किरदार ने निखारा मेरा व्यक्तित्व - मनोज बाजपेयी
-अजय ब्रह्मात्मज
‘अलीगढ़’ का ट्रेलर आने के बाद से ही मनोज बाजपेयी के प्रेजेंस की
तारीफ हो रही है। ऐसा लग रहा है कि एक अर्से के बाद अभिनेता मनोज बाजपेयी अपनी
योग्यता के साथ मौजूद हैं। वे इस फिल्म में प्रो. श्रीनिवास रामचंद्र सिरस की
भूमिका निभा रहे हैं।
- इस फिल्म के पीछे की सोच क्या रही है ?
0 एक आदमी अपने एकाकी जीवन में तीन-चार चीजों के साथ
खुश रहना चाहता है। समाज उसे इतना भी नहीं देना चाहता। वह अपनी अकेली लड़ाई लड़ता
है। मेरी कोशिश यही रही है कि मैं दुनिया के बेहतरीन इंसान को पेश करूं। उसकी अच्छाइयों
को निखार कर लाना ही मेरा उद्देश्य रहा है।
-किन चीजों के साथ खुश रहना चाहते थे प्रोफेसर सिरस?
0 वे लता मंगेशकर को सुनते हैं। मराठी भाषा और साहित्य
से उन्हें प्रेम है1 वे कविताओं में खुश रहते हैं। अध्ययन और अध्यापन में उनकी
रुचि है। वे अलीगढ़ विश्वविद्यालय औा अलीगढ़ छोड़ कर नहीं जाना चाहते। वे अपनी
जिंदगी अलग ढंग से जीना चाहते हैं।
-एक अंतराल के बाद आप ऐसी प्रभावशाली भूमिका में दिख
रहे हैं?
0 अंतराल इसलिए लग रहा है कि मेरी कुछ फिल्में रिलीज
नहीं हो पाई हैं। पोस्ट प्रोडक्शन में समय लग गया। ‘सात उचक्के’,’मिसिंग’,’ट्रैफिक’ और ‘दुरंतो’ फिल्में शूट हो चुकी हैं।
अगले दो-तीन महीनों में ये रिलीज होंगी।‘तेवर’ के बाद लगभग साल हो गया है। अब फिल्में आ रही हैं।
-प्रोफेसर सिरस को कैसे आत्मसात किया। किन चीजों पर
अधिक ध्यान रहा?
0 प्रोफेसर सिरस को अकेले रहने से तकलीफ नहीं है।
एकाकी जीवन जी रहे व्यक्ति की चाल-ढाल बदल जाती है। उनके एकाकीपन को जाहिर करने
के लिए मैंने उनकी आंखों की शून्यता पकड़ी। वे निष्पंद दिखाई पड़ते हें। उनकी
आंखों से उनका व्यक्तित्व प्रकट हो। मुश्किल प्रक्रिया रही,लेकिन मुझे खुशी है
कि लोग उसे देख और समझ पा रहे हैं। यह प्रक्रिया जादुई रही।प्रोफेसर सिरस को समाज
ने कमरे तक सीमित कर दिया है। हद तो तब होती है,जब वे उसके कमरे में भी घुस जाते
हैं। फिल्म यहीं से शुरू होती है।
-कलाकार भी एकाकी होते हैं। मैंने देखा है कि वे भीड़
में रहने पर भी खुद में लीन रहते हैं। आप क्या कहेंगे?
0 कलाकार निजी दुनिया में रहता है। जरूरी नहीं कि वह
अकेला हो। समय और अभ्यास से कलाकार उसे चुन लेता है। लोगों की तेज नजरों से बचने
के लिए वह एक कवच पहन लेता है। अमूमन ऐसा होता है कि कलाकार सभी पर संदेह करने लगते
हैं। उसे लगता है कि उसे अच्छे-बुरे काम को ढंग से जांचा नहीं जा रहा है। आप
देखेंगे कि कलाकारों की तारीफ और आलोचना में लोग अति कर देते हैं।
-फिर वास्तविकता का अंदाजा कैसे होता है?
0 अगर कलाकार खुद से झूठ न बोले। वह अपने ही झांसे में
न रहे। अपना काम देख कर वह समझ सकता है कि वह कीां चूक गया। मैं अपनी फिल्में कम
देखता हूं। मुझे अपनी भूलों और चूकों से परेशानी होती है। मेरे लिए अपनी फिल्में
देखना प्रताड़ना होती है। हमारे टीचर बैरी जॉन और एनके शर्मा जैसे मित्र होते हैं।
वे यिलिटी चेक करवा देते हैं।
-हंसल मेहता के बारे में बताएं?
0 उनसे 22 साल पुरानी दोस्ती है। फिल्ममेकर के तौर
पर वे अलग जोन में आ गए हैं। पहले वे दिशाहीन थे। वे अपनी आवाज या कॉलिंग की तलाश
में थे। वह उन्हें मिल गया है। अपने विषय और क्राफ्ट पर उनकी पकड़ बढ़ गई है। वे
सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर लगातार लिखते और बोलते रहे हैं,इसलिए वह स्पष्टता
फिल्मों में दिख रही है।
-कलाकार और किरदार में संगति कैसे बैठती है?
0 जब तक आप केवल संवाद बोलते रहेंगे,तब तक पैक अप के
बाद आप सब कुछ भूलते रहेंगे। अगर संवादों के पार जाते हैं तो हर किरदार एक गहरा
निशान छोड़ जाता है। प्रोफेसर सिरस की भूमिका निभाने के बाद मैं ज्यादा बेहतरीन
इंसान हो गया हूं।
-समलैंगिकता अभी तक समाज में स्वीकार नहीं है। सेक्शन
377 का मामला कोर्ट में है। क्या कहेंगे?
0 सेक्शन 377 पर फैसला आने दें। मुझे लगता है कि समय
के साथ समाज को अधिक खुला और उदार होना चाहिए। अगर कानून उनके पक्ष में आ जाएगा तो
समाज भी धीरे-धीरे स्वीकार कर लेगा।
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