फिल्म समीक्षा : प्यार का पंचनामा 2
प्रेम का महानगरीय प्रहसन
प्यार का पंचनामा 2
-अजय ब्रह्मात्मज
‘प्यार का पंचनामा’ देख रखी है तो ‘प्यार का पंचनामा 2’ में अधिक नयापन नहीं महसूस
होगा। वैसे ही किरदार हैं। तीन लड़के है और तीन लड़कियां भी इनके अलावा कुछ दोस्त
हैं और कुछ सहेलियां। तीनों लड़कों की जिंदगी में अभी लड़कियां नहीं हैं। ऐसा
संयोग होता है कि उन तीनों लड़कों की जिंदगी में एक साथ प्रेम टपकता है। और फिर
पहली फिल्म की तरह ही रोमांस, झगड़े, गलतफहमी और फिर अलगाव का नाटक रचा जाता है।
निश्चित रूप से पूरी फिल्म लड़कों के दृष्टिकोण से है, इसलिए उनका मेल शॉविनिज्म
से भरपूर रवैया दिखाई पड़ता है। अगर नारीवादी नजरिए से सोचें तो यह फिल्म घोर
पुरुषवादी और नारी विरोधी है।
दरअसल, ‘प्यार का पंचनामा 2’ स्त्री-पुरुष संबंधों का महानगरीय प्रहसन है। कॉलेज से
निकले और नौकरी पाने के पहले के बेराजगार शहरी लड़कों की कहानी लगभग एक सी होती
है। उपभोक्ता संस्कृति के विकास के बाद प्रेम की तलाश में भटकते लड़के और
लड़कियों की रुचियों, पसंद और प्राथमिकताओं में काफी बदलाव आ गया है। नजरिया बदला
है और संबंध भी बदले हैं। अब प्यार एहसास मात्र नहीं है। प्यार के साथ कई चीजें
जुड़ गई हैं। अगर सोच में साम्य न हो तो असंतुलन बना रहता है। 21 वीं सदी में
रिश्तों को संभालने में भावना से अधिक भौतिकता काम आती है। ‘प्यार का पंचनामा 2’ इस नए समाज का विद्रूप
चेहरा सामने ले आती है। हालांकि, हम फिल्म के तीन नायकों के अंशुल,तरुण और
सिद्धार्थ के साथ ही चलते हैं, लेकिन बार-बार असहमत भी होते हैं। प्यार पाने की
उनकी बेताबी वाजिब है, लेकिन उनकी हरकतें उम्र और समय के हिसाब से ठीक लगने के
बावजूद उचित नहीं हैं। लड़कियों के प्रति उनका रवैया और व्यवहार हर प्रसंग में असंतुलित
ही रहता है।
लव रंजन के
लिए समस्या रही होगी कि पहली लकीर पर चलते हुए भी कैसे फिल्म को अलग और नया रखा
जाए। तीन सालों में समाज में आए ऊपरी बदलावों को तो तड़क-भड़क, वेशभूषा और माहौल
से ले आए, लेकिन सोच में उनके किरदार पिछली फिल्म से भी पिछड़ते दिखाई पड़े। हंसी
आती है। ऐसे दृश्यों में भी हंसी आती है, जो बेतुके हैं। कुछ–कुछ लतीफों जैसी बात है। आप खाली हों और लतीफेबाजी चल रही हो
तो बरबस हंसी आ जाती है। ‘प्यांर का पंचनामा 2’ किसी सुने हुए लतीफे जैसी ही हंसी देती है।
इस फिल्म
के संवाद उल्लेखनीय हैं। ऐसी समकालीन मिश्रित भाषा हाल-फिलहाल में किसी अन्य
फिल्म में नहीं सुनाई पड़ी। यह आज की भाषा है, जिसे देश का यूथ बोल रहा है। संवाद
लेखक ने नए मुहावरों और चुहलबाजियों को बखूबी संवादों में पिरोया है। संवादों में
लहरदार प्रवाह है। उन्हें सभी कालाकारों ने बहुत अच्छी तरह इस्तेमाल किया है।
फिल्म में अंशुल (कार्तिक आर्यन) का लंबा संवाद ध्यान खींचता है। इस लंबे संवाद
में फिल्म का सार भी है। यकीनन यह फिल्म रोमांटिक कामेडी नहीं है। एक तरह से यह
एंटीरोमांटिक हो जाती है।
तीनों लड़कों
ने अपने किरदारों पर मेहनत की है। कार्तिक आर्यन, ओंकार कपूर और सनी सिंह निज्जर
ने कमोबेश एक सा ही परफॉरमेंस किया है। लेखक-निर्देशक ने अंशुल के किरदार को
अध्रिक तवज्जो दी है। कार्तिक आर्यन इस तवज्जो को जाया नहीं होने दिया है। ओंकार
कपूर अपने लुक और शरीर की वजह से हॉट अवतार में दिखे हें। सनी सिंह निज्जर ने
लूजर किस्म के किरदार को अच्छी तरह निभाया है। तीनों लड़कियां न होतीं तो इन
लड़कों के संस्कार और व्यवहार न दिखते। ये लड़कियां भी इसी समाज की हैं। उनकी
असुरक्षा, अनिश्चितता और लापरवाही को उनके संदर्भ से समझें तो लड़के गलत ही नहीं
मूर्ख भी दिखेंगे।
क्या ही
अच्छा हो कि कोई निर्देशक लड़कियों के दृष्टिकोण से ‘प्यार का पंचनामा 3’ बनाए?
अवधि- 137 मिनट
तीन स्टार
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