मनोरोग के इलाज में शर्म कैसी - राधिका आप्‍टे

- स्मिता श्रीवास्‍तव
राधिका आप्टे सधे व सटीक कदम बढ़ा रही हैं। वह शॉर्ट फिल्म, थिएटर, वेब सीरीज और फिल्मों में संतुलन बना कर चल रही हैं। साउथ में भी सक्रिय हैं। हाल में उन्होंने रजनीकांत के साथ तमिल फिल्म की शूटिंग पूरी की है। 29 मई को उनकी फिल्म फोबियारिलीज हो रही। यह एग्रोफोबिया पर आधारित है। इस बीमारी से पीडि़त शख्स को अपने आसपास के माहौल से जुड़ी किसी भी सामाजिक स्थिति का सामना करने में घबराहट होती है। भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से डरता है। वैसे लोगों को हमेशा डर सताता रहता है कि घर से बाहर निकलते ही बाहर की दुनिया उसे खत्म कर देगी। फिल्म के निर्देशक रागिनी एमएमएसडर: एट द मॉलबना चुके पवन कृपलानी हैं।

        राधिका कहती हैं,‘फोबिया एक लडक़ी महक की कहानी है। वह पेंटर है। मुंबई में अकेले रहती है। आत्मनिर्भर है। बहुत आत्मविश्वासी हैं। उसके साथ एक हादसा हो जाता है। उसकी वजह से वह एग्रोफोबिया से पीडि़त हो जाती है। हमारे देश में लोग इस बीमारी से ज्यादा वाकिफ नहीं हैं। अगर किसी को पैनिक अटैक आ जाए तो उसे पागल समझने लगते हैं। फिल्म के लिए पवन कृपलानी ने दो साल पहले मुझसे संपर्क किया था। मैं उनसे पहले से परिचित नहीं थी। उन्होंने फोन करके मिलने को कहा था। मुलाकात होने पर उन्होंने दस मिनट के भीतर आइडिया शेयर किया था। तब इसकी स्क्रिप्ट भी तैयार नहीं थी। संयोग से उस समय मैं पैनिक डिसआर्डर पर काम कर रही थी। यह किसी अन्य प्रोजेक्ट के सिलसिले में था। उस प्रोजेक्ट का फिल्म से कोई वास्ता नहीं था। खैर कहानी डेवलप होने पर पवन ने फिर संपर्क किया। थ्रिलर का ट्विस्ट मुझे बहुत पसंद आया। मैंने रोल स्वीकार लिया। 

        मेरे दो दोस्त भी एग्रोफोबिया से पीडि़त हैं। लिहाजा बीमारी से थोड़ा परिचित थी। मेरे पिता खुद भी न्यूरोसर्जन हैं। मेरे एक परिचित साइकोलॉजिस्ट हैं। दोनों ने इस बीमारी के संबंध में मेरी बहुत मदद की। उनकी वजह से मैं किरदार को आत्मसात कर पाई। इसके अलावा मैंने कुछ किताबें पढ़ी। मैंने कुछ वीडियो भी देखे। जिसमें पैनिक अटैक होने की जानकारी मिली। पैनिक अटैक होने पर दिल की धडक़नें बढ़ जाती हैं। पसीना बहुत आता है। मसल खींच जाने के कारण गले से आवाज नहीं निकलती। सांस लेने में दिक्कत लेने जैसी कई समस्याएं आती हैं। इसे निभाना मेरे लिए काफी चैलेंजिंग रहा। फिल्म में हमने मनोरोग के इलाज को शर्म का विषय मानने वालों को आड़े हाथों लिया गया है। यह फिल्म मनोरोग को गंभीरता से लेने पैरवी करती है। ताकि आने वाले दिनों में आत्महत्या के मामले कम हों।’ 

        राधिका कथक प्रशिक्षित डांसर हैं। उन्होंने लंदन में रहकर कंटेंपरेरी डांस भी सीखा था। फिल्म के विभिन्न जोनर में वह हाथ आजमा रही हैं। उनकी इच्छा डांस आधारित फिल्म करने की भी है। बकौल राधिका,‘डांस से मेरा गहरा लगाव है। अब हमारे देश में भी डांस आधारित फिल्में बन रही हैं। बॉक्स आफिस पर भी उन्हें सफलता मिल रही है। उम्मीद है कि किसी फिल्म में मुझे भी अपना यह हुनर दिखाने का मौका अवश्य मिलेगा।फिल्म इंडस्ट्री में करियर की सफलता की कोई गारंटी नहीं होती। राधिका का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं रहा है। उन्होंने भी काफी संघर्ष के बाद अपना मुकाम बनाया है। वह मानती हैं कि इनसिक्योरनेस हर इंसान में होती हैं। राधिका के शब्दों में,‘दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो इनसिक्योर न हो। बस उसके कारण अलग-अलग हो सकते हैं। कोई करियर को लेकर असुरक्षित महसूस करता है कोई अपनों को लेकर। यह हर व्यक्ति पर निर्भर करता है। मेरा मानना है कि इनसिक्योरनेस से बचना चाहिए। इनसिक्योरनेस नकारात्मक सोच से भी आती है। लिहाजा सोच हमेशा सकारात्मक रखनी चाहिए। नकारात्मक सोच आपकी तरक्की में बाधक बनती है। हालांकि कभी-कभी मैं भी इनसिक्योर महसूस होती हूं। उसका कोई एक खास कारण नहीं बता सकती। मगर जल्द ही उससे उबर भी लेती हूं। मैं उसे खुद पर हॉबी नहीं होने देती।’ 

        हिंदी सिनेमा में हीरो-हीरोइन की फीस में असमानता को लेकर कई बार कुछ अभिनेत्रियों ने आवाज बुलंद की है। उसके बावजूद कोई सार्थक पहल नहीं हुई है। समानता के संदर्भ में राधिका कहती हैं,‘हमारी इंडस्ट्री में भी उतनी असमानता है जितना समाज में। जब समाज बदलेगा तो इंडस्ट्री भी बदलेगी। दोनों एक दूसरे से जुड़ी हैं। समाज में बदलाव तभी आएगा जब आप खुद को बदलेंगे। सिनेमा भी इसमें भूमिका निभा रहा। हालांकि उसकी सीमित दायरा है। हमारे यहां महिला केंद्रित फिल्में ज्यादा कारोबार क्यों नहीं करती? वजह सोसाइटी को पसंद नहीं आती।उन्‍होंने उसके प्रति अपनी धारणा बना रखी है। हालांकि यह धीरे-धीरे दरक रही है।राधिका की अगली फिल्म बमबारियां हैं। उसके संबंध में वह बताती हैं,‘उसमें मैं कॉमेडी कर रही हूं। मैं पीआर एजेंट की भूमिका में हूं। पीआर मेरे आसपास रहते हैं। लिहाजा उस किरदार से थोड़ा वाकिफ भी हूं। उसकी रिलीज में थोड़ा वक्त है। इसके अलावा जून में एक अंग्रेजी में प्ले कर रही हूं। उसके अलावा भी कुछ फिल्में पाइपलाइन में हैं।’ 

        इंडस्ट्री में तकनीक और कंटेंट के स्तर पर काफी बदलाव आया है। अगले पांच साल वर्षों में निरंतर बड़े बदलाव की उम्मीद की जा रही है। इस संबंध में राधिका कहती हैं,‘पिछले कुछ वर्षों में सिनेमा में कई बदलाव आए हैं। पहले गिनी चुनी महिला प्रधान फिल्में बन रही थीं। अब उनकी संख्या में इजाफा होता ही जा रहा। यह बदलाव की बड़ी बयार है। उम्मीद है कि नई कहानियों को कहने का ट्रेंड जारी रहेगा। तकनीक के स्तर पर भी और उन्नत होंगे। मैं खुद कुछ वूमन ओरियंटेड फिल्में कर रही। हालांकि यह महिला मुद्दों पर आधारित नहीं होंगी। उसमें महिला मुख्य किरदार में होगी। यह पीकू’, ‘तनु वेड्स मनु रिटन्र्ससरीखी होगी। यानी उसमें मनोरंजन भी होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय सिनेमा की पैठ बढ़ी है। हमारी फिल्में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सराही जा रहीं। नतीजन विदेशी फिल्ममेकर भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वे भारतीय फिल्ममेकर साथ मिलकर फिल्में बना रहे हैं। फिल्मों का बाजार बढ़ रहा है। यह क्रिएटिवली और फाइनेंशली देश और फिल्ममेकरों के हित में है।राधिका कई शार्ट फिल्मों का भी हिस्सा रही हैं। उससे उन्हें काफी शोहत मिली है। इस बाबत राधिका कहती हैं,‘मैंने शार्ट फिल्में पहचान बनाने के लिए नहीं की। मुझे कांसेप्ट अच्छा लगा था। मेरे पास समय भी था। लिहाजा मैंने किया। मेरे लिए प्लेटफार्म मायने नहीं रखता। मैं बस अच्छा काम करना चाहती हूं।


Comments

sameer said…
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