गीत-संगीत में पिरोए हैं कश्मीरी अहसास - स्वानंद किरकिरे
-अजय ब्रह्मात्मज
पशमीना
घागों से कोई ख्वाब बुने तो उसके अहसास की नजुकी का अंदाजा लगाया जा सकता है। कच्चे
और अनगढ़ मोहब्बत के खयालों की शब्दों में कसीदाकारी में माहिर स्वानंद किरकिरे
‘फितूर’ के गीतों से यह विश्वास
जाहिर होता है कि सुदर और कामेल भवनाओं की खूबसूरत बयानी के लिए घिसे-पिटे लब्जों
की जरूरत नहीं होती। स्वानंद किरकिरे ने अमित त्रिवेदी के साथ मिल कर ‘फितूर’ का गीत-संगीत रख है। उनकी ‘साला खड़ूस’ भी आ रही है। शब्दों के
शिल्पकार स्वानंद किरकिरे से हुई बातचीत के अंश...
स्वानंद
किरकिरे बताते हैं,’ अभिषेक कपूर और अमित त्रिवेदी के
साथ मैाने ‘काय पो छे’ की थी। उस फिल्म के गीत-संगीत को सभी ने पसंद किया था। ‘फितूर’ में एक बार फिर हम तीनों
साथ आए हैं। ’फितूर’ का
मिजाज बड़ा रोमानी है। ऊपर से काश्मीर की पृष्ठभूमि की प्रेमकह कहानी है। उसका
रंग दिखाई देगा। उसमें एक रुहानी और सूफियाना आलम है। ‘फितूर’ इंटेंस लव स्टोरी है,इसलिए
बोलों में गहराई रखी गई है। गानों के रंग में भी फिल्म की थीम का असर दिखेगा।
मैंने शब्दों को बुनते समय कश्मीरी अहसास के लिए वहां के लब्ज डाले हैं।‘
शब्दों की
यह शिल्पकारी तो अधिक मेहनत और जानकारी चाहती होगी। स्वानंद हंसने लगते हैं। फिर
कहते हैं,’शब्दकार की मेहनत दिमागी होती है।
वह कहां दिखाई पड़ती है। जानकाी तो रहती ही है,लेकिन अनुभव काम आता है। शब्दों
के चुनाव के लिए खयालों की उड़ान लगानी होती है। फिल्मी और घिसे-पिटे शब्दों से
बचने के साथ यह भी देखना पड़ता है कि प्रयोग किए गए शब्दों से भाव न उलझे। इस
फिल्म के सिलसिले में मैं काश्मीर भी गया था। वहां का संगीत सुना। ‘पशमीना घागों’ में टेंडर लव की बात है।
टेंडर लव कितना मुलायम और गर्म होता है। पशमीना में वह भाव आ जाता है। एक गीत में ‘अगर फिरदौस बर्रूए-जमीनस्तो, हमीनस्त, हमीनस्त, हमीनस्तो।' का मैंने इस्तेमाल किया
है। काश्मीर की खूबसूरती की इससे बेहतर अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। मैंने एक गीत
में पहले इस मशहूर पंक्ति के भाव और अर्थ को लेकर कुछ शब्दों को जोड़ा था। अभिषेक
को लगा कि उसमें वह प्रभाव पैदा नहीं हो रहा है। वह अनुवाद लग रहा है।फिर यह तय
हुआ कि मूल पंक्ति ही रखते हैं।‘
स्वानंद
मानते हैं कि अभिषेक कपूर,इम्तियाज अली और राजकुमार हिरानी जैसे फिल्मकारों के साथ
काम करने का मजा है कि आप पर बाजार के हिसाब से ही लिखने का दबाव नहीं रहता। वे
कहते हैं,’ उनके साथ
कुछ अलग काम करने के मौके मिलते हैं। इस फिल्म में तो अमित त्रिवेदी का साथ मिला।
अमित बहुत सुलझे और मौलिक संगीत निर्देशक हैं। वे कहानी के अंदर से धुनें निकालते
हैं। साथ ही वे प्रयोगधर्मी हैं। आप उनकी कोई भी फिल्म देख लें। ‘हमीनस्त’ गीत मैंने पहले लिख लिया
था। अमित ने बाद में उसे संगीत से सजाया। यह आजकल कम होता है। इस गीत में काश्मीर
की विडंबना भी सुनाई पड़ेगी। ‘होने दो बतिया’ मेरे दिल के करीब है।‘
स्वानंद
किरकिरे अपनी अगली फिल्म ‘साला खड़ूस’ का भी जिक्र करते हैं। वे कहते हैं,’ इस फिल्म के गाने भी अव्च्छे
हैं। नए संगीतकार हैं संतोष नारायण। उनके साथ मजा आया। मैंने राजकुमार हिरानी से
कहा था कि मुझे कुछ ओरिजिनल लिखने का मौका देना। मैं तमिल गीतों के आधार पर नहीं
लिखूंगा। उन्होंने मेंरी बात मानी। आप सभी फिल्म देख कर बताएं कि कैसे हैं गीत? ‘
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