दरअसल : ट्रेलर लांच इवेंट

-अजय ब्रह्मात्‍मज
पिछले दिनों एमएस धौनी : द अनटोल्‍ड स्टोरी का मुंबई में ट्रेलर लांच था। नीरज पांडे की इस फिलम के प्रति जबरदस्‍त रुझान है। इस रुझान को धौनी की लोकप्रियता ने बल दिया है। धौनी की कहानी प्रेरक और अनुकरणीय है। क्रिकेटप्रेमी तो उनके खेल और अदाओं के दीवाने हैं। धीरे-धीरे उनका व्‍यक्तित्‍व और खेल करिश्‍माई हो गया है। जाहिर सी बात है कि ऐसे लिविंग लिजेंड के बारे में सभी विस्‍तार से जानना चाहते हैं। हम क्रिकेट और फिल्‍म जगत की मशहूर हस्तियों की जिंदगी से वाकिफ रहते हैं। कोई नई जानकारी या प्रसंग पता चले तो बेइंतहा खुशी होती है। अभी एमएस धौनी : द अनटोल्‍ड स्टोरी दर्शकों को ऐसी ही खुशी दे रहा है। हां तो ट्रेलर लांच के इवेंट में धौनी के आने की जानकारी मिलने पर मीडियाकर्मी भी उत्‍सुक हो गए। उन्‍होंने देरी से आरंभ हुए इवेंट में धौनी का इंतजार किया। धौनी आए और हमेशा की तरह बेधड़क दिल से बातें कीं। मगर इवेंट के दौरान फैन से बातें करने और उनके सवालों के जवाइ देने के बाद वे निकल लिए। मीडियाकर्मी मुंह ताकते रह गए और उनके सवाल सुने ही नहीं गए। बाद में बताया गया कि मीडिया से तो धौनी की बात होनी ही नहीं थी।
यह एक प्रकार का छल रहा। एसएमएस निमंत्रण में साफ लिखा था कि ट्रेलर लांच में धौली,संतोष सिंह राजपूत और नीरज पांडे मौजूद रहेंगे। फिल्‍म पत्रकारों के लिए धौनी से सवाल करना का मौका मिलना ही इस इवेंट की खास बात थी। वही नहीं हुआ। ताज्‍जुब तब हुआ कि जब नीरज पांडे समेत आयोजकों ने मीडिया की शिकायत पर कंधे उचका दिए। मजबूरी में मीडियाकर्मी सुशांत और नीरज से सवाल पूछ कर संतुष्‍ट हो गए। हालांकि नीरज पांडे ने माफी मांगी,लेकिन वह माफी महज औपचारिकता थी। उनके चेहरे और शब्‍दों से यह नहीं लग रहा था कि उन्‍हें कोई अफसोस है। इन दिनों कामयाब निर्देशकों का अहंकार ऐसे इवेंट में दिख रहा है। वे मीडिया को ऐंवे ही लेते हैं। उनकी रुचि सिर्फ बाइट देने में रहती है। इलेक्‍ट्रानिक और ऑन लाइन मीडिया के साथियों का काम तस्‍वीरों और वीडियो से चल जाता है। प्रिंट मीडिया के साथी छक जाते हैं। उन्‍हें लिखने और पाठकों को बताने के लिए कुछ खास नहीं मिल पाता। मूवी और मीडिया के संबंध के इस संक्रांति काल से निकलने के रास्‍ते बनेंगे। फिलहाल अवरोध बन चुका है।
दरअसल,धौनी ने एक दिन का समय दिया था। इस एक दिन में उन्‍हें लुधियाना,दिल्‍ली और मुंबई के इवेंट में मौजूद होना था। उन्‍होंने अपन तरफ से कोशिश भी की,लेकिन उड़ान के विलंब और ट्रैफिक जाम ने उनके तयशुदा कार्यक्रम समय से नहीं होन दिए। नतीजा यह हुआ कि मुंबई में दो इवेंट और इंटरैक्‍शन(फैन और मीडिया) को एक साथ करना पड़ा। दिक्‍कत और परेशानी इसलिए हुई कि मीडिया को सही जानकरी नहीं दी गई। और न उनकी जिज्ञासाओं का खयाल रखा गया। इन दिनों आयोजकों को लगता है कि लोग जाएंगे कहां...वे बैठे रहेंगे। सच्‍चाई भी यही है कि पत्रकार बैठे रहते हैं। प्रतियोगिता इस कदर बढ़ गई है कि किसी एक की फुटेज दूसरे की नौकरी निगल सकती है। इस डर और दबाव में मीडिया का मनचाहा इस्‍तेमाल हो रहा है।
ट्रेलर लांच इवेंट में ट्रेलर दिखाने के बाद सवाल-जवाब होते हैं। सभी एक-दूसरे की तारीफ कर रहे होते हैं। मुश्किल सवाल पूछे नहीं जाते। टेढ़े सवालों पर निर्माता,निर्देशक और स्‍टार मखौल के मूड में आ जाते हैं। वे सवालों की खिल्‍ली उड़ाते हैं। मीडिया से मजाक करते हैं। परस्‍पर पीठ सहलाने के बाद वे निकल जाते हैं। ऐसे इवेंट के फुटेज टीवी पर चलते हैं। कुछ चटपटी खबरें अखबारों में आ जाती हैं। पता करना चाहिए कि ऐसे कवरेज पाठकों और टीवी दर्शकों को थिएटर तक ला पाते हैं क्‍या? अगर वे फिल्‍म के दर्शकों में तब्‍दील होकर थिएटर में जाते तो कोई भी फिल्‍म फ्लॉप नहीं होती। जिस ट्रेलर या गानें के मिलियन-मिलियन हिट बताए जाते हैं,दनके तो दर्शक भी मिलियन-मिलियन में होनो चाहिए। ऐसा होता नहीं है। अखबारों में पढ़ना और टीवी पर देखना बिल्‍कुल अलग शगल है। फिल्‍में देखने का फैसला दर्शक ट्रेलर लांच जैसे इवेंट से नहीं करते। आमिर खान ने गजिनी से इसे आरंभ किया था,लेकिन अब यह केवल रस्‍म अदायगी भर रह गई है। ट्रेलर लांच समय और धन की बर्बादी है।
सभी जानते हैं कि ट्रलर लांच करते ही वह यूट्यूब पर उपलब्‍ध हो जाता है। फिर पांच-दस मिनट पहले देखने के लिए घंटों समय देना मीडिया के लिए भी तार्किक और उपयोगी नहीं है।

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