फिल्म समीक्षा : तेरे बिन लादेन-डेड और अलाइव
टुकड़ों में हंसी
-अजय ब्रह्मात्मज
पहली कोशिश मौलिक और आर्गेनिक होती है तो दर्शक उसे
सराहते हैं और फिल्म से जुड़ कलाकारों और तकनीशियनों की भी तारीफ होती है। अभिषेक
शर्मा की 2010 में आई ‘तेरे बिन लादेन’ से अली जफर बतौर एक्टर पहचान में आए। स्वयं अभिषेक शर्मा
की तीक्ष्णता नजर आई। उम्मीद थी कि ‘तेरे बिन लादेन-डेड और अलाइव’ में वे एक स्ता ऊपर जाएंगे और पिछली सराहना से आगे बढ़ेंगे।
उनकी ताजा फिलम निराश करती है। युवा फिल्मकार अपनी ही पहली कोशिश के भंवर में डूब
भी सकते हैं। अभिषेक शर्मा अपने साथ मनीष पॉल को भी ले डूबे हैं। टीवी शो के इस
परिचित चेहरे को बेहतरीन अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। क्या उनके चुनाव में ही दोष
है ?
ओसामा बिन लादेन की हत्या हो चुकी है। अमेरिकी राष्ट्रपति
को उसका वीडियो सबूत चाहिए। इस कोशिश में अमेरिकी सीआईए एजेंट ओसामा जैसे दिख रहे
अभिनेता पद्दी सिंह के साथ मौत के सिक्वेंस शूट करने की प्लानिंग करता है। वह
निर्देशक शर्मा को इस काम के लिए चुनता है। शर्मा को लगता है कि ‘तेरे बिन लादेन’ का सारा क्रेडिट अली जफर ले
गए। इस बार वह खुद को लाइमलाइट में रखना चाहता है। एक स्थानीय दहशतगर्द खलील भी
है। यहां से ड्रामा शुरू होता है,जो चंद हास्यास्पद दृश्यों और प्रहसनों के साथ
क्लाइमेक्स तक पहुंचता है। लेखक ने फिल्म को रोचक बनाए रखने के लिए घटनाएं भर
दी हैं। कुछ-कुछ मिनटों के बाद हंसाने की कोशिश की जाती है। निस्संदेह कुछ सीन
सुंदर और कॉमिकल बन पड़े हैं,लेकिन पिछली फिल्म की तरह उनका सम्मिलित प्रभाव
गाढ़ा नहीं होता। फिल्म टुकड़ों में ही दृश्य संरचना में बांध पाती है।
मनीष पॉल भरपूर कोशिश करते हैं कि वे किरदार में रहें।
हम उन्हें इतनी बार टीवी शो में अनेक भाव मुद्राओं में देख चुके हैं कि वे खुद को
ही दोहराते नजर आते हैं। उनके लुक की निरंतरता पर भी ध्यान नहीं दिया गया है। एक
ही सफर में उनके बाल छोटे-बड़े होते रहते हैं। शो होस्ट और किरदार के परफारमेंस
हल्का फर्क होता है। मनीष पॉल ने उस पर ध्यान नहीं दिया है और निर्देशक ने इसकी
ताकीद नहीं की है। इस फिल्म में उनकी प्रतिभा का सदुपयोग नहीं हो पाया है।
प्रद्युम्न सिंह का किरदार एकआयामी है। वे उसे निभा ले जाते हैं। अफसोस कि अली
जफर की मौजूदगी फिल्म में कुछ नहीं जोड़ती। शुरू में कंफ्यूजन भी होता है। पियूष
मिश्रा अपने आधे-अधूरे किरदार को आधे-अधूरे तरीके से ही निभाते हैं। यकीनन वे इस
फिल्म को याद नहीं रखना चाहेंगे। सिकंदर खेर सभी कलाकारों के बीच कुछ अलग ऊर्जा
के साथ दिखते हैं। उन्होंने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है।
फिल्म में तात्कालिक प्रभाव के लिए शेट्टी सिस्टर्स
और पियूष मिश्रा की गायकी का भी गैरजरूरी इस्तेमाल किया गया है।ओसामा और अमेरिकी
राष्ट्रपति से संबंधित लतीफों में नयापन नहीं है।
अवधि-110 मिनट
स्टार- ढाई स्टार
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