निर्भीक रहता हूं मैं - पवन कल्याण
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्मों के दर्शक और हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के
पाठक दक्षिण भारतीय भाषओं के अभिनेताओं से अपरिचित ही रहते हैं। केवल रजनीकांत और
कमल हासन अपवाद हैं,क्योंकि उनकी मुंबई से कनेक्शन रहा है। वे बीच-बीच में अपनी
फिल्मों के हिंदी संसकरण भी ले आते हैं। तेलुगू फिलमों की बातें करें तो हम
एनटीआर और चिरंजीवी के बारे में जानते हें। उनके इतर अन्य अभिनेताओं में राणा
दगुबटी और रामचरण भी हिंदी फिल्मों की वजह से पहचान में आए। तेलुगू के पॉपुलर स्टार
पवन कल्याण की पहली फिल्म ‘सरदार गब्बर सिंह’ हिंदी में आ रही है। पवन कल्याण फिलमों से लोकप्रिय होने के
बाद राजनीति में आने के लिए तत्पर हैं। उन्होंने 2014 में जन सेना पार्टी का गठन
किया। अगले चुनाव में वे पूरे दल-बल के साथ चुनाव के मैदान में होंगे। फिलहाल उनसे
हैदराबाद के जुबली हि के प्रशासन नगर में स्थित उनके दफ्तर में यह बातचीत हुई।
दक्षिण भारतीय अभिनेताओं की सरलता और सादगी अभिभूत
करती है। निजी जिंदगी में वे पर्दे की छवि नहीं ढोते। पवन कल्याण में भी वही
पारदर्शिता दिखी। उन्होंने फिल्म और राजनीति के बारे में खुल कर बातें कीं। वे
अमिताभ बच्च्न के घनघोर प्रशंसक हैं और मुंबई के फिल्मकारों में अनुराग कश्यप,विशाल
भारद्वाज और निशिकांत कामत की शैली की फिल्में पसंद करते हैं। भविष्य में उनके
साथ काम करने के इच्छुक हैं। भविष्य में वे फिल्मों से जुड़े रहेंगे,लेकिन अगले
चुनाव के लिए कमर कस रहे हैं। वे आंध्रप्रदेश की जनता के लिए बहुत कुछ करना चाहते
हैं।
हमारी बातचीत शुरू होती है तो वे पहले ही स्पष्ट कर
देते हैं कि एक्टर बनने की मेरी कोई ख्वाहिश नहीं थी। पर संयोग ऐसे बने कि मैं
फिल्मों में आ गया। मैं स्वभाव से शर्मीला व्यक्ति हूं। फिल्मों में शर्म से
काम नहीं चलता। अब जो आ गया तो मेहनत की। ईमानदारी से काम किया। दर्शकों का प्यार
हासिल किया। और अभी आप के सामने हूं। पवन कल्याण की ‘सरदार गब्ब्र सिंह’ के लेखन और निर्माण की अपनी
कहानी है। वे स्पष्ट शब्दों में बताते हें,’ मेरी फिल्म ‘सरदार गब्ब्र सिंह’ की कहानी आंध्रा,तेलंगाना
और छत्तीसगढ़ के बोर्डर की कहानी है। तीनों राज्यों की सीमाएं एक-दूसरे को टच
करती हैं। फिल्म लिखते समय ही मैंने महसूस किया कि इसका मिजाज तेलुगू से ज्यादा
हिंदी फिल्मों की तरह है। यह ‘वेस्टर्न’ जॉनर की फिल्म है। फिल्म के निर्माण के समय मेरी टीम के
सहयेगियों ने कहा कि इसे हिंदी में भी रिलीज किया जाना चाहिए। मुझे यह कहने में
हिचक नहीं है कि ‘सरदार गब्बर सिंह’ की प्लानिंग हिंदी के हिसाब से नहीं हुई थी,लेकिन यह हिंदी
में भी बन गई। यह अच्छे और बुरे के बीच के संघर्ष की पुरानी कहानी है। हम ने उसे
नए ढंग से नए किरदारों के साथ कहा है। ‘शोले’ फिल्म के गब्बर सिंह का संवाद ‘जो डर गया,सो मर गया’ मेरे लिए खास मायने रखता
है। मैं निर्भीक रहता हूं। मेरे लिए यह आदर्श वाक्य है।‘
हिंदी फिल्मों के दर्शकों से जुड़ने का खयाल पवन कल्याण
के मन में पल रहा था। बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए बनारस प्रवास में मिले सभी
लोगों ने हमेशा उनसे आग्रह किया कि वे हिंदी में फिल्में लेकर आएं। पवन कल्याण
के लिए यह अलग किस्म की खुशी रही कि उन्हें ठेठ बनारस में अपने प्रशंसक मिले। उन
सभी ने हिंदी में डब उनकी तेलुगू फिल्में देख रखी थीं। उन सभी का आग्रह रहता था
कि हिंदी फिल्में लेकर आए। पवन कहते हैं,’ मुझे यह अवसर अच्छा लगा।
इस फिल्म में एक्शन,डॉयलॉग और पर्याप्त नाच-गाना है। यह फिल्में उन्हें पसंद
आएगी।‘ पवन कल्याण स्वयं हिंदी फिल्मों
के घनघोर प्रशंसक रहे हैं। वे बताते हैं,’ मैं श्री अमिताभ बच्चन का
जबरदस्त फैन हूं। उनकी फिल्में देख कर बड़ा हुआ हूं। इस फिल्म में मैंने संगीत
इवेंट के एक सीन में अमिताभ बच्चन के गाए गीत ‘मेरे
अंगने में’ में गाया है। मैं बाकी हिंदी फिल्में
भी देखता हूं। नियमित तौर पर देखना तो नहीं हो पाता है,लेकिन पांच-छह महीने में एक
ही बार में सभी चर्चित और पॉपुलर फिल्में देख लेता हूं1 मुझे इधर के फिल्मकारों
में अनुराग कश्यप,विशाल भारद्वाज और निशिकांत कामत की फिल्में पसंद आती हैं।‘ तेलुगू फिल्मों में मैं अपने भाई चिरंजीवी का प्रशंसक हूं।
पुरानी पीढ़ी में एनटीआर पसंद हैं। उनकी लोकप्रियता दोहराई नहीं जा सकती।‘
पवन कल्याण की स्क्रीन छवि जैसी भी हो,निजी बातचीत
में वे पारदर्शी और ईमानदार रहते हैं। यह बताने पर अपनी शर्मीली मुस्कराहट के साथ
वे कहते हैं,’ उनकी वजह से मैं हल्का महसूस करता
हूं। मैं स्टारडम का बोझ लेकर नहीं चलता। जीने का यह बेहतर तरीका है। मैं दूसरों
के बारे में नहीं कह सकता। मैं उनकी तरह प्रोफेशनल एक्टर नहीं हूं। अपने किरदारों
में मैं खुद भी रहता हूं। मैं निजी जिंदगी में जो कहता और करता हूं,वही पर्दे पर
भी कहना और करना चाहता हूं1 उससे मेरा काम आसान हो जाता है। मैं ग्रेट एक्टर नहीं
हूं। सही कहूं तो मैं परफॉर्म नहीं कर सकता। मुझे सबसे बड़ी दिक्कत सौंग एंड डांस
में होती है।‘ तेलुगू के दर्शक और दोस्त बताते
हैं कि पवन कल्याण अपनी एक्शन फिल्मों के लिए मशहूर हैं। पूछने पर पचन कल्याण
का जवाब होता है,’मैं मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग जापान
में ली। फिर लास एंजेल्स भी गया। इस एक्सपोजर की वजह से एक्शन सीन में मेरे
बॉडी लैंग्वेज में फर्क आ जाता है। वह सटीक लगता है।‘
पवन कल्याण ने 2019 के चुनाव की तैयारी आरंभ कर दी
है। कहा जा रहा है कि वे फिल्मों से संन्यास ले लेंगे। पवन कल्याण संन्यास
लेने से इंकार करते हैं,’ मैा फिल्मों से जुड़ा
रहूंगा,लेकिन पार्टी का गठन किया है और चुनाव में उतरना है तो सारी जिम्मेदारियां
निभानी पड़ेंगी। फिल्मों से बैकस्टेप तो लेना पड़ेगा।‘ अगला सवाल सीधा होता है कि आप की राजनीति लेफ्ट,राइट या
सेंटर की है ? पवन कल्याण जवाब देते हैं,’ मेरी राजनीतिक पृरूठभूमि नहीं रही है,लेकिन मेरा परिवार सजग
और सचेत रहा है। मेरा पिता कम्युनिस्ट विचारों के थे। छठे दशक में राजनीतिक
कारणों से उन्हें अंडरग्राउंड भी रहना पड़ा था। मुझ पर उनका प्रभाव है। मेरी
शुरूआम वामपंथ से ही हुई है। बाद में मैंने महसूस किया कि केवल वामपंथ से निदान
नहीं हो सकता। लेफ्ट विंग और राइट विंग की पॉलिटिक्स का अध्ययन करने के बाद
मैंने पाया कि हमारे समाज के लिए मिडिल पाथ होना चाहिए।मा उसे व्यवहार में लाता
हूं। हम सभी उनपभोक्तावादी समाज में हैं। इस परिस्थिति में सोच-समझकर नीतियां
बनानी होंगी। जनहित में फैसले लेने होंगे।‘
पवन कल्याण की राजनीतिक सोच और पहल आंध्रपदेश में
राजनीति विकल्प की तैयारियों के साथ आगे बढ़ रही है। फिलहाल वे अपनी पहली हिंदी
फिल्म ‘सरदार गब्र सिंह’ को लेकर उत्सुक हैं।
Comments
Thanks for interviewed to pawan kalyan ajay sir.