अलग है मेरा तरीका -रणवीर सिंह
-अजय ब्रह्मात्मज
अभिनेता रणवीर सिंह की अदाकारी में लगातार निखार आ रहा है। संजय लीला भंसाली के संग वे साल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ लेकर आ रहे हैं।
- क्या बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है?
जी हां, बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है, अय्याशी नहीं। वह बार-बार ऐसा कहता रहता है, क्योंकि कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी मुहब्बत के खिलाफ हैं। लिहाजा वह चाहता है कि लोग उनके रिश्ते को समझें व उसका सम्मान करें।
-संजय लीला भंसाली के व इतिहास के बाजीराव में कितना अंतर है? या फिर दोनों को एक जैसा ही रखा गया है?
एक किताब है ‘पेशवा घराण्याचां इतिहास’। उसमें दर्ज कहानी को संजय सर ने खूबसूरती से दर्शाया है। फिल्म उस किताब पर आधारित है। बाजीराव और मस्तानी के बारे में जो व्याख्या वहां की गई है, उसे ही फिक्शन की शक्ल दी गई है। वे यह नहीं कह रहे हैैं कि दोनों के रिश्तों की कशमकश असल में भी वैसी ही रही होगी, जैसा फिल्म में है।
-बाजीराव आपके लिए क्या हैैं?
मैैंने स्कूल में केवल शिवाजी महाराज के इतिहास के बारे में पढ़ा था। पेशवा बाजीराव के बारे में पूर्ण विवरण नहीं दिया गया था। उनके बारे में ज्यादा पढ़ाया नहीं गया था। स्कूल में केवल शिवाजी महाराज पर ही फोकस किया गया था। वह भी पूर्ण जानकारी। अफजल खान और शिवाजी महाराज की कहानी को सबको याद करनी पड़ती थी। परीक्षा में अफजल खान के बारे में पूछा जाना को तय था। मैैंने कभी पेशवा बाजीराव का नाम नहीं सुना था। वैसे तो मैैं हिंदी फिल्मों का कीड़ा हूं। संजय सर का मैैं बचपन से प्रशंसक रहा हूं। उस वक्त सुनने में आया था कि भंसाली सर बाजीराव मस्तानी फिल्म बड़े पैमाने पर बनाना चाह रहे हैैं। तब मैैंने इसके बारे में सुना था। उसके बाद उन्होंने गुंडे के समय मुझे इस फिल्म का प्रस्ताव दिया था। उस वक्त भी मुझे बाजीराव के बारे में ज्यादा नहीं पता था। मैैंने केवल विकिपीडिया पर मिली जानकारी ही पड़ी थी। जब नैरेशन सुना, तब पता चला कि यह सच में एक महान व्यक्ति थे। उसके साथ-साथ वे एक समर्पित पति, एक बेटा, एक पिता, एक योद्धा और एक लीडर थे। उन्होंने अपने जीवन में कई सारे किरदार निभाए। वक्त से पहले उनका देहांत भी हो गया था। उस समय उन्होंने चालीस से अधिक लड़ाई लड़ी थी। उन सभी में उनकी जीत हुई। उन्होंने काफी कुछ पा लिया था। निर्देशन टीम ने बाजीराव के लिए एक रिसर्च मटेरियल तैयार किया था। वह मुझे दिया गया था। मैं उसका अभ्यास करता था। तीन हफ्तों के लिए मैैं एक होटल के कमरे में बंद था। मैैंने उस दौरान ढेर सारी मराठी फिल्में देखीं। एक मराठी कोच आते थे। हम एक साथ काफी घंटे बिताते थे। टे्रनर आते थे। मेरे शरीर को योद्धा की तरह बनाने के लिए टे्रनिंग दी जाती थी। मैैं सुबह से लेकर देर रात तक सिर्फ इस किरदार की तैयारी की। नैरेशन सुनने पर मुझे लगा कि यह अलग किरदार निभाने का अनोखा मौका है। हर स्तर पर नई आवाज, चाल -ढाल का नया रंग। बाजीराव की सारी आदतें, उनकी आवाज पर बारीकी से काम किया। भंसाली सर का काम करने का यही तरीका है। वे बतौर क्रिएटिव होने के नाते एक्टर को अपनी टीम में ले आते हैैं। वे अपने एक्टर के साथ सारी टीम को चुनौती भी देते हैं। वे बड़े निराले किस्म के निर्देशक हैैं। मेरे लिए तो अच्छा काम मिस्टर भंसाली के साथ ही होता है। वे मुझे उडऩे के लिए पंख दे देते हैैं। वे मुझे दिल से काम करने की सलाह देते हैैं।
-पंख के साथ कोई मंजिल भी दिखाते हैैं?
जी हां। देते हैैं। वे रोज चुनौती देते हैैं, लेकिन बोल कर नहीं। उनके रूतबे से ही पता चल जाता है कि वे आज हमसे क्या उम्मीद करते हैैं। वे सीन को पूरा रम कर फिल्माने की कोशिश करेंगे। वे हर बारीकी पर काम कर देते हैैं। एक बार सीन पूरा हो जाए तो मॉनिटर के पीछे चना खाते हुए एक्टिंग देखेंगे। तब एक्टर को अपने एक्टिंग से उन्हें व्यस्त रखना जरूरी है। वे उस समय एक्टर को देखते हैैं। महसूस करते हैैं। वे स्क्रीन पर केवल एक्टर की आंखे देखते हैैं। वे आंख में सच्चाई खोजते हैैं। जिसमें उन तक वह बात जानी चाहिए। साथ ही उनके अंदर सीन को देखकर भावना निकलकर आनी चाहिए। दिल को बात छू जानी चाहिए।
-भंसाली पारदर्शक हैैं या कुछ और?
हां वे पारदर्शक हैैं। अच्छा करने पर एक्टर को दुनिया का किंग बना देंगे। नतीजतन एक्टर अधिक प्रेरित हो जाता है। वहीं काम पसंद न आने पर वे तो भी बोल देंगे। हमें तब पता चल जाता है कि उन्हें काम नहीं भा रहा है यानि कुछ गलती हो रही है। उन्हें एक गिफ्ट मिला है। वे बारीकी से काम करते भी हैैं और करवाते भी हैैंं। उन्होंने एक दिन सर खुजाते हुए मुझे और प्रियंका को कहा, जम नहीं रहा है। आप लोग आपस में विचार करके कुछ तो करो। फिर कई बार ऐसा हुआ है कि वे मॉनिटर से भावुक होकर निकलते हैैं। मैैं सीन करता रहता हूं वे शॉट कट ही नहीं करते थे। मैैं पूछता क्या हुआ। जवाब मिलता कि मैैं भावुकता के कारण कट ही नहीं बोल पाया। भूल गया। वे सीन में घुस जाते हैैं। हमारे साथ सीन में समा जाते हैैं। एक बात है कि वे अलग किस्म के निर्देशक हैैं। ‘गोलियों की रासलीला-राम लीला’ के बाद यह उनकी सबसे बड़ी फिल्म है। मुझे फख्र है कि मैैं इस फिल्म का हिस्सा हूं। उन्होंने मुझे अपना सबसे पसंदीदा किरदार दिया। उसके लिए मेरा चुनाव किया।
-आप ने कहा कि बाजीराव पति भी है पिता भी। योद्धा भी है लीडर भी। फिल्म के अंदर कौन सा रूप ज्यादा है?
यह फिल्म बाजीराव की प्रेम कहानी दर्शाती है। इसके बावजूद फिल्म में हर पहलू दिखेगा। हर रूप देखने को मिलेगा। जैसा कि मैैंने पहले कहा। बहुत ही खूबसूरती से हर ढंग दिखेगा।
-आप बाजीराव से किस स्तर पर जुड़ाव महसूस करते हैैं?
वे निडर थे। उन्हें जो सही लगता था वे वही करते थे। वे किसी की परवाह नहीं करते थे। वे किसी चीज में विश्वास करते हैैं तो उसके लिए आखरी सांस तक लड़ते थे। वे सही का साथ हमेशा देते थे। उनकी जिंदगी का मकसद मराठा साम्राज्य को बढ़ाना था। वे उसके लिए जज्बे के साथ काम करते रहे। मैैं उनकी इसी खूबी से संबंध महसूस करता हूं। मुझे भी एक परिचित कलाकार बनना है। मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा लक्ष्य है। इस वजह से मैैं अपने काम को पूरे जज्बे के साथ करता हूं। मेरा मानना है कि हम जो करना चाहते हैैं उसमें जी जान लगा देनी चाहिए।
-दो बेहतरीन अभिनेत्रियों के साथ काम करके कोई जटिलता महसूस होती है?
नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैैं किसी भी चीज से दबाव महसूस नहीं करता हूं। मुझमें आत्मविश्वास है। मेरे ख्याल से एक्टिंग में कोई सही गलत नहीं होता है। कोई स्पर्धा भी नहीं है। मैैं तो यह चाहता हूं कि इस फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति का काम मिलाकर बाजीराव मस्तानी यादगार फिल्म बनें। मेरा किरदार अलग है। मेरा काम करने का तरीका अलग है। मुझे ऐसा कुछ महसूस नहीं होता। हां कई बार अपने सह कलाकारों के एक्ट से अचरज में पड़ जाता हूं। एक बार शॉट में दीपिका ने एक संवाद ऐसे बोला कि मैैं अपनी लाइन भूल गया। मैैं उनसे उम्मीद नहीं की थी। मैैं तो खो गया। मैैं तो मानता हूं कि दमदार एक्टरों के साथ काम करके मेरा काम भी दमदार हो जाता है। कमजोर एक्टर के साथ काम कमजोर हो जाता है।
- क्या बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है?
जी हां, बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की है, अय्याशी नहीं। वह बार-बार ऐसा कहता रहता है, क्योंकि कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी मुहब्बत के खिलाफ हैं। लिहाजा वह चाहता है कि लोग उनके रिश्ते को समझें व उसका सम्मान करें।
-संजय लीला भंसाली के व इतिहास के बाजीराव में कितना अंतर है? या फिर दोनों को एक जैसा ही रखा गया है?
एक किताब है ‘पेशवा घराण्याचां इतिहास’। उसमें दर्ज कहानी को संजय सर ने खूबसूरती से दर्शाया है। फिल्म उस किताब पर आधारित है। बाजीराव और मस्तानी के बारे में जो व्याख्या वहां की गई है, उसे ही फिक्शन की शक्ल दी गई है। वे यह नहीं कह रहे हैैं कि दोनों के रिश्तों की कशमकश असल में भी वैसी ही रही होगी, जैसा फिल्म में है।
-बाजीराव आपके लिए क्या हैैं?
मैैंने स्कूल में केवल शिवाजी महाराज के इतिहास के बारे में पढ़ा था। पेशवा बाजीराव के बारे में पूर्ण विवरण नहीं दिया गया था। उनके बारे में ज्यादा पढ़ाया नहीं गया था। स्कूल में केवल शिवाजी महाराज पर ही फोकस किया गया था। वह भी पूर्ण जानकारी। अफजल खान और शिवाजी महाराज की कहानी को सबको याद करनी पड़ती थी। परीक्षा में अफजल खान के बारे में पूछा जाना को तय था। मैैंने कभी पेशवा बाजीराव का नाम नहीं सुना था। वैसे तो मैैं हिंदी फिल्मों का कीड़ा हूं। संजय सर का मैैं बचपन से प्रशंसक रहा हूं। उस वक्त सुनने में आया था कि भंसाली सर बाजीराव मस्तानी फिल्म बड़े पैमाने पर बनाना चाह रहे हैैं। तब मैैंने इसके बारे में सुना था। उसके बाद उन्होंने गुंडे के समय मुझे इस फिल्म का प्रस्ताव दिया था। उस वक्त भी मुझे बाजीराव के बारे में ज्यादा नहीं पता था। मैैंने केवल विकिपीडिया पर मिली जानकारी ही पड़ी थी। जब नैरेशन सुना, तब पता चला कि यह सच में एक महान व्यक्ति थे। उसके साथ-साथ वे एक समर्पित पति, एक बेटा, एक पिता, एक योद्धा और एक लीडर थे। उन्होंने अपने जीवन में कई सारे किरदार निभाए। वक्त से पहले उनका देहांत भी हो गया था। उस समय उन्होंने चालीस से अधिक लड़ाई लड़ी थी। उन सभी में उनकी जीत हुई। उन्होंने काफी कुछ पा लिया था। निर्देशन टीम ने बाजीराव के लिए एक रिसर्च मटेरियल तैयार किया था। वह मुझे दिया गया था। मैं उसका अभ्यास करता था। तीन हफ्तों के लिए मैैं एक होटल के कमरे में बंद था। मैैंने उस दौरान ढेर सारी मराठी फिल्में देखीं। एक मराठी कोच आते थे। हम एक साथ काफी घंटे बिताते थे। टे्रनर आते थे। मेरे शरीर को योद्धा की तरह बनाने के लिए टे्रनिंग दी जाती थी। मैैं सुबह से लेकर देर रात तक सिर्फ इस किरदार की तैयारी की। नैरेशन सुनने पर मुझे लगा कि यह अलग किरदार निभाने का अनोखा मौका है। हर स्तर पर नई आवाज, चाल -ढाल का नया रंग। बाजीराव की सारी आदतें, उनकी आवाज पर बारीकी से काम किया। भंसाली सर का काम करने का यही तरीका है। वे बतौर क्रिएटिव होने के नाते एक्टर को अपनी टीम में ले आते हैैं। वे अपने एक्टर के साथ सारी टीम को चुनौती भी देते हैं। वे बड़े निराले किस्म के निर्देशक हैैं। मेरे लिए तो अच्छा काम मिस्टर भंसाली के साथ ही होता है। वे मुझे उडऩे के लिए पंख दे देते हैैं। वे मुझे दिल से काम करने की सलाह देते हैैं।
-पंख के साथ कोई मंजिल भी दिखाते हैैं?
जी हां। देते हैैं। वे रोज चुनौती देते हैैं, लेकिन बोल कर नहीं। उनके रूतबे से ही पता चल जाता है कि वे आज हमसे क्या उम्मीद करते हैैं। वे सीन को पूरा रम कर फिल्माने की कोशिश करेंगे। वे हर बारीकी पर काम कर देते हैैं। एक बार सीन पूरा हो जाए तो मॉनिटर के पीछे चना खाते हुए एक्टिंग देखेंगे। तब एक्टर को अपने एक्टिंग से उन्हें व्यस्त रखना जरूरी है। वे उस समय एक्टर को देखते हैैं। महसूस करते हैैं। वे स्क्रीन पर केवल एक्टर की आंखे देखते हैैं। वे आंख में सच्चाई खोजते हैैं। जिसमें उन तक वह बात जानी चाहिए। साथ ही उनके अंदर सीन को देखकर भावना निकलकर आनी चाहिए। दिल को बात छू जानी चाहिए।
-भंसाली पारदर्शक हैैं या कुछ और?
हां वे पारदर्शक हैैं। अच्छा करने पर एक्टर को दुनिया का किंग बना देंगे। नतीजतन एक्टर अधिक प्रेरित हो जाता है। वहीं काम पसंद न आने पर वे तो भी बोल देंगे। हमें तब पता चल जाता है कि उन्हें काम नहीं भा रहा है यानि कुछ गलती हो रही है। उन्हें एक गिफ्ट मिला है। वे बारीकी से काम करते भी हैैं और करवाते भी हैैंं। उन्होंने एक दिन सर खुजाते हुए मुझे और प्रियंका को कहा, जम नहीं रहा है। आप लोग आपस में विचार करके कुछ तो करो। फिर कई बार ऐसा हुआ है कि वे मॉनिटर से भावुक होकर निकलते हैैं। मैैं सीन करता रहता हूं वे शॉट कट ही नहीं करते थे। मैैं पूछता क्या हुआ। जवाब मिलता कि मैैं भावुकता के कारण कट ही नहीं बोल पाया। भूल गया। वे सीन में घुस जाते हैैं। हमारे साथ सीन में समा जाते हैैं। एक बात है कि वे अलग किस्म के निर्देशक हैैं। ‘गोलियों की रासलीला-राम लीला’ के बाद यह उनकी सबसे बड़ी फिल्म है। मुझे फख्र है कि मैैं इस फिल्म का हिस्सा हूं। उन्होंने मुझे अपना सबसे पसंदीदा किरदार दिया। उसके लिए मेरा चुनाव किया।
-आप ने कहा कि बाजीराव पति भी है पिता भी। योद्धा भी है लीडर भी। फिल्म के अंदर कौन सा रूप ज्यादा है?
यह फिल्म बाजीराव की प्रेम कहानी दर्शाती है। इसके बावजूद फिल्म में हर पहलू दिखेगा। हर रूप देखने को मिलेगा। जैसा कि मैैंने पहले कहा। बहुत ही खूबसूरती से हर ढंग दिखेगा।
-आप बाजीराव से किस स्तर पर जुड़ाव महसूस करते हैैं?
वे निडर थे। उन्हें जो सही लगता था वे वही करते थे। वे किसी की परवाह नहीं करते थे। वे किसी चीज में विश्वास करते हैैं तो उसके लिए आखरी सांस तक लड़ते थे। वे सही का साथ हमेशा देते थे। उनकी जिंदगी का मकसद मराठा साम्राज्य को बढ़ाना था। वे उसके लिए जज्बे के साथ काम करते रहे। मैैं उनकी इसी खूबी से संबंध महसूस करता हूं। मुझे भी एक परिचित कलाकार बनना है। मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा लक्ष्य है। इस वजह से मैैं अपने काम को पूरे जज्बे के साथ करता हूं। मेरा मानना है कि हम जो करना चाहते हैैं उसमें जी जान लगा देनी चाहिए।
-दो बेहतरीन अभिनेत्रियों के साथ काम करके कोई जटिलता महसूस होती है?
नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैैं किसी भी चीज से दबाव महसूस नहीं करता हूं। मुझमें आत्मविश्वास है। मेरे ख्याल से एक्टिंग में कोई सही गलत नहीं होता है। कोई स्पर्धा भी नहीं है। मैैं तो यह चाहता हूं कि इस फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति का काम मिलाकर बाजीराव मस्तानी यादगार फिल्म बनें। मेरा किरदार अलग है। मेरा काम करने का तरीका अलग है। मुझे ऐसा कुछ महसूस नहीं होता। हां कई बार अपने सह कलाकारों के एक्ट से अचरज में पड़ जाता हूं। एक बार शॉट में दीपिका ने एक संवाद ऐसे बोला कि मैैं अपनी लाइन भूल गया। मैैं उनसे उम्मीद नहीं की थी। मैैं तो खो गया। मैैं तो मानता हूं कि दमदार एक्टरों के साथ काम करके मेरा काम भी दमदार हो जाता है। कमजोर एक्टर के साथ काम कमजोर हो जाता है।
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