फिल्‍म समीक्षा - दृश्‍यम

-अजय ब्रह्मात्‍मज 
           मलयालम, कन्नड, तेलूगु और तमिल के बाद ‘दृश्यम’ हिंदी में आई है। हिंदी में इसे दृश्य कहा जाएगा। संस्कृत मूल के इस शब्द को ही हिंदी के निर्माता-निर्देशक ने शीर्षक के तौर पर स्वीकार किया। भाषिक मेलजोल और स्वीकृति के लिहाज से यह उल्लेखनीय है। निर्माता ने फिल्म में इसे ‘दृष्यम’ लिखा है। यह गलत तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन हिंदी में प्रचलित नहीं है। इन दिनों अधिकांश निर्माता फिल्मों के पोस्टर हिंदी में लाने में रुचि नहीं लेते। लाते भी हैं तो रिलीज के समय दीवारों पर चिपका देते हैं। तब तक फिल्मों के नाम गलत वर्तनी के साथ पत्र-पत्रिकाओं में छप रहे होते हैं।
              हिंदी में बनी ‘दृश्यम’ में अजय देवगन और तब्बू हैं। दोनों उम्दा कलाकार हैं। तब्बू ने हर बार अपनी अदाकारी से दर्शकों को सम्मोहित किया है। ‘दृश्यम’ में पुलिस अधिकारी और मां की द्विआयामी भूमिका में वह फिर से प्रभावित करती हैं। दृश्यों के अनुसार क्रूरता और ममता व्यक्त करती हैं। अजय देवगन के लिए विजय सलगांवकर की भूमिका निभाने का फैसला आसान नहीं रहा होगा। पिछली कुछ फिल्मों ने उनकी छवि सिंघम की बना दी है। इससे बाहर निकलने पर वे कॉमेडी करते ही नजर आते रहे हैं। एक अंतराल के बाद उन्होंने भावपूर्ण किरदार निभाया है। उनकी अभिनय क्षमता का उपयोग हुआ है। अजय देवगन की आंखों और चाल में खास बात है। वे इनका भरपूर इस्तेमाल करते हैं। इस फिल्म में ही संरक्षक पिता और चालाक व्यक्ति के रूप में वे खुद को अच्छी तरह ढालते हैं। बड़ी बेटी का किरदार निभा रही इशिता दत्ता और छोटी बेटी के रूप में मृणाल जाधव ने दृश्यों के अनुसार नियंत्रित अभिनय किया है। मासूमियत, डर और बालपन को उसने उम्र के अनुरूप निभाया है। फिल्म में नृशंस और क्रूर पुलिस अधिकारी गायतोंडे के किरदार को कमलेश सावंत ने पूरे मनोयोग से निभाया है। फिल्म में कई बार गायतोंडे के व्यवहार पर गुस्सा आता है। 
                मलयालम में ‘दृश्यम’ को फैमिली थ्रिलर कहा गया था। हिंदी में भी इसे यही कहना उचित रहेगा। फिल्म में पर्याप्त थ्रिल और फैमिली वैल्यू की बातें हैं। खासकर मुश्किल और विपरीत स्थितियों में परिवार के सदस्यों की एकजुटता को दर्शाया गया है। स्क्रिप्ट की इस खूबी का श्रेय मूल लेखक जीतू जोसेफ को मिलना चाहिए। इसका हिंदीकरण उपेन्द्र सिध्ये ने किया है। उन्होंने हिंदी दर्शकों की रुचि का ख्याल रखते हुए कुछ तब्दीेलियां की हैं। अच्छी बात है कि निर्देशक निशिकांत कामत फिल्म के हीरो अजय देवगन की लोकप्रिय छवि के दबाव में नहीं आए हैं। यह फिल्म इस वजह से और विश्वसनीय लगने लगती है कि पिछली फिल्मों में दर्जनों से मुकाबला करने वाला एक्टर ऐसा विवश और लाचार भी हो सकता है। विजय सलगांवकर को लेखक-निर्देशक ने आम मध्यवर्गीय परिवार के मुखिया के तौर पर ही पेश किया है। विजय की युक्तियां वाजिब और जरूरी लगती हैं। 
              यह फिल्म मलयालम में रिलीज हुई थी तो तत्कालीन पुलिस अधिकारी सेनुकुमार ने आपत्तियां जताईं थीं। उनके अनुसार इस फिल्म से प्रेरित हत्याओं के अपराध सामने आए थे। इस पर बहस भी चली थी। सवाल है कि क्या ऐसी फिल्में अपराधी प्रवृति के लोगों को आयडिया देती हैं या इन्हें सिर्फ पर्दे पर चल रही काल्पनिक कथा ही समझें? अपराध हो जाने की स्थिति में सामान्य नागरिक मुश्किलों से बचने के लिए क्या कदम उठाएं? क्या परिवार को बचाने के लिए कानून को धोखा देना उचित है? ऐसी फिल्में एक स्तर पर पारिवारिकता को अपराध के सामने खड़ी करती हैं और पारिवारिकता के नाम पर सराहना भी बटोरती हैं। ऐसा भी तो हो सकता था कि पुलिस रिपोर्ट के बाद बेटी को अपराध मुक्त कर दिया जाता। यह फिल्म अमीर और संपन्न परिवारों की बिगड़ती संतानों की झलक भर देती है। वजह के विस्तार में नहीं जाती। यह फिल्म का उद्देश्य नहीं था, लेकिन चलत-चलते इस पर बातें हो सकती थीं। ‘दृश्यम’ अजय देवगन और तब्बू् की अदाकारी के लिए दर्शनीय है। 
अवधिः 163 मिनट
स्‍टार- *** तीन स्‍टार

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को