दरअसल : जागरण फिल्म फेस्टिवल
-अजय ब्रह्मात्मज
28 सितंबर
से जागरण फिल्म फस्टिवल मुंबई में आरंभ हो चुका है। मुंबई में फेस्टिवल का तीसरा
साल है। वैसे राष्ट्रीय स्तर पर जागरण फिल्म फेस्टिवल छठे साल में प्रवेश कर
चुका है। इस फेस्टिवल की अनेक खासियतें हैं,जिनकी वजह से सभी इस पर गौर कर रहे
हैं। यह सिनेप्रेमियों के लिए वार्षिक कार्यक्रम का हिस्सा बन चुका है। जिन शहरों
में यह आयोजित होता है,उन शहरों के दर्शक इसमें अवश्य शामिल होते हें। जागरण फिल्म
फेस्टिवल की अंदरूनी कमियां भी हैं,लेकिन अनुभवों से उनमें लगातार कमी आ रही है।
धीरे-धीरे यह सभी के लिए रोचक और उपयोगी हो रहा है। यह देश का अकेला
ऐसा फेस्टिवल
है,जो देश के अनेक छोटे शहरों में दिल्ली से जाता है और फिर आखिर में मुंबई पहुंचता है। मुंबई में इसकी
अपनी पहचान बन रही है।
दैनिक जागरण
ने छह साल पहले यह फैसला किया कि अपने फुटप्रिट एरिया के दर्शकों के लिए वह
बेहतरीन फिल्मों का एक पैकज तैयार करेगा। इस पैकेज में देश-विदेश की फिल्मों के
साथ शॉर्ट फिल्म और अन्य किस्म की फिल्में भी रहेंगी। इरादा यह था और है कि
दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के बाहर के दर्शक भी कलात्मक फिल्मों से परिचित
हों। सिनेमा मनोरंजन है,लेकिन यह उसके साथ ही ज्ञान और सौंदर्य का संवर्द्धन भी
करता है। हम पॉपुलर फिल्मों की चपेट भी
रहने से सिनेमा के कलात्मक स्वरूप से वंचित रह जाते हैं। जागरण फिल्म फस्टिवल
में देश के 16 शहरों में शुक्रवार से रविवार तक इन फिल्मों का प्रदर्शन होता है।
कोशिश रहती है कि दो-चार फिल्मकार या फिल्म से जुड़ी अन्य प्रतिभाएं आएं और
दर्शकों के साथ प्रदर्शित फिल्मों के बारे में वार्तालाप करें। यह फिल्म अध्ययन
और समझ के लिए टूल का काम करता है।
मानें न
मानें सिनेमा खास कर सीरियस सिनेमा अभी तक महानगरों की हद में है। अंग्रेजी के
वर्चस्व की वजह से सारी बातें भी अंग्रेजी में होती हैं। कैसी विडंबना है कि
हिंदी फिल्मों के बारे में सारी बातें अंग्रेजी में होती हैं। अंग्रेजी का अहंकार
ऐसा है कि आयोजक हिंदी में विचार-विमर्श कना गैरजरूरी समझते हैं। इसका असर फिल्मों
पर भी दिख रहा है। अभी युवा फिल्मकार अंग्रेजी में ही सोचते और लिखते हैं। उनकी
फिल्मों का देश से कोई खास संबंध नहीं रहता। सांस्कृतिक रूप से अपने समाज से कटी
इन फिल्मों का दर्शकों पर पुरजोर असर नहीं होता। दूसरे हिंदी की पॉपुलर फिल्मों
ने मनोरंजन के दबाव में सिनेमा के प्रभाव को भी प्रदूषित कर रखा है।
जागरण फिल्म
फस्टिवल में कलाकार,निर्देशक और तकनीशियनों के साथ दर्शकों की मौजूदगी में सीधा
संवाद होता है। ऐसी बातचीत में दर्शक भी हिस्सा लेते हैंत्र वे अपनी बेसिक
जिज्ञासाएं शांत करते हें। मेरा अपना अनुभव है कि फिल्म बिरादरी के सदस्यों से
बातें कर और उनके जवाब सुन कर दर्शक प्ररित होते हें। उन्हें उत्साह मिलता है।
कई बार कुछ दर्शकों के सवाल ईमानदार और जरूरी होते हैं। उनके सवालों के जवाब से
उन्हें रास्ता मिल जाता है। जागरण फिल्म फस्टिवल में इस बार स्क्रिप्ट
राटर,काज्ञिटंग डायरेक्टर और ट्रेड एनालिस्ट से भी विस्तृत बातें हुईं। कई
जानकारियां मिलीं और कुछ खुलासा हुआ। अच्छी बात है कि फिल्में देखने के लिए भीड़
उमड़ी,लेकिन कलाकारों की बातें सुनने के लिए भी लाग बैठे रहे।
जागरण फिल्म
फस्टिवल अगले सालों में कछ नई पहल करेगा। उद्देश्य है कि जागरण के पाठक सिनेमा की
दुनिया की बारीकियों से परिचित हों। फिल्म एप्रीसिएशन के साथ वे फिल्म निर्माण
के लिए भी प्रेरित हों। वे देश-दुनिया के सिनेमा के इतिहास से परिचित हों। इस बार
फिल्म निर्माण के भिन्न पक्षों के दक्ष शिक्षकों और प्रशिक्षकों ने मीडिया के
छात्रों के नियोजित वर्कशॉप किए। उम्मीद है कि उन छात्रों में से कुछ भविष्य के
फिल्मकार या कलाकार के तौर पर साने आएं। जागरण फिल्म फेस्टिवल का उद्देश्य उत्तर
भारत में सिने संकृति का प्रसार करना है। इसके साथ ही सिनेमा में सक्रिय प्रतिभाओं
को पुरस्कृत कर यह बेहतरीन काम व टैलेंट को रेखांकित करना भी है। जागरण फिल्म
फेस्टिवल की पारखी ज्यूरी ने प्रतिभाओं के योगदान को सबसे पहले पहचाना है।
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