मानवीय संवेदनाओं की कहानी 'तलवार'
-अजय ब्रह्मात्म्ज
मुंबई के
पाली हिल में गुलजार का बोस्कियाना है। बेटी बोस्की के नाम पर उन्होंने अपने
आशियाने का नाम बोस्कियाना रखा है। गुलजार और राखी की बेटी बोस्की ने कभी पर्दे
पर आने की बात नहीं सोची। बोस्की बड़ी होकर मेघना कहलायीं। उन्होंने पर्दे के
पीछे रहने और कहानी कहने में रुचि ली। पहली फिल्म ‘फिलहाल’ आई। कुछ समय घरेलू जिम्मेदारियोंं में गुजरा। घर-परिवार की
आवश्यक जिम्मेदारी से अपेक्षाकृत मुक्त होने पर उन्होंने फिर से फिल्म
निर्देशन के बारे में सोचा। इस बार उन्हें अपने पिता गलजार के प्रिय विशाल
भारद्वाज का साथ मिला। ‘तलवार’ बनी और अब रिलीज हो रही है।
मेघना टोरंटो फिल्म फस्टिवल से लौटी
हैं। वहां इस फिल्म को अपेक्षित सराहना मिली है। मेघना अपने अनुभव बताती हैं,’ जिंदगी के कुछ लमहे ऐसे होते हैं,जिन्हें आप हमेशा याद रखते
हैं। वे यादगार हो जाते हैं। पहले ही सीन में इरफान एक लतीफा सुनाते हैं। इस लतीफे
पर यहां की स्क्रीनिंग में किसी ने रिएक्ट नहीं किया था। मैंने पाया कि वहां
1300 सीट के हॉल में सभी ठठा कर हंसे। इनमें 65 प्रतिशत विदेशी दर्शक थे। यहां से
जो माहौल बना,वह फिल्म के अंत तक तारी रहा। यह फिल्म जुमलों ऑर लतीफों की नहीं
है। अगर आप भारतीय नहीं हैं तो इस केस के बारे में जानते भी नहीं। पूरी फिल्म को
आप सबटायटल से फॉलो कर रहे हैं। दर्शकों के उत्साह ने प्रोत्साहित किया।‘
सबटायटल के
साथ फिल्म का मजा आता है क्या ? गुलजार हस्तक्षेप करते हैं,’ फिल्म का मीडियम ऐसा होता है कि वहां आप केवल पड़ या सुन
नहीं रहे होते हें। आप देखते हैं। कानों में ध्वनियां आ रही हैं। बैकग्राउंड स्कोर
दृश्यों को संदर्भ और अर्थ देता है। कलाकारो के बॉडी लैंग्वेज से दृश्यों का
भाव भी समझ में आता है। धीरे-धीरे फिल्म से आप का रिश्ता बन जाता है। आप डायरेक्टर
के साथ हो जाते हैं। फिल्म समझने लगते हें तो सबटायटल से निगाह हट जाती है। अगर
आप डीवीडी से देख रहे हों तो दृश्यों को ठीक से समझने के लिए वापिस भी आ जाते
हैं। सिनेमाघर में सचेत रहना पड़ता है,क्योंकि वहां रिप्ले नहीं हो सकता।‘
मेघना
गुलजार ‘तलवार’ को
ह्यूमन कहानी मानती हैं। फिल्म में हत्या और अपराध है,लेकिन यह मर्डर मिस्ट्री
नहीं है। वह स्पष्ट कहती हैं,’ अगर हमारी सामाजिक,न्यायिक
और प्रशासनिक संस्थाओं से असंतोष है तो वह कहानियों में चरित्रों के अंतर्संबंधों
से जाहिर होता है। कानून व्यवस्था में कहीं कोई कमी रह जाती है तो वह अखरती है।
यह सिस्टम में फंसे व्यक्तियों की कहानी है। इसकी वजह से ही दर्शक जुड़ाव महसूस
कर रहे हैं।‘ गुलजार जोड़ते हैं,’ इसमें संवादों में सूचनाएं हैं। भारत के दर्शकों को यह
सुविधा रहेगी कि वे इस केस के बारे में जानते हैं। मैंने मेघना को इस फिल्म के
लिए दिन-रात काम करते देखा है। कई बार तो ऐसा होता था कि मेरा नाती मां के इंतजार
से थक कर मेरे पास आकर सो जाता था। फिल्मकें जब बन रही होती हैं तो रिश्ते
किनारे हो जाते हैं।‘
सभी जानते
हैं कि यह आरुषि कोड पर आधारित फिल्म है। लेकिन क्या मेघना इसे उस कांड पर बनी
आधिकारिक फिल्म मानती हैं। और फिर यह भी सवाल है कि क्या यह किसी घटना का इस्तेमाल
नहीं है ? मेघना जवाब देती हैं,’ न तो हम ने इंकार किया है और न ही स्वीकार किया है। हम झूठ
नहीं बोलना चाहते। ट्रेलर से ही स्पष्ट हो जाता है। यह फिल्म उस कांड का विजुअल
नाटकीयकरण है। हम ने अपने किरदारों को एक से ज्यादा डायमेंशन देने की कोशिश की
है। केस के फैक्ट में कोई छेड़खानी नहीं की गई है। मेरी फिल्म का कंटेंट तो
पब्लिक डोमेन में है। अगर कोई कहता है हिक हम ने इस का इस्तेमाल किया है तो मैं
यही कहूंगी कि अगर हमें इसे स्कैंडलस फिल्म के तौर पर पेश करना होता तो हम
चरित्रों के अलग-अलग डायमेंशन में नहीं जाते। एक ही पक्ष की कहानी कह देते तो
कट्रोवर्सी और पर्याप्त कवरेज मिल जाता।‘
मेघना
के तर्क को गुलजार विस्तार देते हें,’ यह फिल्म मर्डर पर फोकस
नहीं करती। कानूनी और जांच प्रक्रिया में क्या हुआ और उसका चरित्रों पर क्या असर
पड़ा ? समाज में कानून औा कानून से व्यक्ति
के रिश्ते को तो आम आदमी झेल ही रहा है। वह इसे समझ सकेगा। उसे अपना हिस्सा नजर
आएगा। फिल्म सुने और पढ़े गए किस्से को विजुअल बना देती है।‘ मेघना आगे कहती हैं,’ मेरे लिए बेटी के साथ एक
बीवी और मां की भी कहानी है। मैं स्वयं एक बेटी और मां हूं। मैंने स्त्री की सोच
भी रखी है।
इस फिल्म
में गुलजार की कैसी हिस्सेदारी रही है ? गुलजार बताते हैं,’ मेरा सपोर्ट हरमोनियम पर रहा है। मैं पेटी मास्टर के साथ
था। इस फिल्म में गानों की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। मैंने ट्राय भी किया और कुछ
गीत भी लिखे,लेनि मेघना रिजेक्ट कर देती थीं। इनका कहना होता था कि किरदारों के
साथ यह नहीं जाता। मैंने फिल्म की थीम पर कमेंट की सुरत में कुछ कहा है। जिस दिन
आकाश बेदाग होगा,चेहरा चांद का साफ होगा। जिस दिन समय ने आंखें खेलीं,इंसाफ
होगा,इंसाफ होगा।‘
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