फिल्म समीक्षा : कैलेंडर गर्ल्स
-अजय ब्रह्मात्मज
मधुर भंडारकर की 'पेज 3’, 'फैशन’ और 'हीरोइन’ की कहानियां एक डब्बे में डाल
कर जोर से हिलाएं और उसे कागज पर पलट दें तो दृश्यों और चरित्र के हेर-फेर
से 'कैलेंडर गर्ल्स’ की कहानी निकल आएगी। मधुर भंडारकर की फिल्मों में
ग्लैमर की चकाचौंध के पीछे के अंधेरे के मुरीद रहे दर्शकों को नए की उम्मीद
में निराशा होगी। हां, अगर मधुर की शैली दिलचस्प लगती है और फिर से वैसे
ही प्रसंगों को देखने में रूचि है तो 'कैलेंडर गर्ल्स’ भी रोचक होगी।
कैलेंडर गर्ल्स
मधुर भंडारकर ने हैदराबाद, कोलकाता, रोहतक, पाकिस्तान और गोवा की पांच
लड़कियां नंदिता मेनन, परोमा घोष, मयूरी चौहान, नाजनीन मलिक और शैरॉन पिंटो
को चुना है। वे उनके कैलेंडर गर्ल्स’ बनने की कहानी बताते हैं। साथ ही
ग्लैमर वर्ल्ड में आ जाने के बाद की जिंदगी की दास्तान भी सुनाते हैं। उनकी
इस दास्तान को फिल्म के गीत 'ख्वाहिशों में...’ गीतकार कुमार ने भावपूर्ण
तरीके से व्यक्त किया है। यह गीत ही फिल्म का सार है- 'कहां ले आई
ख्वाहिशें, दर्द की जो ये बारिशें, है गलती दिल की या फिर, है वक्त की
साजिशें।’
देश के विभिन्न हिस्सों और पाकिस्तान से आई लड़कियों को पहले अपने परिवार
और फिर अपने परिवेश से संघर्ष करना पड़ता है। आरंभ में सभी को विरोध झेलना
पड़ता है। उनकी असली लड़ाई कैलेंडर गर्ल्स बन जाने के बाद होती है, जब
उन्हें पिनाकी चटर्जी, अनिरूद्ध श्रॉफ, हर्ष नारंग, अनन्या रायचंद और
तिवारी जैसे व्यक्ति मिलते हैं। वे उन्हें ग्लैमर की उन अंधेरी गलियों में
धकेलते हैं, जहां से निकलना मुश्किल है। नंदिता, मयूरी और शैरॉन की जिंदगी
तो संभल जाती है, लेकिन परोमा और नाजनीन को मुश्किलों से गुजरना पड़ता है।
मधुर भंडारकर ने इन लड़कियों की तबाह जिंदगी के चित्रण में 'फैशन’ और
'हीरोइन’ की तकलीफों को ही दोहराया है। शायद चकाचौंध के पीछे का अंधेरा एक
सा ही होता है।
मधुर भंडारकर के फिल्मों का कंटेंट मजबूत और प्रासंगिक होता है, लेकिन उनके
निरूपण में अब बासीपन आ गया है। यह फिल्म 'पेज 3’ और 'फैशन’ की नवीनता
दोहराए जाने से अपनी चमक खो चुकी है। ऐसा लगता है कि कथ्य और शिल्प दोनों
ही स्तरों पर मधुर भंडारकर को अब नई कोशिशें करनी होंगी। यह मुमकिन है कि
मधुर भंडारकर के नए दर्शकों को 'कैलेंडर गर्ल्स’ अच्छी लगे, क्योंकि उनके
लिए इस फिल्म की ख्वाहिशों का दर्द नया होगा।
परोमा, नाजनीन और शैरॉन के किरदार निभा रही अभिनेत्रियों को बेहतर प्रदर्शन
का मौका मिला है। उनकी जिंदगी में ज्यादा घटनाएं और उथल-पुथल हैं। सतरूपा
पायणे, अवनी मोदी और कियारा दत्ता ने अपनी भूमिकाओं को समझा और निभाया है।
तीनों ही अभिनेत्रियों ने अपने किरदारों के दर्द और द्वंद्व को अच्छी तरह
पर्दे पर उकेरा है। फिल्म के अधिकांश दृश्यों में उन्हें सुंदर और आकर्षक
दिखना है, इसलिए अभिनय से ज्यादा उनके रूप और श्रृंगार पर निर्देशक ने
ज्यादा ध्यान दिया है।
फिल्म देखते हुए कुछ किरदारों की शिनाख्त की जा सकती है। सोसायटी में वे
मौजूद हैं। पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों की खबरों में वे सुर्खियों में रहते
हैं। फिल्म उन व्यक्तिओं की मानसिकता और लालसा की बातें नहीं करतीं, जिनकी
वजह से कैलेंडर गर्ल्स का कारोबार चलता है। मधुर भंडारकर की फिल्मों में
स्थितियों के कारण की खोज नहीं रहती। वे दिखाई पड़ रही घटनाओं की सतह पर ही
अपने किरदारों के जीवन का चित्रण करते हैं।
अवधिः 130 मिनट
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