संग-संग : दीया मिर्जा-साहिल संघा
दीया मिर्जा और साहिल संघा ने अपने प्रेम,विाह और स्त्री-पुरुष संबंधों पर खुल कर बातें कीं। यह सीरिज प्रेम के परतें खोलती है।21 वीं सदी में रिश्ते के बदलते मायनों के बीच भी प्रेम स्पंदित होता है।
-अजय ब्रह्मात्मज
साहिल- सच की यह
समस्या है कि एक बार बोल दो तो बताने के लिए कुछ नहीं रह जाता है। मैं दिया को एक
कहानी सुनाने आया था। उस वक्त उन्हें वह कहानी पसंद आई थी। गलती से मैं भी पसंद आ
गया था। तभी दीया ने अपनी कहानी सुनाई थी। उस कहानी पर भी मैं काम कर रहा था।
स्क्रिप्ट लिखने के समय स्वाभाविक तौर पर हमारा समय साथ में बीत रहा था और हमारे
कुछ समझने के पहले ही जैसा कि कहा जाता है कि ‘होना था प्यार, हो गया’।
दीया:- वह एक लव
स्टोरी थी। बहुत ही संवेदनशील किरदार थे उस कहानी के। इनके लिखने में जिस प्रकार
की सोच प्रकट हो रही थी, वह
सुनते और पढ़ते हुए मेरा दिल इन पर आ गया। फिल्म इंडस्ट्री में इतना समय बिताने के
बाद हम यह जानते हैं कि लोग कैसे सोचते हैं और क्या बोलते हैं? किस मकसद से कहानियां लिखी जाती हैं? ऐसे में कोई एक अनोखा इंसान ऐसी कहानी और
खूबसूरत सोच लेकर आ जाता है। इनकी कहानी में इमोशनल इंटेलिजेंस थी। उस इंटेलिजेंस
ने मुझे खींचा। मैं इनके दिमाग के प्रति आकर्षित हुई। साहिल आकर्षक तो हैं हीं।
साहिल:- यह तो मैं
कहने वाला था कि मेरे दिमाग ने ही इन्हें प्रभावित किया होगा। बाकी तो मेरे पास
कुछ है नहीं।
दीया- एक तहजीब थी
इनमें। आजकल इतनी तहजीब के लड़के कम ही मिलते हैं। मेरे लिए वह बहुत रिफ्रेशिंग बात
थी। हो सकता है ऐसे लोगों से मेरा संपर्क नहीं रहा हो या फिर हमारी इंडस्ट्री में
ज्यादातर लोग कैजुअल होते हैं। सभी अपने डर और असुरक्षा में घिरे रहते हैं। कुछ
लोग अपने आत्मविश्वास की कमी भी छिपाने के लिए करते हैं। उसमें कोई बुराई नहीं है।
इसके पहले मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था। एक इंसान से मैं मिली और उसे ज्यादा से
ज्यादा जानने के लिए उत्सुक हो गई। मैं इनकी सोच समझना चाहती थी। इनके साथ वक्त
बिताना अच्छा लगने लगा। हम लोग मानसिक तौर पर जुड़ गए थे। उन दिनों मैं चार फिल्मों
की शूटिंग कर रही थी। मेरा ज्यादातर समय सफर में गुजर रहा था। अरशद वारसी के साथ ‘हम तुम और घोस्ट’ की शूटिंग न्यू कासल में चल रही थी, ‘एसिड फैक्ट्री’ पर काम चल रहा था। शुजित सरकार की फिल्म की ‘शू बाइट’ की शूटिंग चल रही थी। काम के फ्रंट पर सब कुछ गतिमान
था, लेकिन निजी और मानसिक स्तर
पर साहिल सब कुछ लेकर आए। हमारे बीच प्यार से पहले अटूट सम्मान पैदा हुआ।
साहिल- मिलने से
पहले मैं किसी के बारे में कोई राय नहीं रखता। मिलने के बाद ही तय होता है कि किसी
खास आदमी से आप की क्या ट्यूनिंग है? उससे आप की जिंदगी में महत्व तय होता है। यह बहुत जरूरी है। दीया से मिलते
समय मैं घबराया हुआ था। घबराहट इस बात की थी कि दीया कैसे रिएक्ट करेंगी? दीया से मिलना अच्छा लगा था। इनमें एक नजाकत
और तहजीब है। वह अच्छे तरीके से पेश आती हैं। ध्यान से बातें करती हैं। फोन पर ही
मैंने महसूस कर लिया था कि दीया जमीनी हस्ती हैं। फोन पर हुई बातचीत में मिलना तय
हो गया। कोई रद्दोबदल नहीं हुआ। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लोगों का मिलना ही एक
बड़ी मुसीबत होती है और मुझे पता था कि कैसे दो-तीन रद्दोबदल के बाद मिलना ही रद्द
हो जाता है। दीया से तय दिन को ही मुलाकात हुई। उन्होंने मीटिंग सिर्फ पैंतालिस
मिनट आगे बढ़ाने की मोहलत मांगी थी। पहला इंप्रेशन अच्छा हुआ था। मुलाकात के दिन का
क्या कहूं दीया तो हैं हीं खूबसूरत। यह कोई नई बात नहीं है। मेरी सारी चिंता यह थी
कि मिले हुए दो घंटे में मैं अपनी कहानी सुनाते हुए इन्हें प्रभावित कर लूं। मैं
पन्नों में डूबा रहा। कहानी सुनाना बहुत ही ऊबाऊ प्रक्रिया है। इमोशन के साथ 120 पेज सुनाना आसान काम नहीं। कहानी के आखिरी
हिस्से तक आते-आते दीया की आंखों से आंसू टपकने लगे। मैं घबरा गया कि क्या इतनी
बेकार कहानी है कि ये रो रही हैं? कहानी
लिखते समय लेखक भावनाओं में उतना नहीं डूबता। लिखते-लिखते वह भावहीन हो जाता है।
दीया को सुनाने के बाद मुझे लगा कि सचमुच मैंने कुछ अनोखा लिख दिया है। कहानी
सुनने के बाद दीया ने थोड़ा समय मांगा। उन्होंने आंसू पोंछे। वह फ्रेश होकर आईं और
फिर उन्होंने कहानी की विशेषाओं की चर्चा की। उससे यह भी समझ में आया दीया खुद
कितनी संवेदनशील हैं? उस कहानी
का टायटिल था ‘कुछ इस तरह’। वह एक शादीशुदा दंपति की कहानी थी।
दीया- उन पति-पत्नी
के पास सब कुछ था, लेकिन उनका
दांपत्य सही नहीं जा रहा था। उनके पास रिश्ते, नौकरी, सुरक्षा
सब था, लेकिन कुछ मिस कर रहा था।
दूसरी तरफ एक और जोड़ी थी, जिनके
पास कुछ नहीं था और वे शादीशुदा भी नहीं थे, लेकिन वे अपने संबंधों में सुखी व सफल थे।
साहिल- वह रिश्तों
की कहानी थी। गुड लुक, केमिस्ट्री
आदि कहने की बातें हैं। समय बीतने के साथ ये चीजें बदल जाती हैं। असल चीज है
ट्यूनिंग। मतलब कि आप के फंडे मिलते हैं। एक-दूसरे की सोच को समझते और सराहते हैं।
दीया और अपनी बात कहूं तो हमारे फंडे काफी मिलते-जुलते हैं, लेकिन उनके अमल में हमारी भिन्नताएं जाहिर होती हैं।
हम कभी सहमत होते हैं और ज्यादातर असहमत होते हैं। एक-दूसरे से बातें करते हुए
हमने खुद को समझा। शुक्र है कि दीया उन दिनों न्यू कैसल(इंग्लैंड) में शूट कर रही
थीं। अगर कहीं अमेरिका में शूटिंग होती तो मेरी हर रात बातों में ही निकल जातीं।
मैं जागता रहता।
दीया- उस स्क्रिप्ट
पर तो फिल्म नहीं बन सकी, लेकिन
हम साथ रहने लगे और फिर शादी भी हो गई। मुझे लगता है वह फिल्म बननी चाहिए।
साहिल- फिल्म तो बन
ही जाती, लेकिन तभी मंदी चालू हो
गई थी। उस समय के हिसाब से मेरी फिल्म थोड़ी महंगी थी। मुझे लगता है कि अब उस कहानी
का सही वक्त आया है। मैं ज्यादा अनुभवी हो गया हूं। दीया का भी अनुभव बढ़ा है। अब
हमारी एक कंपनी है। हम उस फिल्म को ज्यादा बेहतर तरीके से बना पाएंगे। मेरी फिल्म
बायलिंगुअल थी। तब तो सोचा गया था कि अंग्रेजी संवाद हिंदी में लिखे जाएंगे,
लेकिन अब मुझे लगता है कि वह फिल्म वैसे
ही बन सकती है।
दीया- उस कहानी में
बहुत खूबसूरत विरोधाभास है। हम सभी पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था में जी रहे हैं।
उपभोक्ता समाज में रहते हैं। हमें हर मोड़ पर और..और.. और बताया जाता है। हम जानते
भी नहीं और हम लालच करते हैं। उस कहानी में बताया गया है कि कामयाबी हासिल करने के
चक्कर में रिश्ते भुन जाते हैं। सच्चाई यह है कि इंसान को खुशी देने वाली
छोटी-छोटी बातों के लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते। यह बहुत महत्वपूर्ण सोच है।
दीया- उस कहानी में
बहुत खूबसूरत विरोधाभास है। हम सभी पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था में जी रहे हैं।
उपभोक्ता समाज में रहते हैं। हमें हर मोड़ पर और..और.. और बताया जाता है। हम जानते
भी नहीं और हम लालच करते हैं। उस कहानी में बताया गया है कि कामयाबी हासिल करने के
चक्कर में रिश्ते भुन जाते हैं। सच्चाई यह है कि इंसान को खुशी देने वाली
छोटी-छोटी बातों के लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते। यह बहुत महत्वपूर्ण सोच है।
मेरे करियर के आरंभ से डायरेक्टर, टेक्नीशियन
और दूसरे संबंधित लोग हमेशा मुझे नोट भेजते थे कि तुम बहुत खूबसूरत हो। तुम सफल
हो। तुम्हें किसी बहुत अमीर आदमी से शादी करनी चाहिए। बिजनेसमैन हो, उद्योगपति हो जो भी हो, उसके पास पैसे हो। मुझसे कहा जाता था कि तुमने छोटी
उम्र से काम शुरू किया। सेल्फ मेड हो,
लेकिन अब किसी ऐसे आदमी से शादी करो कि
रानी की तरह जिंदगी बिता सको। मैं उनसे यही कहती थी कि आप सभी मेरी शादी किसी
इंसान से नहीं, बल्कि पैसों से
कराना चाहते हैं। आप की नोट में कभी यह नहीं लिखा होता कि किसी सच्चे इंसान से
शादी करो। ऐसा सच्चा इंसान, जिसकी
सोच अच्छी हो। फैमिली अच्छी हो। वह खुद अच्छा हो। हमारी इंडस्ट्री में एक्ट्रेस के
बारे में ऐसे ही सोचा जाता है। हमारे ऊपर दवाब रहता है कि हमारी शादी इसलिए किसी
अमीर से होनी चाहिए कि बाद की जिंदगी में कोई तकलीफ न हो। मेरा यही सवाल रहता था
कि अगर मेरे मां-बाप ने मुझे पूरी आजादी दी है। मुझे यह सिखाया है कि अपने दम पर
कामयाबी हासिल करो तो शादी के बाद इस सोच में क्यों बदलाव आए? मैं क्यों अपनी आजादी और उद्यमशीलता खो दूं। मैं
पैसे कमाना क्यों छोड़ दूं? मेरी
पहचान मेरे पार्टनर की आमदनी से क्यों जुड़े? शुरू से मैं थोड़ी विद्रोही रही हूं। मैं जानती हूं कि
आज की लड़कियों पर बंदिशें लगा दी जाती हैं कि आप ऐसे आदमी से शादी करिए, जिसकी आमदनी अच्छी हो।
साहिल- ऐसी सोच में
बदलाव लाना जरूरी है। अपने देश में अवसरों की कमी नहीं है। युवकों-युवतियों को उन
अवसरों के बारे में सोचना चाहिए। पार्टनर के साथ अपनी ट्यूनिंग देखनी चाहिए। एक
कनेक्ट बन जाए तो अपनी जिंदगी में आप जो भी हासिल करोगे, उसका आनंद उठा पाओगे। दीया मूल्यों पर ज्यादा जोर दे
रही हैं।
दीया- बिल्कुल। मैं
संबंधों में भौतिकवादी रवैया पसंद नहीं करती।
साहिल- असल चीज है
नीयत।
दीया- हां..। नीयत
सही होनी चाहिए। बाकी चीजें तो आती-जाती रहेंगी। नीयत सही हो। दोनों क्या कर रहे
हैं? क्या कमाते हैं? इन चीजों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हम जिस
पीढ़ी के हैं। उसके पास पूर्वजों की अचल संपत्ति नहीं है। गहने-जेवर नहीं हैं।
हमारी पीढ़ी के लड़के-लड़कियों ने खुद को बनाया है। अपने बलबूते पर सुख जुटाया है।
अपनी पसंद से सारे काम कर रहे हैं। शादियां कर रहे हैं। फिर नीयत की ईमानदारी
जरूरी चीज हो जाती है। वह रहे तो सब कुछ हासिल हो जाता है। मूल्यों से संबंध बने
तो ठीक रहता है। नहीं तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं। गंध आने लगती है। सब कुछ खोखला
हो जाता है।
साहिल- दीया की
बातों से लग सकता है कि यह सब शहरी बातें
हैं। मेरा अनुभव यही कहता है कि छोटे-बड़े सभी शहरों में यूथ ऐसा ही सोच रहा है।
सभी अपने बलबूते पर आगे बढ़ रहे हैं। अखबारों में किस्से आते हैं कि कैसे गरीब तबके
के बच्चे बड़ी कामयाबी हासिल कर रहे हैं। वे आईआईटी में जा रहे हैं।
दीया- मेरे बावर्ची
के बेटे आईआईएम जा रहे हैं। मुझे तो बहुत अच्छा लगता है। जिस दिन मैंने सुना उस
दिन मैं खुशी से झूम उठी थी।
साहिल- दीया बेहतर
इंसान हैं। भले ही उनका नाम दीया मिर्जा रहा हो या अभी दीया मिर्जा संघा हो गया हो,
वह दीया कपूर या दीया खान होती तो भी
दीया ही होती। तब हमारी मुलाकात शायद किसी और तरीके से होती। वह जिस अदब और रुआब
के साथ पेश आती हैं, वह उनकी
खासियत है। वह किसी और प्रोफेशन में होती तो भी ऐसी ही रहती। मेरे मन में यह ख्याल
कभी नहीं आया कि मैं दीया मिर्जा अभिनेत्री से मिल रहा हूं।
दीया- मैं आप की
जिंदगी की बेहतरीन लड़की रही हूं।
साहिल- आप आज भी
बेहतरीन हो।
दीया- लेकिन आप मेरी
जिंदगी के बेहतरीन लड़के हैं।
साहिल-दीया से मेरी
मुलाकात 27 साल की उम्र में हुई
थी। मैं बहुत यंग था। तब तक मैंने नहीं सोचा था कि 30 के पहले शादी करूंगा। और फिर दीया के डैड ने उन्हें
समझाया था कि किसी भी लड़के के साथ तीन साल रहने के बाद ही शादी का फैसला करना। तीन
सालों में उसके सारे तेवर पता चल जाएंगे। ऐसी सलाह देने वाले कितने डैड होंगे।
दीया- किसी भी पिता
के द्वारा दिया गया यह ‘बोल्डेस्ट
एडवाइस’ है। उन्होंने छोटी उम्र
में ही यह नेक सलाह दी थी कि कोर्टशिप का समय रखना। सांस्कृतिक रूप से पहले सभी
देशों में इसका पालन होता था। पहले मंगनी होती थी, फिर शादी होती थी। दोनों के बीच लंबा गैप होता था। अभी
यह दोनों रस्मी हो गया है। पहले लड़के-लड़की को अपने मंगेतर के साथ समय बिताने का
मौका दिया जाता था। इस दरम्यान बातचीत से एक-दूसरे को भली-भांति समझ जाते थे। अगर
कोई एक संबंध तोड़ता था तो दूसरा बुरा नहीं मानता था। उन फैसलों का आदर किया जाता
था। होता भी यही है कि शुरूआत में सभी अपना सुंदर और शिष्ट व्यवहार पेश करते हैं।
तब इंप्रेशन जमाने की कोशिश होती है और यह दोनों तरफ से होता है। जब दोनों तरफ से
नेचरल साइड दिखने लगता है तब भी क्या दोनों एक-दूसरे को स्वीकार कर पाते हैं?
क्या आप के झगड़ों में आदर था? हर संबंध में झगड़े होते हैं और वह जरूरी भी है
लेकिन आदर नहीं खत्म होना चाहिए। मर्यादा का पालन होना चाहिए। झगड़े के बाद कितनी
जल्दी एक-दूसरे की बात मान लेते हैं या मना लेते हैं। क्या ईगो कहीं आता है?
मेरे ख्याल में यह हर संबंध में जहर
होता है। डैड ने कहा था कि तीन सालों में सारी हकीकत सामने आ जाएगी, क्योंकि कोई भी इंसान तीन सालों तक नाटक नहीं
कर सकता या कर सकती है।
‘’
साहिल- उसके लिए
जरूरी यह है कि दोनों साथ में समय बिताएं। अब आप का मंगेतर अगर पायलट हो गया तो वह
ज्यादातर हवा में ही रहेगा। बात ही नहीं हो पाएगी। लड़की के साथ भी ऐसी बात हो सकती
है। दीया से पहले मुलाकात के बाद ही हम दोनों बहुत ज्यादा एक-दूसरे के साथ रहे। हम
लोग साथ में पिक्चर बना रहे थे तो हर लेवल पर एक-दूसरे का एक्सपोजर हो रहा था।
सहमति-असहमति से स्वभाव पता चल रहा था। हम दोनों को माता-पिता का आर्शीवाद मिला
हुआ था। हमारे परिवार के लोग साथ में थे। एक-दूसरे के प्रति हमारे मन में आदर था।
ऊपर से मैं रस्मी और दिखावटी नहीं हूं। हमें शादी की कोई हड़बड़ी नहीं थी। शादी
हमारे लिए संबंधों पर लगी मुहर नहीं थी। दीया की मां ने बहुत अच्छी बात कही थी
उनसे जब तारीखों की बात चल रही थी तो उन्होंने दो टूक कहा था कोई भी तारीख रख लो,
क्या फर्क पड़ता है? मेरे लिए तुम दोनों शादीशुदा हो।
दीया- बिल्कुल। हम
दोनों एक रिश्ते में थे। अटूट रिश्ते में थे। सात सालों तक साथ रहे। उन सात सालों
में हमने कंपनी खोली। दो फिल्में बनाईं। हम दुनिया की नजरों में एक थे और परिवार
के लिए एक कपल। दोनों परिवारों में हमारा आना-जाना था। हमारे बीच एक होने का बहुत
खूबसूरत एहसास था। फिर शादी करने की क्या जरूरत थी? कोई पूछ सकता है। मुझे लगता है कि लड़कों के लिए कोई
खास बात नहीं होगी, लेकिन
लड़कियों के लिए शादी का माहौल और जश्न यादगार होता है। सभी जमा होते हैं और हमारे
साथ होने का गवाह बनते हैं। सभी के सामने पार्टनरशिप शुरू होती है। यह एहसास बहुत
ही अध्यात्मिक है। हम जिन चीजों में यकीन करते हैं, शादी उन्हें ठोस बना देती है। शादी की घटना से साहिल
के प्रति मेरे प्यार में कमी या इजाफा नहीं हुआ है। जो पहले था, वह आज भी है और सच कहूं तो रोज थोड़ा बढ़ता है।
साहिल- शादी वास्तव
में स्प्रीचुअल रिमांइडर है।
दीया- हमने आर्य
समाजी तरीके से शादी की थी। वेदों की ऋचाएं सुनते समय सुकून और सुंदर लग रहा था।
हम उन ऋचाओं को दोहरा रहे थे। सभी उस माहौल और एनर्जी का हिस्सा बने हुए थे। हर
तरफ खुशी बरस रही थी। सभी को साथ लाने और उनके सामने एक-दूसरे के होने की कसमें
खाने को ही शादी का समारोह कहते हैं। शादी का असली मतलब उस समारोह से आगे होता है।
सच कहूं तो शादी तो हमारी बहुत पहले ही हो गई थी। न मैं किसी और के बारे में सोचती
थी और न साहिल। हमने ऑप्शन ओपन ही नहीं रखा था। आजकल यह बहुत सुनाई पड़ता है। मुझे
हैरत होती है। मेरी समझ में नहीं आता कि किसी से प्यार होने के बाद आप किसी और की
तरफ देख भी कैसे सकते हैं? यह
एहसास मन में आ भी कैसे सकता है? फिर
खुद को ही समझा लेती हूं कि उपभोक्ता समाज में यह मुमकिन है। शादी किसी भी लड़के के
लिए उसके संबंध की वैधता पर लगी मुहर है।
साहिल- यह बन गया
है। मैं तो प्यार और संबंध में किसी ऐसे मुहर पर यकीन नहीं करता। मेरे लिए शादी
एक-दूसरे के साथ किए गए वायदे को पूरा करना है। मुझे तो चर्च की शादी का सिंपल
तरीका बहुत अच्छा लगता है। उसमें दिखावा नहीं रहता है। पादरी एक-दूसरे से पूछता है
और शादी करवा देता है।
दीया- मेरी वेडिंग
प्लानर ने कहा कि बहुत समय के बाद मैं किसी ऐसी शादी का हिस्सा बनी हूं, जिसका हर पल स्प्रीचुअल था। इस शादी में कुछ
भी दिखावे के लिए नहीं हो रहा था। हम किसी से कुछ भी अच्छा नहीं करना चाहते थे। ना
हमारी कोई जिद थे कि फलां-फलां को शादी में बुलाएंगे या ले आएंगे। दुर्भाग्य से इन
दिनों शादियां दिखावा हो गई हैं। शादियों में नेता और अभिनेता बुलाए जाते हैं।
दोस्तों और मातहतों पर दवाब डाला जाता है कि वे किसी पॉपुलर पर्सनैलिटी को शादी
में ले आएं। ऐसा नहीं होना चाहिए।
दीया-
प्रेम मेरे लिए मर्यादा है। मर्यादा और सम्मान न हो तो प्रेम नहीं हो सकता।
खूबसूरत रिश्ते में कोई अहम नहीं होना चाहिए। सिर्फ आदर होना चाहिए। क्या किसी
बच्चे को गोद में उठाते समय मैं का एहसास रहता है? प्रेम में भी मैं नहीं आना चाहिए।
साहिल- सम्मान और
आदर के साथ एक-दूसरे के साथ रहने और आगे बढ़ने की इच्छा होनी चाहिए। आगे बढ़ने का
मतलब एक ही राह पर बढ़ना नहीं है। आगे बढ़ते हुए एक-दूसरे को थामे रखना काफी है।
शेयरिंग से प्यार बढ़ता और मजबूत होता है। प्यार एक जर्नी है।
दीया- प्यार का मतलब
यह नहीं है कि मन में तितलियां उड़ रही हैं। प्यार बिजली या रसायन भी नहीं है।
प्यार अनुमान और उतावलापन भी नहीं है। जब मैं निकल जाए और हम बच जाए तो समझिए
प्यार हो गया है।
दीया- मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि लोग ऐसा
क्यों कहते हैं कि हमेशा आप का पार्टनर किसी और प्रोफेशन का होना चाहिए? एक ही प्रोफेशन के हों तो बहुत जोश रहता है।
हम दोनों एक तरह की फिल्में बनाना चाहते हैं। अच्छी कहानियां सिनेमा में ले आएं।
इस कोशिश में हम एक-दूसरे के बारे में भी नई बातें जानते हैं। कुछ नया डिसकवर करते
हैं। खूबसूरत जुगलबंदी हो जाती है। मेरा तो एक ही मंत्र है कि ईगो संभाल लो,
बाकी सब संभल जाएगा।
साहिल- आप एक ही
प्रोफेशन के हों या अलग-अलग के, संबंध
और रिश्ता सहकर्मियों से बनेगा ही। उनसे एक दोस्ती होनी चाहिए।
दीया- हम दोनों बहुत
अच्छे दोस्त हैं। हम बहस करते हैं। एक-दूसरे को नाराज करते हैं। फिर मना लेते हैं
या मान जाते हैं। साथ में मिलकर ख्याली पुलाव पकाते हैं। सपने बुनते हैं। अगर हमें
कोई सोच अच्छी लग जाए तो हम उस पर घंटों बातें कर सकते हैं। साहिल अगर लेखक नहीं
होते तो भी हमारे बीच इसी तरह की बातें होती, क्योंकि हमारे अंदर के तार एक तरह से बने हुए हैं। मैं
ऐसे दंपतियों को जानती हूं, जो
घर लौटकर काम के बारे में बिल्कुल बातें नहीं करते। मेरा सवाल है कि भई ऐसा क्यों?
अगर काम में इतनी खूबसूरती है तो घर पर
काम की बातें क्यों नहीं? काम की
खुशी को दफ्तर में क्यों छोड़ दें? दुख-दर्द
शेयर करने में भी तो आगे बढ़ते हैं। साहिल सिर्फ फिल्मों से जुड़े हुए हैं। मेरे साथ
सुविधा है कि मैं कुछ और भी करती हूं। मैं बहुत इंटरेस्टिंग लोगों से मिलती हूं?
उनकी कहानियों के साथ मैं घर वापस आती
हूं। साहिल कहानियां लिखते हैं और मैं साहिल को दुनिया की कहानियां बताती हूं।
साहिल की पढने में दिलचस्पी है। हमारी जिंदगी एक कहानी की नींव पर टिकी है। बचपन
से मुझे साहिल की तरह ही कहानियों से लगाव है।
साहिल- साथ में काम
करने के अपने मजे हैं। मैं दीया की बातें ही दोहराऊंगा। हम अपनी उम्र के साथ ही
चलें तो बेहतर। मैं 18 साल के
लड़कों की तरह नहीं सोच सकता और न ही यह चाहूंगा कि वे मेरी तरह सोचें।
दीया- मुझे कहने में
कोई हिचक नहीं है कि साहिल से मिलने के समय मैंने महसूस किया कि मैं स्कूल गर्ल
हूं¸। खुद कर टीनएजर महसूस किया।
इन्होंने मुझे ऐसा एहसास कराया।
दीया- प्यार बताने
या जाहिर करने की जरूरत नहीं पडी। एक अनकही समझदारी बन गई थी? हम जिंदगी की बातें करते थे। अपने अनुभवों की
बातें करते थे। अपनी इच्छाओं और चाहतों की बातें करते थे। हमारी प्रेमकहानी में
आरंभ से ही एक प्रगति थी। मुझे याद नहीं कि मैंने कभी ‘आई लव यू’ कहा होगा। दो बार की मुलाकात के बाद मैंने इन्हें कहानी की एक किताब गिफ्ट
की थी ‘इन टू द वाइल्ड’। उस पर मैंने एक संदेश लिखा था-हैप्पीनेस कैन
वनली एक्जिस्ट इफ यू हैव समवन टू शेयर इट विथ। मे यू फाइंड दैट समवन टू शेयर योर
हैप्पीनेस विथ।’ तब तो मुझे
मालूम भी नहीं था कि ये किसी रिलेशनशिप में हैं या अकेले हैं। इनकी जिंदगी में
क्या चल रहा है? बस,इतना पता था कि ये बहुत खूबसूरत दिमाग और दिल
के आदमी हैं।
साहिल- हम दोनों में
विचारों की शेयरिंग चल रही थीं। दीया कुछ फिल्में बताती थीं। मैं कुछ फिल्में
सुझाता था। फोन पर चल रही लंबी बातों से लगने लगा था। दीया लौटीं तो मिलने के बाद
प्यार का एहसास बढा। हम दोनों की मुलाकातें बढ गईं। मैं आज तक दीया को कह ही रहा
हूं। अभी तक ठीक से नहीं कह पाया। इतना कह सकता हूं कि मेरे प्रेम में निरंतरता
है।
दीया- साहिल एकबारगी
कुछ भी नहीं कहते या करते। धीरे-धीरे सब कुछ जाहिर करते हैं। धमाके से कुछ कह दो
तो उसे जिंदगी भर निभाना मुश्किल होता है।
साहिल-मैं तो हमेशा
कहता हूं कि अपने पार्टनर के बारे में पॉजीटिव रहें। किसी एक बात से अपसेट हैं तो
बाकी सात बातें याद कर लें,जिनसे
खुश हैं। किसी एक पर अटकने का मतलब है कि आप जिद कर रहे हैं। प्रेम तो हमेशा वर्क
इन प्रोग्रेस की तरह होता है।
साहिल-शादी के बाद
हमारे बीच एक-दूसरे को स्पेस देने की बात पर कभी हंगामा नहीं हुआ। एक बार कपबोर्ड
में स्पेस को लेकर कुछ बातें हुई थीं। स्पेस तो मिल जाता है।
दीया- यह पर्सनैलिटी
से जुड़ा है। खलील जिब्रान ने लिखा था- ड्रिंक टुगेदर,बट डोंट ड्रिंक फ्राम द वन कप। शदी का मतलब 1 बटा दो नहीं होता। सब कुछ शेयर करना है,लेकिन अपनी इंडिविजुअलिटी बचाए रखना है। दोनों
शादी में कुछ जोडें¸। साहिल की
अपनी पर्सनैलिटी है? वह मैं उनसे
नहीं छीन सकती। साहिल भी मुझ से नहीं ले सकते। ढेर सारे लोग अपने पार्टनर को अपने
जैसा बनाने की कोशिश में उसे खो देते हैं। या फिर यह सोचते हैं कि हर चीज शेयर करनी
चाहिए। मैं घंटों अकेले रहती हूं। वह समय मेरे लिए बहुत खास है। अकेले बैठे
किताबें पढ़ना भी जरूरी है। हमेशा हाथ पकड़े बैठे रहने का क्या मतलब है। रोजगार तो
करना पड़ेगा। सब कुछ साथ करेंगे तो एक-दूसरे को क्या बताएंगे? एक -दूसरे की ग्रोथ को कैसे समझेंगे? टू मच एग्रीमेंट किल्स ए चैट।
दीया-लड़कियों को
केवल यह देखना चाहिए कि उसका प्रेमी आदर देता है या नहीं? आरंभ का आकर्षण खत्म हो जाता है। दोनों एक-दूसरे को
आदर देने के साथ परिवारों को भी आदर दें। बाकी सब ठीक हो जाता है? इंटेग्रिटी,ओनेस्टी और रेसपेक्ट ¸ ¸ ¸ये तीन गुण मैंने देखे थे। ये तीनों गुण हों तो लड़का
हस्बैंड मैटेरियल होता है। कैफी आमी ने लिखा थ न- उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है
तूझे। आदमी और औरत दोनों समान हैं। दोनों एक-दूसरे को समान आदर दें तो हर मुश्किल
जीत जाएंगे।
साहिल- किसी भी देश
में मर्द को सारी बातें देरी से समझ में आती हैं। मैं तो चाहूंगा कि लड़की पहले ले
खुद से प्रेम करती हो। वह ऐसी हो कि लड़का झख मार कर आए। सभी को दीया जैसी लड़की
नहीं मिल सकती। यह सच है। दीया के व्यक्तित्व में उनके माता-पिता की दी गई नसीहत
है। उन्हें अच्छी परवरिश दी। तभी तो मैं आकर्षित हुआ। दीया की अपनी पहचान है। लड़की
ऐसी हो, जो खुद से प्यार करती
हो। खुद पर ध्यान देती हो। व्यक्तित्व ऐसा हो, जो कोई उससे इंकार न कर सके।
दीया- साहिल आप ऐसे
देश में हैं, जहां सभी मर्दों की
अपेक्षा रहती है कि औरतों में सारे गुण हों। फिर लड़कियों में क्या गुण देखे जाएं
कि उनसे शादी की जाए। मर्द खुद को श्रेष्ठ और अधिकारी मानते हैं। आप की परवरिश ऐसी
रही कि आप में ये बातें नहीं हैं।
साहिल- मर्दों पर
उनकी परवरिश का ही असर होता है। मैं तो यही कहूंगा कि हर माता-पिता अपनी लड़कियों
को ऐसे पाले कि वे खुद अपने लायक लड़कों को चुन सके। लड़की जागरुक और स्वतंत्र होगी
तो लड़कों को झुकना पड़ेगा। मैं तो देखता हूं कि हमारे समाज में लड़के भी ढंग से बड़े
नहीं हो पाते। अपनी मेहनत से सब कुछ हासिल करने के बाद शादी के बाद आते ही
माता-पिता की रुचि का ख्याल रखने लगते हैं। दरअसल वे बेवकूफ और कमजोर होते हैं। वे
अपनी जिंदगी का बड़ा फैसला खुद नहीं ले पाते।
दीया- किसी भी
सोसायटी की नींव बदलनी हो तो सबसे पहले औरतों केा बदलना होगा। उसकी सोच व नजरिए
में बदलाव आ जाए तो सब कुछ बदल जाएगा। देखें तो हर लड़के की मां एक औरत ही होती है।
लड़के मां से ही सीखते हैं। मैंने देखा है कि माएं अपने बेटे-बेटियों को अलग-अलग
नजरिए से पालती हैं। मां की तरफ से दी गई ढील लड़कों को ऐसा मर्द बना देती है,
जो अपनी बीवी व बेटी को समान नहीं
समझते। उनके लिए लड़कियां उपभोग की चीजें होती हैं। शारीरिक संतुष्टि और प्रजनन
मात्र के लिए लड़कियों की जरूरत रह जाती है। लड़कियां सिर्फ वंश बढ़ाने के लिए नहीं
होती हैं। मर्दानगी इसमें नहीं है कि आप औरतों के साथ क्या व्यवहार करते हैं?
मर्दानगी इसमें देखनी चाहिए कि आप खुद
क्या हैं?
साहिल- मैं तो यही
कहूंगा कि लड़कियां सशक्त और स्वतंत्र हों तो लड़कों की कथित मर्दानगी खुद ही खत्म
हो जाएगी। वे लड़कियों की इज्जत करने लगेंगे।
दीया- एक सवाल और है
कि संविधान से जो अधिकार लड़कियों को मिले हैं, उनका वे गलत इस्तेमाल भी कर रही हैं। यह असंतुलन का
नतीजा है। झूठे इल्जाम में पति या प्रेमी को फंसाना उतना ही गलत है, जितना लड़कियों को ओछी नजर से देखना। हम सभी
सौहार्द से रहें। एक दूसरे को सम्मान और अधिकार दें। तभी लड़के-लड़कियों में समानता
की बात मुमकिन होगी। जरूरत है कि हम किसी के साथ बुरा व्यवहार न करें।
साहिल-संक्षेप में
हमें नियंत्रण के लोभ से बचना चाहिए। संबंधों में ज्यादातर दिक्कतें यहीं से पैदा
होती हैं।
Comments