दरअसल : कब काउंट होंगे हिंदी प्रदेश
-अजय
ब्रह्मात्मज
सभी जानते हैं कि हिंदी फिल्मों का बिजनेस
मुख्य रूप से मुंबई और कुछ हद तक दिल्ली के कारोबार से आंका जाता है। अगर किसी
फिल्म ने इन टेरिटरी में अच्छा कलेक्शन किया है तो कहा और माना जाता है कि फिल्म
सफल है। फिल्मों की सफलता का यह मापदंड बन गया है। मुंबई और दिल्ली के मल्टीप्लेक्स
में मौजूद दर्शकों की भीड़ काउंट होती है। यह भीड़ महानगरों के सिनेमाघरों में
ऊंची दरों की टिकट लेकर कुल कलेक्शन का बहुगुणित करती है। फिल्में 100 करोड़ और
उससे ज्यादा के कारोबार से रिकार्ड बनाती हैं।
दो हफ्ते पहले रिलीज हुई सरज बड़जात्या की
फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ की बात करें तो इस फिल्म ने पहले दिन अपेक्षा के मुताबिक
दर्शकों को आकर्षित किया। फिल्म का कलेक्शन 40.35 करोड़ रहा। अगले दिन स्पष्ट
हो गया कि शहरी मानसिकता के दर्शकों का यह फिल्म पसंद नहीं आई। अगले दिन फिल्म
का कलेक्शन गिर कर 31.05 करोड़ हो गया। लगभग 25 प्रतिशत की जमा गिरावट से स्पष्ट है कि मल्टीप्लेक्स के दर्शक घटे। इस फिल्म
का रविवार का कलेक्शन 28.30 करोड़ हो गया था। और सोमवार से तो इसमें आधी गिरावट आ
गई। फिल्म का पहले दिन का कलेक्शन ही इतना विशाल था कि गिरते’गिरते भी इस फिल्म ने दूसरी फिल्मों की तुलना में अच्छा
बिजनेस कर लिया। हां,’प्रेम रतन धन पायो’ ने पहले दिन जो संकेत दिया था और बाद में वह फलीभूत होता तो
यह फिल्म बड़ा रिकार्ड कायम करती।
बहरहाल, आंकड़ों और बिजनेस के इस खेल में एक
रोचक तथ्य उभर कर सामने आया। इस फिल्म के बिजनेस के अखिल भारतीय आंकड़ों का अध्ययन
मजेदार है। राजस्थान,उत्तर प्रदेश,बिहार और मध्यप्रदेश में यह फिल्म
सिनेमाघरों में टिकी हुई है। मेट्रो और मल्टीप्लेक्स में जैसी भारी गिरावट छोटे
शहरो (पटना,लखनऊ और जयपुर छोटे शहर माने जाते हैं) और सिंगल स्क्रीन में नहीं है।
वहां यह फिल्म अभी तक दर्शकों को आकर्षित कर रही है। वे परिवारों के साथ इस फिल्म
का आनंद ले रहे हें। मुंबई के ट्रेड पंडित अपने विश्लेषणों में इसका उल्लेख नहीं
करते। वे नहीं बतााते कि हिंदी प्रदेशों के दर्शकों को यह फिल्म पसंद आई है। सूरज
बड़जात्या की ‘विवाह’ के
साथ भी ऐसा ही हुआ था। हिंदी प्रदेशों में चली इस फिलम को ट्रेड पंडितों ने मुंबई
के कलेक्शन के आधार पर फ्लॉप घोषित कर दिया था।
कलेक्शन
और 100 करोड़ी बिजनेस अपनी जगह ठीक हक्,लेकिन हमें अब यह भी धन में रखना चाहिए कि
किसी फिलम को कितने दर्शक देख रहे हैं। मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन के टिकट
दर में भारी अंतर रहता है। 200 सीटों के मल्टीप्लेक्स के एक शो का कलेक्शन
सिंगल स्क्रीन के 1000 सीटों के कलेकशन की तुलना में ज्यादा हो सकता है,लेकिन
फिल्म ट्रेड में इन 800 दर्शकों के अंतर को रेखांकित नहीं किया जा रहा है। अब
हमें आंकड़ों के साथ यह भी बताना चाहिए कि किसी फिल्म को कितने दर्शकों ने देखा।
अंग्रेजी में इसे ‘फुटफॉल’ कहा जाता है यानी कितने पांव सिनेमाघरों में पहुंचे। ‘प्रेम रतन ध पायो’ के दर्शकों की संख्या ज्यादा
हो रही है लेकिन उसी अनुपात में उसे बड़ी हिट नहीं माना जा रहा है,क्योंकि छोटे
शहरों और सिंगल स्क्रीन से आया कलेक्शन मोटी रकम में तब्दील नहीं हो रहा है।
‘प्रेम रतन ध पायो’ इस मायने में भी अनोखी फिल्म है कि इसने शुद्ध देशी दर्शकों
के साथ विदेशी दर्शकों को भी आकर्षित किया है। ठीक है कि यह फिल्म भारत के बड़
शहरों में अधिक पसंद नहीं की गई,लेकिन इस तथ्य से इंकार करना सही नहीं होगा कि
इसने हिंदी प्रदेशों के दर्शकों को मुग्ध किया है। पारिवारिक मूल्यों और भावनात्मक
लगाव के इस फिल्म के दर्शक हैं। बस,हमारे शहरी ट्रेड पंडित,समीक्षक और विश्लेषक
उन पर गौर हीं कर रहे हैं। आखिर हिंदी प्रदेशों के दर्शक कब काउंट होंगे ?
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