हर घर में है एक कहानी : सूरज बडज़ात्या
रोमांटिक फिल्मों को रीडिफाइन करने वालों में सूरज बडज़ात्या की भी अहम भूमिका है। प्रेम नामक कल्ट किरदार उन्हीं का दिया हुआ है। दीपावली पर उनकी 'प्रेम रतन धन पायोÓ रिलीज हुई। उन्होंने फिल्म के बनने, सलमान संग समीकरण और अपने बारे में बहुत कुछ साझा किया।
-झंकार टीम
-प्रेम रतन धन पायो टायटिल रखने का ख्याल कहां से आया?
मेडिटेशन के दौरान यह नाम मेरे दिमाग में आया। पहले मेरे मन में राम रतन नाम आया। उसके बाद प्रेम रतन। मैैंने सोचा बाद वाला नाम इस फिल्म के लिए सही बैठेगा। उसकी वजह थी फिल्म के केंद्र में अनकंडीशनल लव का होना। फिल्म में उसे बखूबी बयान किया गया है। मैैं सिर्फ कमर्शियल प्वॉइंट से कोई टिपिकल नाम नहीं देना चाहता था। सलमान को जब मैैंने नाम सुनाया तो वे चुप हो गए। दो मिनट के लिए एकदम शांत। फिर उन्होंने कहा कि कोई और निर्देशक होता तो बाहर निकाल देता। बाद में हमने इसे बरकरार रखा। फिल्म के टाइटिल सौंग में भी हमने सारे भाव स्पष्ट किए है। इरशाद कामिल ने उसे खूब निभाया है। फिल्म के गीत उन्होंने ही लिखे हैैं। मुझे खुशी है कि लोग गाने का मतलब न समझने के बावजूद उसे पसंद करते रहे। खैर, मेरे हिसाब से यही एकमात्र टाइटल था, जिससे फिल्म का मिजाज उभरकर सामने आया। हमने फिल्म के कुछ हिस्से की शूटिंग चितौड़ में की है। मेरा मन था कि मीरा के मंदिर को इस फिल्म में दिखाया जाए। उन्होंने कहा था कि प्रेम धन है। लुटाने पर वो बढ़ता है। हालांकि हम मीरा मंदिर में शूटिंग नहीं कर पाए। इस फिल्म में मैंने प्रयोग भी किए। पहली बार खल चरित्रों को रखा।
-हिंदी सिनेमा का माहौल बदला है। आप अपने ढांचे में ही कब तक काम करते रहेंगे? आप की फिल्मों में परिवार के प्रति संदेश होता है। यह आज के दौर से कैसे मेल खाता है?
मुझे इसी तरह की फिल्में बनानी आती है। मेरा मानना है कि हर फिल्म के दर्शक हैं। हर फिल्म चलती है। पैसा खर्च करने से फिल्म पसंद आएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। मापदंड के हिसाब से काम किया जाता है। आज के समय में हर किस्म की फिल्म चल रही है। ऐसा दौर फिल्म इंडस्ट्री में कभी नहीं था। उसमें फिल्म मेकर जो बनाना चाहता है वहीं उसका मापदंड है। मेरे टाइप की फिल्मों के लिए हर वर्ग के दर्शक हैैं। बाकी के संग ऐसा नहीं है। मिसाल के तौर पर आतंकवाद। उसके लिए दर्शक सीमित होते हैैं। जहां पारिवारिक फिल्मों की बात आती है, उसके लिए सभी तैयार रहते हैैं। हां यह है कि मैैंने ज्वाइंट फैमली पर फिल्में बनाईं। अब मामला थोड़ा अलग है। अब न्यूक्लियर फैमली हो गई है। इसके बावजूद परिवार में माता -पिता को अहम माना जाता है। मेरे दादा जी बताते थे कि हमारे समय में हम अपने बच्चों को प्यार नहीं कर सकते थे। हमारे पिता के सामने। दादा का ही हक रहता था अपने पोते को प्यार करने का। उसे जाहिर करने का। आज ऐसा नहीं है। मेरा बेटा मुझसे बेझिझक सारी बाते करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि प्यार और सम्मान कम हो गया है। मैैं आगे भी चलकर इसी तरह की फिल्में बनाऊंगा। अभी भी कई कहानियां बकाया हैैं, जिन पर फिल्म बनानी है। हर घर में कहानी है।
-राजश्री बैनर को सफल बनाने का इरादा बचपन से ही था?
हां जी। यह सब मेरे दादा जी का किया हुआ है। मैैंने उनके साथ बैठ कई कहानियां सुनी हैं। वे उन कहानियों के वितरण का काम लेते थे, लेकिन निर्देशन नहीं करते। हम उनसे सवाल करते थे। हम कहते कि आप को जब पता है कि यह फिल्में कमाई करेंगी। तो आप इनका निर्माण क्यों नहीं करते हैैं। वे जवाब देते कि मैैं उन्हीं फिल्मों का निर्माण करूंगा, जिनमें सरस्वती का वास हो। मेरे मन में हमेशा के लिए यह बात बैठ गई। मैैंने निर्माता के तौर पर अलग तरह की फिल्में बनाने की कोशिश की है। वे फिल्में सफल नहीं हुई। मैैं प्रेम की दीवानी हूं उनमें से एक हैै। हमने एक्शन, सस्पेंस फिल्में भी बनाई। वे भी नहीं चल पाई। वही फिल्में हमारे बैनर की चलीं, जिनमें पारिवारिक मूल्य थे। जिनमें सरस्वती का वास हो। शायद हमें इसी तरह की फिल्में बनानी आती हो। यह मेरी धरोहर है। इसे बनाए रखना आज के समय में मेरे लिए युद्ध के समान है।
-आज छोटे लेंथ की फिल्में बनती हैं। इसका क्लाइमेक्स क्यों बड़ा किया?
मेरी हर फिल्म की लेंथ बड़ी रहती है। इस फिल्म का कैनवास बड़ा था। आधुनिकता का मिश्रण था। फिल्म में प्रिंस के किरदार में सलमान आज के जमाने के थे, जिसे इटालियन, जर्मन समेत कई देशों की भाषाएं आती थीं। यह आज की कहानी है। पहले और अब को दौर के माहौल को दर्शाया गया है। आज के राजा का बेस है। मेरे पहचान की रॉयल फैमली उनका बेटा डॉक्टर बनना चाहता हैै। वे सोचते हैैं कि हमारे राजमहल के बाहर डॉक्टर का नेम प्लेट अच्छा लगेगा! उनकी अपनी कशमकश है। लिहाजा हमने क्लाइमेक्स को बड़ा बनाया। सारी चीजें शामिल करनी पड़ीं।
-फिल्म का संगीत भी आज के ढर्रे पर नहीं था?
जी हां। मैैंने हिमेश रेशमिया से संगीत के विषय पर बात की थी। पहली बार हिमेश और इरशाद कामिल की जुगलबंदी हुई। दोनों अलग दुनिया के हैैं। इरशाद और हिमेश की अपनी खूबी है। हिमेश ने मुझसे पूछा कि कैसा संगीत देना है। जो चलता है वह या स्क्रिप्ट के हिसाब से। मैैंने कहा कि जो चलता है वह जाने देते हैैं। जो चाहिए वह काम करते हैैं। हमने आधे घंटे में गाने बनाए, क्योंकि हम आजाद हो गए। हमें हुक लाइन के हिसाब से काम नहीं करना था। फिल्म के पूरे होने तक गाने को लेकर दुविधा थी। इस तरह का संगीत चलेगा या नहीं। सब यहीं सोच रहे थे। बता दूं कि टाइटल गाने में 90 का ठेका इस्तेमाल किया गया है। आज कल ऐसा संगीत होता ही नहीं। लोगों को फिल्म के गीत पसंद आ रहे हैैं। हमें फिल्म बेचनी थी। संगीत नहीं।
- आप के नायक का नाम प्रेम ही क्यों रहता है? बदलता क्यों नहीं?
मेरे हिसाब से प्रेम जैसा किरदार हर किसी को बनना चाहिए। मैैं मानता हूं कि हर एक में वह प्रेम है। कई बार छल में प्रेम फंस जाता है। एक ऐसा इंसान जो महिलाओं की इज्जत करे। जो लडक़ी की सादगी से प्यार करे। जो परिवार की अहमियत को समझता हो। जो अपने से कम स्तर इंसान को बराबरी का दर्जा है। कहीं ना कहीं मैं ऐसा ही हूं। कहीं जाकर मैैंने प्रेम को अपनी फिल्मों के साथ ही रखा। कहीं जाने नहीं दिया।
- कलाकारों का चयन किस आधार पर किया?
अभिनेत्री के लिए कई नाम मेरे दिमाग में थे। राझंणा देखने के बाद मेरा सारा फोकस सोनम पर ही था। मुझे लगा यही वह लडक़ी है। जो देसीपन सोनम में थी वह किसी और में नहीं थी। हां, सलमान को मनाने में चार महीने लग गए। उनका कहना था कि मैैंने सोनम को अपने सामने बड़े होते देखा है। वह भी, तब जब वह बहुत मोटी थी। फिल्म में उसके संग रोमांस कैसे करूंगा? मैैंने समझाया आप की उम्र की अभिनेत्री कहां मिलेगी? वे मान गए। उनकी जोड़ी पसंद की गई। मैैं आज के जमाने की राजकुमारी चाहता था। जो दिल्ली की हो। खुद के पैरों पर खड़ी है। खुद से लड़ रही है। मैैंने एक फ्रेश जोड़ी कास्ट की । रहा सवाल सलमान की बहन के किरदार का तो उसके लिए कोई तैयार नहीं थी। सब कहने लगीं कि उनकी बहन का रोल प्ले कर लिया तो विज्ञापन मिलने बंद हो जाएंगे। बहरहाल, स्वरा भास्कर मान गई। उनके लिए इमेज से बढक़र किरदार है।
-इस फिल्म से जुड़ी खास याद? सलमान के साथ आपका रिश्ता एक्टर-डायरेक्टर का रहा या स्टार-डायरेक्टर जैसा?
रिश्ते में कोई तब्दीली नहीं हुई है। मैैं गड़बड़ करता तो उन्हें पता चल जाता है। फिल्म को लेकर हमारा विजन एक जैसा ही था। वह सबसे बड़ी बात थी। हम एनडी स्टूडियो में सूट करते थे। मैैं सुबह जाकर सलमान भाई को उठाता था। नाश्ते के साथ मैैं उन्हें सीन समझाता था। अपने सीन के साथ उन्हें सबके सीन में दिलचस्पी थी। वे सब के काम पर गौर करते थे। उनके किरदार को छोडक़र बकाया के एक्टरों के किरदार पर बात होती थी। एक्टर और निर्देशक के लिए खुल कर काम करना जरूरी है। वन पेज वन विजन की दर्ज पर काम करना चाहिए। हमने वैसे ही किया। एक्टर और निर्देशक की राय मेल ना खाने पर फिल्म नहीं चलती है।
-शीशमहल की सोच क्या थी?
परिवार के साथ बचपन बिताने का जो मूल्य है, उसे शीशमहल से प्रस्तुत किया। हर आइने ने बचपन को दोहराया। बचपन की समेटी हुई यादें शीशमहल में दिखीं। आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई को इसका श्रेय जाएगा। यूनिक सेट बना। कारीगरों ने बारीकी से काम किया है। सबसे अच्छी बात यह रही कि कैमरे से शूटिंग करने पर आइना चमका नहीं।
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