हारने की हिम्मत है - मनोज बाजपेयी
-अजय ब्रह्मात्मज
मनोज बाजपेयी की पिछली फिल्म ‘अलीगढ़’ से मिल रही तारीफ का
सिलसिला अभी खत्म भी नहीं हुआ कि उनकी अगली फिल्म ‘ट्रैफिक’ का ट्रेलर आ गया। उन्होंने
पिछली मुलाकात में कहा था कि उनकी तीन फिल्में तैयार हैं। वे रिलीज के विभिन्न
चरणों में हैं। मनोज बाजपेयी ने अपनी व्यस्तता और पसंद का तरीका चुन लिया है। वे
चुनिंदा फिल्मों में काम करते हैं। वे कहते हैं कि कोई भी फिल्म करने से बेहतर
घर में बेकार बैठना है। यह पूछने पर कि क्या यह बात लिखी जा सकती है? वे बेधड़क कहते हैं,’क्यों नहीं? सच्चाई लिख देने में क्या दिक्कत है?’
हमारी बातचीत ‘ट्रैफिक’ पर होती है। इस फिल्म के ट्रेलर में वे बिल्कुल अलग भूमिका
में नजर आ रहे हैं। फिल्म के बारे में वे बताते हैं,’ इस फिल्म में जीवन बचाने का संघर्ष है। इस संघर्ष के साथ
अनेक जिंदगियां जुड़ी हुई हैं। मैं ‘ट्रैफिक’ में एक र्टैफिक हवलदार का रोल कर रहा हूं। जिंदगी में उसने
केवल एक गलती की है,जिसका वह पश्चाताप कर रहा है।‘
हिंदी में आ रही यह फिल्म पहले मलयालम और तमिल में बन चुकी है। दोनों ही भाषाओं
में यह फिल्म खूब चली है। फिल्म के निर्देशक राजेश पिल्लई हैं,जिनका हाल ही में
देहांत हुआ। उन्होंने मूल मलयालम फिल्म का भी निर्देशन किया था।
राजेश पिल्लई को याद करते हुए मनोज बाजपेयी अफसोस
जाहिर करते हैं,’ यह फिल्म कुछ समय पहले बन कर तैयार
हो गई थी। राजेश के जीते जी अगर फिल्म रिलीज हो गई होती तो हम सभी को अधिक खुशी
होती। किसने साचा था कि उनकी अकाल मृत्यु हो जाएगी। राजेश की उम्र अभी केवल चालीस
साल थी। वे बहुत ही मिलनसार और काम के लिए तत्पर व्यक्ति थे। मैंने उन्हें आराम
करते नहीं देखा। राजेश ही मेरे पास फिल्म लेकर आए थे। मैाने इस तरह की फिल्म
पहले नहीं की थी। मुझे यह आयडिया अच्छा लगा कि कई सारे कलाकार रहेंगे। सभी के
किरदार महत्वपूर्ण होंगे। मैं इसे थ्रिलर नहीं कहूंगा। हां,अगर फिल्म देखते हुए
रोमांच आए तो अच्छा रहेगा। यह देखना है कि चार व्यक्तियों की जद्दोजहद एक व्यक्ति
की जान बचा पाती है कि नहीं? मेरे साथ दिव्या,जिमी
शेरगिल,प्रसेनजीत चटर्जी,अमोल पाराशर आदि हैं। मूल मलयालम में यह कोच्चि से
त्रिवेंद्रम के बीच की कहानी है। हिंदी में इसे पुणे और मुंबई के बीच रखा गया है।
क्षेत्र के हिसाब से किरदार भी बदले गए हैं।‘
‘अलीगढ़’ के लिए मिली तारीफ से संतुष्ट मनोज बाजपेयी अपनी खुशी छिपा
नहीं पाते। वे बताते हैं,’ हंसल मेहता ने जिस उद्देश्य
से फिल्म बनाई थी,वह पूरी हुई। इस फिल्म ने मुझे किसी और फिल्म से ज्यादा इज्जत
दी। परफारमेंस तो अपनी जगह है। यह खास कॉज और पर्सनैलिटी की फिल्म थी। सभी ने इसे मेरा और हंसल मेहता का साहसिक कदम कहा। अभिनेता
होना अच्छी बात है। अच्छा अभिनेता होना और भी अच्छी बात है,लेकिन मुझे लगता है
कि अभिनय के साथ अभिनेता साहसिक कदम उठाएं तो चीजों की रुपरेखा बदलेगी। बने बनाए
ढरें पर चलते रहेंगे तो सिनेमा आगे कैसे जाएगा?’
मनोज आगे बताते हैं,’कुछ
लोग इस बात की तारीफ कर रहे हैं कि मैंने 60 साल के व्यक्ति का रोल बहुत अच्छी
तरह निभाया। मैा बताना चाहूंगा कि थिएटर में 24 साल की उम्र में मैंने 62 साल के
बुजुर्ग की भूमिका निभाई थी। उसे सभी ने सराहा था। मैं आने करिअर में हारने के लिए
तैयार रहता हूं। मैं साहसी अभिनेता हूं। एक जज्बा बरकरार है।मुझे लगता है कि अगर जीवन
के अंत में ये सारे मोड़ मेरे नाम से जुड़ेंगे तो मुझे ज्यादा संतुष्टि होगी।‘
‘ट्रैफिक’ के निर्देशक राजेश पिल्लई को वे याद करते हैं,’मैं उन्हें बहुत मिस कर रहा हूं। मैं यकीन नहीं कर पा रहा
हूं। अजीब सी फीलिंग होती है कि जिस व्यक्ति के साथ आप उठते-बैठते हों,वह अचानक
उठ जाता है। मैं मान नहीं पा रहा हूं कि वे कभी नहीं दिखेंगे। एक उदासी है। काम के
प्रति ईमानदार राजेश में कुछ नया करने की चाहत थी। वह जीवन अचानक कट गया। यह फिल्म
आठ महीने पहले रिलीज होने वाली थी। यह दुख तो रहेगा कि वे अपनी फिल्म थिएटर में
नहीं देख पाए। इस फिल्म के बारे में डायरेक्टर की बात कहीं नहीं छपेगी या
दिखेगी। यह बहुत बड़ी कमी रहेगी।‘
बेलीक चलने की बेचैनी है मनोज बाजपेयी के अंदर। वे
लगातार अपने अभिनय से दर्शकों को चौंकाते हैं। उनकी छवि समर्थ अभिनेता की है। इस
बेचैनी की वजह बतात हैं मनोज,’ मैं बचपन से लीक पर नहीं
चला हूं। मैंने हमेशा प्रयोग किया। मैंने वही काम किया,जिसके लिए मना किया गया।
मेरे अंदर एक बागी है। मैं अपनी बगावत अभिनय के जरिए जाहिर करता हूं। मैं लेखक नहीं
हूं। वर्ना शब्दों में लिखता। ‘सत्या’ करने के बाद मैाने जैसी फिल्में की,उसके लिए मेरी निंदा
हुई। फिर भी मैं नई राह चुनता रहा। अभी तो मेरे साथ मेरे सरीखे अभिनेताओं का झुंड
है। रामगोपाल वर्मा के बाद आए निर्देशकों ने उन्हें काम दिया है। कोई भी कोशिश बेकार
नहीं जाती। बदलाव की यह सतत प्रक्रिया है।‘
मनोज बाजपेयी ने अपनी पीढ़ी के निर्देशकों में
इम्तियाज अली और विशाल भारद्वाज के साथ फिल्में नहीं कीं। क्या वजह हो सकती है? मनोज अपनी बात कहते हैं,’ इम्तियाज के साथ मैाने
सीरियल किया है। वे जिस तरह की फिल्में बनाते हैं,उनमें मेरे लिए जगह नहीं हो
सकती। वे यंग एक्टर के साथ काम करते हैं। विशाल के बारे में क्या कहूं? मैं उनके साथ उनकी पहली फिल्म ‘बर्फ’ कर रहा था। तब वे संगीत
निर्देशक थे। मैंने उनसे 25 से 40 बार कहा,लेकिन उन्होंने अनसुना किया। यही कह
सकता हूं कि उनकी इच्छा नहीं होती हो मेरे साथ काम करने की। यह भी हो सकता है कि
वे कोई फिल्म लेकर आ जाएं या बुलाएं।‘ युवा निर्देशकों में मनोज
बाजपेयी नीरज घेवन के साथ काम करना चाहते हैं। उनकी पिछली फिल्म ‘मसान’ में संजय मिश्रा वाली
भूमिका पहले मनोज ही कर रहे थे,लेकिन प्रोड्यूसर से बात नहीं बनी। उनकी सूची में
वासन बाला और देवाशीष मखीजा भी हैं।
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