जोशीले इंसान की प्रेमकहानी है माझी - केतन मेहता
-अजय ब्रह्मात्मज
दशरथ माझी के
जीवन पर आधारित केतन मेहता की फिल्म ‘माझी-द माउंटेनमैन’ एक आम आदमी की बॉयोपिक
है,जिसने अपने जिद और जोश से पहाड़ को काटा। अपने गांव-समुदाय के लिए उसने वह
असंभव काम किया,जो आज भी चकित करता है। दशरथ माझी की मृत्यु के बाद उनकी कहानी
देश भर में छपी तो अनेक फिल्मकारों ने उनमें रुचि दिखाई। उनके जीवन पर फिल्म
बनाना पहाड़ काटने की तरह ही मुश्किल रहा। केतन केहता ने यह मुश्किल हल की। उन्होंने
नवाजुद्दीन सिद्दीकी और राधिका आप्टे के साथ साहसी व्यक्ति की गाथा को
प्रेमकहानी के रूप में निरूपित किया।
-माझी को किस रूप में प्रेजेंट करने जा रहे हैं ?
0 माझी
हमारे देश के सुपरमैन हैं। वह एक फैंटेसी फिगर हैं। उन्हें आप रियल लाइफ सुपरहीरो
कह सकते हें। ‘माझी’ आवेशपूर्ण प्रेमकहानी है। विजय की प्रेरक कहानी है। एक तरफ
इश्क की दीवानगी है और दूसरी तरफ कुछ कर गुजरने का जुनून है। इनके बीच पहाड़ काट
कर रास्ता बनाने की जिद है। नामुमकिन को
मुमकिन बनाने का जज्बा है। यह बहुत ही पावरुुल कहानी है।
- आप के जीवन में माझी कैसे आए ?
0 2007
में उनके देहांत के बाद अखबारों और पत्रिकाओं में उनके बारे में अनेक लेख छपा। हम
हिंदुस्तानियों की पुरानी आदत है कि किसी के मरने के बाद ही हम उसका महत्व समझ
पाते हें। उनसे संबंधित लेख पढ़ने के बाद उनका जीवन दिल को छू गया। मुझे लगा कि
उनकी कहानी पर फिल्म बना कर लोगों से शेयर करना चाहिए। फिर रिसर्च आरंभ हुआ...
-उनकी किस बात ने प्रभावित किया ?
0मुझे उनके जोश
ने प्रभावित किया था। हिम्मत से जूझने और हार न मानने के जोश ने मुझे प्रेरित
किया। मैंने फिल्म में उसी जोश को रखा है। उनका जीवन गजब की प्रेमकहानी भी है।
उन्होंने पहाड़ क्यों काटा। यह तो मोहब्बत की इंतहा है कि कोई 22 सालों तक
पहाड़ काटता रहे। मनुष्य की इच्छाशक्ति के विजय की कहानी है यह।
-हिंदी फिल्मों में बिहार किसी हिंसक जगह और यहां की
कहानियां मुख्य रूप से अपराधों से जुड़ी रही है। आप उसी भूमि से एक प्रेमकहानी ला
रहे हैं...
0 सच कहें तो बिहार में कहानियों की खान है। वहां हर तरह की
कहानियां हैं। माझी की कहानी पूरी दुनिया के लिए प्रेरक है। उनकी जिंदगी में दूसरा
कोई काम ही नहीं था। अपने काम के एवज में उन्हें कुछ चाहिए भी नहीं था।
-आप ने वास्तविक लोकेशन पर ही शूटिंग की ?
0 और कहीं इसे किया भी नहीं जा सकता था। वहां पहुंचने पर
पहाड़ देखने के बाद यकीन ही नहीं हुआ कि कोई इंसान ऐसा मुश्किल काम भी कर सकता है।
जिंदगी में मुझे ऐसा ताज्जुब नहीं हुआ था। हम ने गया को बेस कैंप बनाया था। डेढ़
घंटे की चढ़ाई के बाद हम पहाड़ पर पहुंचते थे। जिस मुश्किल काम को उन्होंने 1960
से 1982 के 22 सालों में पूरा किया,वहां सड़क बनाने में सरकार को 30 साल लग गए। वे
अपनी जिंदगी में ही बाबा बन चुके थे। वे बोरा पहनते थे, इसलिए उन्हें बोरी बाबा
भी कहा जाता था। वह लिविंग लिजेंड बन गए थे।
-आप ने इतनी बॉयोपिक फिल्में की हैं। माझी की कहानी किस
तरह से अलग है ?
0 मैंने धुन के पक्के व्यक्तियों के बॉयोपिक पर ही काम
किया है। मैं स्वयं भी एक धुन में लगा हूं। आर्ट और कमर्शियल सिनेमा के बीच की
दीवार तोड़ने में लगा हूं। किसी की जिंदगी को दो घंटों में बताने के लिए जरूरी है
कि उसका केन्द्रीय विचार होना चाहिए। ‘सरदार’ में देश का जन्म था। ‘मंगल पांडे’
में देश की आजादी थी। ‘माझी’ में पैशन और ऑब्सेशन है। असंभव को संभव बनाने की
प्रेमकहानी है।
-माझी की प्रेमकहानी में सामुदायिकता है। उन्होंने अपने
समदाय के लिए कुछ किया। उनके प्रेमासिक्त काम में भी उद्देश्य था कि भविष्य में
किसी के प्रिय की मृत्यु उनकी बीवी फगुनिया की तरह नहीं हो।
0 बिल्कुल...उन्होंने कुछ ऐसा किया कि अपने दुख से बाहर
निकल कर पूरे गांव के बारे में सोचा। माझी के जीवन प्रसंगों को कहानी का रूप देने
में वर्द्धराज स्वामी और स्थानीय लेखक शैवाल से मदद मिली। कुछ पत्रकारों ने भी
मदद की। उनके जीवन के बारे में छिटपुट रूप से ढेर सारी सामग्रियां थें,लेकिन उन्हें
कहानी का रूप देना जरूरी था।
-कलाकारों के चुनाव के बारे में क्या कहेंगे ?
0 नवाज अपने दौर के उम्दा अभिनेता हैं। उन्होंने बहुत अच्छा
परफार्म किया है। भारतीय सिनेमा में ऐसा बेहतरीन अभिनय कम देखने को मिला है।
फगुनिया के किरदार के लिए मैं अनेक अभिनेत्रियों से मिला। मुझे जमीनी और नाजुक
मिजाज की लड़की चाहिए थी। राधिका से मिलते ही लगा कि फगुनिया हो सकती है।
- आप की फिल्मों में खुरदुरा यथार्थ रहता है। ‘माझी’ में
आप की यह खूबी बरकरार रहेगी न ?
0 बिल्कुल रहेगी। मेरी ‘मिर्च मसाला’ की याद आ सकती है। हम
सभी एक लंबे सफर के बाद यहां पहुंचे हैं। सभी की अपनी लड़ाई है। सिनेमा इतना
पावरफुल मीडियम है कि कहीं कुछ और करने का मन ही नहीं करता। अभी सिनेमा अच्छा दौर
चल रहा है। मैं काफी उम्मीद रखता हूं। अगले पांच सालों में हिंदी सिनेमा
इंटरनेशनल स्तर तक पहुंच जाएगा। तकनीकी रूप से हम ने बहुत उन्नति की है। रायटर-डायरेक्टर
नए आयडिया लेकर आ रहे हें। सबसे अच्छी बात है कि नया ऑडिएंस भी आ गया है।
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