कायम रहे हमेशा इश्‍क - हर्षवर्धन कपूर



-अजय ब्रह्मात्‍मज

अनिल कपूर के बेटे और सोनम कपूर के भाई हर्षवर्धन कपूर की पहली फिल्‍म मिर्जिया आ रही है। इसके निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा हैं। इस फिल्‍म की स्क्रिप्‍ट गुलजार ने लिखी है। 

-कितनी खुशी है और कितनी घबराहट है?
० बहुत ही यूनिक हालत हैं। यह बहुत ही अलग किस्म की फिल्म है। गुलजार साहब ने लिखी है। उनके लिखे को राकेश ओम प्रकाश मेहरा साहब ने पर्दे पर उतारा है। यह मिर्जा-साहिबा की प्रेम कहानी है। उनकी एक एक्सटर्नल लव स्टोरी है,जो यूनिवर्स में प्ले आउट होती है।  उनके बीच के रोमांस का यह आइडिया है कि वह हमेशा रहे। इसमें 2016 का राजस्‍थन भी है। आदिल औऱ सूचि आज की कहानी के पात्र है। फिल्‍म में गुलजार साहब ने एक लाइन लिखी है, मरता नहीं इश्क मिर्जिया सदिया साहिबा रहती हैं। देखें तो प्यार कभी मरता नहीं। वह इंटरनल सोल में रहता है। 

-मतलब एक सदी में आना है औऱ एक सदी से जाना है?
० जी बिल्कुल। यह बहुत पोएटिक है। गुलजार साहब बहुत ही सोच समझकर लिखते हैं। आप आज एक सीन पढ़ लें और दस महीने बाद उसे फिर से पढ़ें तो फिर अलग नजरिए से सोचने लगते हैं। यही गुलजार साहब के लेखन की खूबसूरती है। उनके लेखन को राकेश सर ने विजुअल आइडेंटिटी  दी है। मैं आज यहां बैठकर नहीं कह सकता हूं कि फिल्म चलेगी या नहीं? लेकिन मैं यह डेफिनेटली बोल सकता हूं कि आपने ऐसी फिल्म कभी देखी नहीं होगी। आप के दिल औऱ दिमाग में इस फिल्म के बारे में कुछ ना कुछ जरूर बैठ जाएगा। इसे देखने का अनुभव हर किसी के लिए अलग होगा। इस फिल्‍म के बारे में लंबे समय तक बात की जाएगी। 

-किस लिहाज से आप कह रहे हैं कि इस तरह की फिल्म नहीं बनी है?
०आपने इस फिल्म का ट्रेलर और सांग ट्रेलर देखा है। उसमें विजुअल अचीवमेंट है। हमारी फिल्म ज्यादा डायलॉग हैवी नहीं है। गुलजार साहब ने स्टोरी टेलिंग का यूनिक तरीका चुना है। मिर्जा-साहिबा और आदिल-सूची की कहानी को एक साथ ब्लेंड करना एक अलग तरह का प्रयोग है। दो पैरलल स्टोरी चलती रहेगी। अगर मिर्जा-साहिबा आज होते तो कैसा होता? इसे म्यूजिकली नरेट किया गया है।

-गुलजार साहब से आपकी मुलाकात हुई तो कैसे लगा?
० शूटिंग के दरम्‍यान नहीं हुई थी। मुझे लगता है राकेश मेहरा ने हमें जानबूझ कर नहीं मिलाया है। हम लोग फिल्‍म के म्‍यूजिक लांच के समय मिले। खूब बातें कीं। उनकी लिखी हुई फिल्म में काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है। मिर्जा साहिबा की यह कहानी उन्होंने पंद्रह सालों के बाद लिखी है। उन्होंने हू तू तू के बाद कोई स्क्रिप्ट नहीं लिखी थी। मेरी पहली फिल्म गुलजार ने लिखी है,यह बात हमेशा मेरे साथ रहेगी। मैं इस सोच के साथ जिंदा रहूंगा।

- और फिर गुलजार और राकेश ओमप्रकाश मेहरा का कांबिनेशन?
जी बिल्कुल। इससे बेहतर हो भी नहीं सकता और सोच भी नहीं सकते। मिर्जा साहिबा की दुनिया में मैं उसमें अच्छी तरह से फिट बैठ जाता हूं। मेरे चेहरे की कटिंग मेल खाती है। मैं उस दुनिया में खुद को देख सकता हूं। इस फिल्म ने मेरा सपना पूरा कर दिया।

-मुझे आप में संकोच दिख रहा है ?
० मैं इन्ट्रोवट लड़का हूं।

- जी,वह दिख रहा है। फिर भी ऐसी फिल्‍म के साथ क्‍या संकोच और क्‍या डर?
० जी मेरा सबसे बड़ा डर प्रमोशन है। मुझे लगता है कि हम तीन-चार साल मेहनत करते हैं और फिर दर्शकों को रिझाते हैं। दर्शकों को फिल्‍म देखने के लिए तैयार करना मुश्किल काम है। अभी उनके पास कई ऑप्‍शन है। मैं चाहूंगा कि एक सच्ची फिल्म को सभी अनुभव करें। फिल्म बनाना एक अलग चीज है। उसको रिलीज करना अलग चीज है। आप एक अच्छी फिल्म बना सकते हो, लेकिन उसकी सही मार्केटिंग भी होनी चाहिए। हमें अब नए तरीके खोजने हैं। 

- मिर्जिया से आगे कहां?
 ० जी, मेरा मकसद स्टार बनना नहीं है। मैं पहले यह कहना चाहूंगा कि कोई भी एक्टर डायरेक्टर से बड़ा नहीं है। डायरेक्टर के दिमाग में एक फिल्म होती है। उसका विजन होता है। आप उस विजन में एक किरदार हो। आप को वह किरदार डायरेक्‍टर के विजन से निभाना है। सच्‍चाई से किरदार निभाने से ही कोई स्‍टार बनता है। आपकी आंखों में सच्चाई है तो आप लोगों को इमोशनली मूव करते हैं। दर्शक आपसे जुड़ने लगते हैं। लोग बोलते हैं कि मैंने उस एक्टर को महसूस किया है। मेरा यही इरादा है। मुझे भिन्न प्रकार के किरदार निभाने हैं। स्टारडम इसी प्रोसेस में स्‍टारडम आ सकता है। अगर मैं ओवरनाइट सेंसेशन नहीं बनूं तो ठीक है।

- कब ऐसा हुआ कि आपको लगा कि आपके घर के लोग फिल्मों से हैं। आपको कब वह महसूस हुआ कि आप स्टार किड हैं?
० बहुत जल्दी पता चल जाता है। आपके पिता को लोग देखते हैं। वह पता चल जाता है। मुझे कब पता चला उसकी कोई तारीख याद नहीं है। मैंने मां के साथ ज्यादा समय बिताया है। चौदह की उम्र में पापा के साथ मेरा रिश्ता अनब्रेकेबल हुआ।

- फिल्मों में आने का कब तय किया?
० छोटी उम्र से मुझे विश्व सिनेमा का एक्‍सपोजर था। पापा डीवीडी खरीदते थे। कैसेट खरीदते थे। मैं बैठकर देखता था। वहीं से मेरी सोच डेवलप हो गई है। सतरह-अठारह साल में मुझे लगा कि अब मुझे इस फील्ड में खुद को एडुकेट करना है। फिर इस सोच में उलझा रहा कि मैं पहले एक्टर बनूं या फिर राइटर बनने के बाद एक्टर बनूं। फिर मैंने ही तय किया कि एक्टिगं से शुरू करते हैं। 

-आपने कहीं से ट्रेनिंग भी ली?
० चार साल मैं अमेरिका में रहा। वहां पर मैंने स्क्रीन राइटिंग की डिग्री ली। थिएटर एक्टर आलोक उल्‍फत से एक्टिंग ट्रेनिंग ली। मुकेश छाबड़ा से भी सीखा। मेहरा ने साउथ अफ्रीका से एक्टिंग कोच टीना जॉनसन को बुलवाया था। उनके साथ छह महीने की ट्रेनिंग ली। वह मेरी लाइफ का सबसे बेहतरीन समय था।

- क्या सीखा आपने?
० एक्टिंग ही सीखी। हर किसी का तरीका अलग होता है। आलोक थिएटर बैंकग्राउंड से हैं। छाबड़ा कास्टिंग से हैं। टीना का अमेरिकन मैथड है। वे मिर्जिया के सीन लेते थे। उस सीन को ब्रेकडाउन करते थे। और फिर उसे एक्‍ट करते थे।  जैसे कोई बोलता है कि हैप्पी और सैड बनने की एक्टिंग करो। यह सही नहीं है। पहले यह सोचना पड़ता है कि आप क्या कहना चाहते हो? इमोशन के जरिए हैप्पी और सैड का एक्शन आएगा। यह सीखने को मिला।

-किसी भी एक्‍टर के लिए पहली फिल्‍म खास होती है...
0 जी,मेरा यही मानना है कि अगर आप सच्चाई से काम करते हैं तो दर्शक को आपकी आंखों में सच्चाई दिखती है। इमोशन आता है। भले ही फिल्म नहीं चले,लेकिन एक कनेक्शन बन जाता है। मुझे लगता है कि मि‍र्जिया दर्शकों के दिलों में घर बनाएगी। पहली फिल्म में कनेक्शन हो गया तो वह हमेशा रहेगा। जैसे रितिक के साथ कहो ना प्यार में हो गया था। वह आज तक है। रणवीर के साथ पहली बार नहीं हुआ,लेकिन दूसरी फिल्म से हो गया। उनमें प्रतिभा है। 

- मिर्जिया के किरदार के बारे में आपकी क्या राय है
० मिर्जा वारियर है। वह अपने प्यार के लिए लढ़ रहा है। उसे खुद पर विश्वास है। मिर्जा मैन है। आदिल लड़का है। चौबीस साल की उम्र में मुझे दोनों किरदार निभाने थे। मेरे लिए चैलेंजिग था। हमने आदिल की शूटिगं पहले की। नवंबर से लेकर फरवरी तक। हमने चार महीने का ब्रेक लिया। मैंने अपना शरीर बदला। घुडसवारी करने का अपना तरीका बदला। आदिल और मिर्जा दोनों फिल्म में हैं। उनकी बॉडी लैगवेज अलग है पीरियड और कपड़े के हिसाब से। लोकेशन और हेयर और कपड़े से आधा काम हो जाता है। बाकी का पचास प्रतिशत काम हमें करना होता है।
फिल्म में आप देखेंगे तो लगेगा कि दोनों किरदार अलग है। आदिल और मिर्जा एक दूसरे को नहीं जानते हैं। दो अलग कहानियां हैं। यह दो फिल्मों की तरह है। मुझे ऐसा लगता है कि राकेश जी के साथ मैंने दो फिल्में कर ली है। 

- मेहरा साहेब के बारे में क्या कहेंगे। इससे बेहतर डेब्यू आपके लिए क्या हो सकता है?
० उनकी तरफ से मुझे प्रस्ताव आया था। हम लोग दिल्ली 6 के सेट पर मिले थे। मैं तब 19 साल का था। उन्हें मेरी फेशियल लुक और पर्सनैलिटी मिर्जा की कहानी में फिट लगा। तब गुलजार कहानी लिख रहे थे। हमलोगों की बात चलती रही। शुरू मेा मैंने मना कर दिया। उन्होंने कहा भी कि गुलजार लिख रहे हैं। मैं डायरेक्ट कर रहा हूं। कोई और लड़का होता तो हां कह देता। दरअसल,मुझे अंदर से फील नहीं आया। तब मैं जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं था। पढा़ई खत्म करने के बाद लौटा तब मैंने उन्‍हें कहा कि अब मैं तैयार हूं। 

- इतना धैर्य और संयम रखा आपने?
० मैं बहुत धैर्य रखता हूं। अगर मैं किसी चीज से प्यार करता हूं तो दो साल लगा सकता हूं। अगर मुझे लगा कि जो बनेगा वह वसूल होगा। यादगार होगा। लोग उस फिल्म के बारे में बात करेंगे। फिर मैं किसी हद तक जा सकता हूं। 

-मां और बहन का कितना प्रभाव है?
० मां का बहुत है। पापा व्यस्त रहते थे। मां और बहने थीं। उस उम्र में जो आता है,आप लेते जाते हैं। महिलाओं से कैसे पेश आना है, अपने आपको कैसे कंडक्ट करना है? यह सब सीखा। 

- राइटिंग की पढ़ाई की है आप ने। क्‍या फिल्‍में लिखेंगे?
० राइटर बनना है। मुझे लिखना है,लेकिन पहले एक्टर के तौर पर सम्मान और सफलता चाहिए। बाद में मन का काम कर सकूं। 30 साल की उम्र तक पांच-छह फिल्में सफल हो जाएं तो ब्रेक लेकर लिख सकता हूं। अभी नहीं।

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