दरअसल : फिल्म गीतकारों को दें महत्व
-अजय ब्रह्मात्मज
2016 के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार अमेरिकी गायक
और गीतकार बॉब डिलन को मिला है। इस खबर से साहित्यिक समाज चौंक गया है। भारत में
कुछ साहित्यकारों ने इस पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है। उन्होंने आशंका व्यक्त
की है कि भविष्य में भारत में साहित्य और लोकप्रिय साहित्य का घालमेल होगा।
वहीं उदय प्रकाश ने अपने फेसबुक वॉल पर स्टेटस लिखा... ‘बॉब डिलन के बाद क्या हम हिंदी कविता के भारतीय जीनियस गुलज़ार
जी के लिए सच्ची उम्मीद बांधें ?’ ऐसी उम्मीद गलत नहीं है।
हमें जल्दी से जल्दी इस दिशा में विचार करना चाहिए। हिंदी फिल्मों के गीतकारों
और कहानीकारों के सृजन और लेखन को रेखांकित कर उन्हें पुरस्कृत और सम्मानित
करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।
हिंदी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा दशकों से हिमायत कर
रहे हैं कि शैलेन्द्र के गीतों का साहित्यिक दर्जा देकर उनका अध्ययन और विश्लेषण
करना चाहिए। उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। उनके इस आग्रह को साहित्यकार
और हिंदी के अध्यापक सिरे से ही खारिज कर देते हैं। हिंदी में धारणा बनी हुई है
कि अगर कोई लोक्रिपय माध्यम में कर रहा है तो वह साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व
का नहीं है। उन्होंने साहित्य के प्रति पारंपरिक और शुद्ध्तावादी दृष्टिकोण
अपना रखा है। कविता,कहानी,उपन्यास ,नाटक और रेखाचित्र के अलावा किसी और प्रकार के
लेखन में शब्दों का उपयोग कर रहे श्िल्पियों को साहित्यकार नहीं मानने का
संकीर्ण रिवाज चला आ रहा है। फिल्मी गीतकारों में नरेन्द्र शर्मा,साहिर
लुधियानवी,मजरूह सुल्तानपुरी,शैलेन्द्र आदि से लेकर इरशाद कामिल,स्वानंद
किरकिरे,राज शेखर और वरूण ग्रोवर जैसे दर्जनों गीतकार हैं,जिनके गीतों में साहित्य
की स्पष्ट झलक है। उन्होंने फिल्मों के खास सिचुएशन के लिए लिखते समय भी अभिव्यक्ति
और कल्पना को उदात्त रखा। ऐसे सैकड़ों गीत मिल जाएंगे। विविध भारती के अनाउंसर
युनूस खान हिंदी फिल्मों के ललित गीतों के संकलन और विश्लेषण का नेक काम कर रहे
हैं। हमें अपना संकोच खत्म करना चाहिए।
साहित्य और लोकप्रिय साहित्य में शब्द ही मूल धुरी
है। शब्दों के प्रयोग-उपयोग से ही सभी अपनी भावनाएं और विचार व्यक्त करते हैं।
भावों की उदात्तता और व्यापकता ही लिखे,बोले या गाए शब्दों को साहित्य का रूप
देती है। इस लिहाज से बॉब डिलन का रचना संसार पिछले पांच दशकों से अमरिकी समाज को
झिंझाोड़ रहा है। उन्होंने समानता,न्याय और शांति को बोल और स्वर दिया है।
नागरिक अधिकारों से लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मसलों पर वे मुखर रहे।
उन्होंने अमेरिकी सत्ता को अपने शब्दों से चुनौती दी। अमेरिकी समाज के युवकों
को विरोध करना सिखया और न्याय के पक्ष में खड़े रहने का आह्वान किया। अमेरिकी
समाज ने उन्हें ध्यान से सुना और उनकी वाणी को गुनगुनाया। बॉब डिलन के गीतों की
अनुगूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ी। सभी ने उसे स्वीकार किया।
भारत में हम सभी हिंदी फिल्मों को गुनगुनाते हैं।
अपने सुख-दुख के मुताबिक गीतों को चुनते और गुनगुनाते हैं। हम सभी के अपने प्रिय
गीत हैं,जिन्हें हम अपने एकांत में गुनगुनाते हें। हिंदी फिल्मों के गीतों ने
देश के करोड़ों युवकों को प्रेरित किया है। उनका संबल बना है। वक्त आ गया है कि
हमारे साहित्यकार और अभिव्यक्ति की संस्थाएं अपने पुराने विचार और रवैए बदलें।
हम फिल्मों के गीतकारों और कहानीकारों को नए नजरिए से देखना आरंभ करें।
हिंदी फिल्मों के अनेक गीतकार और कहानीकारों का
साहित्य की दुनिया में भी दखल रहा है। हम उनके बारे में बातें करते समय उनकी
रचनाओं को फिल्मी और साहित्यिक में बांट देते हैं। जो किताबों में आ गया है,वह
साहित्य है। जो फिल्मों में आया,वह साहित्य नहीं है। गुलजार की ही बाते करें तो
साहित्यकार उन्हें फिल्मी गीतकार मानते हैं और फिल्मों में उन्हें साहित्यकार
समझा जाता है। सच तो यह है कि गुलजार और उन जैसे दूसरे गीतकारों को हम महत्व देना
सीखें। उन्हें साहित्यिक सम्मनों और पुरस्कारों से नवाजे। लोकप्रिय माध्यमों
में सृजनरत रचनाकारों को साहित्यकारों की पंगत में शामिल करें।
Comments
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'