। हेलीकैम हिंदुस्तान में पहली बार आया। ऐसी कितनी सारी चीजें हमने पहली बार की हैं। पहली बार पैनविजन का इस्तेमाल हिंदुस्तान में मैंने किया है। ऐसी कई सारी चीजें हैं। जहां हम कुछ कर सकते हैं,वहां कर रहे हैं। और फिर यह एक ऐसा स्क्रिप्ट थी, जिसमें बहुत ही अच्छा ड्रामा था। उसको उस स्केल पर लेकर  जाना, इसके लिए बहुत अधिक हिम्मत की जरुरत थी। ऊपर वाले ने मेरा साथ दिया। जब मैं शूट करने जा रहा था तो डर था कि जो मैंने विजुअलाइज किया है, वह होगा कैसे? हम ठंड में शूटिंग कर रहे हैं तो लोग कह रहे थे कि सत्तर दिन की शूटिंग आपको नब्बे दिन पकड़कर चलनी पड़ेगी। नौ बजे सूरज निकलता है और चार बजे सूरज चला जाता है। और ठंडी है। ठंडी में आंधी-तूफान सब मिलेगा। तीन महीने के मौसम में एक महीना यही हाल रहेगा। जो हमने सोचा,जैसा सोचा,वैसा हुआ। यह सब ऊपर वाले के मदद से हुआ। सारी चीजें अपने समय पर हुई। आपकी नियत ठीक हो तो ऊपरवाला भी देखता है यार कि चलो इतने सारे लोग काम कर रहे हैं उनको भी तकलीफ ना हो।

 -आप शुरू से ही इतने टेक्नो सैवी  रहे हैं?
०-आप किसी भी चीज के बारे में मुझ से चर्चा कर लीजिए। तकनीक की हमेशा से मुझे चाह रही है।

-जी , आपने ही वीएफएक्स शुरू किया था?
०- जी, आज मेरी अपनी बड़ी कंपनी है। आप मुझ से ऑडियो विजुएल का मीडिया के बारे में किसी भी विषय की चर्चा कर लें । फिल्म इंडस्ट्री के बारे में मैं यही नहीं कहूंगा। बाकी यही मेरी हॉबी रही है। यही मेरा शौक रहा है। इसमें मैंने हमेशा अपने आप को अपग्रेड किया है। नई नई चीजें करने की कोशिश की है। 

-तो फिर हम लोग हॉलीवुड से कहां पीछे हैं या कहां उनसे आगे बढ़े हुए हैं?
०- एक तो मैंने जैसा कहां कि कंफर्ट जोन से बाहर आकर हमें काम करना होगा। आज अंतर यह है कि हम ने जो माइनस पंद्रह सा बीस डिग्री में काम किया। यही काम हम अगर हॉलीवुड में कर रहे होते तो पूरे एरिया को हिट अप कर देते । मैंने देखा है। मैं जब कैनाडा रेकी के लिए गया था। उन्होंने कहा था कि यहां से लेकर वहां तक हिटअप कर देंगे। वह हम अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। उसके लिए उनके पास पैसे हैं।

-और फिर उनकी फिल्‍मों का इंटरनेशनल दर्शक हैं।
०- इंटरनेशनल दर्शक हमारे क्यों नहीं हो सकते हैं? इंटरनेशनल दर्शक तो बाद में पर क्या हमारे दर्शक कम हैं। जितनी उनकी इंटरनेशनल दर्शक हैं]उतना हमारे हिंदुस्तान में हैं!

-लेकिन शायद हमारी क्षमता नहीं है?
०- सर,क्षमता की बात नहीं है। हमें अपनी पहुंच बढ़ानी होगी। आप जहां तक आबादी है,वहां तक थिएटर बनवाइए। जरूरी थोड़ी ना है कि वहां पर भी आपको तीन सौ चार सौ रूपए की टिकट मिले। वहां पर आपकी जमीन सस्ती है। बाकी की चीजें सस्ती हैं। आप वहां भी थिएटर बनाएं। फिर देखिए आपके दर्शक कितने बढ़ते हैं। उस हिसाब से फिल्‍म इंडस्‍ट्री में यूनिटी की कमी है।

-लेकिन तकनीक के तौर पर पीछे रहने की बात बहुत सारे लोग करते हैं। एक तौ पैसा बड़ा फैक्टर है।
०- एक तो पैसा बड़ा फैक्टर हैं और दूसरा बड़ा फैक्‍टर इंटेंशन है। जैसा कि मैंने कहा आज पैसा मेरे लिए बड़ा फैक्टर है। जिस बजट में मैंने फिल्म बनाई,उसमें मैं डायरेक्टर और बाकी सब का खर्च लेकर करता तो शायद फिल्म ही नहीं बना पाता। मुमकिन ही नहीं था। फिर बजट ही जोड़ते हुए जान निकल जाती। इसके लिए मैंने क्या किया? जो मुझे लेना चाहिए था,उसे पूरा त्याग दिया। पूरा ही फिल्म में लगा दिया। फिल्म के बजट का तीस प्रतिशत ही फिल्म में लगाया जाता है,बाकी तो लोग(कलाकार आदि) ले जाते हैं।

Comments

Unknown said…
Blockbuster Shivay sir sallute you sir
शुभम said…
आपकी मेहनत दिखती है शिवाय मैं , और आज जब छोटे शहरो मैं भी लोग एकल सिनेमाघर में अवेंजेर्स और स्पाइडर मेन देख रहे है तो हमारी इंडस्ट्री को कुछ तो अलग करना होगा |

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