हम पर भी है समाज की जिम्मेदारी : दीया मिर्जा
-स्मिता श्रीवास्तव
दीया मिर्जा
बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं। अभिनय, फिल्म निर्माण के अलावा वे खुद को
सामाजिक सरोकार के मुद्दों से भी नियमित तौर पर जोड़े रखती हैं। वे कन्या भ्रूण
हत्या, एचआईवी के खिलाफ अलख जगाती रही हैं। वे पर्यावरण संरक्षण की मुहिम का भी
हिस्सा रही हैं। हाल ही में उन्हें स्वच्छ साथी अभियान का ब्रांड अंबेसडर भी बनाया गया है।
सामाजिक कार्यों की प्रेरणा के संबंध में दीया कहती हैं,‘ यह कई चीजों का नतीजा है। आप की परवरिश काफी अहम होती है। मेरी परवरिश जिम्मेदार
नागरिक बनने और सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध रहने के तौर पर हुई। इसकी शुरुआत स्कूल
से हुई। जे कृष्णमृर्ति की फिलासिफी से अपनी शिक्षा अर्जित की। हमें सिखाया गया
प्यार से रहो, प्यार बांटो और प्यार फैलाओ। परिपक्व होने पर आप सोसाइटी की समस्याओं को
बारीकी से समझ पाते हैं। आप मूकदर्शक बने नहीं रह सकते। खास तौर पर जब आप
सेलिब्रिटी हों। सोशल वर्क जिंदगी के दायरे को बड़ा कर देता है। हम संसार से जुड़
जाते हैं।’
इसलिए जुड़ी
स्वच्छता अभियान से
मैं खुशकिस्मत
हूं कि इतने अभियान से जुड़ी हुई हूं। मेरा मानना है कि युवा पीढ़ी में जागरूकता
के लिए कुदरत से जुड़ाव जरूरी है। देश दुनिया का शायद ही कोई हिस्सा कचरे से अछूता
हो। समस्या यह है कि दुनिया प्रगति के साथ पर्यावरण को हानि पहुंचाती आई है। इंसान
द्वारा पैदा किया गया अपशिष्ट कहां जाता है? उसका क्या होता है? यह साधारण बात युवा पीढ़ी समझ जाए तो कई समस्याएं हल हो जाएंगी। यह काम तब
होगा जब हम समझेंगे कि यह कचरा क्यों पैदा कर रहे हैं? मेरे बचपन में शॉपिंग माल नहीं होते थे। हम बाजार में खुले ठेले से सब्जी या
फल लेकर झोले में आते थे। अब प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग बढ़ गया है। सभी को पता
है कि यह सड़ नहीं सकता है। यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है। उसके बावजूद यह
प्रचलन में है। मैं हमेशा से प्लास्टिक पर प्रतिबंध की हिमायती रही हूं। अगर हम
खुद इनके खिलाफ जगे। उसका विकल्प खोजा जाए तो पर्यावरण संरक्षण काफी हद तक संभव
है।
मंत्रालयों का
सहयोग है जरूरी
महात्मा गांधी
की 150वीं जयंती तक 4041 कस्बों को स्वच्छ बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के
बाबत दीया कहती है, ‘जब तक विभिन्न सरकारी विभागों के बीच संवादहीनता खत्म नहीं होती , यह समस्या जड़ से समाप्त नहीं होगी। शहरी विकास मंत्रालय कम्युनिकेशन गैप कम
करने की दिशा में प्रयासरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में कहा था हमारे
समक्ष सबसे बड़ी चुनौती मंत्रालयों के बीच बेहतर संवाद स्थापित करने की रही है।
क्रांति के लिए भागीदारी जरूरी होती है। जागरूकता काफी लंबे समय बाद आती है। हमारे
देश की आबादी बहुत है। समस्याएं बहुत ज्यादा है। लिहाजा जनसंख्या नियंत्रण पर
ध्यान देने की आवश्यकता है। उस दिशा में हम कोई कारगर प्रयास नहीं कर रहे।’
हॉरर सीरीज का
बनेंगी हिस्सा
देश की पहली
हॉरर वेब सीरीज शॉकर्स की कहानी ‘द गुड वाइफ’ का हिस्सा दीया मिर्जा भी होंगी। यह
पहला मौका है जब वह हॉरर सीरीज का हिस्सा बनेंगी। इस बाबत दीया कहती हैं, ‘डिजिटल प्लेटफार्म पर अभी क्रिएटिव काम का आगाज हुआ है। मेरी कहानी बेहद रोचक
है। यह जिंदगी को बहुत रोचक दृष्टिकोण देती है। हम जिंदगी को क्रूर महसूस करते
हैं। हकीकत में यह बेहद शानदार है। बतौर कलाकार, निर्माता मेरी कोशिश
विभिन्न माध्यमों में काम करने की रही है। साथ ही दूसरों को क्रिएटिव मौके देने की
रही है। मैं इसमें किसी को डराती नहीं दिखूंगी। कहानी आपको डरा सकती है। यह आपको
प्यार भी दे सकती है। यह निर्भर करता है कि आप उसे किसे नजरिए से देखते हैं।’
सलाम मुंबई के
लिए जाएंगी ईरान
भारत व ईरान का
संयुक्त फिल्म प्रोजेक्ट ‘सलाम मुंबई’ में दीया अहम भूमिका में हैं। वह बताती हैं, ‘फिल्म की शूटिंग पूरी
हो चुकी है। फिल्म रमजान के बाद ईरान में रिलीज होगी। मैं रिलीज के समय ईरान
जाऊंगी। मैं इस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित हूं। ईरानी सिनेमा के प्रति मेरा
झुक़ाव और सम्मान हमेशा रहा है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म का हिस्सा बनना मेरे लिए
उपलब्धि रही है। नई आडियंस के बारे में जगह बनाने का अवसर मिला है। इसकी कहानी
रियलिस्टक है। हमारे देश में विदेश से ढेरों बच्चे पढऩे आते हैं। एक हिंदुस्तानी
लडक़ा ईरानी लडक़ी से प्यार कर बैठता है।
उसके बाद क्या होता है फिल्म इस संबंध में है।
-सख्त
सेंसरशिप में भी सिनेमा
ईरानी सिनेमा
का कंटेंट दमदार होता है। वह भी तब, जब ईरान में
सख्त सेंसरशिप है। जब बंदिशें ज्यादा हों तो इंसान का दिमाग ज्यादा सक्रिय होता
है। वह परिस्थितियों से परे जाकर उन्नति करना चाहता है। ईरानी फिल्मों की कहानियां
असाधारण होती है। तमाम कायदे कानून के बावजूद वे रचनात्मक को निखारते हैं। कड़ी
मेहनत हैं। हमारे पास आजादी है। कुछ लोग काम कर लेते हैं कुछ नहीं। हालांकि यह
आर्टिस्टिक माध्यम है। इसमें काफी पैसा लगा होता है लिहाजा विशुद्ध कलात्मक माध्यम
न होकर बिजनेस होता है। मेरा मानना है कि हमारे देश में सेंसरशिप न होकर
सर्टिफिकेशन होना चाहिए। लोकतांत्रिक देश होने के नाते हमें दर्शकों को विकल्प
देना चाहिए कि वे क्या देखना चाहते हैं क्या नहीं। ए सर्टिफिकेशन के बावजूद मैंने
कितने बच्चों को थिएटर में देखा है। ए सर्टिफिकेट के बाद थिएटर मालिक बच्चों को
अंदर आने की अनुमति दे देते हैं। यह नियमों की धज्जियां उड़ाना है।
-बढी है
अभिनेत्रियों की मांग
सिनेमा बदलने
से हीरोइन की शेल्फ लाइफ बढऩे के बाबत दीया कहती हैं, ‘यह ऐसा कांसेप्ट है, जिसके लिए इंडस्ट्री
आपको विवश करती है। या आप उसे खुद पर लागू करते हैं। बहुत मर्तबा देखा गया है काफी
लोग खुद दूरी बनाते हैं। यह उनकी च्वाइस है। वर्तमान में कई अभिनेत्रियां उस मिथ
को तोड़ रही हैं। कारण वह उम्दा काम रही है। आप उनकी शेल्फ लाइफ नहीं बढ़ा रहे। यह
आपकी सोच है। यह स्टीरियोटाइप सोच को औरत या पुरुष अपने धैर्य और दृझ़ संकल्प से
ही तोड़ेंगे।’
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