दरअसल : करीना और अभिषेक के 15 साल


-अजय ब्रह्मात्मज
    30 जून 2000 को जेपी दत्ता की फिल्म ‘रिफ्यूजी’ रिलीज हुई थी। 2000 की अनेक बड़ी फिल्मी घटनाओं में यह भी एक महत्वपूर्ण घटना थी। अमिताभ बच्चन-जया भादुड़ी के बेटे अभिषेक बच्चन और रणधीर कपूर-बबीता की बेटी करीना कपूर की जोड़ी एक साथ पर्दे पर आ रही थी। कुछ पाठकों को यह याद होगा कि तब बच्चन परिवार और कपूर परिवार में खास नजदीकी व गर्माहट थी। अभिषेक बच्चन और करिश्मा कपूर के बीच रोमांस चल रहा था। इस रोमांस की पृष्ठभूमि में ‘रिफ्यूजी’ की रिलीज रोचक और रोमांचक हो गई थी। फिल्म स्टारों के बेटे-बेटियों की लांचिंग फिल्मों से इतर जेपी दत्ता ने भिन्न फिल्म बनाने की कोशिश की थी,जिसे उनके शोकेस के तौर पर नहीं पेश किश गया था।
    ‘रिफ्यूजी’ अभिषेक बच्चन और करीना कपूर की यादगार फिल्म है। यादगार सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह उन दोनों की पहली फिल्म है। फिल्म में जेपी दत्ता की निर्देशन शैली की अनेक खूबियां हैं। हालंाकि 15 सालों के बाद वे अब पुरानी व गैरजस्री लगती हैं, लेकिन वर्तमान के चलन में हमें अतीत की विशेषताओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। सीमित तकनीकी साधनों में ही जेपी दत्ता अपनी फिल्मों में एपिक विजुअल क्रिएट करते थे। उनकी फिल्में हमेशा ‘लार्जर दैन लाइफ’ इफेक्ट देती हैं। पृष्ठभूमि का विस्तार अपनी गहराई के साथ दिखता है। ‘रिफ्यूजी’ में सीमाओं की व्यर्थता का संदेश था। इस फिल्म के लिए लिखा जावेद अख्तर का गीत ‘पंछी नदियां पवन के झोंके ’ सरहद के सिद्धांत का विरोध करती है।
    ‘रिफ्यूजी’ की रिलीज के समय अभिषेक बच्चन पर भारी दवाब था। उनकी तुलना अमिताभ बच्चन से की गई और बाद की फिल्मों में भी उनमें अमिताभ बच्चन की झलक देखी जाती रही। अभिषेक बच्चन में कमियां हो सकती हैं, लेकिन पिता की तरह दिखना या भाव-भंगिमाओं में पिता की झलक देना अत्यंत स्वाभाविक है। नौंवे दशक के बाद आए सभी अभिनेताओं में अमिताभ बच्चन के मैनरिज्म की झलक मिलती है। अभिषेक बच्चन तो उनके बेटे हैं, जो उन्हें पर्दे के साथ घर पर भी देखते हुए बड़े हुए हैं। दरअसल, हम स्टारपुत्रों और पुत्रियों की परख की कसौटी सख्त कर देते हैं। थोड़ी देर के लिए अभिषेक बच्चन को उनके संबंधों से अलग कर देखें तो वे औसत से बेहतर अभिनेता दिखेंगे। 15 सालों के बाद भी उनकी सक्रियता से जाहिर है कि उनमें दम-खम है। बीच-बीच में उन्होंने अपनी प्रतिभा से चौंकाया भी है।
    अभिषेक बच्चन जैसा दवाब करीना कपूर पर नहीं था। उन्हें अपनी बहन करिश्मा कपूर की तरह संघर्ष नहीं करना पड़ा और न ही किसी से उनकी तुलना की गई। करीना कपूर में सहज आत्मविश्वास और नैसर्गिक प्रतिभा है। उन्होंने अपनी दमक और चमक दोनों से प्रभावित किया है। ‘चमेली’, ‘ओमकारा’ और ‘जब वी मेट’ जैसी फिल्मों में उन्होंने साबित किया है कि वह थोड़ा भी ध्यान दें तो उनके काम का गहरा असर होता है। करीना कपूर अपने करियर को लेकर कभी गंभीर नहीं रही हैं। उन्होंने खुद के लिए दिशा और मंजिल नहीं तय की, जब जैसी फिल्में मिलीं, उन्होंने कर लीं। वजहें अलग-अलग रहीं।
    मुझे लगता है कि अभिषेक बच्चन और करीना कपूर दोनों ही अपने करियर के प्रति बेपरवाह रहे। उन्होंने अभिनय को तो गंभीरता से लिया, लेकिन फिल्मों के चुनाव के प्रति गंभीर नहीं रहे। उनकी यह बेपरवाही कई बार पर्दे पर भी नजर आई। अगर दोनों को ढंग के निर्देशक मिले और वे अपने किरदारों को चुनौती के तौर पर लें तो वे ‘गुस्’ और ‘चमेली’ जैसी अनेक फिल्में दे सकते हैं। दोनों करियर और उम्र के खास मोड़ पर हैं।

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