दरअसल : निजी जिंदगी,फिल्‍म और प्रचार

-अजय ब्रह्मात्‍मज
सार्वजनिक मंचों पर फिल्‍म स्‍टारों के ऊपर अनेक दबाव रहते होंगे। उन्‍हें पहले से अंदाजा नहीं रहता कि क्‍या सवाल पूछ लिए जाएंगे और झट से दिए जवाब की क्‍या-क्‍या व्‍याख्‍याएं होंगी? क्‍या सचमुच घर से निकलते समय वे सभी अपने जीवन की नई-पुरानी घटनाओं का आकलन कर उन्‍हें रिफ्रेश कर लेते होंगे? क्‍या उनके पास संभावित सवालों के जवाब तैयार रहते होंगे? यह मुश्किल राजनीतिज्ञों और खिलाडि़यों के साथ भी आती होगी। फिर भी फिल्‍म स्‍टारों की निजी जिंदगी पाइकों और दर्शकों के लिए अधिक रोचक होती है। हम पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर खबरों के नाम पर उनकी निजी जिंदगी में झांक रहे होती हैं। उनकी प्रायवेसी का हनन कर रहे होते हैं। इस दौर में पत्रकारों के ऊपर भी दबाव है। उनसे अपेक्षा रहती है कि वे कोई ऐसी अंदरूनी और ब्रेकिंग खबर ले आएं,जिनसे टभ्‍आपी और हिट बढ़े। डिजिटल युग में खबरों का प्रभाव मिनटों में होता है। उसे आंका भी जा सकता है। टीवी पर टीआरपी और ऑन लाइन साइट पर हिट से पता चलता है कि उपभोक्‍ता(दर्शक व पाठक) की रुचि किधर है? जाहिर सी बात है कि अगले अपडेट,पोस्‍ट और न्‍यूज में वैसी ही खबरों को तरजीह दी जाती है। रिपोर्टर पर दबाव रहता है। और रिपोर्टर लिहाज की दहलीज तोड़ कर निजी जिंदगी में झपट्टा मारता है।
पिछले हफ्ते आशुतोष गोवारीकर अपनी नई फिल्‍म मोहेंजो दारो के खास इवेंट में रितिक रोशन और पूजा हेगड़े समेत सभी कलाकारों और तकनीश्यिनों के साथ मौजूद थे। प्रागैतिहासिक काल की इस फिल्‍म के निर्माण,शोध और विषय पर बातें हो रही थीं। आशुतोष गोवारीकर पूरे गर्व के साथ सब कुछ बता और शेयर कर रहे थे। रितिक रोशन ने अपनी नायिका पूजा हेगड़े को इंट्रोड्यूस किया। उन्‍होंने अपने रोल और मेहनत की जानकारी दी। बीच में कुछ सवालों में विषयांतर की कोशिशें हुईं,लेकिन इवेंट फिल्‍म के इर्द-गिर्द ही रहा। लगभग समाप्ति के समय एक पत्रकार ने रितिक रोशन ने कंगना रनोट के मामले में इंडस्‍ट्री के साथ न होने का सवाल पूछा। रितिक ने सादगी से जवाब दिया कि वे सच के साथ हैं,इसलिए उन्‍हें किसी के साथ न होने की परवाह नहीं। यह एक सामान्‍य जिज्ञासा का सरल जवाब था।इस जवाब के साथ ही गहमागहमी बढ़ गई। पत्रकारों के मोबाइल एक्टिव हो गए। पता चला कि सभी इसे ही पोस्‍ट कर रहे हैं। थोड़ी देर के बाद चैनल और अगले दिन अखबारों में फिल्‍म से संबंधित सारी बातें खबर में एक कोने में थीं और सुर्खी बनी कि रितिक रोशन को फिल्‍म इंडस्‍ट्री के साथ होने या न होने की परवाह नहीं।
रितिक रोशन की निजी जिंदगी के मामूली प्रसंग ने एक महत्‍वपूर्ण निर्देशक की गैरमामूली फिल्‍म मोहेंजो दारो को ग्रस लिया। फिल्‍म पीछे रह गई। निजी जिंदगी खबरों में तैरने-उतराने लगी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। आगे भी इसे दोहराया जाएगा। सवाल यह है कि कवरेज और पत्रकारिता के नाम पर हम किस दिशा में जा रहे हैं? पहले भी फिल्‍म स्‍टारों की निजी जिंदगी में सभी की रुचि रहती थी,लेकिन उसका एक दायरा था। अभी सारे दायरे टूट गए हैं।
इन दिनों प्रचार का भी दबाव बढ़ गया है। फिल्‍मों के निर्माता-निर्देशक और संबंधित स्‍टार फिल्‍म के प्रचार के लिए किसी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। वे प्रचार के नए तौर-तरीके खाजते हैं। कोशि रहती है कि किसी भी प्रकार फिल्‍म सुर्खियों में आ जाए। दर्शकों का ध्‍यान खींचे। वे पहले तीन दिनों में सिनेमाघरों में पहुंचे और फिल्‍म की अच्‍छी कमाई हो जाए। अगर कोई विवाद हो जाए तो भी ठीक है। उड़ता पंजाब का उदाहरण भी दिया जाने लगा है। सीबीएफसी के रवैए से विवाद में आई यह फिल्‍म खूग चर्चित हुई। उसकी वजह से इसके दर्शक बढ़े। नतीजे में फिल्‍म का कलेक्‍शन अच्‍छा रहा। तैयार किए जा रहे हैं। प्रचार और निजी जिंदगी के घालमेल से फिल्‍म का आकर्षण बढ़ाया जा रहा है। दर्शक जुटाए जा रहे हैं।


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