दरअसल : हिंदी प्रदेशों में सिनेमा और सरकार
-अजय
ब्रह्मात्मज

इतना ही नहीं। विशाल कपूर बताते हैं,’मुख्यमंत्री महोदय इसे ‘अधिक फिल्में,अधिक रोजगार’ के तौर पर देखते हैं। वे चाहते हैं कि
बनारस और लखनऊ ही नहीं,प्रदेश के दूसरे मनोरम स्थानों में भी शूटिंग की सुविधाएं
दी जाएं। दो स्थानों उन्नाव और लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस पर फिल्मसिटी स्थापित
करने की योजना है। उत्तर प्रदेश में शूट की गई पहली फिल्म के लिए भी अनुदान की
व्यवस्था है। फिल्म विकास परिषद बच्चों के लिए भी कुछ करना चाहता है।‘ उत्तर प्रदेश की तरह अगर दूसरे हिंदी
प्रदेश भी हिंदी फिल्मों के लिए अपने दरवाजे खोलें तो हिंदी सिनेमा के इतिहास में
नए चैप्टर की शुरूआत हो सकती है। अभी बिहार में प्रस्तावित फिल्म नीति ठंडे बस्ते
में चली गई है। कुछ सालों पहले फिल्म समारोह आरंभ हुए थे,लेकिन नई सरकारों की
उदासीनता से वह क्रम टूट गया। चुनाव के बाद सरकार किसी की भी आए। नई सरकार को फिल्मों
के प्रति गंभीरता बरतनी चाहिए।
मध्य प्रदेश अन्य कारणों से विवाद में
है,लेकिन फिल्मों के प्रति उनका समर्थन उल्लेखनीय है। प्रकाश झा की कुछ फिल्में
मध्य प्रदेश में ही शूट हुई हैं। निश्चित ही वहां की सुविधा और सुकून की वजह से
प्रकाश झा कहीं और नहीं जाते। दूसरे फिल्मकार भी बताते हैं कि उन्हें अपनी फिल्मों
की शूटिंग में पुलिस और प्रशासन का भरपूर समर्थन और सहयोग मिलता है। मध्यप्रदेश
के साथ एक सुविधाजनक बात यह भी है कि मुंबई से अपेक्षाकृत नजदीक होने के कारण
कलाकारों का भोपाल या इंदौर जाना-आना आसान होता है। राजस्थान में हवेलियों और
प्राकृतिक सुदरता की वजह से हिंदी फिल्मों की लगातार शूटिंग चलती है। चूंकि
निर्माता और निर्देशक मनोहार लोकेशन के लिए खुद ही राजस्थान जाते हैं,इसलिए सरकार
किसी प्रकार के अनुदान या प्रलोभन की जरूरत नहीं समझती। फिर भी राजस्थान सरकार को
राजस्थानी सिनेमा या प्रदेश के हिंदी सिनेमा को बढ़ावा देने की पहल करनी चाहिए।
अभी राजस्थानी में बनी फिल्मों का उसकी पूर्णता के बाद दस लाख की समर्थन राशि दी
जाती है। इस समर्थन का केवल प्रतीकात्मक महत्व रह गया है।
इन चार प्रदेशों के साथ हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड
और झारखंड जैसे भी प्रदेश हैं। हम जानते हैं कि ये प्रदेश भी सिनेमा के लोकेशन के
लिए मुफीद हैं। इन प्रदेशों के टैलेंट मुंबई में कार्यरत हैं। इन प्रदेशों की
सरकारें अपने यहां की प्रतिभाओं का सुविधाएं और मौके देकर फिल्मों के विकास में
योगदान कर सकती हैं। अभी फिल्मों के प्रसार की संभावनाएं बनी हुई हें। तकनीकी
विकास और उपलब्धता ने फिल्म निर्माण के लिए मुंबई,चेन्नई या कोलकाता पर फिल्मकारों
की निर्भरता कम कर दी है। अब यह मुमकिन ही कि सुदूर इलाकों और शहरों में बैठ कर भी
फिल्मों की शूटिंग की जा सके।
जारी...
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