दरअसल : ऑन लाइन नॉट फाइन
-अजय ब्रह्मात्मज
कहते हैं
विकसित देशों में तकनीकी सुविधाओं को मीडिया में जबरदस्त उपयोग होता है। उपयोग
भारत में भी हो रहा है। फर्क यही है कि हम मौलिक सोच और योजना के तहत इसका उपयोग
नहीं कर रहे हैं। हमेशा की तरह एक भेड़चाल इस भेड़चाल में सारे मीडिया घराने और नए
स्टार्ट अप में ऑन लाइन पर जोर दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यही मीडिया का
भविष्य है,इसलिए अभी से इसकी तैयारी हो जानी चाहिए। कुछ मीडिया घरानों में धड़ल्ले
से नियुक्तियां हो रही हैं। उन्हें नई तकनीक से लैस किया जा रहा है। पत्रकारों को
नवीनतम सुविधासंपन्न स्मार्ट फोन दिए जा रहे हैं। उन्हें रियल टाइम रिपोर्टिंग के
लिए कथित रूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है। सारा जोर इस पर है कि हम पीछे न रह
जाएं।
आप किसी भी
न्यूज पोर्टल को खोल कर देखें। खबरें पढ़ें। क्या कोई फर्क नजर आता है? एक ही फर्क है कि खबरें न्यूजप्रिंट के बजाए अब स्क्रीन पर
दिख रही हैं। बाकी शीर्षक से लकर खबरों तक
सब कुछ जस का तस है। रोशन बैकग्राउंड पर छपे अक्षर छोटे पाइंट में भी पढ़े जा सकते
हैं। मोबाइल पर ही खबरें,संपादकीय और अग्रलेख भी पढ़े जा सकते हें। डॉक्टर
बताएंगे कि ऐसी चमकदार रीडिंग का आंखों,दिमाग और शरीर पर क्या असर पड़ता है ? फिलहाल सभी इसमें संलग्न है। क्योंकि यही भविष्य है। अखबार
और ऑन लाइन की यह समानता अनुचित है।
फिल्मों की
रिपोर्टिंग में ऑन लाइन पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। देखा जा रहा है कि मनोरंजन
जगत से जुड़ी खबरों को पढ़ने ज्यादा पाठक आते हैं। अगर खबरें चटपटी और विवादपूर्ण
हों। उनके साथ संबंधित तस्वीरें हों तो हिट ज्यादा मिलते हैं। लिहाजा सभी वेब
पोर्टल और अन्य ऑन लाइन प्लेटफार्म बगैर क्रॉस चेक किए ही खबरें अपलोड कर रही
हैं। मुझे इस तरह की अपलोडिंग लादने की तरह लगती हैं। सिर्फ सूचनाएं लादी जा रही
हैं। कोई भी इन सूचनाओं को जांख् और परख नहीं रहा है। अमूमन हर सूचना ऑन लाइन की
जा रही है। होड़ है कि हम पीछे नहीं रह जाएं। मीडियम का सपोर्ट भी है। ऑन लाइन की
भूल को सिरे से डिलीट किया जा सकता है। यही हो भी रहा है। खबरें लगा देने के बाद
उसकी पुष्टि न होने या किसी के सवाल किए जाने पर उसे तुरंत हटा भी दिया जा रहा है।
अब यह अखबार तो है नहीं कि अगले दिन भूल सुधार या माफीनामा छपेगा। इस तरह झटपट का
यह मीडियम भूल करने और लापरवाह होने की इजाजत देता है। नतीजतन ऑन लाइन सोर्स को
भरोसेमंद नहीं माना जा रहा है। फिर भी क्रिएट कर रहे हैं और कैरी फॉरवार्ड कर रहे
हैं। अभी तो यह सुविधा भी दी जा रही है कि रिपोर्टर बगैर किसी चेकिंग के रियल टाइम
रिपोर्टिंग कर ले।
समस्या यह
है कि भारतीय माहौल में ऑन लाइन मीडियम के सदुपयोग पर किसी का ध्यान नहीं है।
मीडिया घरानों के वेब पार्टल अपने अखबारों के ही ऑन लाइन संस्करण हैं। यहां
अखबारों की ही खबरों को बगैर काट-छांट और संवार के ज्यों का त्यों ऑन लाइन पर
डाल दिया जाता है। एक तरह से अखबार को डिजीटाइज कर दिया जाता है। यह खयाल नहीं रखा
जाता कि ऑन लाइन पाठक की रुचि कैसी खबरों और खबरों के स्टायल में है। चूंकि
पत्रकारों को प्रशिक्षण नहीं दिया गया है,इसलिए उन्हें भी नहीं मालूम कि आखिर वे
ऑन लाइन के हिसाब से अपनी रिपोर्टिंग और शैली में क्या बदलाव लाएं। एक ढर्रा बन
रहा है। सब उसी पर चल रहे हैं। फिल्म समेत सभी क्षेत्रों की ऑनलाइन पत्रकारिता
में यही हो रहा अपार संभावनाओं के इस
मीडियम का भोंडा उपयोग हो रहा है।
ऐसा लगता है
कि सभी एक-दूसरे की नकल में भूलें बढ़ाते जा रहे हैं। मौलिकता पर तो वैसे भी ध्यान
नहीं है। अलग होने का रिस्क कोई नहीं लेना चाहता।
जारी....
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