निजी बातों से पड़ी स्क्रिप्‍ट की नींव - नीरज पांडेय




-क्रिकेट में रुचि न रखने वाले दर्शकों के लिए फिल्म में क्या है?
यह एक इंसान की जर्नी है। उसके जन्म से लेकर उसके जीवन के अमूल्य क्षण इसमें समाहित हैं। मसलन वह पल जब उन्होंने क्रिकेट वर्ल्‍ड कप जीता। यह कहानी है मजबूत इच्छाशक्ति वाले एक शख्स की। संकल्प कर लेने के बाद उसे पाने के लिए क्या प्रयास हुए? उनकी उपलब्धियां क्या रहीं? यह फिल्म उस संबंध में है। ऐसी कहानियां बेहद प्रेरक होती है। भले ही उनका बैकड्राप में बिजनेसमैन, क्रिकेटर, एक्टर या आम आदमी  हो। मेरे मुताबिक यह शानदार कहानी है।
-दर्शकों में क्रिकेटप्रेमी भी होंगे। वे फिल्म में धौनी के खास पलों को खोजेंगे। लिहाजा आपने उसकी जिंदगी से क्या चयनित किया?
हमारे लिए संतुलन बहुत जरुरी था। फिल्मों के शौकीन के लिए भी इसमें बहुत कुछ है। वह क्रिकेट का पर्याय हैं। निश्चित रूप से इसमें वह रहेगा। निजी तौर पर मेरा मानना है कि क्रिकेट प्रेमियों की भी दिलचस्पी उनकी व्यक्तिगत जिंदगी को जानने में होगी। धौनी उम्दा क्रिकेटर हैं,सब जानते हैं। लेकिन वह इतनी बड़ी शख्सियत बने कैसे? मेरे लिए शुरुआती प्वाइंट यही था।
-इसका आइडिया कहां से आया?
यह आफर मेरे पास इंस्‍पायरड एंटरटेनमेंट के अरूण पांडे की ओर से आया था। उन्होंने कहा कि एमएस धौनी पर फिल्म बनानी है। मैंने उनसे यही कहा कि मुझे धौनी से मिलना पड़ेगा। जब तक मुलाकात नहीं होगी,पता नहीं चलेगा कि कोई कहानी है कि नहीं। धीरे-धीरे वह सिलसिला शुरु हुआ। उनसे मुलाकात हुई। पहली मुलाकात में मुझे अहसास हो गया कि उनकी दिलचस्‍प जिदंगी है। फिर रिसर्च की प्रक्रिया आरंभ हुई। उसमें करीब एक महीने का समय लगा।
-क्रिकेटर के तौर पर धौनी सफल हैं। रांची से निकलकर बड़े फलक पर छा गए। यह सब सभी जानते हैं। हिंदी फिल्मों की काल्पनिक कहानियों में भी यही होता है। कहीं न कहीं रियल लाइफ और सिनेमा मिल रहा है। आपका प्रॉसेस क्या रहा?
मैं हावड़ा में पला-बढ़ा। लिहाजा जिस दुनिया में धौनी का जन्म हुआ उसे समझना आसान रहा। मेरे पैरेंट्स बिहार से हैं। धौनी का जन्म रांची में हुआ। राज्य विभाजन के बाद रांची झारखंड का हिस्सा बना। पहले वह बिहार के अंतर्गत आता था। धनबाद, बोकारो हो या दुर्गापुर, कॉलोनियों की जिंदगी से मैं वाकिफ हूं। मेरे परिवार के लोग भी इनमें रहे हैं। इन छोटी कालोनियों में एक छोटा शहर बसता है। वहां पर मूलभूत और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध होती है। मसलन, स्कूल, अस्पताल और खेलने के मैदान। मेरा उस जिंदगी से संबंध रहा है। मेरी जब धौनी से मुलाकात और बातचीत आरंभ की तो आसानी से समझ आया कि वे किस की और कहां की बातें कर रहे हैं। क्रिकेट में मेरी दिलचस्पी भी एक कारण रहा । मेरा क्रिकेट से जुड़ाव है। अभी भी खेलता हूं। टीवी पर खेल से जुड़ा रहता हूं। बहरहाल, जिस सहजता और सरलता से उन्होंने खुद के बारे में बातचीत आरंभ की,उससे उनकी जिंदगी को जानने की जिज्ञासा बढ़ती गई। दूसरा मुझे उनकी जिंदगी पर काम करना रास आ रहा था।  दोनों का तालमेल होने पर काम आसान हो जाता है। फिल्म बनाने से पहले हममें एक बात को लेकर आपसी सहमति बनी। वह यह कि मैं कोई सवाल करूंगा तो उसके जवाब मिलेंगे। ताकि पता चल सके कि वह कैसे सोचते हैं। भले ही उसका फिल्म से कोई देना-देना न हो। उस हालात में उन्‍होंने क्या किया? उनकी क्या प्रतिक्रिया रही? बतौर निर्देशक मेरे लिए यह समझना जरुरी था कि उनका दिमाग कैसे काम करता है। यह किरदार लिखने के लिए आवश्यक था। वह बेहद समझदार हैं। वह हमारी बातों का अर्थ तुरंत समझ गए। हमने बिना सोचे-समझे बेबाकी से बातें की। उसमें कुछ बातें बेहद निजी थी। मगर हमने खुलकर बात की। यही हमारी स्क्रिप्ट की नींव बना। मेरे लिए उस शख्स को पूरी तरह समझना जरुरी था, हालांकि कई मायनों में यह असंभव है लेकिन उसकी झलक आवश्यक थी। मैंने उनसे कहा कि यही एकमात्र तरीका है जिससे हम ईमानदार फिल्म बना सकते हैं। वह भी इस बात को भलीभांति समझ रहे थे। उन्होंने भी खुलकर बातें की। मैं उनकी बातचीत को रिकॉर्ड नहीं कर रहा था। लिहाजा वह भी काफी सहज रहे। काम करने के दौरान  हमारे बीच अटूट विश्वास कायम हुआ।
-धौनी चाहते होंगे कि कुछ चीजें उनकी जिंदगी की दशाई जाएं। आपकी पसंद थोड़ी अलग रही होगी। ऐसे में दोनों के बीच सामंजस्य कैसे बना?
यह बिल्कुल भी जटिल नहीं था। मैं थोड़ा शंकित था कि शायद ऐसा हो। शुरूआती दौर में थोड़े समय के लिए ऐसा रहा। यह मेरे प्रोजेक्ट से जुडऩे से पहले की बात है। मैंने महसूस किया कि उन्हें खुद अजीब लग रहा था कि महज 35 साल की उम्र में उनकी जिंदगानी पर फिल्म बन रही है। दुनिया में अभी तक ऐसे क्रिकेटर पर फिल्म नहीं बनी है जो खेल में सक्रिय हैं। मुझे नहीं पता कि किन कारणों से मगर उन्हें यकीन था कि मैं उसे बेहतर तरीके से बना पाऊंगा। उस समय कोई स्क्रिप्ट भी तैयार नहीं थी। मुझे याद है कि हम एक बार होटल में मिले। उन्होंने कहा कि आप एकमात्र डायरेक्टर है जिसकी मैंने सारी फिल्में देखी हैं। शायद उन्हें मेरी फिल्में पसंद आई हो। वहां से उनका मेरे प्रति विश्वास कायम हुआ हो।
-आपने सुशांत सिंह राजपूत की कोई फिल्म न देखने की बात कही थी। फिर उन्हें कैसे कास्ट किया?
फिल्म से जुडऩे तक मैंने उनकी कोई फिल्म नहीं देखी थी। काय पो छे की रिलीज के समय शायद मैं अपनी फिल्म पर काम कर रहा था। उस समय देख नहीं पाया। उस फिल्म की तारीफ बहुत हुई। चूंकि मैं हमेशा बड़े पर्दे पर देखना चाहता हूं। लिहाजा उसे देखना बाकी ही रह गया। सुशांत से मिलने पर लगा कि हमारी पसंद के अनुरूप हैं। इसके अलावा सुशांत का भी जन्म पटना में हुआ है। वहां का लहजा बेहद अलग है। सुशांत उससे बखूबी वाकिफ हैं। पूरी फिल्म में हिंदी और बिहारी भाषा का मिश्रण है। इन्ही कारणों से उन्हें चुना।
-ऐसी फिल्में बनाते कुछ खास चीजें शामिल करने की सोची होगी। कौन सी शामिल होने से रह गई
मुझे लगता है इस प्रकार की फिल्म को उम्दा बनाने लिए आपको खुद से ज्यादा बुद्धिमान लोगों को शामिल करना चाहिए। लिहाजा मैंने सुनिश्चित किया कि सारे विभागों के प्रमुख मुझसे ज्यादा प्रखर हों। भले ही वे मेरे कैमरामैन, प्रोडक्शन डिजायनर हो या कास्ट्यूम डिजायनर हो। मैं चाहता था कि वे अपने काम में सिद्धहस्त हो। ताकि मेरा काम आसान हो। जहां तक कंटेंट की बात है हमने तय किया था कि जिस दिन स्क्रिप्ट तैयार होगी, धौनी उसे पढऩे वाले सर्वप्रथम शख्स होंगे। उनकी तरफ से स्वीकृति मिलने पर हम आगे बढ़ेंगे। हो सकता है कि तथ्यों में हमने कोई गलती कर दी हो। हमने उन्हें बताया था कि हम कुछ सिनेमाई लिबर्टी लेंगे। कुछ घटनाएं आगे पीछे करेंगे। हम किसी प्रकार के बदलाव के लिए भी तैयार थे। मैं उनसे चेन्नई में आईपीएल मैच के दौरान मिला था। उन्होंने सब सुना। उनकी ओर से स्क्रिप्ट में कोई बदलाव नहीं था। बहरहाल, धौनी फिल्म देख चुके हैं।
अजय ब्रह्मात्‍मज व प्राची दीक्षित
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