उम्‍मीद अभी बाकी है - लीना यादव




-अजय ब्रह्मात्‍मज
2012 में लीना यादव आस्‍ट्रेलिया के एशिया पैसिफिक स्‍क्रीन अवार्ड की ज्‍यूरी के लिए चुनी गई थीं। वहां जाने के दो हफ्ते पहले उन्‍हें जानकारी मिली कि अवार्ड की संस्‍था ज्‍यूरी मेंबर रह चुके फिल्‍मकारों को नए प्रोजेक्‍ट के लिए फंड करती है। संयोग ऐसा रहा कि लीना यादव उन्‍हीं दिनों तनिष्‍ठा के साथ किसी फिल्‍म के बारे में सोच रही थीं। तनिष्‍ठा ने उन्‍हें जल की शूटिंग के दौरान के कुछ किस्‍से सुनाए। लीना ने महसूस केया कि उन किस्‍सों को लकर फिल्‍म बनाई जा सकती है। खास कर ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने जिस साफगोई और ईमानदारी से सेक्‍स की बातें की थीं,वह शहरी महिलाओं के बीच दुर्लभ है। लीना यादव की फिल्‍म पार्च्‍ड की शुरूआत यहीं से हुई।
फिल्‍म के पहले ही ड्राफ्ट के समय ही रिसर्च से लीना को लगा कि वह गांव की कहानियों में शहरों की बातें ही लिख रही हैं। उन्‍होंने द्वंद्व महसूस किया,आखिर क्‍या बात है कि सूचना और शिक्षा के बावजूद शहरी औरतें कुछ बोल नहीं पा रही हैं,जबकि ग्रामीण औरतें निस्‍संकोच बोल रही हैं?’ लीना ने अपनी स्क्रिप्‍ट देश-विदेश के दोस्‍तों को पढ़ने के लिए भेजी तो उन्‍हें कई ने मिलते-जुलते किस्‍से बताए और भेजे। लीना की समझ में आया कि यह यूनिवर्सल विषय है। फिल्‍म बनाने के बाद जब भिन्‍न देशों के फेस्टिवल और थिएटर में पार्च्‍ड दिखाई गई तो सभी ने सराहा।
लीना यादव की पार्च्‍ड हिंदी में बनी फिल्‍म है। पिछले साल सितंबर महीने में ही यह टोरंटो फिल्‍म फेस्टिवल में पहली बार दिखाई गई थी। यह भी एक विडंबना है कि पहले प्रदर्शन के साल भर के बाद यह फिल्‍म भारत में रिलीज हो रही है। लीना ने इसे वेस्‍टर्न  सहयोग से तैयार किया है। भारत के इस विषय की अनुगूंज इंटरनेशनल है1 शुरू में फंड और प्रोड्यूसर नहीं मिल रहे थे। उनके कैमरामैन पति असीम बजाज आगे आए। उन्‍होंने आश्‍वासन दिया कि तुम अपने मन की फिल्‍म बनाओ। मैं धन का इंतजाम करूंगा। उन्‍होंने अपनी जिंदगी का सबसे मुश्किल प्रोमिस किया मुझ से। असीम के दोस्‍त अजय देवगन साथ आए। उन्‍होंने ही प्रोजेक्‍ट का बीज धन दिया। उसके बाद बाकी प्रोड्यसर आए।
इस फिल्‍म में हालीवुड के मशहूर टेक्‍नीशिन जुड़े। कैमरा रसेल कारपेंटर ने संभाला। टायटेनिक जैसी फिल्‍में शूट कर चुके रसेल कारपेंटर की वजह से फिल्‍म का लुक बदल गया। फिल्‍म के एडीटर केविन टेंट हैं। साउंड डिजाइन के लिए पॉल एन जे आॅटोसन आए। इन तीनों की पहली फॉरेन और इंडियन फिल्‍म है पार्च्‍ड। विदेश में इस फिल्‍म की इतनी चर्चा रही कि टोरंटो फिल्‍म फस्टिवल ने प्रीमियर के लिए आमंत्रित किया। उसके बाद यह फिल्‍म फ्रांस,मेक्सिको,स्‍पेन आदि देशों में रिलीज होंकर सराही जा चुकी हैं। लीना को पार्च्‍ड बनाने के बाद लगता है कि अब सिग्‍नेचर मिल गया है। वह मानती हैं कि हिंदी सिनेमा के टिपिकल दर्शक उनकी फिल्‍मों के दर्शक नहीं हैं। उन्‍होंने पार्च्‍ड को कला फिल्‍मों की तरह नहीं पेश किया,लेकिन यह हिंदी की मसाला फिल्‍म नहीं है। इस फिल्‍म में उन्‍हें खुद को एक्‍सप्‍लोर करने का मौका मिला। यहां से उनकी नई जर्नी शुरू होगी।
पार्च्‍ड तीन औरतों की कहानी है। तनिष्‍ठा विधवा के किरदार में हैं। 15 साल की उम्र में विधवा हो चुकी उस औरत ने अपनी जिंदगी बेटे की परवरिश में समर्पित कर दी है। उसने अपनी जरूरतों को नजरअंदाज किया है। समाज उसे आदर्श औरत और मां मानता है। वह झूठी प्रतिष्‍ठा में अपना स्‍व खो चुकी है। राधिका आप्‍टे का बच्‍चा नहीं है। सभी को लगता है कि वह बांझ है। उसे अचानक पता चलता है कि मर्द भी नपुसक हो सकते हैं। सुरवीन चावला डांसर के रोल में हैं। वह टेंट में अश्‍लील गीतों पर अश्‍लील मुद्राओं के साथ नाचती है। सुरवीन के किरदार के जरिए हम ने देखा है कि जवानी और खूबसूरती बाहरी आकर्षण है। साथ ही समाज में वेश्‍या की भूमिका पर भी बात की है। समाज ने उसे क्रिएट किया और फिर गाली बना दी।
यह फिल्‍म औरत और सेक्‍स के सामाजिक और राजनीतिक कारणों काे भी छूती है। लीना के शब्‍दों में,इस फिल्‍म को दर्शक अपनी रुचि और परवरिश के अनुसार अलग-अलग तरीके से देखेंगे। मैंने औरतों को दया का पात्र नहीं बनाया है। मैंने औरतों के लिए उम्‍मीद रखी है। 

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को