सजग-सक्रिय महानायक अमिताभ बच्चन
जन्मदिन विशेष
-अजय ब्रह्मात्मज
दिलीप कुमार,मनोज कुमार,शशि कपूर,शत्रुघ्न सिन्हा,अमोल
पालेकर,संजय खान,जीतेन्द्र कबीर बेदी,विनोद खन्ना,रणधीर कपूर,धर्मेन्द्र,सुरेश
ओबेरा और अमिताभ बच्चन में एक समानता है कि सभी 70 की उम्र पार कर चुके हैं। इस
सूची में और भी अभिनेताओं के नाम जोड़े जा सकते हैं। इनमें केवल अमिताभ बच्चन अभी
अपनी सक्रिय मौजूदगी से दर्शकों को विस्मित कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों के इतिहास
में खंगाल कर देखें तो दिलीप कुमार और अशोक कुमार 70 की उम्र के बाद भी फिल्मों
में अभिनय करते रहे और दमदार मुख्य भूमिकाओं में नजर आते रहे। दूसरे अभिनेताओं को भी छिटपुट फिल्में मिलीं।
उन सभी में अमिताभ बच्चन के अलावा और कोई लीड भूमिकाओं में इतनी लंबी पारी तक
अभिनय करता नजर नहीं आता। अमिताभ बच्चन फिल्मों के साथ ऐड पर्ल्ड और सोशल मीडिया
में भी सक्रिय हैं। वहां भी लोग उप पर गौर करते हैं। उन्हें फॉलो करते हैं। उनके
प्रशंसक बने हुए हैं।
हालांकि अमिताभ बच्चन अपनी पिछली मुलाकातों में
लगातार कहते रहे हैं कि अब फिल्मों का भार उनके कंधों पर नहीं रहता,लेकिन उनकी
पिछली फिल्मों पर गौर करें तो सारी फिल्में उन पर निर्भर रहीं। निस्संदेह उन्हें
अन्य कलाकारों ने मिल कर रोचक और एंटटेनिंग बनाया,फिर भी इस तथ्य से इंकार नहीं
किया जा सकता कि इन फिल्मों के मुख्य आकर्षण अमिताभ बच्चन ही रहे। पिछले महीने
ही रिलीज हुई ‘पिंक’ का
दारोमदार अमिताभ बच्चन पर था। उन्होंने दीपक सहगल की भूमिका निभाते समय इस जिम्मेदारी
का खयाल रखा। यहां तक कि फिल्म के प्रचार में भी वे आगे रहे। ‘पिंक’ फिल्म का फेस वे ही थे। हम
सभी जानते हैं कि हिंदी फिल्मों की कामयाबी में फेस वैल्यू का बड़ा महत्व होता
है। इस लिहाज से भी अमिताभ बच्चन महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
फिलमों में अमिताभ बच्चन की शुरूआत आसान नहीं रहीं।
पतले और लंबे होने की वजह से उन्हें अपमानजनक टिप्पणियां भी सुननी पड़ीं। वे डटे
रहे। धैर्य और लगन से उन्होंने अपने वक्त की प्रतीक्षा। वक्त आया तो वे अपने
समकालीनों से काफी आगे निकल गए। उन्होंने लंबे समय तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर
एकछत्र राज किया। उन्हें ‘वन मैन इंडस्ट्री’ कहा जाने लगा था। यह भी कहा जाता था कि एक से दस तक अमिताभ
ही अमिताभ हैं। उनके बाद के स्टार का नंबर ग्यारहवां है। उत्कर्ष के इन दिनों
में उनकी फ्लॉप फिलमों का भी कारोबार दूसरे स्टारों की हिट फिल्मों से अधिक या
बराबर होता था। उनके आलोचकों का एक समूह मानता है कि अगर अमिताभ बच्चन चाहते तो
उस दौर में हिंदी फिल्मों की दशा और दिशा बदल सकते थे। उन्होंने ऐसी कोई पहल
नहीं की। अमिताभ बच्चन स्टारडम और लोकप्रियता के बावजूद अपनी भूमिका को गौण
बतलाते रहे हैं। अपनी अपगतिक कामयाबी का श्रेय वे निर्देशकों को देते रहे हैं।
उनकी यह विनम्रता वास्तव में उनके योगदान और भूमिका को समझने में बाधक बनती है।
वे अपनी मेहनत और कौशल पर कभी विस्तार से बातें नहीं करते। वे अपनी शैली और
विशेषता को रेखांकित करने के शब्द नहीं देते। वे नहीं बताते की एक्टिंग क्या है?
उनकी फिल्मों को क्रम से देखें और विचार करें तो उनकी
कई खूबियां समझ में आती हैं। सबसे पहली और बड़ी खूबी है हिंदी भाषा की समझ और सही
भावार्थ के साथ उसके व्यवहार की कुशलता। उनके समकालीन और बाद के अभिनेताओं में
इसकी कमी रही है। उनकी आवाज का जादू भी रहा है। अपनी सारी फिल्मों में वे आभिजात्य
अभिनेता रहे। कुली,मजदूर,गुंडा,मवाली की भूमिकाएं निभाते समय भी हम उनकी शालीनता
महसूस कर सकते हैं। मुंबई की आमफहम भाष बोलते समय भी एक संस्कारी लहजा हावी रहा।
यह महज संयोग नहीं है कि निर्देशकों ने उन्हें यिलिस्ट फिल्मों के लिए नहीं
चुना। वे नसीरूद्दीन शाह या ओम पुरी जैसी भूमिकाओं में अनफिट लगते। उन्होंने अपनी
तरफ से भी ऐसी कोशिश नहीं की। मेनस्ट्रीम फिल्मों में सर्वहारा की भूमिकाओं में
भी उनकी संपन्नता मध्यवर्गीय दर्शकों को लुभाती रही।गांव-कस्बों से लेकर शहरों
तक में यही दर्शक समूह उनका प्रशंसक रहा। अमिताभ बच्चन को लूम्पेन दर्शकों ने भी
हाथोंहाथ लिया। उनकी आक्रामकता,एंगर और लड़ने की जिद ने सभी वंचितों और असंतुष्टों
को प्रेरित और प्रभावित किया।
अमिताभ बच्चन के करिअर में कई दफा विश्राम और अल्पविराम
के दौर आए। उन्होंने ऐसे अंतरालों में खुद को फिर से गढ़ा। साथ ही वे निरंतर
उपयोग से भोथरे होने से बचते रहे। खुद को धार दी। उन्होंने कभी हार नहीं मानी। ‘कुली’ के समय की दुर्घटना,राजनीति
में आने और निकलने का प्रसंग,’खुदागवाह’ की रिलीज के बाद का अघोषित संन्यास,एबीसीएल की असफलता का
दौर...इन सभी अवसरों पर हम ने देखा कि अमिताभ बच्चन और निखर कर सामने आए। फिल्म
अध्येता और जानकर पवन झा के शब्दों में अमिताभ बच्चन की सांसकृतिक और पारिवारिक
पृष्ठभूमि ने हमेशा उन्हें सींचा और फिर से हरा होने की हिम्मत दी। वे राजेश
खनना और अमिताभ बच्चन को आमने-सामने रख कर कहते हैं कि राजेश खन्ना लोकप्रियता
के सिंहासन से उतरने के बाद फिर से उस पर नहीं बैठ सके,जबकि अमिताभ बच्चन बार-बार
लोक्रियता के सिंहसन पर बैठे। उन्होंने नए सिरे और अंदाज से दर्शकों को लुभाया।
उनकी चौतरफा सक्रियता चकित करती है। तमाम व्यस्तताओं
के बीच वे अपने प्रशंसको और फॉलोअर्स(एक्सटेंडेड फैमिली) के लिए ब्लॉग और ट्वीटर
अपडेट करते रहते हैं। उनका फेसबुक नई सूचनाएं देता रहता है। यही कारण है कि फेसबुक
और ट्वीटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या दो करोड़ से ज्यादा है। वे उनसे इंटरैक्ट
करते हैं। अपने ब्लॉग पर वे एक्सटेंडेड फैमिली के सदस्यों का जन्मदिन की बधाई
देते हैं। एक पत्रकार के तौर पर मेरा अनुभव है कि उनसे की गई कोई भी जिज्ञासा कभी
अनुत्तरित नहीं रहती।वे अनुशासित जिंदगी जीते हें। उनकी स्थायी कामयाबी का एक
मूल अनुशासन है।
75 वें में प्रेश करते अमिताभ बच्चन शीघ्र ही
रामगोपाल वर्मा की ‘सरकार 3’ की शूटिंग आरंभ करेंगे। वे ‘आंखें
2’ कर रहे हैं। आमिर खान के साथ यशराज फिल्म्स की ‘ठग’ की तैयारी चल रही है। वे स्वच्दता
अभियान समेत अनेक सामाजिक और सरकारी अभियानों से जुड़े हुए हैं। नई जरूरतों को स्वर
देने में वे कभी पीछे नहीं रहते। हम उन्हें 21 वीं सदी के सफल और सक्रिय नायक के
रूप में देख रहे हैं। पिछले 47 सालों से उनकी यह यात्रा कभी शिथिल,कभी मद्धम तो
कभी तेज गति से जारी है।
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विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'