गिटार मास्टर हैं तिग्मांशु : संजय चौहान
हिंदी सिनेमा में बदलाव के प्रणेताओं में तिग्मांशु धूलिया
का नाम भी शुमार होता है। वह लेखक, निर्देशक, अभिनेता, निर्माता और कास्टिंग
डायरेक्टर हैं। ‘हासिल’, ‘पान सिंह तोमर’, और ‘साहब बीवी और गैंग्स्टर’ जैसी
उम्दा फिल्में तिग्मांशु धूलिया की देन हैं। तीन जुलाई को तिग्मांशु का जन्मदिन
है। संजय चौहान उनके करीबी दोस्त हैं। पेश है तिग्मांशु के व्यक्तित्व की
कहानी संजय की जुबानी :
यह कहना गलत नहीं होगा कि तिग्मांशु धूलिया , जिन्हें हम दोस्त
प्यार से तीशू कहकर बुलाते हैं, से मेरी मुलाकात बिज्जी (प्रख्यात कहानीकार विजन दान देथा) के जरिए हुई थी।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से मैंने बिज्जी की कहानियों पर एम फिल की थी। मुंबई आने के
बाद मैं टीवी सीरियल लिख रहा था। उन दिनों स्टार बेस्ट सेलर सीरीज के तहत कई निर्देशक
अलग-अलग कहानियां कर रहे थे। उनमें से कई आज नामी निर्देशक हो चुके हैं। मसलन
श्रीराम राघवन, इम्तियाज
अली, अनुराग
कश्यप और तिशु। बिज्जी राजस्थान की एक बोली मारवाठी में लिखते थे। उनकी एक कहानी अलेखुन
हिटलर के हिंदी अनुवाद अनेकों हिटलर को तिशु ने इसी सीरीज के पर्दे पर कमाल तरीके
से उतारा था और मुझे लगा वह बेहद सुलझे व्यक्ति है। वरना बिज्जी की कहानी खोजकर पर्दे
पर लाने का जोखिम नहीं उठाते।
तिशु से मेरी पहली मुलाकात सडक़ पर हुई थी। ‘हासिल’ फिल्म को
रिलीज हुए एक साल से ज्यादा हो चुका था, मुझे वह फिल्म बेहद पसंद आई थी। मुझे लगा था कि सुधीर
मिश्रा की ‘ये वो मंजिल तो नहीं’ के बाद छात्र राजनीति पर इससे बेहतरीन फिल्म नहीं
बन सकती है। हम दोनों की पहली मुलाकात भी बड़ी दिलचस्प रही है। मैं मुंबई के सात
बंग्लो इलाके से गुजर रहा था और वहीं तिशु से टकरा गया। मैंने उनसे कहा ‘हासिल’
कमाल की फिल्म है। वह हौले से मुस्कुराए शुक्रिया कहा और हम अपनी-अपनी राह हो लिए।
तब तक शायद वह यह सुन-सुन कर बोर हो चुके होंगे और उन्होंने संवाद की जरुरत नहीं
समझी होगी। मुझे भी कुछ बुरा नहीं लगा।
उसके बाद तिशु की फिल्म ‘चरस’ आई और मैं बहुत दुखी हो गया।
मुझे लगा यार उन्हें क्या हुआ है? ‘हासिल’ के बाद वही शख्स ऐसी फिल्म बना सकता है। वर्षो बाद जब
हम अच्छे दोस्त हो चुके थे हमारी इस बात पर बहस हो गई थी। वह मानने को तैयार नहीं
थे कि ‘चरस’ खराब फिल्म थी। शायद उनकी कल्पना की फिल्म और बनी फिल्म की दूरी बहुत
ज्यादा हो गई थी और अभी भी उनके दिमाग में वही फिल्म चल रही थी जो उन्होंने संजोयी
थी।
तिशु से सीधे-सीधे परिचय उस वक्त हुआ जब मैं के सेरा सेरा
प्रोडक्शन हाउस के लिए फिल्म लिख रहा था और उसी कंपनी के लिए तिशु एक और फिल्म
निर्देशित करने वाले थे। तब बात हुई नंबरों की अदला-बदली हुई। एक दिन तिशु का फोन
आया। हम मिले। तिशु ‘घायल’ फिल्म का सीक्वेल सोच रहे थे। उन्होंने कहा साथ मिलकर
लिखते हैं। मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, तुम खुद
इतने उम्दा लेखक हो, मेरी क्या
जरूरत? उन्होंने कहा करते हैं मिलकर। हम लोग चार बार
मिले। कहानी आगे नहीं बढ़ी और बात वहीं रह गई।
फिर लगभग दो साल बाद फिर तिशु का फोन आया। हम मिले और तिशु ने
एक अखबार में छपा ‘पान सिंह तोमर’ पर लिखा एक पेज का लेख साझा किया। यह स्पष्ट था
कि न तो गूगल न विकिपीडिया पर इसकी कोई जानकारी थी। इसलिए गहन रिसर्च की जरूरत होगी, लेकिन प्रोड्यूसर
यूटीवी स्पॉट ब्वॉय इसके लिए तैयार था। तब दो साल की रिसर्च और एक साल स्क्रिप्ट
लिखने के दौरान तिशु को नजदीक से जानने का मौका मिला।
और जब ‘पान सिंह तोमर’ बन के अटकी रही तब हमने तय किया किया
कि एक ऐसी फिल्म बनाई जाए जिसके रिलीज के लिए किसी की बाट न जोहनी पड़े। मेरी
पसंदीदा फिल्मों में से एक फिल्म ‘साहब बीबी और गुलाम’ है, जिसे मैंने हजारों
बार देखा होगा। मुझे लगा आज के टाइम कोई साहब वैसा साहेब नहीं, बीवी वैसी नहीं जो
अय्याश पति के चरणों में पड़ी रहे और गुलाम तो कोई नहीं । हिंदी फिल्मों के रामू
काका कब के गुजर गए। यह आइडिया मैंने तिग्मांशु को सुझाया सबको पसंद आया और मैं
पहला डाफ्ट लिखने बैठ गया। हम दोनों ने उसमें रंग भरे और वह ‘साहब बीवी और गैंग्स्टर’
फटाफट बनकर तैयार हुई और हिट हुई। उसकी सफलता ने पान सिंह तोमर की रिलीज के दरवाजे
खोल दिए। बाकी की कहानी सभी को पता है। शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए तिशु और उनके दोस्तों का एक बैंड था, जिसमें तिशु गिटार
बजाया करते थे। अक्सर कई शाम वह गिटार उठाते और गाने की महफिल जम जाती।
बहरहाल, अगर
आपको उनके नजदीक जाना है तो खाने का शौकीन होना बहुत जरूरी है। तिशु खाने पीने के
बेहद शौकीन है। वह विभिन्न डिश, उसके बनाने की विधि और बारीकियों पर घंटों बातें कर सकते हैं।
वह खुद भी बेहतरीन कुक हैं। मुझे लगता है कि आज के दौर में मुकम्मल कहानी कहने और
गढऩे वाले बेहतरीन निर्देशकों में से तिशु एक हैं। जन्मदिन पर मैं उन्हें ढेर सारी
शुभकामनाएं देता हूं।
स्मिता श्रीवास्तव
Comments