लेवल ऊंचा ही रखा - प्रियंका चोपड़ा
-अजय ब्रह्मात्मज
प्रियंका
चोपड़ा इस मायने में खास हो गई हैं कि वह हिंदी फिल्मों की अगली कतार में होने के
साथ ही विदेश की धरती पर भी अपनी पहचान बना रही है। अमेरिका के शहरों में होर्डिंग
और बिलबोड्र पर वह दिख रही हैं। हिंदी सिनेमा के परिचित चेहरे को अमेरिका में देख
कर आप्रवासी भारतीय गर्व महसूस कर रहे हैं। प्रियंका चोपड़ा का टीवी शो ‘क्वैंटिको’ इसी महीने 27 सितंबर से
प्रसारित होगा। भारत में यह 3 अक्टूबर से देखा जा सकेगा। पिछले दिनों ‘बाजीराव मस्तानी’ के शूट के लिए आई प्रियंका
चोपड़ा ने दैनिक जागरण के पाठकों के लिए अपने अनुभव शेयर किए।
मैं अभी
मांट्रियाल में शूटिंग कर रही हूं। हम पूरा सीजन वहां कर रहे हैं। अब तक एपीसोड 4
पर ही पहुंचे हें। वापस जाकर 5वें की शूटिंग आरंभ करूंगी। यूं समझें कि ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘क्वैंटिको’ के बीच भागदौड़ चल रही है।
मेरे लिए बड़ा अचीवमेंट है कि मैं हिंदी
फिल्मों और इंटरनेशनल असाइनमेंट के बीच बैलेंस बना कर चल रही हूं। दूसरी बात है
कि मैं जिस तरह का काम विदेश में करना चाह रही थी,वैसा कर पा रही हूं। स्टीरियोटाइप
रोल नहीं कर रही हूं। मैंने वहां यही कहा कि मुझे सीरियसली लो और बतौर एक्टर
बेहतर काम दो। मैं कहां से हूं,कैसी लगती हूं,इससे क्या लेना-देना? अच्छी बात है कि ऐसा ही हुआ। मैंने यह भी तय किया था कि
हिंदी फिल्मों में जैसा काम कर रही हूं,उसी स्तर का काम लूंगी। मुझे कोई जल्दबाजी
नहीं है। मैं यहां बहुत अच्छा काम कर रही हूं। चाहती हूं कि मेरे काम का विस्तार
हो। जो लोग मुझे जानते हैं,मेरे प्रशंसक हैं,उन्हें निराशा न हो। मैं बड़ी फिल्म
में छोटा रोल कभी नहीं करना चाहती थी।
’क्वैंटिको’ आया तो इसमें लीडिंग रोल
था। हेडलाइनिंग पार्ट था। वह बहुत अच्छा किरदार भी है। स्ट्रांग वीमैन कैरेक्टर
है। एलेक्स पैरिश टफ लड़की है। वह कभी कमजोर भी पड़ती है। अगर हिंदी फिल्म में
भी ऐसा रोल मिलता तो मैं इसे चूज करती। मैंने अपने इंटरनेशनल काम के लिए अलग
नजरिया नहीं रखा है। मेरे लिए यह सफल कदम है कि मुझे अपने मूल्यों और सोच से
समझौता नहीं करना पड़ा। मैं भारत में जिस स्तर पर हूं। उसी स्तर से अमेरिका या
किसी देश में शुरूआत करूंगी। ढेर सारा काम कर लिया है। एक प्रकार की इज्जत बना ली
है।
इतने साल
काम करने के बाद अचानक दूसरे देश में न्यूकमर की तरह आना मुश्किल लगता है। डर भी
लग रहा है। पता नहीं वहां के दर्शक कैसे देखेंगे? भारत
में क्या प्रतिक्रिया होगी। दूसरा देश है? दूसरी भाषा है। अभी तक जो
जिज्ञासा और स्वागत है,वह बहुत उत्साहजनक है। सभी लिस्ट में ‘क्वैंटिको’ का टॉप पोजीशन मिल रही है।
अभी तक तो अच्छा ही लग रहा है।
‘क्वैंटिको’ के प्रोमो और ट्रेलर को जिस संख्या में लोग देख रहे हैं,उस
से उनकी समझ में भी आया है। मैंने सुना है कि 180 देशों में इस शो की मांग है।
मुझे यकीन है कि यह हिंदी सिनेमा के पावर से हुआ है1 मैं वहां के लिए न्यू कमर ही
हूं। इसकी लांचिंग के समय मैं ही शो स्टॉपर थी। आखिरी पंक्ति मुझे ही बोलनी थी।
तब लगा कि कुछ बड़ा हो गया है,क्योंकि वहां एबीसी के सारे एक्टर थे।
अमेरिका में स्कूल के दिनों में मुझे रंगभेद का शिकार होना पड़ा था। तब
मैं 13-14 साल की थी। उस उम्र में ज्यादा गहरी चोट लगती है। वह पुरानी बात है। अब
कितना दोहराएंगे। स्कूल वैसे भी मुश्किल जगह होती है। मैं नहीं कह रही कि वह सही
था या गलत। अब भी मैं वही लड़की हूं। उसी रंग की हूं। शायद यह मेरे लिए एक प्रकार
की जीत है। ‘जुरासिक वर्ल्ड’ में इरफान खान का नाम और काम देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा
था। विदेशी फिल्मों और टीवी शो में किसी भारतीय को देख कर रोमांच होता है।मेरे लिए
वह कोई रीजन नहीं है कि मैं यह कर रही हूं।मैं इसलिए कर रही हूं कि एक्टर हूं।
मुझे अच्छे काम का शौक है। मुझे अच्छा काम देश में मिले या विदेश में मिले। मुझे
हिंदी फिल्मों का बहुत शौक है तो मैं इसे छोड़ कर तो जाऊंगी नहीं। जब तक लोग मुझे
देखना चाहते हैं हिंदी फिल्में करती रहूंगी। फिल्मों में गाना नहीं हो तो है तो
मुझे बहुत प्राब्लम हो जाती है। मुझे विदड्राल सिस्टम सताने लगता है। इसलिए
मैंने डिसाइड कि चाहे मेरे शेडयूल पागल हो जाएं। मेरा शरीर थक जाए। मेरे लिए जरूरी
कि मैं दोनों वर्ल्ड के लिए काम करूं। काली काफी पर जी रही हूं आज कल। सिर्फ दो
दो दिनों के लिए इंडिया आना मजाक नहीं है। हर महीने ऐसा हो रहा है। वहां आठ दिनों
में एक एपीसोड पूरा कर रहे हें। लगभीग 16-16 घंटे काम करना पड़ रहा है। शरीर पर
इसका असर हो रहा है।
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