गलतियां भी हों अच्छी वाली - शाह रुख खान
शाह रुख खान बीते 25 सालों से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं। पांच दिनों
बाद उनकी ‘फैन’ रिलीज हो रही है। यह फिल्म फैन व स्टार के रिश्ते को समर्पित
है। फिल्म की जानकारी लेने व शाह रुख की सोच-अप्रोच जानने दैनिक जागरण की फीचर
टीम एक अप्रैल की रात 10 बजे मुंबई स्थित यशराज स्टूडियो पहुंची। दिन- रात काम
करने के आदी शाह रुख खान फिल्म की डबिंग में व्यस्त मिले। आखिरकार रात 12 बजे
शाह रुख खान का बुलावा आया। उनकी वैनिटी वैन में टीम का स्वागत हुआ। उस वक्त वे
फोन पर अपनी बेटी सुहाना की कुशलक्षेम ले रहे थे, जिसमें एक पिता की चिंता साफ झलक
रही थी। पेश है उनसे खुली बातचीत :
फीचर टीम
-फैंस का स्टार की जिंदगी पर कितना हक होना चाहिए?
ईमानदार जवाब बहुत अलग है, मैं फिर भी बताता हूं। खासकर खुद के संदर्भ में।
मुझे ऐसा लगता है कि लोकप्रियता अपने संग डर लेकर आती है। लोकप्रिय लोग डरने लग
जाते हैं। इस बात का डर कि मेरा काम लोगों को पसंद नहीं आया तो पिछले 25 सालों में
कमाया नाम बेकार हो जाएगा। यह डर मन में समाते ही स्टार वही करने लग जाता है, जो
दो करोड़ लोगों को पसंद है। सच्चाई यह है कि आप दो करोड़ लोगों की पसंद का काम
नहीं कर सकते। आखिर में आप वही कर सकते हैं, जो आप को आता है। इससे एक अलग विश्वास
मन में आ जाता है कि आप जो भी करें, वह आप के फैंस को पसंद आना है। मैं पूरी
विनम्रता से यही कहना चाहूंगा कि फैन की पसंद-नापसंद और गुस्से को हम हर बार
गंभीरता से लेने लगे तो काम करने में दिक्कतें होंगी।
-आप के लिए फिल्में करने की मूल वजहें क्या होती हैं?
बात ‘डर’ के दिनों की है। उन दिनों हर एक्टर के पास दस-बारह फिल्में हुआ
करती थीं। ‘डर’ की सफलता की पार्टी में देवेन वर्मा साहब ने मुझसे कहा था कि बेटा
फिल्में तीन चीजों के लिए करना। धन, मन और फन के लिए। धन तो सभी जानते हैं। फन
यानी हुनर वाला। मन यानी अपने दिल के लिए। साथ ही अपने दोस्तों के लिए। इन तीन
चीजों का ध्यान रखते हुए तू संतुलन साधेगा तो सही दिशा में जाता रहेगा। सही में
देखा जाए तो देवेन वर्मा साहब की सलाह बिल्कुल सही है। अब मैं उस सिचुएशन में
हूं, जब मुझे धन की जरूरत नहीं। मैं पहले भी धन के लिए तो फिल्में नहीं करता था।
मन के लिए करता रहता हूं। कभी कभी फन के लिए कर लेता हूं। मैं पिछले सात दिन से
यहां रात-दिन काम में लगा हुआ हूं। अभी आदित्य और मनीष फिल्म का ट्रायल शो देखने
गए हैं। मैं आम तौर पर अपनी फिल्मों का ट्रायल शो नहीं देखता। मैं उनसे बस यही
पूछूंगा कि उन्हें फिल्म कैसी लगी। वह अच्छी बनी है कि नहीं। लब्बोलुआब यह कि
अगर मेरे फैन मुझे वाकई चाहते हैं तो उन्हें मेरा काम पसंद आएगा। यह फिल्म मन और
फन दोनों के लिए है।
-निर्देशक मनीष शर्मा लीक से हटकर
फिल्में बनाते रहे हैं। उनके बारे में क्या कुछ कहना चाहेंगे।
मनीष बहुत पहले
से मेरे दोस्त हैं। मुंबई आने पर सबसे पहले मुझसे ही मिले थे। उसकी सोच और विजन
अलग है। असल में कहूं तो शुरू के पांच साल मैं ऐसा ही था। मेरी सोच मनीष की तरह
थी। मनीष के साथ काम करना खुद को फिर से तलाशने सरीखा है। उसने मुझे अहसास कराया
कि मैं अपने शुरुआती दिनों में कैसा था। इस तरह मनीष अच्छा डायरेक्टर है। उसे अपना
काम पता है। हम दोनों के बीच एक खुलापन है। बिना जज किए कुछ गढऩे की आजादी वाली
बात हम दोनों के बीच है। वह मुझे काफी रचनात्मक आजादी देता है। एक अर्से बाद ऐसा
डायरेक्टर मिला, जो मुझे गलतियां करने का भी हक देता है। ‘फैन’ फिल्म करते-करते
महसूस हुआ कि अब मुझे गंदी एक्टिंग नहीं करनी चाहिए। अच्छी वाली गलती करनी चाहिए।
-‘फैन’ के किरदारों को आत्मसात करने की प्रक्रिया थकाऊ तो नहीं रही?
ईमानदारी से कहूं तो गौरव को निभाना बहुत मुश्किल था, क्योंकि मैं उसे नहीं
जानता, पर मैंने उसे क्रिएट कर दिया। अब मैं उसे आत्मसात करने की प्रक्रिया बयां
करूं तो वह मैकेनिकल सा होगा कि उसकी चाल ऐसी कर दी। उसकी आवाज बदल दी। उसके बाल
ऐसे कर दिए। उसके डील-डौल तक को शक्ल दे दी। यह गलत भी साबित हो सकता है। इतना कह
सकता हूं कि मैंने इसे निभाने में अपने अनुभव, जानकारी का पूरा इस्तेमाल किया है।
तभी इस फिल्म के लिए मैं कैसे इंटरव्यू दूं, वह तय नहीं कर पा रहा हूं। ‘माय नेम
इज खान’ के किरदार का विश्लेषण मुमकिन है। यहां गौरव के बारे में क्या बताया
जाए। एक युवक है, जो हजारों-लाखों फैन का प्रतिनिधित्व कर रहा है। उन सबकी व्याख्या
कैसे मुमकिन है। तभी इसे करते वक्त अनजानी सी जिम्मेदारी थी कंधों पर।
- इस फिल्म के लिए
मेथड एक्टिंग भी इस्तेमाल की ।
मेरी एक्टिंग स्टाइटल कई एक्टिंग स्टाइल का
मिश्रण है। मुझे एक्टिंग के सभी मैथेड की गहन
जानकारी है। मैं उसके बारे में बहुत पढ़ता हूं। मेरे मुताबिक एक्टिंग मैथेड का
मिश्रित उपयोग करना चाहिए। हो सकता है कि मेरे विचार से सभी सहमत न हो। हालांकि
मेरा मानना है आपको खुद को किसी एक मैथड तक सीमित नहीं करना चाहिए। मिक्स मैथेड
इस्तेमाल करना चाहिए। फैन में वॉयस को लेकर मैथेड है। उसकी आवाज एकसमान होनी
चाहिए। जब मैंने पहली बार उसके लिए डायलॉग बोला तो आवाज फर्क थी। आदित्य चोपड़ा को
लगा कि आवाज बदलने से लोगों को लगेगा यह शाह रुख नहीं है। लिहाजा शाह रुख को रखते
हुए कुछ अलग करो। उसकी आवाज के लिए मैथेड है। मुझसे फिल्म की डबिंग नहीं होती जब
तक फिल्म की पहली दो लाइनें याद न कर लूं। डबिंग से पहले मैं घर या गाड़ी में उसका
रिहर्सल करता हूं। फैन में एक डायलॉग है कनेक्शन भी बड़ी कमाल की चीज है। जब मुझे
लाइन मिली। इसकी डबिंग मुझे कंठ की नली दबाकर करनी पड़ती है। उसका अलग मैथेड है।
एक्टिंग के समय ऐसा नहीं करना पड़ता। उसे रीक्रिएट करने का भी मैथेड है। इस किरदार
की बॉडी लैंगवेज, चाल-ढाल और डांस में बहुत मैथेड करना पड़ता है।
- क्या आप को लगता है हमारे मुल्क
में हीरो की क्राइसिस है। कभी अरविंद केजरीवाल तो कभी कन्हैया में नायक की तलाश्
होती है।
आप को वही हीरो
अच्छा लगेगा जो आप की पर्सनालिटी से मेल खाता हो। या आप जिसके जैसा बनना चाहते
हों। कोई तीसरा कारण नहीं होता। नायक आजकल मीडिया हाईप की वजह से क्रिएट किए जा
रहें हैं। मेरे ख्याल से किसी को किसी और की या खुद की आभा में नहीं आना चाहिए। हीरो
उत्तम गुणों से बनते हैं। मुझे मैडम क्यूरी का इतिहास नहीं मालूम, लेकिन प्रभावित
करती है। मदर टेरेसा से मैं बमुश्किल ढाई मिनट मिला हूं। वे पल छाप छोड़ गए। मेरे
ख्याल से हीरो उसे बनाना चाहिए जिसका काम महान हो। जिसके काम को आप नजरअंदाज न कर सकें।
या फिर जो आप की पर्सलानिटी का विस्तार हों। मेरा हीरो तो मेरा ड्राइवर है। मेरी
सेवा में वह दिन-रात लगा रहता है। मेरे नखरों की शिकायत नहीं करता।
-फैन के दोनों किरदारों को आत्मसात
करने की प्रक्रिया थकाऊ तो नहीं रही?
ईमानदारी से कहूं तो गौरव को निभाना बहुत मुश्किल था, क्योंकि मैं उसे नहीं
जानता, पर मैंने उसे क्रिएट कर दिया। अब मैं उसे आत्मसात करने की प्रक्रिया बयां
करूं तो वह मैकेनिकल सा होगा कि उसकी चाल ऐसी कर दी। उसकी आवाज बदल दी। उसके बाल
ऐसे कर दिए। उसके डील-डौल तक को शक्ल दे दी। यह गलत भी साबित हो सकता है। इतना कह
सकता हूं कि मैंने इसे निभाने में अपने अनुभव, जानकारी का पूरा इस्तेमाल किया है।
तभी इस फिल्म के लिए मैं कैसे इंटरव्यू दूं, वह तय नहीं कर पा रहा हूं। ‘माय नेम
इज खान’ के किरदार का विश्लेषण मुमकिन है। यहां गौरव के बारे में क्या बताया
जाए। एक युवक है, जो हजारों-लाखों फैन का प्रतिनिधित्व कर रहा है। उन सबकी व्याख्या
कैसे मुमकिन है। तभी इसे करते वक्त अनजानी सी जिम्मेदारी थी कंधों पर।
-राहुल ढोलकिया साथ रईस कर रहें हैं।
उनके बारे में कुछ बता सकें...
उन्हें मालूम
ही नहीं कमर्शियल या आर्ट क्या होता है? उनकी अपनी विशिष्ट शैली है। मैं
फिल्म में बहुत जगह अच्छी एक्टिंग कर रहा हूं बिना यह जाने कि वह सही है या गलत।
दरअसल बाकी कास्ट ने उसमें उम्दा काम किया है। मैं संजय लीला भंसाली के साथ भी
फिल्म करुंगा। बाजीराव मस्तानी का मसला होने के बावजूद हम अच्छे दोस्त हैं। अभी बस
इम्तियाज अली और आनंद एल राय की फिल्में सामने हैं। दोनों अभी स्क्रिप्ट लिख रहे
हैं।
-
अपने निर्देशकों के साथ किस् किस्म् के क्रिएटिव डिसकशन
करते हैं।
मैं हर डायरेक्टर के साथ सात- आठ महीने तक वक्त बिताता हूं। कई बार तो मैं
साल भर का भी समय लेता हूं। उसके साथ मुझे मजा आता है तो मैं उसकी फिल्म करता
हूं। मैं वक्त इसलिए लेता हूं कि अगर फिल्म नहीं चली तो बाद में वैनिटी में
बैठकर रोते हुए यह जरूर कह सकें कि यार कुछ भी हो, मजा तो आया था न।
-फैन स्टार और प्रशंसक के इगो क्लैश
की कहानी है। क्या आप इगोस्टिक भी हैं?
(हंसते हुए) यह सुनने में थोड़ा
अहंकारी लगे, लेकिन मुझसे बड़ा इगोस्टिक, आत्ममुग्ध और अहंकारी कोई दूसरा
शख्स नहीं है। वजह यह कि मैं शाह रुख खान हूं। ऊपर से फिल्म में मैं ही स्टार
आर्यन खन्ना और फैन गौरव बना हूं। आर्यन खन्ना के रूप में हमें ऐसा हीरो चाहिए
था, जो वाकई लंबे समय से स्टार है। चूंकि मेरा 25 साल का करियर है।
शायद यही वजह है कि मैं यह रोल कर रहा। उसका कारण यह नहीं कि मैं अपना सबसे बड़ा
फैन हूं। मुझे बहुत आक्वर्ड लगता हैं। कुछ ही कलाकारों का 25 साल का करियर होता है। उनके फैन की तादाद बनी रहे ऐसे कलाकार कम हैं। मुझे
मौका मिलता तो किसी फिल्म में मैं अमिताभ बच्चन का फैन बनना पसंद करता। वैसे ‘फैन’
की कहानी ऐसे शख्स की है जिसकी शक्ल अपने पसंदीदा कलाकार से मिलती है। मैं स्वयं बॉक्सर
मुहम्मद अली का फैन हूं। वजह यह कि उनके सफर में उपलब्धि की पराकाष्ठा और ट्रेजडी
भी है। मैं यू ट्यूब पर उनकी सारी फाइटें देखता हूं। अपने बच्चों को भी दिखाई है।
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बॉक्स 1
हेमा जी व देव साहब को कभी ना नहीं
मैं हेमा जी और देव साहब से नहीं मिलता था। हेमा जी को मैं कतई मना नहीं कर
सकता हूं। हेमा जी बुरा मान जाएंगी। मैं उनका बहुत बड़ा फैन हूं। मैं देव साहब से छिपता
फिरता रहता था। मैं उनके भाई साहब चेतन आनंद साहब से मिलता जुलता रहता था। वे मेरे
घर आते थे। एक बार मैं देव साहब की पकड़ में आ गया था। मैं सीढियों से ऊपर जा रहा
था। अचानक वे सामने आ गए। उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे ऑपिफस में आ कर मिलो। उनके
कहने के पहले मैंने कह दिया, ‘देव साहब मैं आप की फिल्म कर रहा हूं’।
बॉक्स 2
लंदन की मां-बेटी
हैं मेरी फैन
मै फैन से
मिलकर प्रभावित नहीं प्रोत्साहित और इमोशनल हो जाता हूं। मैंने लंदन में एक शो
किया था। उसमें गर्मी की वजह से एक 13 साल की बच्ची बेहोश हो गई थी।
उसके डैडी भी हाइपर हो गए थे। उसे तत्काल चिकित्सा दिलाने के लिए मैंने उसे बैकस्टेज
से बाहर निकाला। बेहोशी की हालत में उसने मुझे आधे हर्ट वाला पैंडेंट दिया था। शायद
लवर्स को देते हैं। वह पैंडेंट अभी भी मेरे पास है। वह मैंने अपनी बेटी सुहाना को
भी दिखाया है। उस वाकये के दस साल बाद वह फिर मुझे मिली। न तो मुझसे उसका नाम याद
था। न शक्ल याद थी। उसने बेहोशी वाली घटना से याद दिलाया। तब वह शादीशुदा थी।
पांच साल बाद फिर हम मिले। तब उसके साथ उसकी बेटी थी। अब उसकी बेटी मुझे अपनी मां
की बेहोशी की घटना याद दिलाती है। एक वाकया जर्मनी की लडक़ी का है। शायद उसे पैरालिसिस हुआ था। चलने
फिरने में सक्षम नहीं थी। वह मुझसे मिलने मुंबई आईं। वह व्हीलचेयर पर थी। मैंने
उनका हाथ पकड़ा तो वह खड़ी हो गई। यह उनके लिए बहुत बड़ी बात थी। आज वह चलने फिरने
में सक्षम है। उनके पैरेंट्स बेटी के चलने का श्रेय मुझे देते हैं क्योंकि मैंने
उसका हाथ छुआ। हालांकि यह सच नहीं है। ऐसा उस कारण से नहीं हुआ। मुझे मालूम है कि
विश्वास के चलते मैं लोगों की जिंदगियों से जुड़ता हूं। बाकी मैं कोई महान काम
नहीं कर रहा।
बॉक्स 3 -
बच्चों को उनकी दादी से कैसे बचाऊं।
मैं अपने बच्चों
को अपनी छाया, स्टारडम, अपने नाम से बचाकर रखना चाहूंगा। वह इसलिए कि वे अपना काम खुद कर सकें। वरना खबरें
तो चल ही रही है कि मेरा बेटा लौंच हो रहा है। ऐसे ही थोड़े किसी के पास भेज दूंगा
जो यह कहते फिरे कि शाह रुख की फैमिली के लोग बहुत खूबसूरत हैं। यह सब कुछ बड़ा
अजीब सा लगता है। मैं चाहूंगा कि वह अपनी पहचान खुद बनाए। बाकी फिल्म इंडस्ट्री से
मुझे किसी को नहीं बचाना। इंडस्ट्री मेरी मां है। तो मैं क्यों अपने बच्चों को
उनकी दादी से बचाकर रखूंगा। लेकिन मैं यह सुनिश्चित करना चाहूंगा कि वे वही काम
करें जो उन्हें पसंद हो। हम और आर्यन लौंचिंग की खबरों को लेकर हंसते रहते हैं।
बॉक्स 4 :
फिल्म की फिक्र नहीं करता
मैं बिल्कुल फिक्र नहीं करता, क्योंकि बहुत कुछ देख लिया भई। जो सबसे अच्छी
बनाने निकला था, वह सबसे बुरी निकली। जो सबसे बेकार बनाने चला, वह सबसे अच्छी
निकल गई। जो एवें बनाने निकला, उसने तो कमाल ही कर दिया। मुझे कई बार जिन पटकथाओं
पर हंसी आती थी, उसके बारे में लोग तारीफों के पुल बांध देते हैं।
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