ढेरों चुनौतियां हैं लड़कियों के सामने - अनुष्‍का शर्मा




    -अजय ब्रह्मात्‍मज
हर कलाकार की लाइफ में ऐसा समय आता है जब उसकी स्वीकार्यता बढ़ जाती है। भले उसमें कलाकार विशेष की प्लानिंग न दिखती हो, पर अनुष्का शर्मा उस स्टेज में हैं। वे ‘सुल्तान’ में हरियाणा की रेसलर आरिफा के रोल स्‍वीकारती हैं। वे साथ ही अपने बैनर तले हार्ड हिटिंग फिल्में बना रही हैं। 
अनुष्‍का शर्मा कहती हैं, ‘ मुझे स्वीकारा जा रहा है। यह बहुत बड़ी चीज है। इसके बिना कुछ भी नहीं है। मेरी मेहनत के कोई मायने नहीं होंगे। हम लोग एक्टर हैं। लोग हमारे काम के बारे में क्या सोचते हैं, यही हमारी सफलता होती है। चाहे वह अप्रत्यक्ष सफलता हो या प्रत्यक्ष सफलता हो। इससे हमें और फिल्में मिलती हैं। वह चाहे जो भी हो। यह हमारे लिए जरूरी है। मैं बचपन से ऐसी रही हूं। मुझे हमेशा कुछ अलग करने का शौक रहा है। यह मेरा व्यक्तित्व है।
मतलब खुद भी खुश होना चाहिए। उससे ज्यादा खुद से संतुष्ट होना चाहिए कि हम जो कर रहें हैं उसके पीछे एक वजह है। यह पूछे जाने पर वे बताती हैं, ‘वजह होना बहुत जरूरी है। उसके बिना कोई उद्देश्य नहीं होता है। मैं यह ‘सुल्तान’ के उदाहरण से समझाना चाहूंगी। मेरे लिए यह घाटा था। लोगों को लगता है कि रेसलर एक तरह से लगते हैं। वह साइज में बहुत बड़े होते हैं। मुझे भी ऐसा ही लगा। मैंने ज्यादा रेसलिंग नहीं देखी थी। रेसलिंग रिंग में भी थोड़ा सा चैनल के जरिए देखा होगा।
जब मुझे आदित्य चोपड़ा ने फिल्म दी, मैं बहुत डर गई थी। मैंने सोचा कि कैसे करूंगी। यह कैसे होगा। मैं लोगों का नजरिया कैसे बदल सकती हूं। क्योंकि इस विषय पर कभी कोई फिल्म बनी भी नहीं। ऊपर से आप फीमेल रेसलर हैं। मुझे पता था कि इस रोल में उत्साह है, पर चुनौती भी थी। सोच ब्रेक करना मेरे लिए जरूरी हो गया। मैंने फिर रिसर्च की। समझने की कोशिश की। आखिर यह कैसे होता है। मैंने समझा कि अलग –अलग वजन कैटेगरी में लोग मुकाबला करते हैं। जरूरी नहीं कि एक ही कैटेगरी हो। वजन की कम कैटेगरी भी होती है। मैंने कई लंबी इंटरनेशनल रेसलर देखी। उनका शरीरा मेरे जैसा था, पर वे रेसलर थीं। उनका शरीर मजबूत था। मैंने सोचा कि यही है। यह रास्ता मुझे लेना है। उसके बाद फिल्म का पहला टीजर निकला। लोगों ने कहा कि यह रेसलर लग रही है। मैंने कहा कि बस मेरा काम हो गया।
फिल्म के जरिए रेसलिंग के बारे में जाना। खासकर भारतीय रेसलर के बारे में समझ कर। खासकर फीमेल रेसलर के बारे में। यहां की महिला रेसलर मेल रेसलर से लड़ती हैं। क्योंकि यहां ज्यादा महिला रेसलर नहीं होती हैं। उन्हें पुरूष रेसलर से लड़ना पड़ता है। अभी तो फिर भी महिला रेसलर की तादाद बढ़ रही है। मतलब लड़कियां लड़कों से लड़ती हैं। उसके बाद उन्हें आगे के लिए चुना जाता है। जो भी उनकी प्रतियोगिता होती है। मुझे यह सारी चीजें बहुत अनोखी और मजेदार लगी। वह क्या सोचती होंगी। कैसे रेसलिंग करती होंगी। वह असहज महसूस नहीं करती होगी। क्या होता होगा। यह सारी चीजें समझना। उसे जानना। बहुत ज्यादा संतुष्टि की प्रक्रिया रही।

    इस किरदार के लिए मुझे शारीरिक मेहनत बहुत ज्यादा करनी पड़ी। मैंने देखा कि लंबी और टोन रेसलर हैं। मैंने खुद से कहा कि मुझे अभी टोंड बॅाडी चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि यह इंसान फिट है। उसके लिए मैंने काम किया। रेसलिंग मुझे सीखनी पड़ी। मेरा दिन बहुत लंबा होता था। सुबह ट्रेनिंग करती थी। उसके बाद मैं शूट करने जाती थी। उसके बाद रात को रेसलिंग करती थी। मेरा पास यह सारी चीजें करने केलिए अधिक समय नहीं था। महज छह हफ्ते थे। यह मेरे लिए बहुत कठिन था। मैंने खुद को नार्मल तरीके से ज्यादा पुश किया। अभी लोग देख रहे हैं, विश्वास कर रहे हैं तो। खासकर आप किसी इतनी रियल चीज को दिखा रहे हो, जिसके बारे में किसी ने बात नहीं की है। आप उस चीज को अपना सौ प्रतिशत देते हो।
एक रेसलर की ताकत शरीर और दिमाग दोनों में होती है, ‘ खेल में आप अपने शरीर के साथ क्या कर रहे हो, बस उतना ही काफी नहीं है। आप अपने दिमाग के साथ भी काम करते हो। मानसिक स्थिरता बहुत जरूरी है। मानसिक तौर पर तेज होना जरूरी है। वही आपके शरीर को मजबूत रखने में मदद करता है। मैंने यही सीखा है। मैं सोचती थी कि जोश की जरुरत होती है। पर मेरे टीचर जगदीश जी कहते थे कि रेसलर तरकीब से काम करते हैं। रेसलर दूसरे रेसलर को हमेशा देखता है। जानने की कोशिश करता है कि उसकी कमजोरी क्या है। यह कोई रास्ते की लढ़ाई नहीं है। यह एक खेल है। इससे हमें कई चीजों के बारे में सम्मान की भावना आती है। पहले इस खेल के बारे में नहीं पता था। और आज हम इस खेल का सम्मान करते हैं। लोगों लगता है कि फिल्मों में क्या है। यह सब करना आसान होगा। ऐसा लोग सोचते हैं। जब आप खुद करों, तो इसके बारे में पता चलता है कि एक्टिंग के लिए चीजें कितनी मुश्किल होती है।उसमें कितनी मेहनत जाती है।
अगर इसको सिंबल के तौर पर लिया जाए तो जिंदगी कितनी बड़ी रेसलिंग है, खासकर के लड़कियों के लिए? इसके जवाब में अनुष्‍का कहती हैं, ‘आरिफा आज की आधुनिक भारतीय लड़की को पेश करती है, जो गांव में रहती है। भारत में ऐसी कई महिला रेसलर हैं, जो गांवों से आती हैं। हरियाणा के गांव से महाराष्ट्र के गांव से, यूपी और पंजाब के गांव से। उन्हें रेसलिंग के साथ अपने घर के रोजमर्रा के काम भी करने हैं। घर के काम के साथ वह अपनी ट्रेनिंग भी करती हैं। यह संतुलन बनाना बहुत ही बड़ी चीज है। आप की महत्वाकांक्षा है। साथ में यह काम भी है। वरना इसे कौन करेगा। अगर घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि आपके पास नौकर हों तो मुश्किलें बढ़ती हैं। यह असलियत है। मैंने यह सीखा कि कठिन होता है। चुनौती भी रहती है। किसी भी फील्ड में महिलाओं के लिए थोड़ा ज्यादा मुश्किल होता है।
हम लड़कियों के अंदर यह भी होता है कि हमें खुद को साबित करना पड़ता है। यह पता नहीं क्यों होता है, पर सारी लड़कियां ऐसे सोचती हैं। कई सालों से यह हो रहा है। फिर लड़कियों के लिए यह रहता है कि वह कर पाएंगी क्या? अगर आप रेसलिंग का ही देख लों। उन्हें लड़कों के साथ लड़ना पड़ता है। वह मुकाबला करती हैं। अगर जीत गई तो उन्हें मजबूत मान लिया जाता है। समझा जाता है कि वह आगे बढ़ेंगी। यह मुश्किलें हैं। आरिफा के लिए भी सुल्तान में सिंगल पाइंट पर फोकस रखना कठिन रहा। उसे ओलपिंक गोल्ड मैडल जीतना है। उसका इसी पर फोकस था। इसके अलावा उसने और कुछ नहीं सोचा था। अपने जीवन में उसने केवल यही सोचा। लेकिन यह अवधारणा को लेते हुए जीवन में आगे बढ़ना थोड़ा मुश्किल है।
वैसे सुल्तान के साथ उसका प्यार का कनेक्‍ट है। जब सुल्तान आरिफा को देखता है तो सोचता है कि वह भी रेसलर बनेगा। उसे रेसलर बनने की प्रेरणा आरिफा से मिलती है। वह पहले से रेसलर थी। वह यह सोचता है कि अगर रेसलर बन जाएगा तो आरिफा उससे शादी कर लेगी। वह यह सोचता है। वह उसकी लाइफ में एक एंकर है। सुल्तान थोड़ा सा बचकाना है, थोड़ा भटक सकता है। आरिफा उसे सही औऱ गलत बताती है। वह उसकी ताकत है। वह खुद अपने आप को इज्जत देती है। वह खुद महत्वाकांक्षी है। वह यूनिक इस वजह से है कि दो खिलाडियों की लव स्टोरी है।

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