फिल्म समीक्षा : दिल धड़कने दो
स्टार ***1/2 साढ़े तीन स्टार
दरकते दिलों की दास्तान
-अजय ब्रह्मात्मज
हाल ही में हमने आनंद राय की 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में उत्तर भारत के मध्यरवर्गीय समाज और किरदारों की कहानी देखी। जोया अख्तरर की 'दिल धड़कने दो' में दिल्ली के अमीर परिवार की कहानी है। भारत में अनेक वर्ग और समाज हैं। अच्छी बात है कि सभी समाजों की मार्मिक कहानियां आ रही हैं। अगर कहानी आम दर्शकों के आर्थिक स्तर से ऊपर के समाज की हो तो तो उसमें अधिक रुचि बनती है, क्योंकि उनके साथ अभिलाषा और लालसा भी जुड़ जाती है। कमल मेहरा के परिवार में उनकी बेटी आएशा, बेटा कबीर, बीवी नीलम और पालतू कुत्ता प्लूटो है।
यह कहानी प्लूटो ही सुनाता है। वही सभी किरदारों से हमें मिलाता है। प्लूटो ही उनके बीच के रिश्तों की गर्माहट और तनाव की जानकारी देता है। आएशा के दोस्ते सन्नी गिल ने ही कभी प्लूाटो को गिफ्ट किया था, जो उनके प्यार की निशानी के साथ ही परिवार का सदस्य बन चुका है।
कमल और नीलम की शादी के 30 साल हो गए हैं। कमल मेहरा बाजार में गिर रही अपनी साख को बचाने और जोड़-तोड़ के लिए सभी मित्रों को क्रूज ट्रिप के लिए आमंत्रित करते हैं। इस समुद्र यात्रा में वे तुर्की, स्पेन, ट्यूनिशिया और इटली के बंदरगाहों से गुजरते हैं। जोया अख्तर ने दर्शकों को क्रूज ट्रिप के साथ ही उन सभी देशों की मनोहारी छटा भी दिखाई है।
सिनेमा का एक उद्देश्य दर्शकों को मनोरंजन के साथ पर्यटन देना भी है। जोया अख्तर इसमें कुशल हो रही हैं। उन्होंने बहुत खूबसूरती से सारे देशों के शहरों को कहानी में पिरोया है। 'दिल धड़कने दो' एक साथ बाहर और भीतर की यात्रा है। क्रूज पर चंद घटनाओं और प्रसंगों के जरिए हम किरदारों के मनोभावों और स्थितियों से भी परिचित होते हैं। उनके अंदर झांकते हैं।
जोया अख्ततर ने 'दिल धड़कने दो' में अमीर परिवारों की विसंगतियों को अच्छी तरह उकेरा है। ऊपर से खुशहाल दिख रहे ये किरदार वास्तव में घुट रहे हैं, लेकिन दिखावे के लिए सभी ने झूठ ओढ़ लिया है। मेहरा परिवार के सदस्यों को ही देखें तो वे ग्रंथियों के शिकार हैं। डिस्फंक्शनल फैमिली है उनकी। कमल मेहरा 'सेल्फा मेड' उद्योगपति हैं। वे पितृसत्ता में यकीन रखते हैं। उनके लिए वही ठीक और संगत है, जो वे सोचते हैं। उनकी बेटी आएशा और बेटा कबीर भी क्लाइमेक्स के पहले तक उनके फैसलों को स्वीकार करते रहते हैं। एक वक्त आता है, जब भावनात्मक विस्फोट होता है। इस विस्फोट में उनके ओढ़े चेहरे बेनकाब होते हैं। सभी के दरके दिल दिखाई देते हैं। फैमिली मेलोड्रामा होता है और फिर एक खुशहाल परिवार साथ-साथ दिखाई पड़ता है, जो सूरज बड़जात्या और करण जौहर की फिल्मों में दिखाई पड़ता है। उस पारिवारिक बंधन और प्रेम को दिखाने के लिए किरदारों की चेतना के साथ छेड़छाड़ भी हो गई है। किंतु किसे परवाह है? इस बेपरवाही में ही फिल्म का प्रभाव कमजोर होता है।
कथ्य के स्तर पर ‘दिल धड़कने दो’जोया अख्तर की पिछली फिल्मों से कमजोर है। मनोरंजन की मात्रा अवश्य बढ़ गई है। ऐसा लगता है कि नारी अधिकार और समानता की बातें यों ही कर दी गई हैं। हालांकि संवादों और भावों के जरिए उन प्रसंगों में जोया अख्तर, रीमा कागती और फरहान अख्तर ने किरदारों को भावनात्मक ज्वार दिया है। सभी अपनी बातें जोरदार तरीके से कहते हैं। आएशा और कबीर अपना पक्ष रखने के साथ उस पर टिके रहते हैं। औरतों की दो पीढि़यों में पिछली पीढ़ी की मजबूरी और नई पीढ़ी की आजादी भी जाहिर होती है।
कलाकारों में अनिल कपूर का काम उल्लेखनीय है। उन्होंने कमल मेहरा के भावनात्मक झंझावातों को सही मात्रा में पेश किया है। शेफाली शाह ने उनका भरपूर साथ दिया है। उनके एकाकी इमोशनल दृश्या झकझोरते हैं। इस फिल्म में रणवीर सिंह और प्रियंका चोपड़ा को पर्याप्त दृश्य और प्रसंग मिले हैं। उन्होंने नाटकीय और इमोशनल दृश्यों के साथ हंसी-मजाक के दृश्यों में भी प्रभावित किया है। प्रियंका चोपड़ा सक्षम अभिनेत्री होने का सबूत दे रही हैं। रणवीर सिंह को मामूली मसखरा न समझें। जरूरत पड़ने पर वे संयम और नियंत्रण से काम लेते हैं। फरहान अख्तर और अनुष्का शर्मा सहयोगी किरदार के तौर पर हैं। अपने चंद दृश्यों में वे जरूरी भूमिकाएं निभा ले जाते हैं।
फिल्म का सामूहिक गीत पूरी मस्ती और मनोरंजन देता है। इसमें सभी कलाकारों का बेफिक्र नृत्य मोहक और बंधनरहित है। रणवीर सिंह और अनुष्का शर्मा के बीच के रोमांटिक गानों में रोमांस कम है।
अवधि- 170 मिनट
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