हर चेहरे पर हो मुस्कान-रोहित शेट्टी
-अजय ब्रह्मात्मज
रोहित शेट्टी को अतिवादी प्रतिक्रियाएं
मिलती हैं। कुछ उनके घोर प्रशंसक हैं तो कुछ कटु आलोचक हैं। इन दोनों से अप्रभावित
रोहित शेट्टी अपनी पसंद की फिल्में डायरेक्ट करते रहते हैं। ‘दिलवाले’ की रिलीज के पहले उन्होंने अपनी शैली और फिल्म के बारे में विस्तार
से बातचीत की।
- आप के प्रशंसक चाहते हैं कि आप अपनी शैली की फिल्में बनाते रहें।
उनके इस आग्रह के बारे में क्या कहेंगे ?
0आफिस के बाहर निकलते ही सार्वजनिक स्थानों
पर मुझे अपनी फिल्मों के दर्शक और प्रशंसक मिलते हैं। ‘खतरों के खिलाड़ी’ के बाद लोग मुझे पहचानने लगे हैं। वे मुझे
यही कहते हैं कि मस्त फिल्में होती हैं आप की। आप वही बनाते रहो। इनमें बच्चे,बुजुर्ग और औरतें होती हैं। उन्हें वही
देखना है। इन तीनों ग्रुप के लोग सोशल मीडिया साइट पर नहीं हैं। मैं उनके लिए ही फिल्में बनाता
हूं। देश में उनकी तादाद बहुत ज्यादा है। अगर मैं उनके चेहरे पर स्माइल ला सकूं तो
इससे बड़ी बात क्या होगी। यही मेरा एजेंडा, मोटिव और एम है। कोशिश रहती है कि मेरी फिल्मों में वल्गैरिटी
न हो।मां-बेटी,बाप-बेटी एक साथ बैठ कर मेरी फिल्में देख
सकें। उनमें कोई झेंपे नहीं। मेरी फिल्में लोग फैमिली के साथ देखते हैं। आप देखेंगे
कि मेरी फिल्मों में सोमवार के बाद फैमिली दर्शकों की भीड़ बढ़ती है। वे ही मेरी फिल्म
को हिट से सुपरहिट बनाते हैं।
-अपने कटु आलोचकों के बारे में क्या कहेंगे ? उनकी राय में आपकी फिल्में घटिया और हल्का
मनोरंजन करती हैं ?
0 घोड़ा रेस में भागता है तो उसकी आंखों पर पट्टी बंधी होती है।
वह अगल-बगल में कुछ भी नहीं देखता। मैं भी वही करता हूं। आसपास की निगेटिविटी को फटकने
नहीं देता। अपनी आलोचना पर पहले गुस्सा आता था। अब मुझे लग गया है कि वे मेरे दर्शक
नहीं हैं। हो सकता है कि वे सही हों,लेकिन मैं भी गलत नहीं हूं। मैं उनकी मर्जी और पसंद की फिल्में
नहीं बना रहा हूं तो वे भड़के रहते हैं। नौ बलॉकबस्टर यों ही या संयोग से नहीं बनतीं।
अब तो आलोचक भी लिखने लगे हैं कि रोहित की फिल्म में गाडि़यां उड़ेंगी और फिल्म हिट
हो जाएगी।
-क्यों हिट होती हैं आप की फिल्में ?
0 मुझे नहीं मालूम। मैं अपनी फिल्म फ्रायडे को थिएटर में छोड़
कर आ जाता हूं। उसके बाद उन्हें दर्शक हिट करते हैं। किसी को कुछ नहीं मालूम।
-आप अपनी आलोचना की परवाह नहीं करते। क्या जानने की इच्छा नहीं
होती कि कौन क्या लिख रहा है ?
0 अखबार और सोशल मीडिया साइट पर 200 लोग लिखते होंगे। उनसे क्या
घबराना ? मैं नए डारेक्टर और एक्टर को देखता हूं
कि वे ट्विटर और फेसबुक के कमेंट और स्टेटस से परेशान रहते हैं। सच कहूं तो वे हिंदुस्तान
नहीं हैं। असल दर्शक तो सीधे सिनेमा देखता है। मैं क्रिटिक की परवाह क्यों करूं। उनमें
से ज्यादातर के आई क्यू और एजेंडा से वाकिफ हूं। मुझे तो लगता है कि वे चिढ़े हुए
लोग हैं। उन्हें दीवाली और खुशियों से नफरत है। हम सभी डरे हुए हैं। गौर करें तो मेरी
फिल्में एक प्रोडक्ट हैं। हम इस प्रोडक्ट पर कथित संवदनशील फिल्ममेकर की तरह या
उससे ज्यादा मेहनत करते हैं। मेरी फिल्मों के एक्शन सीन में बहुत ज्यादा मेहनत
लगती है।
-फिल्मों की रिलीज के पहले की एक्टिविटी के बारे में क्या कहेंगे
?
0 पहले के फिल्मकारों का अच्छा था कि उनकी फिल्में सीधे थ्रिएटर
में जाती थीं। अभी तो इतनी स्कैनिंग होती है। उसे इतने लोग देखते हैं। चर्चा होती
है। पता चलता है कि मेकर का अपने प्रोडक्ट से विश्वास हिल जाता है। मेरा मानना है
कि दर्शकों को डिसाइड करने दो। मुझे जो आता है,वही करता हूं।
-क्या कह सकते हैं कि आप को कामयाबी का फार्मूला मिल गया है ?
0 नहीं,
अभी 'दिलवाले' आ रही है और मैं डरा हुआ हूं। कहा जा रहा है कि दर्शकों की अपेक्षाएं
बढ़ गई हैं।मेरी फिल्म तो तलवार की धार पर ही रहती है।रिलीज के पहले से आलोचना शुरू
हो जाती है। रिव्यू में दो स्टार मिलते हैं। मुझे मालूम है। आप इसे मेरा धैर्य कहें
या कुछ और ... सब कुछ सुनते-समझते मैं फ्रायडे को दर्शकों के बीच पहुंचूंगा। मुझे दुख
इस बात का होता है कि कोई हमारी मेहनत की सराहना नहीं करता। एक घर में फिल्म बनाना
सबसे आसान है। जो काम हम करते है,वह
बहुत डिफिकल्ट है। मैं इतना ही कहूंगा कि मेरी फिल्में देखने के लिए उस माईडसेट के
साथ आएं। मैं कहता हूं कि मेरे साथ दादर या बांद्रा चलें क्रिटिक। मेरे साथ फिल्म
देखें। और फिर दर्शकों से बोलें कि फिल्म खराब है। मैं खुला चैलेंज करता हूं। है दम
तो आ जाओ। अगर ऐसा दम नहीं है तो मेरी फिल्म
के बारे में मत लिखो। मैं दावा नहीं करता,लेकिन मुझे अपने दर्शकों की पसंद का अनुमान है। उनके इमोशन समझ
में आने लगे हैं। लोग इसे फार्मूला कहते हैं। मेरे लिए यह वर्क कर रहा है।
-आप साजिद फरहाद के साथ लिखते समय जैसा सोचते हैं,क्या वैसा ही सब कुछ पर्दे पर आ जाता है
?
0 कोशिश तो यही रहती है। कई बार सीन बेहतर हो जाता है। मेरे पास
ज्यादातर मंझे हुए एक्टर रहते हैं।कई बार कमजोर होता है तो मैं छोड़ता भी नहीं। सीन
के सुर को पकड़ने की कोशिश करता हूं। फिर मैं टेक और दिनों की गिनती नहीं करता। मैं
समझौते नहीं करता। अभी मुझे अच्छा बजट मिलता है। मेरी फिल्मों का स्केल दर्शकों
के प्यार की वजह से बड़ा होता जा रहा है। एक आम दर्शक्अपनी मासिक कमाई का दस प्रतिशत
मुझे देता है।मैं भी चाहता हूं कि उसके साथ धोखा न हो।
- 'दिलवाले' में पहली बार आप विदेश गए। ऐसा योग कैसे बना ?
0 कहानी ऐसी है।मेरे किरदार विदेश जाते और रहते हैं। मैं पहली बार
विदेश जा रहा था तो मैंने तय किया कि किसी ऐसे देश चलें,जहां पहले कोई हिंदी फिल्म शूट नहीं हुई
हो। बल्गारिया में हर तरह की सुविधा मिली। हमने शूटिंग में किसी प्रकार की चिंटिंग
नहीं की। आइसलैंड में 'रंग दे मुझे गेरुआ' गाने की शूटिंग हुई।
- सालों के साथ से आप की एक टीम बन गई है। कभी ऐसा नहीं लगता कि
उसकी वजह से एकरसता और ठहराव दिखने लगे ?
0
उसका
दूसरा पहलू है कि मैं अभी किसी को जोड़ूं तो वह दहशत में आ जाएगा। वह कुछ बोल ही नहीं पाएगा। वह इस डर में रहेगा
कि कैसे बोलूं,रोहित तो हमेशा सही जाता है। मेरी टीम मुझे बोल देती है। वे साफ बताते
हैं। मेरे आफिस में कोई भी
बेधड़क
सुझाव दे देता है। मैं सभी को फिल्म दिखाता हूं। उनसे सीखता हूं। मैंने अपनी फिल्म सभी को दिखा दी है। सभी
ने अपनी बात कही। उनके हिसाब से
थोड़ा
फेरबदल भी किया।
-कहीं कोई दिक्कत भी हुई ?
0 आइसलैड में शूट किया गाना बहुत डिफिकल्ट
रहा। राजाना हम दो घेटों से ज्याछा ट्रैवल करते थे। ठंड ज्यादा थी। चार लाख की आबादी
का देश है। हम जहां के विजुअल अच्छे लगते थे,हम वहीं ठहर जाते थे। बहुत मंहगी जगह
है। उस गाने को देख कर लग सकता है कि सीजी है। गाने में सब कुछ रियल है। हमलोग तो पूरी
तरह कवर थे। काजोल ने साड़ी नहन रखी थी। ठंड के हिसाब से शाह रुख के भी कपड़े कम थे।
उन्हें हर शॉट के बाद कंबल दिया जाता था। टीम की तकलीफ बढ़ गई थी। एक्शन दृश्यों
के लिए मेरी टीम थी,बल्गारिया की टीम थी और दक्षिण अफ्रीका से मैंने फियर फक्टर की
टीम बुलाई थी। उनके बीच तालमेल बिठाना भी एक काम था। इस बार एक्शन और गानों पर ज्यादा
ध्यान दिया है।
-काजोल और शाह रुख का योग कैसे बना ?
0 फिल्म लिखते समय किसी
का ध्यान नहीं था। ‘गोलमाल 3’ खत्म होने के बाद ही
फिल्म लिख ली थी। दो भाइयों की कहानी और रोमांस रखा था। इसमें ‘चेन्न्ई एक्सप्रेस’ से ज्यादा रोमांस है।
रोमांटिक एक्शन फिल्म है। दोनों ने हमेशा प्रुव किया है। दोनों ने अलग-अलग भी काफी
सफल काम किया है। दोनों साथ आते हैं तो कुछ मैजिकल हो जाता है। राज कपूर और नरगिस वाली
बात नजर आती है। हम भी सीन शूट कर देते थे नार्मली,लेकिन एडिट में पर्दे पर देखते समय
नया चार्म नजर आता था। उन्हें भी नहीं मालूम कि क्या जादू है। कहने के लिए तो केमिस्ट्री,कंफर्ट
जैसी पचास बातें कही जा सकती हैं।
बाक्स एक गाड़ी जो उड़ती है,उसे देख कर
मजा आता है। हर उड़ती गाड़ी में एक स्टंटमैन बैठा होता है। उस गाड़ी को तैयार करने
में तीन दिन लगते हैं। पूरी नापजोख होती है। पेट्रोल है तो आग भी लग सकती है। फायर
ब्रिगेड,एंबुलेंस और डाक्टर तैनात रहते हैं। गाड़ी को अंदर से तैयार किया जाता है।
उसके अंदर केज बनाना पड़ता है। उस केज में ड्रायवर बैठता है। हम लोग यथासंभव इलेक्ट्रानिक
कनेक्शन निकाल देते हैं कि आग न लगे। पेट्रोल कम से कम रखते हैं। ड्रायख्र सिक्युरिटी
गेयर में रहता है। हेल्मेट से लेकर बाकी सारी चीजें रहती हैं। हम गाड़ी के अंदर पाइपिंग
करते हैं। ड्ररइवर को सिकुड़कर अपनी सीट पर जाना पड़ता है। कभी प्लेटफार्म तो कभी कैनन से गाड़ी उड़ायी जाती
है। रनिंग में गाड़ी पलटती है तो उसके लिए अलग ट्रिक करनी पड़ती है। भारत में उसके
दो-तीन एक्सपर्ट हैं। कमाल है कि विदेशी तारीफ करते हैं और अपने लोग मजाक उड़ाते हैं।
हमलोग इस पर एक फिल्म बना रहे हैं। स्टंटमैन के हाथ-पैर कट और जल जाते हें।
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