छोटे किरदारों ने दी बड़ी पहचान - स्वरा भास्कर
-अजय ब्रह्मात्मज
सूरज
बड़जात्या की ‘प्रेम रतन धन पायो’ में स्वरा भास्कर हैं। उन्होंने इस फिल्म में सलमान खान
की बहन की भूमिका निभाई है। ‘माधोलाल कीप वाकिंग’ से ‘प्रेम रतन धन पायो’ तक का स्वरा का सफर उल्लेखनीय है,क्योंकि इसे उन्होंने
अपनी भूल-चूक और समझदारी से हासिल किया है। इस बीच उन्हें ‘नील बटे सन्नाटा’ के लिए चीन के फूचओ शहर में
आयोजित सिल्क रोड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार
भी मिला। अपनी आगामी फिल्मों की तैयारी के साथ वह इन दिनों दूरदर्शन के लोकप्रिय
कार्यक्रम ‘रंगोली’ की मेजबानी भी कर रही हैं।
-‘रंगोली’ से कैसा एसोशिएसन है ?
0 हमारे घर में केबल बहुत देर से लगा था। बचपन में
दूरदर्शन के कार्यक्रम ‘चित्रहार’,’सुपरहिट मुकाबला’ और ‘रंगोली’ ही मेरा हिंदी फिल्मों का कनेक्शन था। फिल्मी गानों का एक
आकर्षण तो रहा ही है। हाल ही में डीडी ने मुझे इसकी मेजबानी के लिए अप्रोच किया तो
बेहद खुशी हुई। वे इसे नए लुक और कनेक्ट के साथ पेश करना चाहते हैं। मुझे अच्छा
लगा कि उन्होंने मुझे चुना। डीडी का फुटप्रिंट सबसे बड़ा है। खुद के लिए मुझे यह
अच्छा प्लेटफार्म लगा।
- एक पॉपुलर कार्यक्रम की एंकरिंग का अनुभव कैसा रहा ? इसके पहले आप ने रात्य
सभा के लिए ‘संविधान’ की भी एंकरिंग की थी...
0 एंकरिंग देखने में आसान काम लगता है। यह मुश्किल काम
है। ‘संविधान’ का मुझे बहुत पॉजीटिव रेस्पांस मिला था। उससे ही साहस बढ़ा।
उसे काफी लोगों ने देखा है। खास कर पढ़े-लिखे तबके ने तो देखा ही है। माना जाता है
कि पब्लिक ब्राडकास्टर के साथ जुड़ना कूल काम नहीं है। मेरी समझ में डीडी की
पहुंच बड़ी है और फिर कलाकार की जिम्मेदारी भी होती है।
-आप सामाजिक मुद्दों पर सोशल मीडिया और इवेंट में
सक्रिय दिखती हैं...
0 मेरे शुभचिंतक मुझे सलाह देते हें कि मुझे अपना मुंह
बंद रखना चाहिए। मुझ से रहा नहीं जाता। अभी समाज में ‘ना’,’क्यों’ और ‘क्या’ पूछने पर ही कुछ लोग
बौखलाने लगते हें। सामाजिक तौर पर अगर हमें कुछ गलत लगता है तो आवाज उठानी चाहिए।
हमें चुप्पी नहीं साधनी चाहिए। ऐसी चुप्पी
और स्वीकृति से समाज गलत दिशा में जाता है। बहुत आसान ही कुछ नहीं कहना या करना।
शुट पर जाओ,फिल्में बनाओ और पार्टी करो। यह तो बहुत ही सरल है,लेकिन वह खतरनाक भी
है। मेरी राजनीतिक समझदारी कहती है कि अरर्टिस्ट को समाज से जुड़ रहना चाहिए और
उसके आर्ट का भी समाज से रिश्ता होना चाहिए।
-फिलमों में आने के पहले की फिल्म इंडस्ट्री की
धारणा और आने के बाद के व्यवहार में कोई फर्क आया या सब पहले की तरह है?
0 फिल्म इंडस्ट्री में आने
के बाद पता चला कि जिंदगी और समाज की तरह यह भी बहुआयामी और बहुस्तरीय है। इसे एक
नजरिए से नहीं देखा जा सकता। हर तरह की फिल्में बन रही हैं। बिग बजट से लेकर स्मॉल
बजट तक....उनमें मैं काम भी कर रही हूं। हर तरह के काम के लिए जगह है। मुझे मजा आ
रहा है। इंडस्ट्री से मेरा रिश्ता ‘तुम्ही से मोहब्बत,तुम्ही
से लड़ाई’ का है। लाख शिकायत करूं,लेकिन मुझे
रहना तो यहीं हैं। यहीं काम करना है। शूट करते समय मैं सबसे ज्यादा खुश रहती हूं।
मैंने संतुलन खोज लिया है। मुंबई शिफ्ट करना सहज नहीं रहा। मैं दिल्ली में
यूनिवर्सिटी बैकग्राउंड से थी। यहां शुरू में अनेक दिक्कतें हुईं। छह सालों के
बाद अब खुद को मैं मुंबईकर कह सकती हूं। अपने जैसी सोच और समझ के लोग मिल ही जाते हैं। यह मेरी
कर्मभूमि है।
- मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में किसी भी बाहरी
कलाकार को पहचान और नाम बनाने में सात-आठ साल लग ही जाते हैं। अब आप ने वह मुकाम
हासिल कर लिया है।
0 मैं तो समझती थी कि आउटसाइडर होने की वजह से मेरे
साथ ही ऐसा हो रहा है। मुझे ही इतना वक्त लग रहा है। अगर सभी के साथ ऐसा हुआ है
तो.... मैंने यह नहीं देखा कि कितना वक्त बिता और मैंने क्या पाया ? मैं स्वभाव से आलसी हूं। पार्टियों में नहीं जाती।
नेटवर्किंग नहीं करती। अभी तक मैंने ऐसी कोई फिल्म नहीं की है,जिसमें अपना किरदार
समझ में नहीं आया हो। मेरी कुछ फिल्में दर्शकों को पसंद आईं और कुछ रिजेक्ट हो
गईं। सभी फिल्मों ने मुझे तजुर्बा दिया। मैं पारदर्शी व्यक्ति हूं। अगर बेमन से
काम करूंगी तो वह पर्दे पर दिख जाएगा।
-ऐसा कैसे हुआ कि आप के ज्यादातर कदम सही पड़े? राह बनती गई और आप यहां तक पहुंच सकीं ?
0 मुंबई आने के बाद मुझे ऐसा
लगने लगा है कि कुछ ऐसा होता है,जो हमारे चाहे-अनचाहे होता है। मुझे जो फिल्में
नहीं करनी चाहिए थं,वे हां करने के बाद भी नहीं हुईं। दो बार ऐसी फिल्में बंद हो
गईं। एक बार मुझे निकाल दिया गया। कुछ फिल्मों में मैं शूट के दो दिनों पहले आई। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘रांझणा’ के साथ यही हुआ। कुछ लोगों
ने मुझे खोजा और आठ-दस महीनों के बाद फिल्म शुरू की। ‘नील बटे सन्नाटा’ भी मेरे पास आ गई और नहीं
बनते’बनते बन गई। अविनास दास की फिल्म पर
तीन सालों से बात चल रही थी। अभी फायनल हुआ। यहां तक पहुंचने में दूसरों के फैसले
भी काम आए हैं। कुल मिला कर अच्छे लोगों के साथ काम किया। काम के दम पर ही आगे
बढ़ पाई। ऐसा कोई रिश्ता नहीं था,जो मेरे काम आया हो। फिल्म इंडस्ट्री में
हताशा इतनी है कि किस्मत पर भरोसा होने लगता है। न मानूं तो भी मैं फिलॉसाफिकल तो
हो ही गई हूं।
-पहली फिल्म कौन सी थी ?
0 पहली फिल्म ‘नियति’ थी। उसके निर्देशक प्रवेश भारद्वाज थे। प्रवेश मुझे मुंबई
आने के महीने भर के अंदर मिल गए थे। मैंने तीसरे महीने में शूटिंग आरंभ कर दी थी।
वह फिल्म अभी तक रिलीज नहीं हो सकी है।
- आप को परिचित चेहरा बनाने में आनंद राय की भूमिका
मानी जा सकती है क्या ?
0 बिल्कुल है। आनंद राय और
हिमांशु शर्मा को मैं सारा श्रेय दूंगी। मुझे उनकी फिल्मों में उम्मीद से ज्यादा
मिला है। कहां सोचा था कि इन फिल्मों में मेरे छोटे किरदार को भी सराहा जाएगा। वह
यादगार हो जाएगा। उन छोटे किरदारों ने ही मुझे पहचान दी। उन्होंने इस मंशा से
मुझे फिल्में नहीं दीं कि आओ स्वरा का भला कर दें। उस टीम के साथ सघन जुड़ाव हो
गया है। आनंद सर तो परि वार की तरह हो गए हैं। उन्हें मैं कभी भी फोन कर सकती
हूं। वे मेरे संशय दूर करते हैं और सही सलाह देते हैं। उन्होंने सलाह दी थी कि ‘प्रेम रतन धन पायो’ कर लो।
- ‘प्रेम रतन धन पायो’ के अनुभव कैसे रहे और इस फिल्म को अपने करिअर में कितना
मत्विपूर्ण मानती हैं ?
0 बहुत अच्छे अनुभव रहे। मैं
यह बताना चाहूंगी कि मैं सिनिकल हो गई हूं। सूरज जी के साथ काम करने के बाद खुद पर
शर्मिंदगी हुई। वे सीधे,ईमानदार और सरल हैं। उन्होंने मुझे निथार दिया। उनसे बहुत
कुछ सीखा। सलमान खान के बारे में इतना कुछ सुन रखा था। एक डर था। लेकिन वे अच्छी
तरह पेश आए। उन्होंने कुछ सलाहें भी दीं। सोनम मेरी बहुत अच्छी दोस्त है। इस
फिल्म के बाद हमारी बांडिंग और मजबूत हो गई है। दीपक तो पुराने दोस्त हैं। अनुपम
खेर के साथ मजेदार वक्त बीता। उनसे अनेक किस्से सुने।
Comments