सीक्वेल हों गई जिंदगी - रितेश देशमुख
-अजय ब्रह्मात्मज
रितेश अभी कोई शूटिंग नहीं कर रहे हैं। उनकी दाढ़ी बढ़
रही है। खास आकार में बढ़ रही है। पूछने पर वह बताते हैं,’छोड़ दी है। हां,एक शेप दे रहा हूं। मराठी में ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ फिल्म करने वाला हूं1 उसका
लुक टेस्ट चलता रहता है। अभी वह फिल्म लिखी जा रही है। उस फिल्म की स्क्रिप्ट
पूरी होगी,तभी शूट पर जा सकते हैं। उसमें वीएफएक्स वगैरह भी रहेगा। यह मेरी पहली
पीरियड फिल्म होगी।‘
रितेश देशमुख की ‘बैंजो’ आ रही है। मराठी फिल्मों के निर्देशक रवि जाधव ने इसे
निर्देशित किया है। फिल्म में लाल रंग मुखर है। रितेश वजह बताते हैं,’ फिल्म में पहले पानी का इस्तेमाल होना था। महाराष्ट्र में
सूखे की वजह से उसे हम ने गुलाल में बदल दिया। पोस्टर और प्रोमो में गुलाल का वही
लाल रंग दिख रहा है। बैंजो एक ऐसा इंस्ट्रुमेंट है कि उसकी धुन पर लोग थिरकने
लगते हैं। उल्लास छा जाता है। त्योहारों और खुशी के मौकों पर यह बजाया जाता है।
बैंजो बजाने वाले भी रंगीन और खुश मिजाज के होते हैं।‘
निर्देशक रवि जाधव के साथ रितेश देशमुख का पुराना
संपर्क रहा है। दोनों मराठी हैं। इसके अलावा रवि जाधव ने रितेश देशुमख के निर्माण
में बनी मराठी फिल्म ‘बालक पालक’ का निर्देशन किया था। लंबे समय से दोनों साथ में काम करने के
इच्छुक थे। ‘बैंजो’ का
संयोग बना तो रितेश राजी हो गए। रितेश कहते हैं,’ यह
यूनिक स्टोरी है। हिंदी फिल्मों में मुझे ऐसा किरदार नहीं मिला है। और फिर रवि
पर भरोसा है। वह मुझे समझते हैं। एक अंतराल के बाद आप मुझे कुछ अलग करते देखेंगे।‘
रितेश को अपनी कामेडी या सेक्स कामेडी फिल्मों का
अफसोस नहीं है। वे स्वीकार करते हैं कि उनमें से कुछ अच्छी बनीं और कुछ दर्शकों
को अधिक पसंद नहीं आईं। वे समझाते हैं,’ हमारी इंडस्ट्री में यह
चलन है कि अगर कोई एक्टर किसी एक रोल में जंच जाता है तो उसे वैसे ही रोल मिलने
लगते हैं। एक अजीब चक्र बन जाता है। सीक्वल आने लगते हैं। एक्टर उसी में बिजी हो
जाता है। मेरी अनेक फिल्मों के दो-तीन सीक्वल बन चुके हैं। मेरा चालीस प्रतिशत
करिआ तो सीक्वल में ही निकल गया है। कभी ‘एक विलेन’ जैसी फिल्मों से राहत मिलती है। कभी ‘लेई भारी’ आ जाती है। मैं ‘बैंजो’ को भी वैसी ही अलग फिल्म
के तौर पर देख रहा हूं।‘
’बैंजो’ को लकर रितेश काफी उत्साहित हैं। वे अपने किरदार और फिल्म
के बारे में बताते हैं,’ मेरे किरदार का नाम तराट
है। तराट मतलब बेवड़ा...शराबी। वह एंग्री है। एटीट्यूड में रहता है। रंगीनमिजाज और
म्यूजिकल है। मुझे पूरा भरोसा है कि यह पसंद आएगी,क्योंकि यह यूनिक है। ज्यादातर
लोअर मिडिल क्लास से आए युवक ही बैंजो बजाते हैं। अभी तो बड़े स्केल पर बैंड
ग्रुप बन गए हैं,जिमें बैंजो के साथ और भी इंस्ट्रुमेंट रहते हैं1 अभी फ्यूजन हो
चुका है। पहले ज्यादातर गरीब तबके लोग ही बैंजो अपनाते और बजाते थे। इस फिलम की
बात करें तो नरगिस फाखरी का किरदार बैंजो का एक म्यूजिकल पीस सुन कर ल्यूयार्क
से मुंबई आती है। वह उसके बारे में पता करना चाहती है। यहां आने पर वह तराट से
मिलती है। तराट उसे बता नहीं रहा कि वह म्यूजिकल पीस उसी का बजाया हुआ है। उसे
लगता है कि बैंजो से इज्जत कम होती है1 पता चलना पर वह उसे छोड़ देगी। और फिर
ड्रामा,दिक्कतें,मुंबई की जिंदगी आदि बहुत कुछ है। ‘बैंजो’ स्ट्रीट म्यूजिसियन को
आवाज देता है। उन्हें प्लेटफार्म देता है।‘
रवि जाधव मराठी संस्कृति और भाषा के जानकार है। क्या
उनकी यह फिल्म हिंदी में मराठी फ्लेवर लेकर आएगी? रितेश
स्पष्ट करते हैं,’ फिल्म की पृष्ठभूमि मुंबई की है।
यहां का कास्मोपोलिटन मिजाज है। फिल्म में एक इमोशन है,जो चार लड़कों और एक
लड़की के बीच की कहानी है। फ्लेवर तो रहेगा,लेकिन वह मराठी नहीं होकर मुंबइया
होगा। मैं जल्दी ही निशिकांत कामथ के साथ ‘मराठी’ फिल्म मावली आरंभ करूंगा।‘
रितेश जोर देकर कहते हैं,’मैं जिस इलाके से आता
हूं,वहां की भाषा से खास लगाव है। मैं मराठी हूं। हिंदी के बाद मराठी में काम करने
की इच्छा थी। वह भी किया। आगे भी करता रहूंगा। जहां की मेरी पैदाइश है,वहां का तो
हक बनता है। मैं मराठी स्पेस को अच्छी तरह समझता हूं। मेरी पत्नी जेनिलिया ने
मुझे इंस्पायर किया। उसने इतनी सारी भाषाओं में फिल्में की हैं।‘
Comments