दरअसल : रौनक लौटी सिनेमाघरों में
दीवाली के एक दिन बाद रिलीज हुई सूरज बड़जात्या की ‘प्रेम रतन धन पायो’ ने दर्शकों को सिनेमाघरों
में खींचा है। लंबे समय से किसी भी फिल्म के प्रति दर्शकों का ऐसा आकर्षण नहीं
दिखा था। फिल्मों ने 100-200 करोड़ के बिजनेस भी किए, लेकिन सिनेमाघरों पर
दर्शकों की ऐसी भीड़ नहीं उमड़ी। पिछले दिनों दैनिक जागरण से खास बातचीत में सूरज
बड़जात्या ने अपनी फिल्मों के दर्शकों के बारे में स्पष्ट संकेत दिए थे कि
उनकी फिल्में देखने आठ से अस्सी साल की उम्र तक के दर्शक आते हैं। हिंदी में बन
रहीं ज्यादतर फिल्मों के दर्शक सीमित होते हैं। अपराध या किसी खास जॉनर की फिल्मों
में दर्शकों की संख्या सीमित रहती है, जबकि मेरी फैमिली फिल्मों के दर्शक उम्र
और श्रेणी से परे होते हैं। सूरज बड़जात्या की बातों की सच्चाई सिनेमाघरों में
दिख रही है। दीवाली के अगले दिन छुटृटी के कारण इस फिल्म को पर्याप्त दर्शक मिले
और कलेक्शन का आंकड़ा 40 करोड़ के पार हो गया।
हिंदी फिल्मों
के निर्माता- निर्देशक इन दिनों वीकेंड कलेक्शन पर ज्यादा जोर देते हैं। वे
आक्रामक प्रचार और प्रमोशन से दर्शकों को अलर्ट करते हैं। जितना बड़ा स्टार, उतना
आक्रामक प्रचार। नतीजा यह होता है कि दर्शक शुक्रवार को टूट पड़ते हैं। फिल्म
प्रचार के मुताबिक संतोषजनक या अच्छी निकली तो शनिवार और रविवार को दर्शक बढ़ते
हैं। देखा गया है कि अगर किसी फिल्म ने शुक्रवार को 10 करोड़ का कलेक्शन किया तो
हिट होने की स्थिति में रविवार का कलेक्शन 15 से 20 करोड़ तक हो जाता है। तात्पर्य
यह कि तीन दिनों में ही फिल्मों का बिजनेस डेढ़ से दोगुना बढ़ जाता है। फिल्में
दर्शकों को पसंद न आईं तो तमाम प्रचार और बड़े स्टार के बावजूद फिल्मों का
बिजनेस अगले ही दिन आधा और कई बार तो उससे भी कम हो जाता है। फिल्म ट्रेड को
समझने वालों की भविष्यवाणी में प्रेम रतन धन पायो चार दिनों में निश्चित ही 100
करोड़ का जादुई आंकड़ा पार कर लेगी। कुछ ट्रेड पंडितों ने तो वीकएंड में 125-150
करोड़ तक की भविष्यवाणी की है। वैसे रिलीज के दिन कुछ आलोचकों ने ‘प्रेम रतन धन गंवायों’ भी लिखा।
भारतीय
परिदृश्य में दर्शकों की चेतना और संवेदना की समझ जरूरी है। हिंदी में ज्यादातर
सुपरहिट फिल्में फैमिली ओरिएंटेड रही हैं। महानगरों के विकास और मल्टीप्लेक्स
के आने के बाद यह देखा गया कि पूरा परिवार अब एकसाथ फिल्में देखने नहीं जाता।
पहले दिन और वीकएंड में सिनेमा के शौकीन ही फिल्में देखते हैं। किसी भी फिल्म को
हिट कराने में सिनेमा के इन शौकीनों का बड़ा हाथ नहीं होता। फिल्में तभी बड़ी हिट
होती हैं, जब उन्हें फैमिली दर्शक मिलते हैं। और वे फैमिली दर्शक महानगरों से
अधिक छोटे शहरों और कस्बों में रहते हैं। हिंदी फिल्मों का यह ध्रुव सत्य है कि
अखिल भारतीय स्तर पर दर्शकों की पसंद बनने के बाद भी कोई फिल्म ब्लॉकबस्टर हो
पाती है। कुछ दशकों पहले तक निर्देशक इस बात का ख्याल रखते थे कि देश के हर इलाके
के दर्शक उनकी फिल्में पसंद करें। भाव और भाषा के स्तर पर निश्चित सरलता बढ़ती
जाती थी। 21वीं सदी के ज्यादातर निर्देशक इन चिंताओं में नहीं रहते। वे ज्यादातर
खुद की पसंद के लिए फिल्में बनाते हैं। वे इस बात की वकालत भी करते हैं कि हमें
अपनी रूचि का ख्याल रखना चाहिए। सच्चाई यही है कि सिनेमा समष्टिमूलक विधा है।
अगर निर्देशक व्यापक दर्शकों तक पहुंचना चाहता है तो उसे अपनी फिल्मों में
सर्वमान्य रू़चि का निर्वाह करना होगा। सूरज बड़जात्या की फिल्म रूढि़वादी और
पारंपरिक होती हैं। इसी कारण वे कहीं न कहीं देश के पारंपरिक और रूढिबद्ध दर्शकों
को पसंद आती हैं। ‘प्रेम रतन धन पायो’ के साथ भी ऐसा ही हुआ है।
भारत एकसाथ
अनेक सामाजिक और पारिवारिक संरचनाओं में जी रहा है। उत्तरआधुनिक पूंजीवाद के साथ
दशकों पुराना सामंतवाद भी मौजूद है। महानगरों की सामाजिक, आर्थिक जरूरतों की वजह
से न्यूक्लियर फैमिली का जोर बढ़ा है। वहीं अभी तक संयुक्त परिवार भी दिखाई
पड़ते हैं। पारिवारिक संबंधों में रिश्तों की जटिलताओं के बावजूद भावनाओं पर अब
भी जोर रहता है। हॉलीवुड से प्रभावित हिंदी फिल्मों में भी रिश्तों में इन
भावनाओं पर ध्यान दिया जाता है। सभी मानते हैं कि हिंदी फिल्मों के दर्शक थोड़े
इमोशनल और मेलोड्रैमेटिक होते हैं। उन्हें ऐसी फिल्में पसंद भी आती हैं। सोच और
व्यवहार में आधुनिक होने के साथ सूरज बड़जात्या राजश्री के मूल्यों और
सिद्धांतों को लेकर चलते हैं। उनके लिए आज भी परिवार और पारिवारिक मूल्य महत्वपूर्ण
हैं। भले ही उन्हें दिखाने के लिए वे सामाजिक और पारिवारिक संरचनाओं और रिश्तों
का अतिक्रमण और उल्लंघन करते दिखे। ‘प्रेम रतन धन पायो’ में प्रेम, विजय सिंह, मैथिली और चंद्रिका विरोधाभासी चरित्र
हैं। फिर भी वे पारिवारिक मूल्यों व मान्यताओं के वृत में दिखते हैं। ‘प्रेम रतन धन पायो’ में सूरज बड़जात्या को इस
जटिलता को भी सरलता से दिखाया है। उनकी सरलता ही ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को
आकर्षित कर रही है। सिनेमाघरों में रौनक लौट रही है।
Comments