इरफान के साथ बातचीत
इरफान से हुई बात-मुलाकात में हर बार मुलाकात का समय खत्म हो जाता है,लेकिन बातें पूरी नहीं हो पातीं।एक अधूरापन बना रहता है। उनकी फिल्म 'मदारी' आ रही है। इस मौके पर हुई बातचीत में संभव है कि कोई तारतम्य न दिखे। यह इंटरव्यू अलग मायने में रोचक है। पढ़ कर देख लें...,
-अजय ब्रह्मात्मज
-अजय ब्रह्मात्मज
-मदारी का बेसिक आइडिया क्या है?
0 यह एक थ्रिलर फिल्म है, जो कि सच्ची
घटना से प्रेरित है। इस फिल्म में हमने कई सच्ची घटनाओं का इस्तेमाल किया है। ये
घटनाएं बहुत सारी चीजों पर हमें बांध कर रखती है। हर आदमी में एक नायक छुपा होता है। वह अपनी पसंद से किस तरह चीजों को चुनता है। उससे कैसे चीजें आकार लेती
हैं। उस व्यक्ति के व्यक्तित्व में बदलाव होता है।मेरी सोच यही है कि कहीं ना कहीं
आदमी वह काम करने को मजबूर हो,जिससे उसे अपने अंदर के नायक के बारे में पता चले। हमें
कई बार किसी को फॅालो करने की आदत हो जाती है। हमें लगता है कि कोई आएगा और हमारी
जिंदगी सुधार देगा। हमारी यह सोच पहले से है। हम कहीं ना कहीं उस सोच को चैलेंज कर
रहे हैं। हम उस सोच को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। हमें खुद के हीरो की तलाश करनी है।
-इस फिल्म में आपका किरदार क्या है।
और कौन –कौन हैं?
0 तलवार में जिस तरह कई एक्टर थे। पर
वह अनजाने चेहरे थे। यहां पर भी ठीक वैसा ही है। जिमी भी हैं इस फिल्म के अंदर।
बाकी सब थिएटर एक्टर हैं।कोई बड़ा नाम नहीं है। बहुत ही साधारण आदमी ,जो सबकुछ
अपना कर चलता है।उस तरह का एक इंसान है।उसके जीवन में क्राइसेस आता है। फिर बड़ा
बदलाव होता है।
-मैं सीधे पूछता हूं कि आपका किरदार
क्या है। उसका नाम क्या है? वह क्या करता है?कहां से आता है?
0 मेरा किरदार निर्बल है।वह छोटे-मोटे
काम करता है। जैसे कम्प्यूटर वगैरह ठीक करना। साफ्टवेयर का काम करता है। वह इसी
तरह का काम करता है। वह अपने बच्चे के साथ रहता है। पत्नी के साथ उसका तलाक हो गया
है। पत्नी अमेरिका चली गई है। वह अपने बेटे के साथ अकेले रहता है। वह अपनी दुनिया में
खुश है। वह हमेशा खुश रहता है। बेटा उसकी जिंदगी है। वह बेटे की अच्छी परवरिश करना
चाहता है। पर क्राइसिस आने पर सारी चीजें बदल जाती हैं।
-इंडस्ट्री में अपनाएं जाने के
बावजूद आपके अंदर एक छटपटाहट सी रही है।अपनी फिल्म में आप क्या कर पाएं। अपनी
फिल्म से मतलब हिंदी फिल्म के दायरे में रहकर आप क्या कुछ नया कर सकते हैं? क्या यह फिल्म उसको पूरी
कर पाएगी। या एक कोशिश होगी।
0 यह फिल्म किसी हद तक छुने की कोशिश
करती है। निशिकांत कामत इसके निर्देशक हैं। इस वजह से इसकी भाषा आम दर्शकों के लिए है। यह फिल्म
आपको सोचने पर मजबूर कर देगी। कुछ फिल्में बुध्दिजीवी होती हैं। यह फिल्म सीधे
इमोशनल कहानी है। निशिकांत का जैसा अपना स्टाइल है। यह फिल्म उसी फेज में है। उसका
नरेटिव का तरीका होता है। यह फिल्म सीधे लोगों से बातचीत करेगी। इमोशनल कहानी है
पूरी। इमोशन पॅावर फुल है।यह देखा हुआ नहीं है। मैं पहले सोच भी रहा था कि इस
किरदार में जाऊं या ना जाऊं। कुछ सीन ऐसे हैं जो आपके लिए तकलीफदेह हो सकते हैं।
-फिल्म के अंदर है वो सीन?
0 जी। पहले थोड़ा
लगा। पर कहानी सुनने के बाद लगा कि करना चाहिए। जवाबदेही होनी चाहिए। किसी भी
अच्छी कहानी के पनपने के लिए. लोगों का विश्वास जीतने के लिए सिस्टम में दायित्व
होना चाहिए।
-
-किस हद तक यह फिल्म नजारा दिखाती है और
नजरिया पेश करती है? फिल्म की बात नजारे तक जाती है या नजरिए तक?
0यह फिल्म नजरिया
पेश करती है। कुछ लोग भले ही इसके लिए राजी हो या ना हो।जैसा कि आप देखें । कोई आम
आदमी क्राइसेस से गुजरता है, सिस्टम से उसका वास्ता पड़ता है।इसमें उसकी बेबसी की
जांच होती है कि वह कहां जाएं। वह क्या करें। उसने एक बार लोगों को चुन लिया। उसने
मान लिया कि यह लोग मेरी जिंदगी को ठीक करेंगे। फिर क्या उसकी जिम्मेदारी वहां
खत्म हो जाती है। क्या उसकी जिम्मेदारी बनी रहती है कि वह खुद से सवाल पूछता रहे। सिस्टम
लोगों के लिए है या लोगों को इस्तेमाल करने के लिए है।
-इसकी पेशगी में क्या नई चीजें की
हैं। फार्म के लेवल पर?इसका स्ट्रक्चर क्या हैं इसका
स्ट्रक्चर लीनियर नहीं है । फिल्म आज
और बीते हुए कल में चलती रहती है। आगे पीछे होती रहती है। निशिकांत के लिए भी यह
चैलेंज था। वह कहता था कि जब भी मैं सेट पर आता . तो सोचता कि यह होगा कैसे। जब हम
इसका गाना सूट कर रहे थे,तब भी चितिंत थे। हम दोनों सोच रहे थे कि दो बजे यह गाना
शुरू कर रहे हैं। शाम तक कैसे पूरा होगा। कई बार इस तरह का प्रोसेस समृध्द हो जाता
है। क्योंकि हमें आगे की जानकारी नहीं होती है। फिर चीजें अपने आप सेप लेना शुरू
कर देती है। हमें फिल्म की एनर्जी दिखने लगती है। फिल्म की एनर्जी आपसे क्या करवा
रही है। वो हमें गाइड करने लगती है। इस तरह के प्रोसेस में बहुत आनंद आता है।
क्योंकि आप डिक्टेक्ट नहीं कर रहे हैं।आप सिर्फ उस प्रोसेस का हिस्सा बन रहे हो।
फिल्म की एनर्जी गाइड कर रही है। आप उसी हिसाब से अपना काम किए जा रहे हो। आप खुद
को समर्पित कर देते हो। वह सेप करती है।ऐसे ही गाने के साथ हुआ। मैं दो बजे दोपहर
में पहुंचा। मैं डरा हुआ था। थो़ड़ी देर निशिकांत सेबातचीत हुई।उन्होंने कहां कि
मैं आपको शॅाट लगाकर बुलाता हूं। वह भी देख रहा था कि क्या होगा क्या नहीं होगा।
मैंने पहुंचते ही कहा कि रिहर्सल देखना है। जैसे ही मैंने रिहर्सल देखते ही पहले
फ्रेम में कहा कि यह सुर है।
-गाना लिप सिंक है?
जी।
-क्या बात है।
इसी वजह से मैं डरा हुआ था। मैंने
बहुत तैयारी की थी। मैं दो रोज से यह गाना सुन रहा था। उसने एक लाइन की तो मैंने
चार लाइन वैसे कर दी। इस तरह करते हुए पूरा गाना आराम से हो गया।
-इरफान को जब हम दर्शक के तौर पर
देखने जाते हैं तो इरफान ने अपनी एक जगह बनाई है। जब इरफान पैरलल लीड या दूसरे लीड
में आते हैं तो अलग किस्म किरदार में चले जाते हैं। जब वह अपनी फिल्मों में थोड़ा
सा इंटेस, मैं डार्क नहीं कहूंगा। थोड़ा ग्रे में चले जाते हैं। पान सिंह तोमर देख
लें। लंच बाक्स और किस्सा देख लें। यह क्या आपने खुद चुना है या फिर ऐसा रोल ही
मिलता है?
0जी नहीं। मेरे पास चॅाइसेस की कमी
है। मैं अब थोड़ी बेहतर हालात में हूं।मैं अब अपने किरदार चुन रहा हूं।मेरी आगे की
जो फिल्में हैं, वह लाइटर किरदार में है। यह फिल्में बात तो कर रही हैं। ऐसा नहीं है कि
उनमें मुद्दा नहीं है। वह किसी चीज को रिफलेक्ट जरूर कर रही हैं। पर उनका सुर
लाइटर है। मैं बहुत कोशिश करता हूं कि हल्की फुल्की कहानियां मिलें। जिस तरह मैंने
तिग्मांशु और अनुराग के साथ काम किया है। वैसा मिलें। थोड़ा सा यह भी है कि हमारे
यहां राइटर पनप रहे हैं। दर्शकों की मांग को कोप अप नहीं कर पा रहे हैं। उतना
टैलेंट नहीं है। इस वजह से हम पीछे हैं। जो खाचा बच रहा है, उसमे हॅालीवुड फिट हो
रहा है। हॅालीवुड जोर शोर से धका देकर बीच में आ रहा है।उसकी वजह यही है कि हमारे
पास राइटर नहीं हैं। हमारे यहां राइटर को इतना महत्तव नहीं दिया जाता है। और राइटर
बनते भी नहीं हैं। नई पीढ़ी से बहुत उम्मीद है। नई पीढ़ी तैयार हो रही है।
-लेकिन हम क्या ऐसी छोटी फिल्मों के
जरिए मुकाबला कर पायेंगे?
मुझे मुकाबला ही नहीं करना है। मुझे
अपनी फिल्म को वाइबल...
-मैं मुकाबले की बात केवल आपके लिए
नहीं कर रहा हूं।मुकाबला हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से पूछरहा हूं।
अच्छा।हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का
हॅालीवुड से मुकाबला।
-जी...
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को टैलेंट
चाहिए। वह आवाज बहुत जरूरी है,जो कि विश्व के दर्शकों तक पहुंच सके। जिस दिन वह
आवाज खनेगी, उस दिन मुकाबला हो जाएगा।
-नहीं जैसे,लंच बाक्स आई। कहने को यह
छोटीफिल्म थी। पर इसने सब जगह अपील की।उसने क्रास कर दिया।क्रास ओवर सिनेमा जिसे
कहते हैं। वह कर दिया। हां, उसने किया।उसको तीन साल हो गए।
जी हां। यही तो गेप है।
-तीन साल मैं कोई दूसरा सामने नहीं
आया।
जी अभी वह पीढ़ी तैयार हो रही है।
हालांकि कनवेक्शन इंडस्ट्री के लिए यह थोडा चैलेंजिंग होती है। उसका कोई सपोर्ट नहीं
है। पर आनेवाली नई पीढ़ी इसे बदलेगी।
-एक्टर के तौर पर इरफान को कई स्तरों
पर जीना पड़ रहा है।विदेशों की फिल्में अलग हैं। यहां की फिल्में अलग हैं। आप कैसे
शिफ्ट करते हैं और कैसे रिस्क तय करते हैं?
हॅालीवुड में काम चुनकर करता हूं।
वहां पर निर्वाह करने के लिए मैं काम नहीं कर रहा हूं। यहां की फिल्में सरवाइवल के
तौर पर करनी पड़ती है। पांच महीने यहां पर काम
नहीं किया तो हम चल नहीं पायेंगे। इस वजह से हमें कुछ फिल्में निर्वाह करने
के लिए करनी पड़ती हैं। वहां पर मैं..
-लेकिन अहमत तो होती होगी?
0अहमत बहुत है। हर महीने एक दो
स्क्रिप्ट पढ़ता रहता हूं। मुझे लगा कि सब चीजें नहीं करनी चाहिए। मैं पूरी तरह से
विश्वस्त नहीं था। मैंने अभी बीच में किसी की स्क्रिप्ट पढ़ी। हॅालीवुड में
दिलचल्पी बहुत है।
-अहमत के साथ आमदनी भी होगी?
आमदनी कम है। वहां की फिल्मों में
जितना समय देता हूं., यहां में जितना कमाता हूं उसका एक चौथाई वहां कमाता हूं। वहां
डबल टैक्स रहता है। फिर यहां से अप्लाई करना पड़ता है।तब जाकर टैक्स मिलता है। फिर
दस प्रतिशत इसका दस प्रतिशत उसका। कई सारी चीजें होती हैं।
-केवल शोहरत ले पा रहे हैं आप?
शोहरत के साथ अनुभव भी है।साथ ही मैं
अपने दर्शकों का दायरा भी बढ़ा रहा हूं। उसका भी असर आपको पीकू मे दिखता है।कहीं
ना कहीं आपके मार्केट पर उसका असर होता है। यूरोप में लंच बाक्स के बाद फ्रेंच
निर्माता मेरे नाम पर पैसा लगाने के लिए तैयार हो जाएगा। उस तरह का ग्रांउड वर्क
करना पड़ता है। मैं कहीं भी जाकर फिल्म करने के लिए तैयार हूं। जैसे मैं
बांग्लादेश की फिल्म की। क्योंकि मुझे
वहां के बंदों पर भरोसा हो गया है। मुझे उनके कहानी कहने का तरीका बेहद पसंद है। कहानी
ने मुझे अपनी तरफ खींचा। मेरे लिए पार्ट बोरिंग था। पार्ट मेरे लिए दिलचस्प नहीं
था। मैं उसे एक्सपलोर भी नहीं करना चाहता था।
-क्या नाम था उस फिल्म का?
नो बेटर प्रोजेस। फिल्म ने मुझे अपनी तरफ खीचा।
मेरे लिए नया अनुभव रहा। मेरे लिए वह मुल्क
नया था। वहां के लोग कैसे जी रहे हैं। बाकी की सारी चीजे। अच्छा अनुभव रहा।
मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है। मैं कहां जाकर शूट कर रहा हूं। किन लोगों के
साथकाम कर रहा हूं। मैँ जैसलमेर में किश ऑफ़ थे स्पाइडर' था। मेरे
लिए वह नायाब अनुभव था । हजार साल
पहले आदमी कैसे रह रहे होंगे। उसके भी अवशेष अभी बाकी हैं।
-हां बिल्कुल
आदमी, प्रकृति और जानवर की परस्पर निर्भरता जो है,वह हैं वहां।
यह बदलता रहा है। आज धीरे-धीरे चीजे बदल रही हैं। मुझे आपको एक बड़ाही दिलचस्प
किस्सा बताना है। पहली बार ऐसा देखा जा रहा है, जो लोकल कुत्ते हैं।वो ग्रुप में
मिलकर बकरे को मार रहे हैं।यह पहले कभी नहीं देखा गया। पहली बार ऐसा हो रहा है कि
कुत्तों का ग्रुप मिलकर बकरा मार रहा है। अब ये क्या है वह पता नहीं। यह नया कुछ
है। मुझे वहां के लोगों ने बोला कि यह नई बात है।ऐसा पहले कभी होता देखा नहीं गया
है। पहली बार ऐसा हो रहाहै। इसकी वजह पता नहीं। बहुत सी ऐसी दिलचस्प चीजें
हैं,जिन्हें हमने कभी देखा नहीं है।ऊंट जैसे जानवर को मैंने कभी पास से देखा नहीं
है। ऊंट का अलगाव पना कमाल का है। इतना बिंदाश है वह। वह आपको सुविधा दिए जा रहा
हैं।बाकी की चीजों से उसका कोई लेना-देना नहीं है।
- ऊंट पालतू होते
हैं?
जी हां। लेकिन वह
अलग है। उसमें अजीब सा बेलगाव है।
-कुत्ते हो या घोड़े
वह आपसे प्यार चाहते हैं।
जी। वैसा ही।ऊंट
अपना खाने में मस्त है। वह आपको अपने ऊपर बिठाएगा और चल पडेंगा। मैं बहुत रहा हूं।
उसके पैर में कभी कांटा चुभ जाता है। वह एक दम अंदर घुस जाताहै।उसको निकालने का
कोई तरीका नहीं है। ऑपरेशन करना पड़ा तो
ऊंट बेकार हो जाएगा। आप देखिए प्रकृति का जानवर से कैसा ताल्लुक है। इतने बड़े
शरीर के अंदर केवल एक लौंग उसे खिलाया जाता है। इसे खाने के बाद कांटा आपो आप बाहर
आ जाता है। यह बात सुनने में अजीब लगती है। वहां रेगिस्तान में एक फल पैदा होता
है। वह गोल आकार का खरबूज जैसा होता है। आप उस पर खड़े हो जाइए, उसका टेस्ट आपके
मुंह में आ जाएगा।
-हां ऐसा कुछ लोग
बताते हैं।
0 हमारे शरीर का और
प्रकृति का जो जुड़ाव है, वह आज भी जैसलमेर में जिंदा है। ट्रेवल के समय आप आवाज
का अहसास कर सकते हैं। वहां पर लैंडस्केप है। कुल मिलाकर फिल्म के साथ के यह अनुभव
नायाब होते हैं। यह अनुभव ना हो तो मैकेनिकल हो जाता है।इसलिए शहरों में शूटिंग का
अनुभव नहीं मिलता है।दूसरी जगह पर अनुभव मिलता है। खैर, नई पीढ़ी सिनेमा क्रिएट
करेगी।ऐसा कभी नहीं हुआ है कि दर्शक बाहें फैला कर खड़े हैं औऱ आपके पास देने के
लिए कुछ नहीं है। इस वजह हॅालीवुड अपनी जगह तेजी से बना रहा है। ऐसा कभी नहीं हुआ
है कि हॅालीवुड की फिल्म के कारण हमारे सुपरस्टार की फिल्म पर प्रभाव पड़ा हो। पर
इस बार जगंल बुक ने यह कर दिया। लोकल फिल्में बुध्दिमान तरीके से बनाई जाएगी। जो
विश्व को प्रभावित करेगी।तब हम हॅालीवुड की फिल्मों से मुकाबला कर सकते हैं। वरना
नहीं कर पायेंगे। हॅालीवुड ने अलग-अलग देशों के सिनेमा की दुकानें बंद कर दी हैं।
-बतौर निर्माता कैसा
अनुभव रहा आपका?
0 निर्माता के तौर पर
मैं बताना चाहता हूं कि मेरा क्या रोल है। मुझे जो कहानी वाइबल लगती है। मुझे लगे
कि यह स्टोरी लोगों को इंटरटेन कर सकती है। फिर एक विषयका अपना दायरा होता है। इस
विषय को आप इतने ही पैसे में बना सकते हो। वह एक समझ होना जरूरी है। मैं उदाहरण
देता हूं गुजारिश का। गुजारिश जैसी फिल्म बीसकरोड़ में होगी तो वह वाइबल होगी।लंच
बाक्स को आप चालीस करोड़ में नहीं बना सकते हैं।विषयकी अपनी एक अपील है।उसका अपना
एक दायरा है। मैं वह देखता हूं। साथ ही टीम देखता हूं। इस फिल्म के लिए अच्छा
डायरेक्टर कौन होगा। वहां तक मैं जाता हूं। उसके आगे मुझे कुछनहीं आता है। मैं यह
चाह रहा हूं कि ऐसा कंटेंटे मुझे मिलें।
-बैलेंस सीटपर आपका
ध्यान नहीं होता।
0जी नहीं। इस
पर मेरा अनुभव हो चुका है। मैं कान पकड़ चुका हूं। मैं उस वे से कट आऊट हो चुका
हूं।मैं यह कभी नहीं कर पाऊंगा।
-कब अनुभव हुआ था?
0वारियर के पहले मैं
अपने आपको व्यस्त रखना चाहता था। मैं टीवी सीरिज का निर्माता बन गया था। मैंने
अपनी सारी कमाई लगा दी थी।पांच एपिसोड में पैसा लगा दिया। तभी वारियर आ गया। मैंने
सोचा कि निर्माता बनना सही नहीं है। इसके आगे अंधेरा है। शिल्पा को बहुत चिंता हुई
थी। पर मुझे नहीं करना था। यह मैंने तयकर लियाथा। वह पूरे प्रोसेस का अनुभव अच्छा
नहीं था। इसमें कितना बचाएं।उसमे क्याकरें। यह करना जरूरी था। पर मैं इस काम के
लिए पैदा नहीं हुआ हूं। निर्माता के तौर पर पैसा बचाना ही पडे़गा।नहीं को एक हाथ
से पैसा आया दूसरे हाथ से चला गया। हर जगह से कांटना पड़ता था। प्रोसेस मेरे मिजाज
का नहीं था। मैंने तभी यह सोचलिया था। मैं चाहता हूं कि कोई ऐसा आदमी मिलें।जो
मेरा पैसा रेज करें।मुझे कहीं जाना ना पड़े। यह मेरी कोशिश है।
-इरफान किन चीजों से
नाखुश हैं?
0मैं उनके बारे में
बात नहीं करना चाहता।
-अच्छा तो किन चीजों
से खुश हैं?
0इस तरह इंडस्ट्री का
माहौल है।नई पीढ़ी आ रही है। रिजनल सिनेमा पिकअप कर रहा है। यह बहुत अच्छा है।
दर्शकों से रिश्ता बन रहा है। दर्शक उम्मीद लगा कर बैठे हैं। दर्शक चाहत भरी नजरों
से देखने लगे हैं। यह मुझे खुशी देता है।
- आप इंडस्ट्री का
कितना हिस्सा बन चुके हैं?
0इंडस्ट्री को अभी तक
समझ में नहीं आ पा रहा है कि मुझे कैसे इस्तेमाल किया जाएं। मैं खुद अपनी चीजों को
ब्रेक कर रहा हूं। मैं अपनी फितरत की वजह से फिट नहीं हो पा रहा हूं। इसमें
इंडस्ट्री का दोष नहीं है। मुझे यहां का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। मैं अपनी
तरह की कहानियां लेकर आ रहा हूं।एक माहौल क्रिएट कर रहा हूं। कुछ माइलस्टोन दे रहा
हूं। चाहे वह तलवार,पान सिंह तोमर या लंचबाक्स हो। कहानी के फॉर्मेट को मैं
चैंलेंज कर रहा हूं। हीरो हीरोईन को फिर से खोज रहे हैं। यह मैं कर रहा हूं।मैं
अपने आप से यही उम्मीद करता हूं। नया नया प्रयोग ही हमें उत्साहित रखता है। हमारे
काम को सही दिशा में लेकर जाता है।
-लेकिन दुख नहीं
होता है।आपको पीकू जैसी फिल्म के लिए सराहया जाता है।पर जो मिलना चाहिए वह नहीं
मिलता है। अभी भी कसर बाकी है?
0सर,मैं इस तरह
से सोचने लगूं तो बहुत कुछ सोचने के लिए है। मैं लगातार उस तरफ सोचता नहीं
हूं। ऊपर वाला जो मेरे लिए चाह रहा है , मैं करताजा रहा हूं।मैंने तो कभी नहीं
सोचा था कि बड़े डायरेक्टर की कहानियों का हिस्सा बन पाऊंगा। उसको मैं कहां
रखूंगा।बिना किसी कोशिश के मुझे काम मिलता रहा है। मेरी गोद में काम आ जाता है।मुझे काम पाने केलिए मेहनत नहीं
करनी पड़ी। लोग मुझे घर से बुलाते हैं।
-लेकिन आपने इंतजार
किया।बहुत सारे लोग गुस्से में चले जाते हैं। परेशान हो जाते हैं।पर आपने ऐसा नहीं
किया।
0मेरे ख्याल से जीवन
सिखाता है। मेरे जीवन का रिश्ता अहम है। जीवन हमेशा मुझे घेरे रखता है। मैं चौंकना
रहता हूं।
-मुझे ऐसा लगता है
कि आप किसी एक दिशा में नहीं जा रहे हैं। हमेशा खुद का रास्ता बदलते रहते हैं।
0मेरी दिशा खुदका
रास्ता बनाने में हैं। मैं अपने लिए रास्ता बना रहा हूं। उसके लिए मैं भिन्न तरह
की चीजें करने की कोशिश करता हूं। मुझे दर्शकों से एक ऐसा विश्वास कायम करना हैकि
मेरी फिल्मों में उन्हें कुछ ना कुछ वश्य मिलेगा। मेरा कहानी चुनने का उद्देश्य भी
यही रहता है। मैं जब फिल्म देखकर बचपन में बाहर निकलता था ऊबासी आती थी।फिल्म
देखतेसमय अच्छा लगता था। उसके बाद खाली सा लगता था। मुझे यह समझ नहीं आता थाक्या
है। ड्रामा स्कूल में जाने के बाद मैंने सही फिल्में देखना शुरू की।उन फिल्मों को
देखने के बाद एक ऐसी दुनिया क्रिेएट होती थी, जिसमें से आपको निकलने का मन ही नहीं
करताथा। वह नशे की तरह होता है। हम एक जोन में चले जाते हैं। मेरी मंशा है कि ऐसी
कहानी लोगों को दूं,जो उनके साथरहें।घर जाकर कहानियां उनसे बात करें। मैं वन नाइट
स्टैंड नहीं चाहताहूं। अभी भी ऐसे दस साल पहले की फिल्में देखते हैं, उससेकनेक्ट
करतेहैं तो अच्छालगता है। आज सेचालीस साल पहले की फिल्म की आज की बड़ी सी बड़ी
फिल्म का मुकाबला नहीं कर सकती है। यह कहानी हमारा धर्म है। इसे अच्छे से निभाना
चाहिए। मेरा विश्वास है कि काम आपका निडर होना चाहिए।
-लेकिन कहीं ना कहीं
फिल्में देखने के बाद मुझे लगता है कि हम नई चीजें का विस्तार करते हैं। हम उसको
बड़ा नहीं कर पाते हैं।सब लाइन तक नहीं ले जा पाते हैं।कई बार हम विस्तार करते
हैं। पर बड़ासिनेमा नहीं कर पाते हैं। जैसे पीकू भी एक स्तर पर जाकर रूक जाती है। आपको
जो दिया आपने किया। देखा जाएंतोराइटर और डायरेक्टर का विजन है। आप जिस फिल्म का
नाम लिए हैं, वह भी किरदार की कहानी है। पर वह थोड़ा सा छिटक कर ऊपर चली जाती है।
जैसे कोई कविता पढ़ते हैं।कविता केवल शब्दों का जोड़ नहीं है। सिनेमा में केवल सीन
नहीं है।
0आप बिजनेस की
बात कर रहे हैं क्या --जी नहीं,यह सवाल बिजनेस के लिए नहीं है। उससे अलग है। एक अहसास होता है। जैसे कि आपने आज जी भर के खाना खाया नहीं। स्वाद से खाना खाया।
0उसका अब क्या कियाजा
सकता है। उस तरह का अनुभव मुझे.नहीं है।.
-आप हाल फिलहाल
की किसी हिंदी फिल्म का नाम लीजिए। जो आपको अनुभव देकर गई हो।
पीकू और तलवार थी।
हॅालीवुड में लाइफ ऑफ पाई थी। पान
सिंह तोमर का नाम भी शामिल है।इन फिल्मों ने मुझे अलग तरह के
अनुभव दिए।लोगों पर इनका नशा सा हो गया। इन फिल्मों को नहीं पब्लिकसिटी मिली।हफ्ते
भर का समय दिया।फिल्म रिलीज हुई।इस बारे में किसी को पता भी नहीं है। अस्सी लाख का
बिजनेस पहले दिन हुआ। उस फिल्म का ऐसा नशा हुआ। वह फिर ट्रेंड बन गया। उसी हद तक
है। आपके आस पास जो है वैसा ही है। लेकिन हॅालीवुड में दूसरा सबसे ज्यादा बिजनेस जुरासिक
पार्क का हुआ है।
उन्होंने मुझे बहुत इज्जत दी। उन्होंने मेरा नाम टाइटल में दिया। मुझे बस यह
करतेरहना है। कब ऐसा हो जाएगा पता नहीं।
-यह जब होता है तो ईगो
संतुष्ट हो जाता है।
जी बिल्कुल।
-अचानक आप इंडिविजुअल
परफॉर्म कर रहे हैं।
अचानक आप पूरे देश को रिप्रेजेंट कर रहे हैं।
0यह अहसास अच्छा लगता
है। सामने वाले से लड़ना पड़ता है।
-सुशील कुमार पूरे
देश को रिप्रेजेंट कर रहा है। क्रिकेट वालों को छोड़ दीजिए। कलाकार भी देश को
रिप्रेजेंट करते हैं। कभी आपके मन में आया कि मैं देश के लिए कर रहा हूं। यह तो
ख्याल नहीं रहता है पर देश रोशन रहता है।
0देश के लिए कुछ करना
है यह तो दिमाग में आता है। हम लोगों को रिफलेक्ट कर रहे हैं। उन्हीं के बारे में
बता रहे हैं।मैं अपनी ईमेज को लेकर बनाना नहीं चाहता हूं। मैं क्या कर सकता हूं,
यह मुझे नहीं बताना है। मैं उनके महसूसकरवाना चाह रहा हूं कि आपके अंदर क्या है।
यही मेरा उद्देश्य है। और क्या चीज मुझे गुस्सा दिलाती है, उसके लिए मैं एक ही
बातकहूंगा। हमारे मीडिया के जरिए जो एस्परेशन वाले लोग क्रिकेटर और फिल्म स्टार
हैं। इसका मुझे बड़ा दुख है। एक बिंदी लगाए हुए मोटी सी महिला पर्स लेकर खड़ी है।
साड़ी पहनती है। वह वैज्ञानिक है।बड़ा काम कर रही है। वो हीरो क्यों नहीं है।
हीरोईजम को क्रिकेट और फिल्मों पर क्रेंदित किया गया है। इस वजह से स्टार शब्द से
मुझे समस्या होती है। मैं आपसे कहानी शेयरकरना आया हूं। मैं समाज, लोगों के बारे
में आपके बारे में इंसानों के बारे में हम विस्तार करेंगे। तभी मैं अपना एक्टर
धर्म निभा पाऊंगा।
-मदारी को कैसे
कैटगरी में डालेंगे?
यह थ्रिलर है।
इमोशनल है।
-इस मदारी का बंदर
कौन है?
इसमें खेल है।खेल का
उलट-पलट है। कोई जमूरा है तो कोई मदारी है। आपका यह जानना जरूरी है कि आप क्या
हो।जमूरे को जमूरे होने का अहसास होना चाहिए। और मदारी को मदारी होने का। तभी
शुरुआत होगी। इस फिल्म में कोई उठा-पटक नहीं है। यह फिल्म आपको भावुक करेगी।
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Comments
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