क्लिंटन सेरेजो से बातचीत



-अजय ब्रह्मात्‍मज
    क्लिंटन सेरेजो से हिंदी फिल्‍मों के दर्शक भले ही परिचित नहीं हों,लेकिन हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में बतौर म्‍यूजिक अरेंजर और प्रड्यूसर उनका बड़ा नाम और काम है। एआर रहमान और विशाल भारद्वाज उनका ही सहयोग लेते हैं। क्लिंटन सेरेजो कोक स्‍टूडियो से संगीतप्रंमियों के बीच पहचाने गए। उनका गीत मदारी बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। पहली बार उन्‍होंने जुगनी फिल्‍म का पूरा संगीत दिया है। शेफाली भूषण की इस फिल्‍म के गीत-संगीत में पंजाबी लोकगीतों और धुनों का असर है। मुंबई के बांद्रा में पल-बढ़े क्लिंटन के सांगीतिक प्रयास को सराहना मिल रही है।

-इस फिल्‍म का आधार थीम क्‍या है ?
0 फिल्‍म की डायरेक्‍टर शेफाली भूषण ने स्‍पष्‍ट कहा था कि फिलम की थीम संगीत है। मानवीय संवेदनाओं की कहानी है। इस फिल्‍म की थीम में लोकेशन और बैकग्राउंड का खास महत्‍व है। मुझे पंजाबी संगीत का इस्‍तेमाल करते हुए किरदारों की संवेदना जाहिर करनी थी।
- आप पंजाबी संगीत से कितने परिचित हैं ? आप तो बांद्रा में पले-बढ़े हैं ?
0 जी, यह तो है। मैं यह दावा नहीं करता कि मैं पंजाबी संगीत की पूरी जानकारी रखता हूं। इस फिल्‍म के लिए तैयारी करनी पड़ी। तीन महीने पहले से मैंने पंजाबी संगी सुनने-समझने पर ध्‍यान दिया। रोज शाम में लौट कर मैा नुसरत फतेह अली या गुरदास मान को सुनता था। मास्‍टर सलीम और उनके पिता को भी सुना। कुछ संगीत विशाल भारद्वाज जी ने भी दिया। शेफाली मेरे लिए बड़ी स्रोत थीं। उनके पास लोकसंगीत का खजाना है। खुद के सहज ज्ञान पर मैंने ज्‍यादा भरोसा किया। रहमान साहब और विशाल जी के साथ किए काम का अनुभव तो था ही। मैंने इसे चुनौती के तौर पर लिया।

-आप ने अलग किस्‍म के संगीतकारों के साथ काम किया है। क्‍या उनके प्रभाव है ?
0 मेरी बीवी कहती हैं कि मैं स्‍पंज की तरह हूं। मेरी बीवी सिंगर हैं। उन्‍होंने अनेक जिंगल्‍स गाए हैं। तब हमारा प्रेम चल रहा था। मैं उन्‍हें एक स्‍टूडियो से दूसरे स्‍टूडियो पहुंचाने जाता था ताकि कुछ समय साथ रह सकूं। इस वजह से रंजीत बारोट,लुई बैंक्‍स,एहसान नूरानी,शिव माथुर आदि के साथ रहने और सीखने का मौका मिला। खास कर रंजीत बारोट ने मुझ बहुत सिखाया। तब संगीत के स्‍कूल भ्‍सी नहीं थे। क्रेजी लर्निंग पीरियड रहा मेरे लिए।

-यह फिल्‍म कैसे मिली ?
0 कोक स्‍टूडियो सीजन 2 से चर्चा हुई थी। अचानक मुझे शेफाली भूषण का फोन आया। उन्‍होंने स्क्रिप्‍ट सुनाई और पूछा कि क्‍या आप करना चाहोगे ? मुझे फिल्‍म पसंद आई। खास कर इसका अंत... हिंदी फिल्‍मों की तरह नहीं है वह।

- फिल्‍म के मुख्‍य कलाकार क्‍या करते हैं?
0 वह संगीत की खोज में है। व‍ह लोकसंगीत खंगालती रहती है। किरदार की खोज की तरह मेरी भी खोज चलती रहती है। कहानी  और  किरदार से मैंने जुड़ाव महसूस किया। इस फिल्‍म में संगीत का बड़ा हिस्‍सा है।

-जुगनी का संगीत पहली बार सुनने में ही प्रभावित करने के साथ बांध लेता है। यह अलबम किसी फूल की तरह है,जिसमें अलग आकार-प्रकार के गाने है,लेकिन सब में एक ही खुश्‍बू है।
0 वाह,क्‍या बात कह दी आप ने। यह तो बहुत बड़ी सराहना है। मैं आप की इस सराहना को उद्धृत करूंगा।

-अपने बारे में थोड़ा बताएं?
0 मैं एकेडमिक परिवार से हूं। मेरे परिवार में संगीत नहीं था। सभी के लिए मेरा चुनाव चौंकाने वाला रहा। एमबीए की तैयारी करते समय यही लग रहा था कि मैं कर क्‍या रहा हूं ? संगीत के प्रति मेरा रुझान बढ़ता जा रहा था। संगीत में सफलता मिलती रही तो उनका समर्थन बढ़ता गया। मैंने 1997 में शुरुआत की। 2000 तक मैं कमर्शियल करने लगा था। रजत ढोलकिया को मेरे ऊपर और बाकी युवा संगीतकारों पर बड़ा असर रहा है। उनके जिंगल्‍स सभी गाते रहे हैं,जैसे कि ये दिल मांगे मोर... 2000 के मध्‍य से 2002 के जनवरी के बीच में मैंने उनके साथ 500 से अधिक ऐड किए। दिन-रात वही कर रहा था।

-क्‍या ऐड और जिंगल्‍स करते समय भी ध्‍यान में था कि एक दिन मुझे फिल्‍मों में संगीत देना है ?
0 अचेतन में तो था ही। ऐसा नहीं थ कि हड़बड़ी में कोई भी फिल्‍म ले लूं। मुझे पहले भी फिल्‍मों के ऑफर मिले। शुरू से तय था कि अपनी मर्जी का बेहतरीन काम करने की आजादी मिलने पर ही फिल्‍म करुंगा। कुछ लोग दूसरों के अनुसार भी बेहतर काम कर लेते हैं। मैं नहीं कर सकता। मैंपे कुछ फिल्‍मों एक-दो गाने किए हैं। पूरी फिल्‍म पहली बार कर रहा हूं।

-विशाल भारद्वाज ने पहली बार किसी और के लिए गीत गाए और रहमान साहब ने अपनी आवाज के साथ संगी भी दिया। यह कैसे संभव हुआ ?
0 यह उन दोनों का स्‍नेह और प्‍यार है। मेरे संगीत ही नहीं,जीवन पर भी मेरा प्रभाव रहा है। अपने काम में उनका यकीन अनुकरण करने की चीज है। वे लोकप्रिय और कामयाब होने के साथ विनम्र भी हैं।


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