परिपक्व हुआ प्रेम - सलमान खान
-अजय ब्रह्मात्मज
सूरज बड़जात्या और सलमान खान का एक साथ आना हिंदी
फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी खबर है। सलमान खान को सुरज बड़जात्या की फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से ही ख्याति मिली थी।
उनकी फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में भी सलमान खान थे,जो
पांच सालों तक सिनेमाघरों में टिकी रही। फिर ‘हम साथ साथ हैं’ में दोनों साथ आए। उसके बाद एक लंबा अंतराल रहा। सूरज
बड़जात्या अपनी कंपनी को मजबूत करने में लगे रहे और सलमान खान मसाल फिल्मों में
अपनी मौजूदगी मजबूत करते रहे। दो साल पहले खबर आई कि सूरज बड़जात्या और सलमान खान
साथ काम करेंगे? इस खबर से सभी चौंके,क्योंकि ऐसा
लग रहा था कि इस बीच सलमान खान की लोकप्रियता का कद विशाल हो गया है। क्या वे
सूरज बड़जात्या की सीधी-सादी पारिवारिक कहानी में जंचेंगे। कुछ तो यह भी मान रहे
थे कि दोनों की निभेगी नहीं और यह फिल्म पूरी नहीं हो पाएगी। फिल्म में समय लगा।
बीच में व्यवधान भी आए। प्रशंसकों की सांसें अटकीं। बाजार और ट्रेड के पंडित भी
अनिश्चित रहे। लेकिन अब सब क्लीयर हो चुका है। पिछले कुछ समय से सलमान खान ‘प्रेम रतन धन पायो’ का धुआंधार प्रचार कर रहे
हैं। मुंबई के महबूब स्टूडियो को उन्होंने अड्डा बना रख है। सलमान की छवि
तुनकमिजाज और अधीर व्यक्ति की है। किंतु वह एक दृष्टिकोण है। यहां वे पूरे संयम
और शालीनता के साथ मीडिया और प्रशंसकों से घुलते-मिलते नजर आए। सलमान कहीं भी
रहें,कुछ भी कर रहे हों,उन्हें देखने और उनसे मिलने वालों की भीड़ आ ही जाती है।सलमान
उन्हें निराश नहीं करते। अपनी व्यस्तता के बीच उनके लिए मुस्कराते हैं। सेल्फी
और तस्वीरें खिंचवाते हैं। सलमान मिश्री की डली की तरह हैं,वे जहां रहते हैं वहां
उनके प्रशंसक चींटियों की तरह आ जाते हैं।
इस बातचीत
में सलमान खान से नियमित सवाल नहीं किए गए और न उन्होंने किसी खास फ्रेम में बात
की। जागरण के लिए उन्की इस अबाध बातचीत में एक अलग किस्म का प्रवाह मिलेगा।
हम-आप उनकी सरलता से परिचित होंगे। निस्संदेह सलमान खान अपनी पीढ़ी के सुपरस्टार
हैं। उनकी पिछली फिल्मों ने एक दबंग छवि भी विकसित की है,जिसे ‘बजरंगी भाईजान’ ने कुछ नरम किया। उनकी यह
नरमी ‘प्रेम रतन धन पायो’ में और कोमल हो गई है।
सलमान खान के शब्दों में....
सूरज और मैं
मेरे
लिए सूरज बड़जात्या की इस फिल्म का आना खास है। सूरज की फिल्मों में लोगों का
विश्वास है। उनके प्रति दर्शकों की श्रद्धा है। उन्होंने 19 साल की उम्र में उन्होंने
‘मैंने प्यार किया’ जैसी रोमांटिक फिल्म बनाई।
उसमें न तो किसिंग सीन था और न कोई वल्गैरिटी थी। कोई एक्सपोजर भी नहीं था। 24
साल की उम्र में उनकी ‘हम आपक हैं कौन’ रिलीज हुई। अभी सोच कर देंखें कि क्या 24 साल का लड़का वैसी
फिल्म लिख सकता है ? ‘मैंने प्यार किया’ के बाद उसी टाइप की फिल्म
आनी चाहिए थी। 22 साल की उम्र में उन्होंने लिखी होगी और 24 की उम्र में फिल्म
पूरी की। उस वक्त ‘हम आके हैं कौन’ की स्क्रिप्ट सुनने के बाद मुझे कॉम्प्लेक्स हो गया था।
तब हम ‘बागी’ सोच
रहे थे। और इस आदमी का कैसा ग्रोथ हुआ कि छलांग लगा रहा है। परिवार के बारे में यह
कितना जानता है ? यह मुमकिन नहीं था। यहं ऊंची आत्माओं
के साथ ही हो सकता है। उसके बाद ‘हम साथ साथ हैं’ आई। तब मैंने कहा था कि यह फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ से हर मामले में आगे है। एक
ही समस्या है कि ‘हम आपके हैं कौन’ के पांच साल चलने के बाद छठे साल में यह फिल्म आ रही है।
लोगों को ऐसा लगेगा कि यह उसी का विस्तार है। अगर यह ‘हम आपके हैं कौन’ के पहले आ जाती तो सिनेमाघ्रों
से उतरती ही नहीं। उसके बाद उन्हें मेरे लिए इस टाइप की फिल्म नहीं मिली। मैंने ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ और ‘विवाह’ की स्क्रिप्ट सुनी थी। मैं
पहला व्यक्ति था। तब हमें लगा कि हमें इन फिल्मों में साथ नहीं आना चाहिए।‘
गैप की वजह
हम दोनों को
मनमाफिक स्क्रिप्ट नहीं मिल पा रही थी। सूरज बामू के पास तब इस फिल्म का आयडिया
भर था। सात-असठ साल पहले उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया। मुझे सुनाया और
बताया। कहानी आखिरकार पक्की हुई तो उन्होंने डेढ़ साल में इसकी रायटिंग की तो
मैंने सेकेंड भर में हां कह दिया। हां कहने के बाद मैं ‘किक’ और ‘जरंगी भाईजान’ में व्यस्त हो गया। उन
फिल्मों से खाली होने के बाद लौटा और आज यह फिल्म पूरी हो गई। दोनों ने धैर्य
रखा। मुझ से ज्यादा सूरज बाबू ने धैर्य बनाए रखा।
घरेलू और पारिवारिक
सूरज बाबू
की फिल्मों में भारतीय घर और परिचार की सही तस्वीर आती है। घर और संयुक्त परिवार
के माहौल को वे अच्छी तरह समझते हैं।पारिवारिक मूल्य फिल्म के दृश्यों में घुल
कर आते हैं। संवादों में हर घर की बातचीत रहती है। मैंने महसूस किया है कि ऐसे
संवाद तो मेरी मां,डैड और भाई बोलते हैं। सूरज बाबू भी बताते हैं कि उनकी चाची या
किसी और रिश्तेदार ने कभी ऐसी बात कही थी। हम अपन फिल्मों में सुनी और देखी
निगेटिव बातों को भी पॉजीटिव कर देते हैं। हमारा हर रेफरेंस परिवारों से आता है।
सूरज बाबू में इतनी सच्चाई और मासूमियत है कि वे कोई भी कहानी गढ़ सकते हैं। आप
उनकी फिल्म कभी भी देख सकते हैं। इन्होंने सेक्स और वल्गैरिटी का कभी इस्तेमाल
नहीं किया,जबकि देश के बड़े से बड़े डायरेक्टर इनसे बच नहीं पाए। उनकी हीरोइन की
एक डिग्निटी रहती है। सेट और स्क्रीन पर वह डिग्निटी दिखती है। सूरज बाबू के हीरो
हीरोइन की सूरत से नहीं,सीरत से प्यार करते हैं। उनकी हीरोइनों को रियल लाइफ में
भी देखेंगे तो एक स्माइल आता है। इनकी फिल्मों में नॉटी रोमांस रहता है। जैसे कि
गुलेल मारना....इनकी फिल्में अच्छा बनने को विवश करती हैं। कम से कम इच्छाई का
एहसास तो भर ही देती हैं।
सूरज बाबू
सूरज और मैं
एक ही उम्र के हैं। मैं उन्हें सूरज बाू बुलाता हूं। मैंने ही उनका यह नाम रखा।
उसका भी एक किस्सा है। ‘मैंने प्यार किया’ के आउटडोर के समय मैंने उन्हें इस नाम से बुलाना शुरू किया।
मुझे मालूम था कि ये क्या बना रहे हैं ? उनके सच,साहस और स्प्रिचुअल
लेवल की मुझे जानकारी थी। मुझे एहसास हो गया था कि ‘मैंने
प्यार किया’ के बाद वे बड़े नाम हो जाएंगे। उस
वक्त उनके सारे असिस्टैंट उनसे काफी बड़े थे। वे सभी उन्हें सूरज,सूरज,सूरज कह
कर बुलाते थे। वे तू-तड़ाक करते थे। मुझे यह बुरा लगता था। मुझ से बर्दाश्त नहीं
होता था। मैंने उन्हें सूरज बाबू बुलाना शुरू किया। फिर तो दो दिनों के अंदर वे
सभी के सूरज बाबू हो गए। अब सोहेल और अरबाज मुझे सलमान भाई बुलाते थे,इसलिए वे
मुझे सलमान भाई पुकारने लगे। इस तरह हम भाई और बाबू हो गए।
सेट पर हम दोनों
मैं देर से
सोता हूं और थोड़ी देर से जागता हूं। सूरज बाबू जल्दी सोते और जल्दी जागते हैं।
सेट पर यही रुटीन रहता था कि वे आकर मुझे जगाते थे। वे सीन सुनाते थे। उस दिन के
सीन के आगे-पीछे के भी सीन सुनाते थे कि मैं सही रेफरेंस समझ सकूं। बस बातचीत के
दरम्यान शॉट लग जाता था। मैं तैयार होकर सेट पर आता था और शॉट देता था। सूरज बाबू
का काम पक्का होता है। शूट पर जाने के पहले दिन से पहले ही सब ठोक-बजा कर वे
परफेक्ट कर देते हैं। सिर्फ लाइटिंग में जो समय लगे। शॉट बताने,समझाने और लेने
में कोई समय नहीं लगता था। हमलोंग तो सेट पर हंसी-मजाक भी करते हैं। तफरीह भी करते
हैं। यह आदमी सुबह से शाम तक वहां से हटता नहीं है। बैठते भी नहीं थे। या तो खड़े
हैं या टहल रहे हैं। मैं दूर से देख कर हाथ से कोई इशारा कता थ तो वहीं से थम्स
अप साइन देकर हौसला देते थे। बाकी डायरेक्टर के यहां इतनी तैयारी नहीं रहती तो
मुझे बताना और समझाना पड़ता है,जिसे लोग मेरा इंटरफेरेंस कहते हैं।
मतभेद नही रहता
कभी-कभी मैं
पूछता हूं कि सूरज बाबू लाइल बदल दूं। वे पूछते हैं। लाइन पसंद अा गई तो हां कह
देते हैं। नहीं तो कहते हैं कि लाइन तो यही रहेगी। मैं तो अपनी लाइन सिर्फ वहीं
देख रहा हूं,जबकि वे उसके आगे-पीछे के रेफरेंस भी जाते हैं। हमारी यही कोशिश रहती
है कि एक ही पेज पर रहें। कभी एकाध शब्द बदल दिए सुविधा के लिए तो वे मान लेते
हैं।
फिल्म का भाव
रोमांस और
फैमिली। लड़कों को अक्ष्छी लड़कियां मिलें और लड़कियों को अच्छे लड़के मिलें1
सभी प्रेम बनना चाहें। अगर आप प्रेम बन गए तो आपकी लाइफ में आई लड़की की जिंदगी
संवर जाएगी। और यह संदेश है कि लड़ने-झगड़ने से कया फायदा। साथ रहो और साथ जियो।
अगर भाई-बहन या भाई-भाई के बीच प्रॉब्लम है तो उसे तुरंत सुलझाना चाहिए। झगड़ने
के दिन ही नहीं सुलझाया जाए तो गात पेंचीदा और गहरी हो जाती है। मामला खींच जाता
है। फिर एक-दूसरे पर दोष और आरोप लगने लगते हैं। अरे यार...फोन उठाओ और बात कर लो
ना। एक सेकेंड में जो बात सुलझााई जा सकती है,उसे लोग जिंदगी भर उलझाए रखते हैं।
इस फिल्म में भी फैमिली और रिश्ते पर जोर दिया गया है। यह हम सभी के घर की कानी
है। घर के इमोशन पूरी दुनिया में एक जैसे हैं। हम त्योहार क्यों मनाते हैं ? एक साथ रहने,खाने और मिलने के लिए।
स्वरा और नील नितिन
मैंने स्वरा
की कोई फिल्म नहीं देखी है। मैंने उसे यहीं काम करते देखा है। जबान साफ होना...
किसी के भी परफारमेंस में इसका बड़ा रोल होता है। उसकी जबान साफ है। उसका अमोश
करेक्ट रहता है। सीन की अंडरस्टैंडिंग गजब की रहती है और वह उसे पर्सनल टच देती
है। वह परफार्म नहीं करती है। वह अपनी जिंदगी से ले आती है। वह कैलकुलेट नहीं
करती। नील बहुत ही अच्छा लड़का है। वह सुलझा हुआ लड़का है। पता नहीं क्यों वह लो
फेज में है। लो फेज में होने के बावजूद उसने अपना खयाल रखा है। वह सज्जन परिवार
का लड़का है। उसके काम में ईमानदारी झलकती है।
मैसेज नण् कलाकारों के लिए
जरूरी है कि आप में टैलेंट हो,लेकिन उसके साथ ही हार्ड
वर्किंग भी होनी चाहिए। हसर्ड वर्क से नोटैलेंट को टैलेंट में बदला जा सकता है।
लोग मुझे कहते हैं कि इम्प्रूव हो गया। ओ भैया,अब नहीं होंगे तो कब होंगे। किसी
भी काम में 2000 घंटे लगा दो तो एक्सपर्ट तो हो ही जाओगे। हम ने तो न जाने कितने
हजार डाले हैं।
Comments