अनमाेल है हर आइडिया - कौस्‍तुभ नारायण नियोगी



-अजय ब्रह्मात्‍मज
पूजा भट्ट की फिल्‍म कैबरे के निर्देशक हैं कौस्‍तुभ नारायण नियोगी। कैबरे उनकी पहली फिल्‍म है। इसे उन्‍होंने लिखा और निर्देशित किया है। पानी पानी समेत इस फिल्‍म के तीन गीतों के गीतकार और संगीतकार भी हैं कौस्‍तुभ। जिंदगी के पचास वसंत पार कर चुके कौस्‍तुभ विज्ञापन की दुनिया से वास्‍ता रखते हैं। कम समय में ही विज्ञापन की दुनिया में बड़ी उपलब्धियां हासिल कर चुके कौस्‍तुभ उद्यमी बनने की कोशिश में धन और ध्‍यान गंवा चुकने के बाद कुछ नया करने की ललक में फिलमों से जुड़े। पूजा भट्ट ने उन्‍हें प्रेरित किया। उन्‍होंने ही कौस्‍तुभ को गहन नैराश्‍य से निकलने में मदद की। उनमें विश्‍वास जताया कि वे कुछ कर सकते हें।  खुद को अभिव्‍यक्‍त कर सकते हैं,क्‍योंकि वे नैचुरल किस्‍सागो हैं। जिंदगी के अनुभव और बेतरतीबी ने उन्‍हें समृद्ध किया है।
हमारी मुलाकात पूजा भट्ट के ऑफिस में होती है। पूछने पर बेफिक्र और बेलौस अंदाज में वे खुद के बारे में बताते हैं,कोलकाता और जमशेदपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद विज्ञापन की दुनिया में मुंबई आ गया। जल्‍दी तरक्कियां हुईं और में महज 30 साल की उम्र में क्रिएटिव डायरेक्‍टर बन गया। मुंबई से दिल्‍ली चला गया। सारे अवार्ड जीते। अंदर से एहसास जागा कि मैं बड़ा आदमी बन गया हूं। दूसरों की नौकरी क्‍यों करूं? खुद की कंपनी खेली प्रोडक्‍शन और विज्ञापन की। यहीं चूक हो गई। बिजनेस का सेंस नहीं था। मैं आया तो था तेवर के साथ,लेकिन जल्‍दी ही समझ में आ गया कि मैं मिसफिट हूं। पिछले पंद्रह सालों में कई काम किए। मन कहीं नहीं रमा। टेढ़ी-मेढ़ी राहों से अस्थिर ही सही,जिंदगी आगे बढ़ती गई। इस दौरान खुद के साथ समय बिताने का मौका मिला। कई कहानियों का बैंक तैयार हो गया। किताबे पढ़ने का शौक बना रहा। 700 के लगभग किताबें हो गईं। पढ़ने के बाद जाना कि मैं कितना कम जानता हूं। पढ़ने और लिखने का क्रम चलता रहा। ऐसी अनेक कहानियां और विचार हैं,जिन पर पांच-दस दिनों की मेहनत करूं तो स्क्रिप्‍ट तैयार हो जाएगी। मैंने गाने भी लिखे। विज्ञापन की दुनिया में यह सीखा कि कोई भी विचार बेकार नहीं होता। एक को पसंद न आए तो दूसरा उसे लपक सकता है।
पूजा से कौस्‍तुभ की पहली मुलाकात 1999 में हई। तब से दोस्‍ती बनी रही। गाहे-बगाहे मुलाकातें भी होती रहीं। पूजा हमेशा कहती थीं कि तुम बातें अच्‍छी करते हो। कहानियां सुनाते हो। कुछ लिखते क्‍यों नहीं? मुछ ऐसा लिखो,जिस पर फिल्‍म बन सके। बात आई-गई हो गई। तीन साल पहले मैं एक कहानी लेकर पूजा के पास आया। पूजा ने कहानी सुनी। वह कहानी भारत-बांग्‍लादेश की सीमा पर होने वाली मवेशियों की तस्‍करी सं संबंधित थी। पूजा ने महेश भट्ट को कहानी सुनवाई। भट्ट साहब ने अपने अंदाज में साफ शब्‍दों में कहा कि यह फिल्‍म सीमित बजट में बांग्‍ला में बन सकती है। हिंदी में बड़ी फिल्‍म बनाओगे तो लोग तुम्‍हें भगा देंगे। इस बीच पूजा ने एक बार फोन किया कि मेंरे पास एक टायटल है कैबरे। तुम उसे डायरेक्‍ट करो। मैं तैयार हो गया। मैंने कहानी पूछी तो पूजा हंसी। उसने कहा कि मेरे पास सिर्फ टायटल है। कहानी भी तुम्‍हें लिखनी होगी। इस तरह शुरू में केवल टायटल मिला मुझे। वहां से कैबरे का सफर आरंभ हुआ।
वे आगे कहते हैं, उस समय मैं असमंजस में था कि क्‍या करूं? हवा टाइट थी। मैं राजी हो गया। मैंने पूछा कि क्‍या कहानी है तो पूजा जोर से हंसी। उसने कहा,मेरे पास सिर्फ टायटल है। कहानी तुम्‍हें लिखनी है। मैंने अगले तीन हफ्तों में कहानी लिखी। डिफिकल्‍ट कहानी है। एक लड़की की जिंदगी के तीन फेज की कहानी है। मैं बताऊं कि इस फिल्‍म के गाने पहले रिकार्ड हो गए थे। फिल्‍मों में आए और आ रहे निर्देशक हमेशा कहते हैं कि उनके अंदर आग थी या आरंभ से ही वे फिल्‍मों में आना चाहते थे। कौस्‍तुभ के साथ ऐसा नहीं था। वे स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहते हैं,सच बताऊं तो मेरे अंदर कोई आग-वाग नहीं है। असलियत में मैं काफी आलसी इंसान हूं। जिंदगी की जरूरतों के लिए पैसे कमाने की जरूरत नहीं होती तो मैं आराम से किताबें पढ़ता और लिखता। शराब पीता और सफर में रहता। जंगल-पहाड़ों में रमता।
कैबरे में मुख्‍य किरदार रिख चड्ढा निभा रही हैं। उनके चुने जाने की कहानी है। कौस्‍तुभ बताते हैं, हमें अपनी नायिका के तौर पर ऐसी अभिनेत्री की तलाश थी,जो एक ही किरदार के तीन आयामों को बखूबी निभा सके। हम ने कई अभिनेत्रियों से मुलाकात की। एक के बारे में लगभग तय हो गया था। हमें डांसर और परफार्मर की एक साथ जरूरत थी। वह रजिया,रज्‍जो और रोजा के रूप में अपनी जिंदगी के भिन्‍न मुकामों पर नजर आती है। रिचा को पर्दे पर अभी तक ऐसी भूमिका और इमेज में नहीं देखा गया है। उसकी जिंदगी में नायक आता है,जो दुनिया से बेजार और शराबी हो चुका है। दोनों के बीच बिजली कौंधती है और फिर हमारी कहानी आगे बढ़ती है। नायक के लिए हम ने गुलशन देवैया को चुना है।
कैबरे के गीत-संगीत मुख्‍य रूप से कौस्‍तुभ ने ही तैयार किए हैं। पूछने पर वे बताते हैं,मेरा कोई इरादा नहीं था। कभी-कभार कुछ लिखा करता था। एक दिन ऐसे ही एक बीयर बार में बैठे-बैठे कागज पर कुठ लिखता गया और वह पानी पानी गीत बन गया। पूजा को अक्ष्‍छा लगा तो उसने और भी गीतों की फरमाईश की। मैं अने गीत धुनों के साथ लिखता हूं,इसलिए म्‍यूजिक कंपोज करने में अधिक दिक्‍कत नहीं हुई।

Comments

sameer said…
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