अभिनय में पिरोए निजी जिंदगी के अनुभव : ऐश्वर्या राय बच्चन
-अजय ब्रह्मात्मज
2010 के
आखिरी महीनों में ऐश्वर्या राय बच्चन की ‘गुजारिश’ रिलीज हुई थी। अगले साल 2011 के नवंबर में उन्होंने बेटी
आराध्या को जन्म दिया। मां बन फिल्म साइन नहीं की। हवा फैली कि अब ऐश्वर्या भी
जया भादुड़ी बच्चन की तरह छिटपुट रूप से ही फिल्मों में दिखेंगी। ऐश्वर्या ने
कभी कोई सफाई नहीं दी। वह चुपचाप अपने प्रोफेशनल दायित्व निभाती रहीं। उन्होंने
प्रोडक्ट एंडोर्समेंट से लेकर सामाजिक गतिविधियों तक में शिरकत जारी रखी। फिल्मों
में सक्रिय नहीं होने पर भी वह सुर्खियों में रहीं। फिर जब खबर आई कि उन्होंने
संजय गुप्ता की ‘जज्बा’ के लिए हां कह दी है तो सभी हैरत में आ गए। पांच सालों के
बाद फिल्मों में लौट रही ऐश्वर्या राय बच्चन की वापसी संजय गुप्ता की फिल्म
से होगी? इस हैरत की वजह इतनी भर थी कि संजय
गुप्ता पुरुषों पर केंद्रित एक्शन फिल्में बनाते रहे हैं।
-संजय गुप्ता की फिल्म ‘जज्बा’ के लिए हां कहने की मुख्य
वजह क्या रही?
0 आप इतने सालों से मुझे व्यक्तिगत तौर से जानते हैं।
फिल्मों की मेरी पसंद से भी आप वाकिफ हैं। इस फिल्म को देखते समय आप और दूसरे
दर्याक भी जान सकेंगे कि मैंने क्यों इस फिल्म के लिए हां किया। कहानी में इंटेग्रिटी
है। यह थ्रिलर है। यह फिक्शनल है। मैं नहीं चाहूंगी कि किसी मां को कभी ऐसी स्िथिति
से गुजरना पड़े। इस फिल्म के लिए अभी क्या...पांच साल आगे-पीछे भी हां कहती।
किसी भी अभिनेत्री के लिए यह एक मौका है। हमें इंटेंस रोल कम मिलते हैं। इस फिल्म
का एक्टर कांबिनेश्न भी इंटरेस्टिंग है।
-लेकिन संजय गुप्ता तो....
0 जी, आप की तरह मैं भी उनकी ऑडिएंस रही हूं। उनका
सिग्नेचर पहचानती हूं। उनका एक जोनर रहा है। उसका असर ‘जज्बा’ पर भी है। इरफान खान ने
बहुत सही कहा कि संजय गुप्ता के लिए भी यह फिल्म एक अनोखा डिपार्चर है। उनकी छाप
तो रहेगी ही।
-जी,बताती रहें...
0 फिल्म की स्क्रिप्ट सुनते ही मैंने सोचा और संजग
जी को बताया कि इसमें योहान और गरिमा की भूमिका में इरफान और शबाना आजमी जंचेंगे।
मेरे मुंह से एकबारगी उनके नाम निकले। संजय गुप्ता मुस्कराए। उन्होंने बताया कि
बातें चल रही हैं और दो दिनों के अंदर वे भी आ गए। फिर तो फिल्म फ्लोर पर जाने के
पहले ऑन हो गई।
-मेरा सवाल बाकी है कि संजय गुप्ता की ‘जज्बा’ ही क्यों ?
0 मैंने ऐसा नहीं सोचा था कि
यही मेरी पहली फिल्म होगी। मेरी तीन-चार डायरेक्टर के साथ बात चल रही थी। मणि
रत्नम की फिल्म पिछले साल शुरू हो जाती तो आज हम उसके बारे में बातें कर रहे
होते। मेरी जिंदगी में जो होना है,वही होता है। मैं शुक्रगुजार हूं कि मेरी फिल्म
आ रही है। मैंने न तो ज्यादा सोचा और ना ही इस दबाव में रही कि मुझे क्या करना
चाहिए ? एक कलाकार के तौर पर मैंने ‘इरूवर’ से शुरूआत की। मैंने मिक्स्ड
बैग रखा। मैंने डिफरेंट रोल पर ध्यान दिया। मैं अनुभव पर जोर देती हूं। इस फिल्म
का अनुभव जबरदस्त रहा।
-यकीन करें आप जितने सालों के बाद आ रही है,दर्शकों ने
उतने साल आप का इंतजार किया है। ने भूल नहीं गए थे।
0 सच्ची... आए एम टच्ड। मीडिया और दर्शकों ने मुझे
हमेशा याद रखा। मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूं।
- फिल्म की नायिका अनुराधा वर्मा से आप का इमोशनल तार
जुड़ा?
0 पांच साल
पहले यह रोल करती तो कलाकार होने के नाते कर तो लेती,लेकिन उसमें अलग सच्चाई
होती। अभी मैं खुद मां हूं। फिल्म में कई ऐसे इमोशनल पल हैं,जिन्हें मो होने की
वजह से अलग ढंग से निभा पाई। कजंदगी का अनुभव किरदारों में आ जाता है। वह दिखता
है। दर्शक भी उसे भांप लेते हैं। मां-बाप की भूमिका निभाने का मेरा निजी अनुभव भी
है1 कलाकार के लिए ये अनुभव ही टूल होते हैं।
- फिल्म देखते समय दर्शकों के दिमाग में किसभ् भी
कलाकार की वह छवि भी रहती है,जो पर्दे के बाहर है। आप का सार्वजनिक जीवन आप के
किरदार के परसेप्शन को प्रभावित करता है।
0 कई बार सही जानकारी के अभाव या अधूरी जानकारी से यह
परसेप्शन गलत भी होता है। मैं ‘देवदास’ का उदाहरण दूंगी। माधुरी जी के साथ मेरे नृत्य को लेकर अनेक
बाते चल रही थीं। शूट के समय भी यूनिट के सदस्यों की निगाह लगी हुई थी। हम दोनों
ने पहले ही शॉट में पूरा अगड़म-बगड़म कर दिया था। हम दोनों खूब हंसे। सभी की
जिज्ञासाएं खामोश हो गईं। ‘जज्बा’ में भी पहले दिन हम दोनों खूब ड्रामैटिक अंदाज में पेश आए। खूब
हंसे और सभी से पूछा कि कैसा लग रहा है ? आप महीनों के बाद सेट पर लौटें या सालों के
बाद...फर्क नहीं पड़ता। हम ने यह पेशा चुना है और यही हमारा काम है। तौर-तरीके काे
समझने में थोड़ा वक्त लगता है। फिर सब ढर्रे पर आ जाता है।
- इरफान किस रूप में अलग एक्टर हैं ?
0 स्क्रिप्ट पढ़ते समय ही हम
एक पेज पर आ गए। उसके बाद की बातचीत और शेयरिंग से अपने किरदारों और उनके संबंधों
को लेकर सचेत हुए। मैं अपनी राय रख देती हूं। इरफान ने ही एक दिन कहा था कि ट्रेन
पटरी पर है। यह जान कर अच्छा लगता है कि आप एक ही स्पेस में हैं। उन्होंने जल्दी
ही समझ लिया कि मैं केवल अपने रोल के बारे में नहीं सोचती। हमरा कंफर्ट और कनेक्ट
जबरदस्त रहा।
-बेटी आराध्या को एक शब्द में क्या कहेंगी?
0 एक शब्द में नहीं बता सकती।
फिर भी.....हम्मम्म...वह आराध्या है। मेरी आराध्या। मेरी जिंदगी है।
-क्या उसे देख कर अपना बचपन याद आता है या कभी आप की
मां ने बताया हो...
0 हां, मुझे ऐसा जब भी कुछ दिखता है तो मैं मुस्करा
देती हूं1 अपनी मां की आंखों में तो रिएक्शन देखती हूं तो बहुत खुशी होती है।
- आखिरी
और जरूरी सवाल...अमित जी का जन्मदिन है,आप कुछ बताएं1
0
मेरी समझ में नहीं आता कि मैं क्या कहूं ?
वे मेरे ससुर
जी हैं। मैं उन्हें पा कहतर हूं। उनका आर्शीवाद बना रहे। हम उनके लिए प्रार्थना
करते हैं। हमारा संबंध और अनुभव पर्सनल है। उसे कैसे शेयर करें। हमारे लिए बताना
मुश्किल होता है। और अब तो इतने साल हो गए।
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