गीत गाया आत्मा से : अमिताभ बच्चन
-अजय ब्रह्मात्मज
अमिताभ बच्चन फिर से बंगाली बुजुर्ग की भूमिका में
नजर आएंगे। पिछले साल ‘पीकू’ में उनकी भूमिका को दर्शकों और समीक्षकों की सराहना मिली।
इसी भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
इस बार वे रिभु दासगुप्ता की फिल्म ‘तीन’ में बंगाली कैथोलिक जॉन विश्वास की भूमिका में नजर आएंगे।
इस फिल्म की शूटिंग पूरी तरह से कोलकाता में की गई है। विवादों के बीच बगैर अपना
संयम और धैर्य खोए अमिताभ बच्चन अपनी कलात्मक धुन में लीन रहते हैं। उनके ट्वीट
और ब्लॉग गवाह हैं कि उन्होंने प्रशंसकों से जुड़े रहने का आधुनिक तरीका साध
लिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय ट्वीटर पर उनके फॉलोअर की संख्या 2
करोड़ 10 लाख 23 हजार 542 है।
-सहज जिज्ञासा होती है कि सोशल मीडिया पर आप की
सक्रियता किसी रणनीति और योजना के तहत है क्या ?
0 मुझे लोगों से जुड़े रहना
अच्छा लगता है। मेरे चाहने वालों में जो बचे-खुचे हैं, उनसे बातें हो जाती हैं।
आम तौर पर सोशल मीडिया की अपडेटिंग मैं रात में करता हूं। दिन भर की जो भी बातें
हैं, उसे लिखता हूं। या रात में साेने के पहले जो भी विचार आते हैं,उन्हें अपने
तरीके से लिख देता हूं। कभी कोई चीज अच्छी लगी हो या किसी विषय पर हम को बोलना
हो। वह निजी हो,बाबूजी से संबंधित हो तो उस पर कभी-कभी लिख देता हूं। सोशल मीडिया
पर अपना एक छोटा सा परिवार बन गया है।उन्हें मैं ईएफ(एक्सटेंडेड फैमिली) कहता
हूं। उनसे व्यक्तिगत तौर पर प्रतिदिन बातें होती हैं। जब तक बात न हो जाए,तब तक
उन्हें चैन नहीं मिलता और कुछ हद तक मुझे भी चैन नहीं मिलता।
-आप के एक इजरायली फॉलोअर हैं मोजेज...
0 उनके पास तो खजाना है। आश्चर्य होता है कि वे कब से
सारी चीजें जमा कर रहे हैं। जब भी मुझे कोई चीज चाहिए होती है तो मैं उन्हीं को
बोलता हूं। वे निकाल कर भेज देते हैं। वे भारत आए थे तो उनसे मुलाकात भी हुई थी।
लगभग 400 ऐसे व्यक्ति हैं,जिनसे निजी संबंध हो गया है। विदेशों से आण् ईएफ के
सदस्य यहां के ईएफ के परिवारों के साथ रहते हैं।
-अभी हम ‘तीन’ के लिए मिले हैं। इस फिल्म और अपनी भूमिका के बारे में कुछ
बताएं?
0 मैं एक बंगाली बुजुर्ग की
भूमिका में हूं। मेरा नाम जॉन विश्वास है। ऐंग्लो बंगाली हूं। वह अपनी पत्नी के
साथ रहता है। लोअर मिडिल क्लास या मिडिल क्लास का है। उसका बेटा कहीं विदेश में
काम कर रहा है। उसकी पोती के साथ एक हादसा हो गया है,जिससे वह पीडि़त और परेशान
है। वह शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति है। पोती की खोज में वह प्रतिदिन सरकारी
महकमों के चक्कर लगाता है। इस दरम्यान कुछ ऐसा होता है कि सभी को आठ साल पुरानी
बातें याद आने लगती हैं। आठ साल पुरानी घटनाएं फिर दोहरा रही हैं। जॉन विश्वास बदले
की भावना में नहीं है। वह जानना चाहता है कि यह सब कैसे हुआ? क्यों हुआ? जिसने यह किया,वह सामने आने
पर स्वीकार और पश्चाताप करेगा या नहीं? फिल्म के अंदर पता चलेगा
कि वह सही है या गलत है?
-इस फिल्म की शूटिंग कोलकाता में हुई है...
0 हां, यह बहुत सरल तरीके से बनाई गई है। कहीं कोई सेट
नहीं है। वास्तविक लोकेशन पर शूटिंग हुई है। फिल्म में कोई गाना नहीं है, जिसे
कोई किरदार गाता हो। यों फिल्म में चार गाने हैं, जो नेपथ्य में बजते हैं। उन
गीतों के शब्दों में किरदारों की पीड़ा और समस्याओं का उल्लेख होगा। एक गाना
मैंने भी गाया है। वह गीत मेरी आत्मा गा रही है। मतलब मेरे मन के अंदर जो घुमड़
रहा है, उन्हें शब्द दे दिए गए हैं।
- गूगल बाबा ने सुबह बताया कि यह आप का 24 वां गाना है?
0 (हंसते हुए) ऐसा है क्या। मैंने तो कभी गिनती नहीं की। मैं गायक तो हूं
नहीं। सभी की तरह मैं भी संगीत से प्रेम करता हूं। कभी-कभी मैं आदेश श्रीवास्तव
के स्टूडियो में चला जाया करता था। अभी वे नहीं हैं। पहले रात-बिरात मैं उनके
यहां चला जाया करता था। गपशप के बीच कभी संगीत छिड़ जाता था। कुछ रिकॉर्ड हो जाता
था। उनके गाने बन जाते थे। आदेश से काफी नजदीकी थी। दूसरे संगीतकारों के यहां भी
आना-जाना होता है, लेकिन वैसी बैठकी नहीं होती थी।
- ‘क्यों रे’ गीत का का क्या भाव है?
0 जॉन विश्वास अपनी पोती को याद कर रहा है। वह अपना
दर्द बयान कर रहा है।
- ‘तीन’ के डायरेक्टर रिभु दासगुप्ता की यह पहली फिल्म है। कैसा
अनुभव रहा?
0 रिभु के साथ मैंने ‘युद्ध’ नाम का टीवी शो किया था। हम
चाहते थे कि उसका डायरेक्शन अनुराग कश्यप करें, लेकिन वे उन दिनों बहुत व्यस्त
थे। उन्होंने ही रिभु का नाम सुझाया। बाद में निर्माता सुजॉय घोष के लिए ‘तीन’ का प्रस्ताव लेकर रिभु आए।
मुझे स्क्रिप्ट अच्छी लगी।
- ऐसा कहा जाता है कि फिल्म देखते समय दर्शकों के
दिमाग में एक्टर की पिछली फिल्मों से बनी छवि रहती है। इसके साथ उनसे जुड़े विवाद
और दूसरे प्रसंग भी घुलमिल जाते हैं? शायद यही वजह रही कि टीवी
के छोटे स्क्रीन पर आप का बड़ा कद समां नहीं सका?
0 अब बात जो भी रही हो। मुझे जूही चावला ने बताया था
कि जब मैं ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में हंसते-खेलते अमिताभ बच्चन को देख लेती हूं तो फिर ‘युद्ध’ में बीमार बच्चन को क्यों
देखूं? मुझे लगता है इस सोच और धारणा के और
भी दर्शक होंगे।
-‘पीकू’ के बाद ‘तीन’ में आप फिर से बंगाली बुजुर्ग की भूमिका निभा रहे हैं। अपने
अनुभवों से बताएं कि बंगाली बुजुर्ग दूसरे क्षेत्रों के बुजुर्गों से कैसे और क्यों
भिन्न होते हैं?
0 जिस वातावरण और माहौल में वे पलते और बढते हैं, उसकी
वजह से बुजुर्ग होने पर भी उनके मन में जिज्ञासाएं बनी रहती हैं। बंगाली बुजुर्ग
बहुत प्रश्न करते हैं। क्यों हुआ, कैसे हुआ। किसी भी घटना के बारे में सारी
जानकारियां चाहते हैं। मछली का रंग ऐसा क्यों है, वैसा क्यों नहीं है? तालाब की मछली है कि समुद्र की? सड़क ऐसी क्यों बनी हुई है? आप
ने जो कमीज पहनी है, वह किस कपड़े की बनी है? इसी माहौल से निकले किरदार
मुझे ‘पीकू’ और ‘तीन’ में मिले हैं। इस फिल्म में
जॉन विश्वास एेंग्लो-बंगाली है। रिभु भी नहीं चाहते थे कि मैं टिपिकल बंगाली का
किरदार निभाऊं। जिन दिनों मैं कोलकाता में काम करता था, उस समय एेंग्लो-बंगाली की
अच्छी आबादी थी। मैं खुद उनके संपर्क में रहता था। जॉन विश्वास के बारे में उसी
समझ के आधार पर मैंने रिभु को कुछ बातें बताईं। रिभु ने रिसर्च करने पर पाया कि
एंग्लो-बंगाली बदल गए हैं। अब वे मेरे जमाने जैसे नहीं रहे। उनकी भाषा, बोली व
पहनावा सब कुछ बदल गया है।
-रिभु ने बताया कि ‘तीन’ में कोलकाता शहर चौथे किरदार के रूप में आता है। आप का अनुभव
कैसा रहा?
0 मुझे सुजॉय घोष ने बताया था कि अगर आप कोलकाता में
शूटिंग करने को राजी हो जाते हैं तो मैं आप को कोलकाता की उन गलियों में ले
जाऊंगा, जिन्हें आप ने अपने आठ सालों के प्रवास में नहीं देखा होगा। और सचमुच मुझे
आश्चर्य हुआ कि मैं यह कोलकाता तो देखा ही नहीं था। एक बार तो एक टूटे-फूटे मिल
में मैं शूटिंग कर रहा था तो अचानक मुझे याद आया कि इस मिल में तो मैं आया करता
था। सारी पुरानी यादें ताजा हो गईं। जिस शहर में भी आपने अपनी जिंदगी के स्मरणीय
समय गुजारे हों, वह कभी भूलता नहीं। कोलकाता में मेरी पहली नौकरी थी। उन आठ सालों
के दोस्त, तब का कोलकाता, सब याद है
मुझे।
-क्या अब भी उन मित्रों के संपर्क में हैं?
0 बिल्कुल हैं। वे आते हैं, मिलते हैं। कभी-कभी उनके
साथ लौंग ड्राइव पर चले जाते हैं। पुराने ठिकाने को देखते हैं। यह सब अच्छा लगता
है।
- पहली बार आप नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ काम कर रहे
हैं। नवाज के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
0 नवाज के साथ यह मेरी दूसरी फिल्म है। शुजित सरकार की
‘शूबाइट’ में मैंने उनके साथ काम
किया था। वह फिल्म बंद हो गई। उस फिल्म में नवाज का पासिंग रोल था। उस छोटे से सीन
में ही नवाज ने मुझे प्रभावित किया। मैंने शुजित से पूछा भी कि कहां से ले आए हो,
इस लड़के को? उन्होंने फिर नवाज के बारे में
बताया। और अभी दूसरी फिल्म में उनके साथ आया तो वे लोकप्रियता की ऊंचाई पर हैं। वे
बहुत मंझे हुए कलाकार हैं। उनके अंदर एक साधारणता है। मिट्टी के साथ जुड़े कलाकार
हैं। उनके साथ काम कर बहुत कुछ सीखने को मिला। ‘पीकू’ में इरफान के साथ और ‘अक्स’ में मनोज बाजपेयी के साथ् काम करने से मुझे बहुत फायदा हुआ
है। इन तीनों के साथ काम करते हुए मैंने महसूस किया है कि लगता ही नहीं कि वे
अदाकारी कर रहे हैं। यों लगता है कि वे उसी किरदार के रूप में पैदा हुए थे। इन्हें
देखकर कभी नहीं लगता कि किरदार से अलग भी उनका कोई अस्तित्व है। कैमरे के सामने
आम होना सबसे बड़ी अदाकारी है।
बॉक्स
- पर्यावरण संबंधित गतिविधियों की बात करें तो मैं ‘सेव द टाइगर’ मुहिम से जुड़ा हुआ हूं।
जल्दी ही खादी के प्रचार कार्य से जुडूंगा। अभी उस पर काम चल रहा है। पर्यावरण के
मुद्दों पर लगातार बोलता रहा हूं। कभी कहीं कोई बुलाता है तो अवश्य जाता हूं।
ग्लोबल वॉर्मिंग पर बातें होती हैं। कुछ विदेशी विशेषज्ञ आकर जब यह बातें करते हैं
तो मैं यही कहता हूं कि सबसे ज्यादा वॉर्मिंग तो आप लोग कर रहे हैं। प्रदूषण आप
फैला रहे हैं। हर व्यक्ति के साथ ढाई से तीन गाडि़यों का अनुपात है। सोचिए कितना
धुंआ और प्रदूषण फैलता होगा। क्योटो और कोपेनहेगेन की बैठकों में यही बातें हुईं।
अपनी बात करूं तो ‘प्रतीक्षा’ और ‘जलसा’ के बारे में सभी जानते हैं। ये दोनों मेरे आवास हैं। दोनों
आवासों में काफी जमीनें हैं। लोग मुझे पागल कहते हैं और चाहते हैं कि मैं उन्हें
बहुमंजिली इमारत बनाने की इजाजत दे दूं। मुझे करोड़ों रुपए मिल जाएंगे। मैं उनकी
सलाह नहीं मानता हूं। मैं अपनी जमीन पर पौधे लगाता हूं। बागवानी करता हूं। इस तरह
से मैं थोड़ी-बहुत पर्यावरण संरक्षण का काम कर रहा हूं।
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