अब अंधा नहीं होता प्यार-पंकज दुबे
-अजय ब्रह्मात्मज
‘लूजर कहीं का’ और ‘ह्वाट अ लूजर’ यों तो दो किताबे हैं,लेकिन पंकज दुबे की इन दोनों किताबों
का कथ्य एक ही है। वह उनकी पहली कृति है। दरअसल,पंकज ने प्रयोग किया था। उन्होंने
एक साथ हिंदी और इंग्लिश में एक ही किताब प्रकशित की। अब उनकी दूसरी(तीसरी और
चौथी) किताब ‘इश्कियापा’ आ रही है। खुशमिजाज पंकज दुबे पिछली किताब की स्वीकृति से
खुश हैं और उम्मीद करते हैं कि इस बार यह स्वीकृति संख्या और सराहना में बड़ी
होगी।
-क्यों आ रही
है ‘इश्कियापा’ ?
0 इश्क और बेवफाई पर बहुत कुछ लिखा गया है। दोनों के
बीच का एक ग्रे एरिया है। मुझे लगा उस पर काम होना बाकी है। आसपास की जिंदगियों पर
रिसर्च करने पर पाया कि सन् 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के लागू होने पर प्यार
के प्रति युवको का नजरिया बदला है। मूझे लगा कि इस पर लिखना चाहिए। अब प्यार अंधा नहीं होता। इश्क में जब आप
अपना आपा खो दें तो इश्कियापा के जोन में चले जाते हैं।
- ‘इश्कियापा’ की थीम क्या है ?
0 मेरी किताब पटना और मुंबई
में सेट है। इन दोनों को कनेक्ट करती है। यह लल्लन झा और स्वीटी पांडे की कहानी
है। दोनों फितूरी हैं। स्वीटी पटना में एक मिनिस्टर की बेटी हैं। वह पॉपस्टार
बनना चाहती हैं। इस करिअर के बारे में स्वीटी के पिता की उम्र के लोगों ने नहीं
सुना है। लल्लन अभी तक किसी उद्यम में सफल नहीं हुआ है। उसका हर नया प्रोजेक्ट
फेल हो जाता है। वह असफल उद्यमी है। उसका पारिवारिक व्यवसाय मोटर ड्रायविंग
ट्रेनिंग है। एक दिन उसे खयाल आता है कि क्यों न किडनैपिंग इंश्योरेंस का बिजनेस
आरंभ करें। तब बिहार में किडनैपिंग जोरों पर थीं। स्वीटी और लल्लन दोनों ही अपनी
योजनाओं को अमल करते हुए एक लव स्टोरी कह जाते हैं।
- बिहार और मुंबई की कथाभूमि इस किताब में किस तरह
जुड़ती है ?
0 बिहार और मुंबई में एक
कनफ्लिक्ट है। यह इंटरेस्टिंग है। दोनों के हॉट और कोल्ड करेंट से अनेक कहानियां
और स्थितियां पैदा होती हैं। आर्ट और सिनेमा में इसे हम देख सकते हें। मैं इस
क्रिएटिव पैदाइश को सकारात्मक तरीके से देखता हूं। मेरी किताब में बिहार के
लाेगों के प्रति मुंबई का परसेप्शन मिलेगा। इसमें बिहार से आई पिछली पीढ़ी भी है।
मैंने विवरण और चित्रण में ह्यूमर रखा है। किस्सागोई अंदाज में किरदारों को ले
आया हूं।
-देश में आंतरिक माइग्रेशन जारी है। आप के किरदार भी
माइग्रेट करते हैं। पिछली किताब में हम उनसे मिल चुके है। इस बार इस माइग्रेशन को
किस रूप में रखा है ?
0 मैं माइग्रेशन को पॉजीटिव
मानता हूं। मुझे लगता है कि माइग्रेशन
विकास को आमंत्रित करता है। यह मनुष्य का कंफीडेंस बढ़ाता है। मैं स्वयं उस
माइग्रेशन का हिस्सा हूं। उसका समर्थक हूं। वह अचेत रूप से आती हैं। मेरे दोनों
किरदार मुंबई में ही कुछ करने के इरादे से आते हैं,लेकिन उनके हालात ऐसे बनते हैं
कि ... आगे कुछ बताऊंगा तो कहानी पता चल जाएगी। थोड़ा सस्पेंस रहने दें।
- पहली किताब का अनुभव कैसा रहा?
0 बहुत अच्छा रहा। तभी जोश से मैं दूसरी किताब लिख
पाया। मैंने पाया है कि हिंदी में कमर्शियल लेखन नहीं के बराबर हुआ है। ज्यादातर
अनुवाद ही मिलते हैं। समकालीन कमर्शियल रायटिंग नहीं है। मेरा प्रयास सफल रहा। मैं
आशान्वित हूं कि इसे भी अच्छा रेस्पांस मिलेगा।
-साहित्यकारों का रेस्पांस कैसा रहा?
0 कोई भी नई चीज हो तो उसे
पहले रिजेक्ट किया जाता है। मैं इसके लिए तैयार था। इंग्लिश वालों को मैं हिंदी
का लगा और हिंदी वाले मुझे इंग्लिश का समझते रहे। शुद्ध साहित्यकार मुझे एक किताब
का विस्मय मानते रहे। किताब बिकी। मैंने पाठकों को आकृष्ट करने के लिए पॉपुलर
टूल अपनाए और उसमें सफल भी रहा। वे आए। किताब खरीदने पर वे इंगेज हुए। मैं नॉन
रीडर्स को रीडर बनाने में सफल रहा। पिछले दिनों पटना में दैनिक जागरण और कलम सीरिज
के एक कार्यक्रम में आलोक धन्वा ने मेरी प्रशंसा की। उनसे लंबी बात हुई।
-पाठक,प्रकाशक और लेखक त्रिभुज में कोई बदलाव दिख रहा
है ?
0 बदलाव दिख रहा है। जब आप
बिकने लगते हैं तो प्रकाशक का दबाव घटता है। लेखक मोल-मोलाई कर पाता है। इस
त्रिभुज में पाठक सबसे अधिक ताकतवर है। वह दिशा निर्धारित कर रहा है। लेखक की
चुनौतियां बढ़ गई हैं। जल्दी ही स्मार्ट बुक आ रही हैं बाजार में। इसके आने पर
पाठक पहले किताब का अंश छोटी रकम देकर खरीदेगा। पसंद आने पर ही वह पूरी किताब
खरीदेगा।
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