फिल्‍म समीक्षा : एयरलिफ्ट

मानवीय संवेदना से भरपूर

-अजय ब्रह्मात्‍मज
हिंदी फिल्‍में आम तौर फंतासी प्रेम कहानियां ही दिखाती और सुनातीं हैं। कभी समाज और देश की तरफ मुड़ती हैं तो अत्‍याचार,अन्‍याय और विसंगतियों में उलझ जाती हैं। सच्‍ची घटनाओं पर जोशपूर्ण फिल्‍मों की कमी रही है। राजा कृष्‍ण मेनन की एयरलिफ्ट इस संदर्भ में साहसिक और सार्थक प्रयास है। मनोरंजन प्रेमी दर्शकों को थोड़ी कमियां दिख सकती हैं,पर यह फिल्‍म से अधिक उनकी सोच और समझ की कमी है। फिल्‍में मनोरंजन का माध्‍यम हैं और मनोरंजन के कई प्रकार होते हैं। एयरलिफ्ट जैसी फिल्‍में वास्‍तविक होने के साथ मानवीय संवेदना और भावनाओं की सुंदर अभिव्‍यक्ति हैं।
एयरलिफ्ट 1990 में ईराक-कुवैत युद्ध में फंसे 1,70,000 भारतीयों की असुरक्षा और निकासी की सच्‍ची कहानी है। (संक्षेप में 1990 मेंअमेरिकी कर्ज में डूबे ईराक के सद्दाम हुसैन चाहते थे कि कुवैत तेल उत्‍पादन कम करे। उससे तेल की कीमत बढ़ने पर ईराक ज्‍यादा लाभ कमा सके। ऐसा न होने पर उनकी सेना ने कुवैत पर आक्रमण किया और लूटपाट के साथ जानमान को भारी नुकसान पहुंचाया। कुवैत में काम कर रहे 1,70,000 भारतीय अचानक बेघर और बिन पैसे हो गए। ऐसे समय पर कुवैत में बसे कुछ भारतीयों की मदद और तत्‍कालीन विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल की पहल पर एयर इंडिया ने 59 दिनों में 488 उड़ानों के जरिए सभी भारतीयों की निकासी की। यह अपने आप में एक रिकार्ड है,जिसे गिनीज बुक में भी दर्ज किया गया है।) एयरलिफ्ट के नायक रंजीत कटियाल वास्‍तव में कुवैत में बसे उन अग्रणी भारतीयों के मिश्रित रूप हैं। राजा कृष्‍ण मेनन ने सच्‍ची घटनाओं को काल्‍पनिक रूप देते हुए भी उन्‍हें वास्‍विक तरीके से पेश किया है। चरित्रों के नाम बदले हैं। घटनाएं वैसी ही हैं। दर्शक पहली बार बड़े पर्दे पर इस निकासी की रोमांचक झलक देखेंगे। निर्देशक और उनके सहयोगियों तब के कुवैत को पर्दे पर रचने में सफलता पाई है। उल्‍लेखनीय है कि उन्‍होंने यह सफलता सीमिज बजट में हासिल की है। हालीवुड की ऐसी फिल्‍मों से तुलना न करने लगें,क्‍योंकि उन फिल्‍मों के लिए बजट और अन्‍य संसाधनों की कमी नहीं रहती।
एयरलिफ्ट रंजीत कटियाल,उनकी पत्‍नी अमृता और बच्‍ची के साथ उन सभी की कहानी है,जो ईराक-कुवैत युद्ध में नाहक फंस गए थे। शातिर बिजनेसमैन रंजीत के व्‍यक्तित्‍व और सोच में आया परिवर्त्‍तन पत्‍नी तक को चौंकाता है। वह समझती है कि उसका पति बीवी-बच्‍ची की जान मुसीबत में डाल कर मसीहा बनने की कोशिश कर रहा है। क्रूर,अमानवीय और हिंसक घटनाओं का चश्‍मदीद गवाह होने पर रंजीत का दिल पसीज जाता है। कुवैत से खुद निकलने की कोशिश किनारे रह जाती है। वह देशवासियों की मुसीबत की धारा में बहने लगता है। हम जिसे देशभक्ति कहते ह,वह कई बार अपने देशवासियों की सुरक्षा की चिंता से पैदा होता है। दैनिक जीवन में आप्रवासी भारतीय सहूलियतों और कमाई के आदी हो जाते हैं। कभी ऐसी क्राइसिस आती है तो देश याद आता है। एयरलिफ्ट में निर्देशक ने अप्रत्‍यक्ष तरीके से सारी बातें कहीं हैं। उन्‍होंने देश के राजनयिक संबंध और राजनीतिक आलस्‍य की ओर भी संकेत किया है। कुवैत में अगर रंजीत थे तो देश में कोहली भी था,जिसका दिल भारतीयों के लिए धड़कता था।एयरलिफ्ट देशभक्ति और वीरता से अधिक मानवता की कहानी है,जो मुश्किल स्थितियों में आने पर मनुष्‍य के भाव और व्‍यवहार में दिखता है।
एयरलिफ्ट में अक्षय कुमार ने मिले अवसर के मुताबिक खुद का ढाला और रंजीत कटियाल को जीने की भरसक सफल कोशिश की है। उन्‍हें हम ज्‍यादातर कामेडी और एक्‍शन फिल्‍मों में देखते रहे हैं। एयरलिफ्टमें वे अपनी परिचित दुनिया से निकलते हैं और प्रभावित करते हैं। समर्थ व्‍यक्ति की विवशता आंदोलित करती है। फिल्‍म के कुछ दृश्‍यों में उनके यादगार एक्‍सप्रेशन हैं। बीवी अमृता की भूमिका में निम्रत कौर के लिए सीमित अवसर थे। उन्‍होंने मिले हुए दृश्‍यों में अपनी काबिलियत दिखाई है। पति के विरोध से पति के समर्थन में आने की उनकी यह यात्रा हृदयग्राही है। अस फिल्‍म में इनामुलहक ने ईराकी सेना के कमांडर की भूमिका को जीवंत कर दिया है। भाषा और बॉडी लैंग्‍वेज को चरित्र के मुताबिक पूरी फिल्‍म में कायदे से निभा ले जाने में कामयाब हुए हैं। छोटी भूमिकाओं में आए किरदार भी याद रह जाते हैं।
एयरलिफ्ट की खूबी है कि यह कहीं से भी देशभक्ति के दायरे में दौड़ने की कोशिश नहीं करती। हां,जरूरत के अनुसार देश,राष्‍ट्रीय ध्‍वज,भारत सरकार सभी का उल्‍लेख होता है। एक खास दृश्‍य में झंडा देख कर हमें उस पर गुमान और भरोसा भी होता है। यह फिल्‍म हमें अपने देश की एक बड़ी घटना से परिचित कराती है।
अवधि-124 मिनट
स्‍टार-चार स्‍टार

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को