फिल्म समीक्षा : दिलवाले
कार और किरदार
-अजय ब्रह्मात्मज
रोहित
शेट्टी की ‘दिलवाले’ और आदित्य चोपड़ा की ‘दिवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में दिलवाले के अलावा एक संवाद की समानता है-बड़े-बड़ शहरों
में एसी छोटी-छोटी बाते होती रहती है सैनोरीटा। इसे बोलते हुए शाह रुख खान दर्शकों
को हंसी के साथ वह हसीन सिनेमाई याद भी देते हें,जो शाह रुख खान और काजोल की जोड़ी
के साथ जुड़ी हुई है। ऐसा कहा और लिखा जाता है कि पिछले 20 सालों में ऐसी हॉट
जोड़ी हिंदी फिल्मों में नहीं आई। निश्चित ही इस फिल्म के खयाल में भी यह जोड़ी रही
होगी। ज्यादातर एक्शन और कॉमेडी से लबरेज फिल्में बनाने में माहिर रोहित शेट्टी
ने इसी जोड़ी की उपयोगिता के लिए फिल्म में उनके रोमांटिक सीन और गाने रखे हैं। तकनीकी
प्रभावो से वे शाह रुख और काजोल को जवान भी दिखाते हैं। हमें अच्छा लगता है।
हिंदी स्क्रीन के दो प्रमियों को फिर से प्रेम करते,गाने गाते और नफरत करते देखने
का आनंद अलग होता है।
रोहित
शेट्टी की फिल्मों में कार भी किरदार के तौर पर आती हैं। कारें उछलती हैं,नाचती
हैं,टकराती हैं,उड़ती है,कलाबाजियां खाती हैं,और चींSSSSS की आवाज के साथ रुक जती हैं। रोहित शेट्टी की फिल्मों में
कारों के करतब हैरान करते हैं। यही इनका रोमांच और आनंद है। ‘दिलवाले’ में कारों की संख्या बढ़ी
है और वे मंहगी भी हो गई हैं। उनकी चकम-दमक बढ़ी है। साथ ही उन्हें विदेश की
सड़के मिली हैं। रोहित शेट्टी ने कारों की कीमत का खयाल रखते हुए फिल्म में उनकी
भूमिका बढ़ा दी है। उल्लेखनीय है कि रोहित शेट्टी की फिल्मों में सिर्फ कार ही
नहीं,किरदार भी होते हैं।
इस बार राज/काली,मीरा,वीर,ईशिता,सिद्धू,मनी और ऑस्कर जैसे किरदार हैं।
रोहित की फिल्मों में मुख्य किरदार भी कार्टून किरदारों की तरह आते हैं। इस बार
शाह रुख और काजोल की वजह से थोड़ा बदलाव हुआ है,लेकिन उनकी वजह से फिल्म में शुरू
के हिस्से में अनेक स्पीड ब्रेकर आ जाते हैं। रोहित रोमांस के अनजान रास्ते से
होकर कॉमेडी और एक्शन के परिचित हाईवे पर आते हैं। हाईवे पर आने के पहले यह फिल्म
झटके देती है। इन झटकों के बाद फिल्म सुगम और मनोरंजक स्पीड में आती है। उसके
बाद का सफर आनंददायक और झटकारहित हो जाता है। शाह रुख और काजोल के रोमांस और नफरत
के सीन अच्छे हैं। इस बार दोनों रोमांटिक सीन से ज्यादा अच्छे झगड़े औौर
नाराजगी के सीन में दिखे हैं। फिल्म में 15 सालों के बाद दाढ़ी में आने पर शाह
रुख ज्यादा कूल और आकर्षक लगते हैं। रोहित शेट्टी ने काजोल को भी पूरा महत्व
दिया है। वे उनके किरदार को नया डायमेंशन देकर उन्हें अपनी क्षमता दिखाने का भी
मौका देते हैं। निस्संदेह काजोल अपनी पीढ़ी की समर्थ अभिनेत्री हैं।
इस फिल्म
में वरुण धवन और कृति सैनन की जोड़ी शाह रुख और काजोल की जोड़ी के साए में रह गई
है। उन्हें गानों और यंग रोमांस के लिए रखा गया है। वे इसे पूरा भी करते
हैं,लेकिन कुछ दृश्यों में वे भाव-मनोभाव में कंफ्यूज दिखते हें। दरअसल,उन्हें
ढंग से गढ़ा नहीं गया है या वे दो लोकप्रिय कलाकारों के साथ घबराहट में रहे हैं।
अनेक दृश्यों के बहाव में वरुण तैरने के बजाए बहने लगते हैं। एक दिक्कत रही है
कि वे अपने परफारमेंस पर काबू नहीं रख सके हैं। कृति सैनन छरहरी और खूबसूरत हैं।
वह किसी और अभिनेत्री सरीखी दिखने की कोशिश में अपनी मौलिकता छोड़ देती हैं। उन्हें
अपने सिग्नेचर पर ध्यान देना चाहिए।
रोहित
शेट्टी की फिल्मों में सहयोगी कलाकारों का खास योगदान रहता है। इस बार भी संजय
मिश्रा,बोमन ईरानी,जॉनी लीवर,मुकेश तिवारी,वरुण शर्मा और पंकज त्रिपाठी के रूप में
वे मौजूद हैं। इन सभी को अच्छे वनलाइनर मिले हें। खास कर संजय मिश्रा ब्रांड और
प्रोडक्ट के नामों के तुक मिलाकर संवाद बोलते हैं तो हंसी आती है। संजय मिश्रा
अपने करिअर के उस मुकाम पर हैं,जहां उनकी कैसी भी हरकत दर्शक स्वीकार करने के
मूड में हैं। उनकी स्वीकृति बढ़ गई है। यह मौका है कि वे इसका सदुपयोग करें। इस
बार बोमन ने निराश किया।
रोहित
शेट्टी की फिल्मों में रंगों की छटा देखते ही बनती है। इस बार तो आसमान भी सतरंगी
हो गया है और कई बार इंद्रधनुष उभरा है। उनकी फिल्मों में वस्तुओं और कपड़ों के
रंग चटखदार,सांद्र और आकर्षक होते हैं। रंगों के इस्तेमाल में पूरी सोच रहती है।
रोहित शेट्टी इस पीढ़ी के अलहदा फिल्मकार हैं,जिनकी शैली दर्शकों को पसंद आती है।
दर्शकों की इस पसंद में वे बंधते जा रहे हें। सफलता के हिसाब से यह सही हो सकता
है,लेकिन सृजनात्मकता तो प्रभावित होने के साथ सीमित हो रही है।
अवधि-163 मिनट
स्टार – तीन स्टार
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