दिल से छेड़े हैं बैंजो के तार
-अजय ब्रह्मात्मज
रवि जाधव मराठी फिल्मों के सफल निर्देशक हैं। ‘बैंजो’ उनकी पहली हिंदी फिल्म है।
-बताएं कि ‘बैंजो’ की कैसे और कब शुरूआत हुई?
0 2010 में मेरी पहली फिल्म ‘नटरंग’ मराठी में रिलीज हुई थी। वह
एक तमाशा कलाकार पर थी। उस फिल्म के सिलसिले में मैं शोलापुर गया था। वहां मैंने
देखा कि भरी दोपहरी में एक ग्रुप बैंजो बजा रहा है और लोग खुश होकर पैसे फेंक रहे
हैं। वे मुंह से पैसे उठा रहे हैं। मुझ अजीब सा लगा। मुझे यह अपमानजनक लगा। वही
खटका मुझे ‘बैंजो’ तक
ले आया। रिसर्च करने पर पता चला कि पूरे देश में बैंजो किसी न किसी रूप में
प्रचलित है। बाकी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाने वालों को आदर-सम्मान मिलता
है,लेकिन बैंजो बजानेवालों को वही सम्मान नहीं मिलता।
- आप के रिसर्च में क्या मिला?
0 मैंने पाया कि बैंजोवादक इज्जत के भूखे हैं। शादी
में उन्हें पंगत में नहीं बैठने दिया जाता। पैसे देकर बाहर से ही भेज दिया जाता
है। मैंने यह सोच कर फिल्म लिखी कि अगर पेट के बजाए ये लोग दिल से बैंजो बजाने
लगें तो क्या होगा? फिल्म का यही सार है।
- फिल्म में रितेश देशमुख कैसे आए?
0 रितेश के लिए मैंने मराठी में ‘बालक पालक’ निर्देशित की थी। तभी से मन
था कि उनके साथ एक फिल्म की जाए। मैंने इस फिल्म की कहानी उन्हें सुनाई। फिल्म
का मुख्य किरदार मराठी है। रितेश ने उत्साह दिखाया और राजी हो गए। मराठी भाषा और
संसकृति से उनका खास लगाव है। लगभग पांच सालों की मेहनत के बाद यह फिल्म पर्दे पर
आ रही है।
- आप ने यह फिल्म हिंदी में क्यों बनाई? इसे मराठी में रखते तो अधिक प्रभावपूर्ण होता...
0 मराठी में बनाने पर हम सीमित दर्शकों के बीच ही
रहते। मैं चाहता था कि इसे पूरा देश देखे। इस कहानी में नेशनल अपील है। और रितेश
के समर्थन से मुझे बल मिला। मराठी फ्लेवर की इस फिल्म में स्ट्रीट म्यूजिक की
बात की गई है। देश के हर इलाके में स्ट्रीट म्यूजिक और म्यूजिशियन हैं।
- बैंजो किस समूह या वर्ग के युवकों में पॉपुलर है?
त्र मेरे अनुभव और रिसर्च से यही मालूम हुआ कि वे समाज
के नीचे तबके के गरीब लोग होते हैं। यह सबसे सस्ता म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट है।
निम्न वर्ग में यह ज्यादा पॉपुलर है। बैंजो बजाने वाले युवक बहुत जोश में रहते हैं।
इसे बजाते हुए वे स्वयं खुश होते हैं और दूसरों को भी खुश करते हैं। बैंजो की आवाज
सुनते हैं हम थिरकने लगते हैं। इसका आविष्कार जापान में हुआ था। भारत में आए लगभग
100 साल हो गए। मुंबई में जब टेक्सटाइल मिल थे तब यह बहुत पॉपुलर था। मिल मजदूरों
को धीमी आवाज के संगीत में मजा नहीं आता था। मिल बंद होने और मजदूरों के कम होने
से बैंजो का चलन कम हुआ है।
-क्या कहानी है और कौन से कलाकार हैं?
0 यह तराट की कहानी है। तराट की भूमिका में रितेश हैं।
उनके अलावा धमेश,आदित्य और राम मेनन हैं। उनकी मुलाकात न्यूयार्क से आई नरगिस
फाखरी से होती है। वह उनके संगीत की ही खोज कर रही है। और फिर पूरा ड्रामा होता
है।
Comments