कल्‍पना से गढ़ी है कायनात - राकेश ओमप्रकाश मेहरा




- अजय ब्रह्मात्मज
राकेश ओमप्रकाश मेहरा की अगली फिल्म ‘मिर्जिया’ है। इसमें उन्होंने दो नए चेहरों को लौंच किया है। हर्षवर्द्धन कपूर और सायमी खेर के रूप में। फिल्म की कहानी व गीत गुलजार ने लिखे हैं।
राकेश ओमप्रकाश मेहरा इससे पहले भी नए लोगों के संग काम करते रहे हैं। ‘रंग दे बसंती’ में मौका मिला था। शरमन थे, सिद्धार्थ थे, कुणाल था। सोहा थीं, एलिस थीं। जब ‘दिल्ली-6’ बनाई तो उस वक्त सोनम कपूर भी नई थीं। उनकी ‘सांवरिया’ रिलीज भी नहीं हुई थी, जब हमने काम शुरू कर दिया था। वे भी नवोदित थीं। ‘मिर्जिया’ इस मायने में अलग है कि यहां दोनों चेहरे नए हैं। हर्षवर्द्धन की खासियत उनकी खामोशी में हैं। अच्छी बात यह रही कि हम दोनों को एक-दूसरे को जानने के लिए 18 महीने का वक्त मिला। वह भी सेट पर जाने से पहले। हमने ढेर सारी वर्कशॉप और ट्रेनिंग की। उन्होंने घुड़सवारी भी सीखी। तीरंदाजी भी सीखी उन्होंने, क्योंकि मिर्जा के अवतार में वे दो-दो किरदार प्‍ले कर रहे हैं। लोककथाओं में मिर्जा का किरदार काल्‍पनिक दुनिया में है। मैंने एक प्लग वहां लगा दिया। दूसरी दुनिया आज के दौर की है। वह राजस्‍थान में है। वहां के जिप्सियों के बीच मिर्जा-साहिबा की कहानी मशहूर रही है। वह कहानी आज के परिप्रेक्ष्‍य में कैसी होगी, वह भी इस फिल्म में है। हम इसे पुरानी कथा नहीं कहेंगे। इसकी जगह मैं इसे टाइमलेस या इटरनल कहना चाहूंगा। वह इसलिए कि ऐसे किरदार आप की कल्पनाओं में होते हैं। उसका पास्ट है न प्रजेंट। जब मैंने पहली बार मिर्जा-साहिबा या हीर-रांझा व लैला-मजनू की कहानी सुनी थी तो उनका कोई रेफरेंस पॉइंट नहीं था। हम अपनी कल्पना के आधार पर उनकी कायनात गढ़ सकते हैं। हीरा-रांझा व लैला-मजनू की कहानी संगीत से आगे बढ़ी थी। ‘मिर्जिया’ के लिए जब मैं गुलजार भाई से मिला तो बातों ही बातों में बात निकली कि क्यों न इसे म्यूजिकल बनाया जाए। उनकी आंखों में एक चमक दिखी। उन्होंने कहा कि करते हैं। मजा आएगा। मेरे लिए सबसे बड़ी बात है कि उनके साथ काम करने का मौका मिला। ‘मिर्जिया’ मेरी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित होगा। गुलजार भाई से जुड़ने के बाद इसके मायने मेरे लिए बढ़ गए हैं।  
    ‘मिर्जिया’ का टीजर ट्रेलर मैड्रिड में लौंच करने की वजहें थीं। एक तो संयोग ऐसे बने कि इसका ट्रेलर उन्हीं दिनों बन कर तैयार हो रहा था, जब आईफा चल रहा था। वरना हमारी योजना इसे ‘सु्ल्तान’ के साथ लाने की थी, पर आईफा भी बउ़ा मंच था। इंडस्‍ट्री के सभी कद्दावरों को अपना काम दिखाने का मौका मिला। इससे भी बड़ी बात यह थी कि वहां पूरी दुनिया से मीडिया एकत्र हुई थी। ऊपर से स्‍पेन अपने आर्ट और कल्चर के लिए जाना जाता है। वहां के लोग उन्हें सहेज कर रखते हैं। लौंच पर सभी नए कलाकारों को शुभकामनाएं मिलीं। इससे बेहतर हम और क्या पेश कर पाते।        
पंजाब के प्रसिद्ध प्रेमी-युगल मिर्जा और साहिबा की प्रेम कहानी पर केंद्रित है। लिहाजा फिल्म की कथाभूमि पंजाब में है । राकेश कहते हैं, ‘ मेरी फिल्मों में पंजाब घूम कर आ ही जाता है। अब पता नहीं इसे इत्तफाक क्या कहूं या कुछ और। ‘रंग दे बसंती’ में भगत सिंह तो ‘भाग मिल्खा भाग’ में मिल्खा सिंह। यहां अब मिर्जा साहिब आ गए। लगता है कि पिछले जन्म में मैं शायद पंजाब की ही पैदाइश रहा हूं। रहा सवाल मेरा पंजाब, ‘उड़ता पंजाब’ और दूसरे लोगों के पंजाब की तो ‘मिर्जिया’ का पंजाब बिल्कुल अलग है। यहां का पंजाब टिपिकल पंजाब नहीं है। यहां उत्तर-पश्चिम भारत के पंजाब की बाते हैं। इसमें आवाजें भी देखेंगे तो दलेर मेंहदी, पाकिस्तानी लोक गायक साईं जहूर हैं। वे सब ऐसी आवाजें हैं, जो सूफी से भी ऊपर रूहानी सी फील रखते हैं। एक वैसा निचोड़ है। (हंसते हुए) हर्षवर्द्धन कपूर को फिल्म में इसलिए लिया, क्योंकि उनके पिता अनिल कपूर के साथ काम नहीं कर पाता हूं। उनको मेरा काम अच्छा लग जाए तो कर लूं। जबकि हर्ष के साथ काम कर रहा हूं। सोनम कपूर के साथ काम कर रहा हूं। उम्मीद है अब खुद अनिल कपूर साहब मुझे मौका देंगे।


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