दिल से बनना चाहता हूं हैंडसम - जॉन अब्राहम
अजय ब्रह्मात्मज
जॉन अब्राहम की एक अलग पहचान है। अपनी फिल्मों से धीरे-धीरे उन्होंने यह खाय पहचान हासिल ीि है। उनकी 'रॉकी हैंडसम' अगले हफ्ते रिलीज हो रही है। उसी मौके पर यह खास बातचीत हुई।
-आपकी होम
प्रोडक्शन फिल्मों का चुनाव अलग तरीके का रहता है। आप बाहरी बैनर की फिल्में अलग
तरह की करते हैं। यह कैसे संभव हुआ?
0 मैं बहुत क्लियर था। मैं जैसी फिल्में देखने की चाहत रखता था
वह भारत में नहीं बनती थी। मैं निर्माता इस वजह से ही बना कि जैसी फिल्में देखने
की तमन्ना रखता हूं उन्हें खुद बना सकूं। वही कोशिश की। मैंने अलहदा फिल्मों को
तरजीह दी। मैंने कॅामर्स और कंटेंट का भी ध्यान रखा। कंटेंट का अर्थ सिफ फिल्म में
संदेश देना नहीं है। मद्रास कैफे यूथ के लिए थी। राजनीति संबंधित थी। आज की युवा
पीढ़ी राजीव गांधी से परिचित नहीं है। मैं चाहता था कि लोग उनके बारे में जाने। हालांकि
विकी डोनर में संदेश था। बतौर निर्माता चाहूंगा कि मेरी फिल्मों को लोग सराहें।
एक्टर होने के नाते मैंने काफी गलतियां की हैं। निर्माता के तौर पर मैं वह गलतियां
नहीं करना चाहता हूं। एक्टर होने के नाते मॉस के लिए फिल्में कर रहा। जैसे वेलकम
बैक। मुझे कॅामेडी अच्छी लगती है। मैं हेरा फेरी 3 भी कर रहा हूं। फोर्स 2 मेरी होम प्रोडक्शन
फिल्म है। बतौर निर्माता मेरे लिए डायरेक्टर और स्क्रिप्ट अच्छी होनी चाहिए।
-नाम रॅाकी साथ में हैंडसम। यह आपकी पिछली फिल्मों से कितना
भिन्न है?
0 मेरे मुताबिक रॅाकी हैंडसम इमोशन एक्शन फिल्म है। रॅाकी का
वर्ष 2006 से पहले
कोई रिकॉर्ड ही नहीं था। यही इस फिल्म का दिलचस्प पार्ट है। इस फिल्म में एक्शन से
ज्यादा इमोशन दिखेंगे। अगर एक्शन इमोशन से नहीं जुड़ा होगा तो एक्शन नहीं चलेगा।
निशिकांत कामथ इसके महारथी हैं। उनकी फिल्मों का कैनवस बड1ा होता है। उनका मिजाज भी
अलग है। वैसे निशिकांत और मैं एक दूसरे से कनेक्ट करते हैं। हम अच्छे दोस्त भी
हैं। इसके भी कई कारण है। पहला, वह फिल्मी परिवार से नहीं हैं। शर्मीलें हैं। मेरा भी फिल्मी
बैकग्राउंड नहीं है। मैं भी शर्मीला हूं।
हम दोनों बाहरी दुनिया में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते। फिल्म को लेकर हमारा पैशन
एकसमान है। इस वजह से फोर्स हमने साथ में की। ‘फोर्स’ के बाद मैं और निशिकांत एकसाथ काम करने को आतुर थे। हमने दूसरी
फिल्म साथ में बनाने पर विचार किया। रॉकी हैंडसम की कहानी मुझे बेहद पसंद आई। हम
साथ में जुड़ गए। हमने कुछ दर्शकों को एक्शन दिखाए।
लडक़ों की आंखों में आंसू थे वही लड़कियों को एक्शन पसंद आया।
उनकी प्रतिक्रियाओं से मैं उत्साहित हुआ। उसी के अनुस्प अपनी फिल्म की मार्केटिंग
स्ट्रेटजी बनाई।
-;कहानी के
बारे में थोड़ा जानकारी देंगे?
0 कहानी पैंतीस साल के आदमी और छह साल की बच्ची के ईदगिर्द बुनी
है। बच्ची पड़ोसी है, लेकिन वह
रॉकी से बहुत प्यार करती है। उसके घर उसका आना-जाना है। वह रॉकी को हमेशा हैंडसम
ही बुलाती है। दोनों के बीच बहुत ही प्यारा रिश्ता है। कुछ घटनाक्रम के चलते लडक़ी
को कुछ हो जाता है। रॉकी अपना आपा खो बैठता है। फिर क्या होता है। कहानी इस संबंध
में है। फिल्म देखने के बाद बच्ची के पिता के आंखों में आसूं आ गए। मेरा मानना है
कि ऐसी फिल्म बनाई नहीं जाती है। बन जाती है।
-फिल्म में
हैंडसम होने का अर्थ शारीरिक सुंदरता है या स्वभाव ?
0 इस फिल्म में शारीरिक ही है। दरअसल, रॉकी लोगों से
घुलता मिलता नहीं है। अपने में ही रहता है। लोग उसे इसी नाम से पुकारते हैं। असल
जिंदगी में मैं चाहता हूं कि लोग मुझे आंतरिक सुंदरता को लेकर हैंडसम संबोधित
करें। बाहरी सुंदरता दिखावटी होती है। खूबसूरती भीतरी होती है। मैं चार साल से
एसिड हादसे के शिकार लोगों के साथ काम कर रहा हूं। मैंने एक लडक़ी साथ फोटो भी शूट
किया था। लडक़ी का चेहरा पूरा जला हुआ है। हाल ही में उस लडक़ी की शादी तय हुई है।
तमाम मुश्किलों के बावजूद उसमें जिंदगी जीने की ललक है। मेरे लिए ऐसे लोग हैंडसम
होते हैं। लिहाजा जब मेरी फिल्मों के प्रमोशन को लेकर बातचीत चल रही थी, मैंने कहा कि
प्रमोशन ऐसे होना चाहिए। जो सच हो उसे दिखाना चाहिए।
-आप
आउटसाइडर रहे हैं। अब तो आप आगे निकल गए हैं। आप ने आयुष्मान खुराना जैसे नए
कलाकारों को मौका दिया ?
0 मैं हमेशा समर्थन करूंगा। सभी नए कलाकारों का। बहुत सारे नए
कलाकार मेरे पास आते हैं। कहते हैं कि कोई उनका साथ नहीं देता है। मैं कोशिश
करूंगा कि जो काबिल हो वह मेरी फिल्म करे। इंडस्ट्री अभी भी फिल्मी बैकग्राउंड से ताल्लुक
रखने वालों को ज्यादा मौके देती है। इसमें कोई खराबी नहीं है, लेकिन सभी को मौका
मिलना चाहिए। बाहरी लोगों को भी अवसर मुहैया होने चाहिए।
-जब से आप
फिल्मों में आए। फिल्मों ने आपको क्या सिखाया। अच्छी बात और बुरी बात दोनों के
बारे में बताएं।
0 फिल्म ने मुझे यह भी सिखाया है कि दूसरों के साथ अच्छा रहो।
हमें हर किसी का सम्मान करना चाहिए। मैं तहेदिल से सभी का आदर करता हूं। फिल्म में
सबसे खराब चीज है असुरक्षा की भावना। सच बता रहा हूं मैं। असुरक्षा की फीलिंग से
उबरना मैंने 95 प्रतिशत
सीख लिया है। ज्यादातर लोग उससे निकल नहीं पाते। हर एक्टर को दूसरे एक्टर की
चिंता सताती है। मसलन मैं उसकी तरह क्यों नहीं कर पा रहा हूं। मेरा लुक खराब तो
नहीं हो रहा है। मैं मोटा हो जाऊंगा। मेरा मानना है कि एक्टर को इनसे उबरना चाहिए।
आम इंसान की तरह सोचना चाहिए। फिर यह सब मायने नहीं रखेगा। इंडस्ट्री तो ऐसी ही
है। आज है। कल नहीं है। लेकिन असुरक्षा हम सभी को बांध कर रखती है। यह बहुत ही
खराब चीज है। सारे एक्टर चाहे वे माने या ना माने , सब असुरक्षित महसूस करते हैं। हर कोई किसी
ना किसी चीज को लेकर डरा हुआ है।
-आप छोटे से
बड़े शहर में जाते रहे हैं। आप विदेश जाते हैं। वहां के और यहां के दर्शकों में
क्या अंतर देखते हैं।
0 विदेशी दर्शक आपके काम को आसानी से अपना लेते है। उन्हें
हमारे अतीत में रुचि नहीं होती। वह सिर्फ फिल्म में हमारा काम देखते हैं। जैसे
वाटर जब रिलीज हुई। स्टीवन स्पीलबर्ग ने मेरे अभिनय की सराहना की। वहीं भारत में
मेरी आलोचना हुई। विदेश में मेरे बारे में पड़ताल नहीं की गई। यहां पर सबको पता है
कि मैं मॉडल हूं। लिहाजा वही पुरानी सोच है कि वह क्या करेगा। सिर्फ अपना शरीर
दिखाएगा। वहां पर ऐसा नहीं था। मैं वहां पर एक्टर था। कुछ एक्टरों ने वहां पर
फिल्म देखी। मुझसे पूछा कि यह सीन कैसे दिया। सीन के लिए क्या सोच थी।
-दोस्त और
परिवार की अहमियत क्या है?
0 परिवार मेरे लिए प्रमुख है। मेरे खास दोस्त हैं। वह भी मेरे
लिए मायने रखते हैं। मेरे लिए परिवार से बढ?र कुछ नहीं है। मैं अपने माता-पिता के लिए सबकुछ करता
हूं। मैं जो भी कमाता हूं ,उनके हाथ
में रख देता हूं। वह दोनों मेरे जीवन के सबसे खास इंसान हैं। उनसे पहले मेरे लिए
कुछ नहीं आता है। मेरे परिवार में किसी को पैसे की जरूरत पड़ती है, मां मुझसे पूछती है
कि जॅान मैं पैसे दे दूं। मैंने उनसे कहता हूं आप दे दें। मुझसे पूछने की क्या
जरूरत है। मै जो हूं परिवार की वजह से हूं। वह मेरे लिए सबसे पहले हैं।
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